रविवार, 27 दिसंबर 2020

वैज्ञानिक समय गणना तंत्र

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तंत्र (ऋषि मुनियो पर किया अनिल अनुसंधान )

■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग

■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग

■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,

■ 1 लव = 1 क्षण

■ 30 क्षण = 1 विपल ,

■ 60 विपल = 1 पल

■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,

■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )

■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,

■ 7 दिवस = 1 सप्ताह

■ 4 सप्ताह = 1 माह ,

■ 2 माह = 1 ऋतू

■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,

■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी

■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,

■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग

■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,

■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,

■ 4 युग = सतयुग

■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग

■ 72 महायुग = मनवन्तर ,

■ 1000 महायुग = 1 कल्प

■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )

■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )

■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )


सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l

दो लिंग : नर और नारी ।

दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।

दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।

दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।


तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।

तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।

तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।

तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।

तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।

तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।

तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।

तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।

तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।

तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।

तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।

तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।

तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।


चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।

चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।

चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।

चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।

चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।

चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।

चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।

चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।

चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।

चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।

चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।

चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।

चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।

चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।

चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।

चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।

चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।


पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।

पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।

पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।

पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।

पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।

पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।

पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।

पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।

पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।

पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।

पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।

पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।

पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।

पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।


छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।

छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।

छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।

छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।


सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।

सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।

सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।

सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।

सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।

सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।

सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।

सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।

सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।

सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।

सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।

सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।

सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।

सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।


आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।

आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।

आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।

आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।

आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।


नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।

नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।

नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।


दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।

दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।

दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।

दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।

दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।


उक्त जानकारी शास्त्रोक्त आधार पर है ।

गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

ढाई अक्षर का रहस्य

 मैंने बचपन में पढा था, 

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय

ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय 

अब पता लगा ये ढाई अक्षर क्या है-

ढाई अक्षर के ब्रह्मा और ढाई अक्षर की सृष्टि

ढाई अक्षर के विष्णु और ढाई अक्षर के लक्ष्मी

ढाई अक्षर के कृष्ण और ढाई अक्षर की कान्ता।(राधा रानी का दूसरा नाम)

ढाई अक्षर की दुर्गा और ढाई अक्षर की शक्ति

ढाई अक्षर की श्रद्धा और ढाई अक्षर की भक्ति

ढाई अक्षर का त्याग और ढाई अक्षर का ध्यान


ढाई अक्षर की तुष्टि और ढाई अक्षर की इच्छा

ढाई अक्षर का धर्म और ढाई अक्षर का कर्म

ढाई अक्षर का भाग्य और ढाई अक्षर की व्यथा

ढाई अक्षर का ग्रन्थ और ढाई अक्षर का सन्त

ढाई अक्षर का शब्द और ढाई अक्षर का अर्थ

ढाई अक्षर का सत्य और ढाई अक्षर की मिथ्या

ढाई अक्षर की श्रुति और ढाई अक्षर की ध्वनि

ढाई अक्षर की अग्नि और ढाई अक्षर का कुण्ड

ढाई अक्षर का मन्त्र और ढाई अक्षर का यन्त्र

ढाई अक्षर की श्वांस और ढाई अक्षर के प्राण

ढाई अक्षर का जन्म ढाई अक्षर की मृत्यु

ढाई अक्षर की अस्थि और ढाई अक्षर की अर्थी

ढाई अक्षर का प्यार और ढाई अक्षर का युद्ध

ढाई अक्षर का मित्र और ढाई अक्षर का शत्रु

ढाई अक्षर का प्रेम और ढाई अक्षर की घृणा

जन्म से लेकर मृत्यु तक हम बंधे हैं ढाई अक्षर में। 

हैं ढाई अक्षर ही वक़्त में और ढाई अक्षर ही अन्त में।

 समझ न पाया कोई भी है रहस्य क्या ढाई अक्षर में।

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

1971 में पाकिस्तान की कैद में रहे भारतीय पायलटों की कहानी

जिन 3 पायलटों की बात हम आपको बताने जा रहे हैं, वह दिलीप पारुलकर, मलविंदर सिंह गरेवाल और हरीश सिंह जी हैं। यह तीनों ही 1971 युद्ध के समय भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात थे। इस दौरान वह पाकिस्तान के कब्जे में आ गए। 

रेड वन, यू आर ऑन फ़ायर'… स्क्वाड्रन लीडर धीरेंद्र जाफ़ा के हेडफ़ोन में अपने साथी पायलट फ़र्डी की आवाज़ सुनाई दी.

दूसरे पायलट मोहन भी चीख़े, 'बेल आउट रेड वन बेल आउट.' तीसरे पायलट जग्गू सकलानी की आवाज़ भी उतनी ही तेज़ थी, 'जेफ़ सर... यू आर.... ऑन फ़ायर.... गेट आउट.... फ़ॉर गॉड सेक.... बेल आउट..'

जाफ़ा के सुखोई विमान में आग की लपटें उनके कॉकपिट तक पहुंच रही थीं. विमान उनके नियंत्रण से बाहर होता जा रहा था. उन्होंने सीट इजेक्शन का बटन दबाया जिसने उन्हें तुरंत हवा में फेंक दिया और वो पैराशूट के ज़रिए नीचे उतरने लगे.

जाफ़ा बताते हैं कि जैसे ही वो नीचे गिरे नार-ए-तकबीर और अल्लाह हो अकबर के नारे लगाती हुई गाँव वालों की भीड़ उनकी तरफ़ दौड़ी.

लोगों ने उन्हें देखते ही उनके कपड़े फाड़ने शुरू कर दिए. किसी ने उनकी घड़ी पर हाथ साफ़ किया तो किसी ने उनके सिगरेट लाइटर पर झपट्टा मारा.

सेकेंडों में उनके दस्ताने, जूते, 200 पाकिस्तानी रुपए और मफ़लर भी गायब हो गए. तभी जाफ़ा ने देखा कि कुछ पाकिस्तानी सैनिक उन्हें भीड़ से बचाने की कोशिश कर रहे हैं.

एक लंबे चौड़े सैनिक अफ़सर ने उनसे पूछा, 'तुम्हारे पास कोई हथियार है?' जाफ़ा ने कहा, 'मेरे पास रिवॉल्वर थी, शायद भीड़ ने उठा ली.'

'क्या जख़्मी हो गए हो?'

'लगता है रीढ़ की हड्डी चली गई है. मैं अपने शरीर का कोई हिस्सा हिला नहीं सकता.' जाफ़ा ने कराहते हुए जवाब दिया.

उस अफ़सर ने पश्तो में कुछ आदेश दिए और जाफ़ा को दो सैनिकों ने उठा कर एक टेंट में पहुंचाया.

जाफ़ा की कमर में प्लास्टर लगाया गया और उन्हें जेल की कोठरी में बंद कर दिया गया. रोज़ उनसे सवाल-जवाब होते.

जब उन्हें टॉयलेट जाना होता तो उनके मुंह पर तकिये का गिलाफ़ लगा दिया जाता ताकि वो इधर उधर देख न सकें. एक दिन उन्हें उसी बिल्डिंग के एक दूसरे कमरे में ले जाया गया.

जैसे ही वो कमरे के पास पहुंचे, उन्हें लोगों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं. जैसे ही वो अंदर घुसे, सारी आवाज़ें बंद हो गईं…


अचानक ज़ोर से एक स्वर गूंजा, 'जेफ़ सर!'… और फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट दिलीप पारुलकर उन्हें गले लगाने के लिए तेज़ी से बढ़े.

उन्हें दिखाई ही नहीं दिया कि जाफ़ा की ढीली जैकेट के भीतर प्लास्टर बंधा हुआ था. वहाँ पर दस और भारतीय युद्धबंदी पायलट मौजूद थे. इतने दिनों बाद भारतीय चेहरे देख जाफ़ा की आँखों से आंसू बह निकले. तभी युद्धबंदी कैंप के इंचार्ज स्क्वाड्रन लीडर उस्मान हनीफ़ ने मुस्कराते हुए कमरे में प्रवेश किया. उनके पीछे उनके दो अर्दली एक केक और सबके लिए चाय लिए खड़े थे. उस्मान ने कहा- मैंने सोचा मैं आप लोगों को क्रिसमस की मुबारकबाद दे दूँ. वो शाम एक यादगार शाम रही. हँसी मज़ाक के बीच वहाँ मौजूद सबसे सीनियर भारतीय अफ़सर विंग कमांडर बनी कोएलहो ने कहा कि हम लोग मारे गए अपने साथियों के लिए दो मिनट का मौन रखेंगे और इसके बाद हम सब लोग राष्ट्र गान गाएंगे.

जाफ़ा बताते हैं कि 25 दिसंबर, 1971 की शाम को पाकिस्तानी जेल में जब भारत के राष्ट्र गान की स्वर लहरी गूंजी तो उनके सीने गर्व से चौड़े हो गए.

जब भारत के नीति नियोजन समिति के अध्यक्ष डीपी धर पाकिस्तान आ कर वापस लौट गए और युद्धबंदियों के भाग्य पर कोई फैसला नहीं हुआ तो पारुलकर और गरेवाल बहुत निराश हुए।

दीवार में छेद करके भागने की योजना बनी

लड़ाई से पहले पारुलकर ने अपने साथियों से कहा था कि अगर वह पकड़े गए तो जेल में नहीं बैठेंगे और वहां से भागने की कोशिश करेंगे।

उनके कहे को हकीकत बनाने में उनके साथी बने गरेवाल और हरीश।

तीनों ने तय किया कि वह कोठरी संख्या 5 की दीवार में 21 बाई 15 इंच का छेद करके पाकिस्तानी वायुसेना के रोजगार दफ्तर के अहाते में निकलेंगे और फिर 6 फुट की दीवार फलांग कर माल रोड पर कदम रखेंगे।

आसान नहीं था योजना को अमलीजामा पहनाना

इस योजना को अंजाम देना बेहद कठिन था और इसके लिए रावलपिंडी जेल की करीब 56 इंटों को उनका प्लास्टर निकाल कर ढीला करना था और इसके मलबे को कहीं छिपाना था। 

प्लास्टर खुरचने का काम रात को 10 बजे के बाद किया जाता था इस बीच ट्रांज़िस्टर के वॉल्यूम को बढ़ा दिया जाता। आखिर में तीनों अपने अन्य साथियों की मदद से दीवार में छेद करने में कामयाब रहे।

भारतीय क़ैदियों को जिनेवा समझौते की शर्तों के हिसाब से पचास फ़्रैंक के बराबर पाकिस्तानी मुद्रा हर माह वेतन के तौर पर मिला करती थी जिससे वो अपनी ज़रूरत की चीज़े ख़रीदते और कुछ पैसे बचा कर भी रखते.

इस बीच पारुलकर को पता चला कि एक पाकिस्तानी गार्ड औरंगज़ेब दर्ज़ी का काम भी करता है. उन्होंने उससे कहा कि भारत में हमें पठान सूट नहीं मिलते हैं. क्या आप हमारे लिए एक सूट बना सकते हैं?

औरंगज़ेब ने पारुलकर के लिए हरे रंग का पठान सूट सिला. कामत ने तार और बैटरी की मदद से सुई को मैग्नेटाइज़ कर एक कामचलाऊ कंपास बनाया जो देखने में फ़ाउंटेन पेन की तरह दिखता था.

14 अगस्त को तय किया गया भागने का दिन

पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को भागने का दिन तय किया गया क्योंकि इन दिन गार्ड छुट्टी के मूड में होंगे और कम सतर्क रहेंगे।

लेकिन 12 अगस्त की रात उन्हें बिजली कड़कने की आवाज़ सुनाई दी और उसी समय प्लास्टर की आखिरी परत भी गिर गई।

इसके बाद तीनों पायलट छेद से बाहर निकले। और दीवार के पास इंतज़ार करने लगे. धूल भरी आँधी के थपेड़े उनके मुँह पर लगना शुरू हो गए थे.

एक पहरेदार चारपाई पर बैठा हुआ था, लेकिन उसने धूल से बचने के लिए अपने सिर पर कंबल डाला हुआ था. तीनों ने बाहरी दीवार से माल रोड की तरफ़ देखा. उन्हें सड़क पर ख़ासी हलचल दिखाई दी. उसी समय रात का शो समाप्त हुआ था.

तभी आँधी के साथ बारिश भी शुरू हो गई. चौकीदार ने अपने मुंह के ऊपर से कंबल उठाया और चारपाई समेत वायुसेना के रोज़गार दफ़्तर के बरामदे की तरफ़ दौड़ लगा दी.

जैसे ही उसमे अपने सिर पर दोबारा कंबल डाला तीनों ने जेल की बाहरी दीवार फलांग ली. तेज़ चलते हुए वो माल रोड पर बांए मुड़े और सिनेमा देख कर लौट रहे लोगों की भीड़ में खो गए.

तीनों ने रखे ईसाई नाम

थोड़ी दूर चलने के बाद हरीश सिंह जी को जब एहसास हुआ कि वो पाकिस्तान की सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली जेल से बाहर आ गए हैं, तो वो जोर से चिल्लाए 'आज़ादी'।

इस पर गरेवाल ने कहा, "अभी नहीं।"

तीनों को नमाज नहीं आती थी, इसलिए खुद को ईसाई बताकर आगे जाने का फैसला किया और उसी हिसाब से नाम तय किए।

लंबे चौड़ क़द के गरेवाल ने दाढ़ी बढ़ाई हुई थी. उनके सिर पर बहुत कम बाल थे और वो पठान जैसे दिखने की कोशिश कर रहे थे. उनकी बग़ल में चल रहे थे फ़्लाइट लेफ्टिनेंट दिलीप पारुलकर. उन्होंने भी दाढ़ी बढ़ाई हुई थी और इस मौक़े के लिए ख़ास तौर पर सिलवाया गया हरे रंग का पठान सूट पहना हुआ था.

पाकिस्तानी वायु सेना में भी बहुत से ईसाई काम करते थे, इससे भी उन्हें मदद मिलने की उम्मीद थी। उन्हें ये भी पता था कि पाकिस्तानी वायु सेना में भी बहुत से ईसाई काम करते थे. दिलीप का नया नाम था फ़िलिप पीटर और गरेवाल ने अपना नया नाम रखा था अली अमीर.

ये दोनों लाहौर के पीएएफ़ स्टेशन पर काम कर रहे थे. सिंह जी का नया नाम था हारोल्ड जैकब, जो हैदराबाद सिंध में पाकिस्तानी वायु सेना में ड्रमर का काम करते थे. 

अफगानिस्तान से बस 5 किलोमीटर दूर रह गए थे तीनों

बस स्टेशन पहुंच तक उन्होंने पेशावर की बस ली। वहां से उन्होंने जमरूद रोड जाने के लिए तांगा किया।

इसके बाद वह एक बस में बैठे। बस में जगह ना होने के कारण कंडक्टर ने उन्हें छत पर बैठा दिया। करीब साढ़े नौ बजे वह लंडी कोतल पहुंचे, जहां से अफगानिस्तान महज 5 किलोमीटर दूर था।

पारुलकर ने देखा कि सभी स्थानीय लोगों ने सिर पर कुछ ना कुछ पहना हुआ है तो उन्होंने भी दो पेशावरी टोपियां ले ली।

तहसीलदार के अर्जीनवीस को हुआ शक

गरेवाल के सिर पर टोपी फिट नहीं आई तो पारुलकर इसे बदलने के लिए दोबारा दुकान पर गए। लेकिन इसी बीच गरेवाल से एक गलती हो गई. उन्होंने वहां एक चाय की दुकान पर शख्स से पूछ लिया कि यहां से लंडीखाना कितनी दूर है. 

इस दौरान एक लड़का जोर से चिल्लाने लगा कि टैक्सी से लण्डी खाना जाने के लिए 25 रुपए लगेंगे। तीनों टैक्सीवाले की तरफ बढ़ ही रहे थे कि……….. 

पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी। वह व्यक्ति तहसीलदार का अर्जीनवीस था।

एक प्रौढ़ व्यक्ति उनसे पूछ रहा था क्या आप लंडीखाना जाना चाहते हैं? उन्होंने जब 'हाँ' कहा तो उसने पूछा आप तीनों कहाँ से आए हैं?

दिलीप और गैरी ने अपनी पहले से तैयार कहानी सुना दी. एकदम से उस शख़्स की आवाज़ कड़ी हो गई. वो बोला, 'यहाँ तो लंडीखाना नाम की कोई जगह है ही नहीं... वो तो अंग्रेज़ों के जाने के साथ ख़त्म हो गई.'

उसे संदेह हुआ कि ये लोग बंगाली हैं जो अफ़गानिस्तान होते हुए बांगलादेश जाना चाहते हैं. गरेवाल ने हँसते हुए जवाब दिया, 'क्या हम आप को बंगाली दिखते हैं? आपने कभी बंगाली देखे भी हैं अपनी ज़िंदगी में?'

उसने तीनों से पूछताछ करनी शुरु कर दी और उनकी एक ना सुनते हुए उन्हें तहसीलदार के पास ले गया।

तहलीसदार भी उनकी बातों से संतुष्ट नहीं हुआ और उन्हें जेल में डालने का आदेश दिया।

अचानक पारुलकर ने कहा कि वो पाकिस्तानी वायुसेना के प्रमुख के एडीसी स्क्वाड्रन लीडर उस्मान से बात करना चाहते हैं।

ये वही उस्मान थे जो रावलपिंडी जेल के इंचार्ज थे । पारुलकर से बात करने के बाद उस्मान ने तहसीलदार से कहा कि ये तीनों हमारे आदमी हैं और उन्हें अच्छे से रखे। इन तीनों को वापस बाकी युद्धबंदियों के साथ लायलपुर जेल भेज दिया गया, जहां भारती थलसेना के युद्धबंदी भी थे। फिर सब युद्धबंदियों को लायलपुर जेल ले जाया गया. वहाँ भारतीय थलसेना के युद्धबंदी भी थे. एक दिन अचानक वहाँ पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो पहुंचे.

उन्होंने भाषण दिया, "आपकी सरकार को आपके बारे में कोई चिंता नहीं है. लेकिन मैंने अपनी तरफ़ से आपको छोड़ देने का फ़ैसला किया है."

 लेकिन जब तक मामला हाईलाइट हो चुका था. यूएन ने भी हस्तक्षेप कर दिया.  हस्तक्षेप से बाद में उनको रिहा कर दिया गया.

एक दिसंबर, 1972 को सारे युद्धबंदियों ने वाघा सीमा पार की. उनके मन में क्षोभ था कि उनकी सरकार ने उन्हें छुड़ाने के लिए कुछ भी नहीं किया.  लेकिन जैसे ही उन्होंने भारतीय सीमा में क़दम रखा वहाँ मौजूद हज़ारों लोगों ने मालाएं पहना और गले लगा कर उनका स्वागत किया. पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ख़ुद वहाँ मौजूद थे. 

विंग कमांडर धीरेंद्र एस जाफ़ा की पुस्तक 'डेथ वाज़ंट पेनफ़ुल' पर आधारित (By Dr. Mansij Kumar Pathik)




नारी! तुम सचमुच महान हो...

 मैंने एक दिन अपनी पत्नी से पूछा क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता मैं बार-बार तुमको बोल देता हूँ, डाँट देता हूँ , फिर भी तुम ,पति भक्ति में लगी रहती हो जबकि मैं कभी पत्नी भक्त बनने का प्रयास नहीं करता ?

 मैं विधि का विद्यार्थी और मेरी पत्नी विज्ञान की, परन्तु उसकी आध्यात्मिक शक्तियाँ मुझसे कई गुना ज्यादा हैं क्योकि मैं केवल पढता हूँ और वो जीवन में उसका पालन करती है।

 मेरे प्रश्न पर, जरा वो हँसी, और गिलास में पानी देते हुए बोली ये बताइए, एक पुत्र यदि माता की भक्ति करता है, तो उसे मातृ भक्त कहा जाता है, परन्तु माता यदि पुत्र की कितनी भी सेवा करे उसे पुत्र भक्त तो नहीं कहा जा सकता न।

 मैं सोच रहा था,आज पुनः ये मुझे निरुत्तर करेगी।मैंने प्रश्न किया ये बताओ जब जीवन का प्रारम्भ हुआ, तो पुरुष और स्त्री समान थे फिर पुरुष बड़ा कैसे हो गया, जबकि स्त्री तो शक्ति का स्वरूप होती है ?

        मुस्काते हुए उसने कहा आपको, थोड़ी विज्ञान भी पढ़नी चाहिए थी.मैं झेंप गया।

       उसने कहना प्रारम्भ किया दुनिया मात्र दो वस्तु से निर्मित है ऊर्जा और पदार्थ। पुरुष ऊर्जा का प्रतीक है, और स्त्री पदार्थ की।पदार्थ को यदि विकसित होना हो, तो वह ऊर्जा का आधान करता है ना कि ऊर्जा, पदार्थ का।ठीक इसी प्रकार जब एक स्त्री, एक पुरुष का आधान करती है, तो शक्ति स्वरूप हो जाती है, और आने वाली पीढ़ियों अर्थात् अपनी संतानों के लिए प्रथम पूज्या हो जाती है क्योंकि वह पदार्थ और ऊर्जा दोनों की स्वामिनी होती है जबकि पुरुष मात्र ऊर्जा का ही अंश रह जाता है।

मैंने पुनः कहा ~तब तो तुम मेरी भी पूज्य हो गई न, क्योंकि तुम तो ऊर्जा और पदार्थ दोनों की स्वामिनी हो ?

अब उसने झेंपते हुए कहा आप भी पढ़े लिखे मूर्खो जैसे बात करते हैं। आपकी ऊर्जा का अंश मैंने ग्रहण किया और शक्तिशाली हो गई, तो क्या उस शक्ति का प्रयोग आप पर ही करूँ ? ये तो कृतघ्नता हो जाएगी।

 मैंने कहा मैं तो तुम पर,शक्ति का प्रयोग करता हूँ ,फिर तुम क्यों नहीं ?

उसका उत्तर सुन मेरीआँखों में आँसू आ गए.उसने कहा जिसके संसर्ग मात्र से मुझमें जीवन उत्पन्न करने की,क्षमता आ गई, और ईश्वर से भी ऊँचा जो पद आपने मुझे प्रदान किया,जिसे माता कहते हैं उसके साथ मैं विद्रोह नहीं कर सकती।

फिर मुझे चिढ़ाते हुए उसने कहा यदि शक्ति प्रयोग करना भी होगा,तो मुझे क्या आवश्यकता ? मैं तो माता सीता की भाँति,लव कुश तैयार कर दूँगी जो आपसे मेरा हिसाब किताब कर लेंगे।  



🙏 नमन है ... सभी मातृ शक्तियों को जिन्होंने अपने प्रेम और मर्यादा में समस्त सृष्टि को बाँध रखा है।

मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

गहरी नदी का बहाव शांत होता है

Indeed Deeper Rivers Flow in

Majestic Silence! 

करीब 30 वर्ष के अन्तराल के बाद होटल की लाबी मे मेरे एक पुराने मित्र के साथ मुलाकात हुई।  हमेशा से अति साधरण, शांत, शिष्ट, भद्र व विनयी वह मित्र अभी भी देखने मे ठीक वैसा ही दिख रहा था। उसका व्यवहार व आचरण पहले जैसा ही साधारण था। आपसी औपचारिक कुशलक्षेम पूछने के उपरांत मैने प्रस्ताव दिया की मै उसे घर तक अपने गाड़ी मे छोड़ सकता हूं।

असल मे घर छोड़ने के बहाने मेरा आग्रह अपनी मर्सिडीज गाड़ी को उसे दिखाने हेतु ज्यादा था।पर उसने धन्यवाद कहकर कहा कि वह अपनी ही गाड़ी से घर जायेगा। पार्किंग लाट मे कुछ देर साथ चलने के बाद वह अपनी एक साधारण गाड़ी से लौट गया।

अगले हप्ते मैने उसे अपने घर डिनर पर आमंत्रित किया। वह अपने परिवार के साथ मेरे घर आया। एक बहोत ही आडम्बरहीन मर्यादित परिवार, पर मुझे लगा एक खुशहाल परिवार है।

मेरे मन के किसी कोने मे यह उत्कंठा थी कि डिनर के बहाने मै उसे अपने इतनी सुन्दर और आभिजात्यपूर्ण कीमती व बहुत आरामदेह,  मँहगी और सुंदर विलास की वस्तुओं से भरा हुआ, कीमती साज सज्जा से सुसज्जित घर को दिखा सकूं।

एक दूसरे से वार्तालाप मे बीच बीच में मैं यह भी समझाने की कोशिश करता रहा कि आफिस के काम से प्राय: मुझे कितने ही विदेशों मे आना जाना पड़ता है। इशारों इशारों मे यह भी उसे समझाता रहा कि वह चाहे तो किसी बिजनेस को ज्वायन कर सकता है क्योंकि न जाने कितने धनी लोगों के बीच मेरा उठना बैठना रहता है और उनसे मेरा व्यक्तिगत सम्पर्क भी है। इस सिलसिले में  किसी बड़े बिजनेस लोन की व्यवस्था करवाना मेरे लिए एक साधारण सी बात है। लेकिन इन सब बातों मे उसने कोई आग्रह या रुचि नहीं दिखाई।

विदेशों मे भ्रमण के दौरान विभिन्न दर्शनीय स्थलों, अजायबघरों आदि के एल्बम उसे दिखाते हुये मै उसे जताना चाह रहा था कि हमारा जीवन कितना आकर्षक व मनमोहक है। इतना ही नहीं, आनेवाले दिनों मे शहर मे होने वाले आर्टगैलरी प्रदर्शनी की सूचना उसे देकर जैसे मै उसे बताना चाह रहा था कि मेरे पास केवल सुन्दर व कीमती मकान और गाड़ी ही नही है, हमारे पास एक सुन्दर कलाकृतियों को 

समझने वाली शिल्पकारी रुचि भी है। एल्बम की सभी फोटो को उसने ध्यान से देखा और प्रशंसा भी किया और लगा कि हमारी उपलब्धियों व सफल जीवन से वह खुश हो रहा था।

फिर उसने कहा इन सबको देखने के साथ साथ कभी कभी पुराने यार दोस्तों, अपने उम्रदराज शिक्षकों, अपने आत्मजनों को भी देखा करो और यदि न देख पाओ तो कम से कम उनकी खबर लिया करो।

मुझे लगा हमारे व्यवसायिक वार्तालाप को उसने बहोत ज्यादा महत्व नहीं दिया। तब मैने बचपन की बातें करना शुरू किया। पूछा हमारे पुराने उम्रदराज शिक्षक और मित्र कैसे हैं, वगैरह वगैरह। यह सुनकर थोड़ा हृदय आद्र भी हुआ कि कुछ शिक्षक और पुराने दोस्त अब इस दुनिया मे नही रहे।

पर मेरी श्रीमती जी को ये सब बीते जमाने की वार्ता बहोत अच्छी नहीं लगी और वह कह बैठी केवल बचपन की यादों मे खोये रहने से आगे नहीं बढ़ा जा सकता, सभी का एक बचपन रहा है, यह कोई बड़ी बात नही है। मुझे यह सुनकर थोड़ा हिचक महसूस हुई। इसके बाद आगे बैठक जमी नही, वे दोनो चले गये।

कुछ हप्तों बाद मेरे मित्र का फोन आया, उसने अपने निवास स्थान का पता बताकर लंच पर हम दोनों को उसने आमंत्रित किया। मेरे श्रीमती जी ने इस पर रूचि नहीं दिखाई पर मेरे बहुत कहने पर जाने को राजी हुईं ।

मित्र के घर आकर देखा कि उसके घर मे ज्यादा कीमती सामान की चमक तो नहीं थी पर बहोत सलीके व सुन्दर ढंग से और करीने से घर सजा हुआ था। एकाएक मेरी नजर कोने मे रखे टेबल पर रखे एक सुन्दर गिफ्ट बाक्स पर गयी।यह गिफ्ट बाक्स उसी कम्पनी से आया हुआ लग रहा था जहां मै काम करता हूं। मैने कौतूहल वश मित्र से पूछा, यह तो मेरे कम्पनी का ही गिफ्ट है, क्या तुम मेरे कम्पनी के किसी से परिचित हो। उसने कहा डेविड ने भेजा है। मैने कहा कौन डेविड, तुम्हारा मतलब डेविड थाम्पसन से है क्या? उसने कहा हां वही। मै ने आश्चर्यचकित होकर कहा, वह तो मेरे कम्पनी का एम डी है। उससे तुम कैसे  और किस प्रकार परिचित हो। मेरे मन बहोत सारे प्रश्न एक साथ खड़े होने लगे।

जहां तक मुझे पता था, डेविड उस कम्पनी का 30 प्रतिशत मालिक है और बाकि 70 प्रतिशत का मालिक डेविड का कोई एक दोस्त है और कम्पनी के इतने बड़े भूखंड का मालिक भी वही दोस्त ही है। कुछ सेकेंड पहले मेरी कल्पना मे भी नही था कि  कुछ पलों मे मुझे इतने बड़े आश्चर्य का सामना करना होगा।

मन के जिस कोने से मैने उसे बार बार अपनी कीमती मर्सिडीज, कीमती मकान व साज सज्जा आदि दिखाकर अपने आभिजात्य के प्रदर्शन का प्रयास कर रहा था, मन के उसी कोने से कब उसे सर सर कहकर सम्बोधित करना शुरू किया, समझ नहीं पा रहा हूं। एक मन बोल रहा है मित्र को सर  नही कहना चाहिए और एक मन कह रहा है जो मेरे एम डी सर का दोस्त है, और जो कम्पनी के 70 प्रतिशत का मालिक होने के साथ साथ पूरे जमीन व सम्पत्ति का भी मालिक है उसे अब सर न कह कर और क्या कह कर सम्बोधित करें।


मुझे लगा मेरे दम्भ, अहंकार व आभिजात्य के गुब्बारे की  हवा  एक क्षण मे निकल कर सेव पिचका गई। किसी तरह लंच समाप्त कर घर लौट रहा हूं। गाड़ी मे हम दोनों चुपचाप बैठे है। मेरी श्रीमती जी मुझसे कहीं ज्यादा शांत व मौन दिख रहीं थी। मै स्पष्ट रूप से समझ पा रहा था कि इस समय उनके मन मे क्या चल रहा है।

हमारे मे  दम्भ, गरिमा व अहंकार की मात्रा जितना अधिक है, उतना ही उसके पास इन भावनाओं की कमी है जिससे हमे वेतन आदि मिल रहे हैं। उसका जीवनयापन कितना आडम्बर हीन, कितना विनम्र और कितना साधारण है।

किशोरावस्था मे गुरूजी के बताये ये शब्द अनायास ही बार बार याद आने लगे

"जो नदी जितनी ज्यादा गहरी होती है उसके बहने का शोर उतना ही कम होता है"।  

"Indeed Deeper Rivers Flow in

Majestic Silence"! 



कितनी सत्यता है गुरूजी के इन शब्दों में। मैं, जो सुन्दर शिल्पकारी व नक्कासी किये हुए एक लोटे में रखा जल हूं, आज एक गहरी नदी देख कर लौट रहा हूं ।

(यह मूलरूप से एक अंग्रेजी कहानी का  भावानुवाद है)

बुधवार, 4 नवंबर 2020

छत्तीसगढ़ी सिनेमा का सुनहरा पन्ना 'घर द्वार'

गीता कौशल, ज़ाफर अली फरिश्ता, कान मोहन एवं रंजीता ठाकुर



. जाफर अली फरिश्ता एवं गीता कौशल

■ अनिरुद्ध दुबे 

रायपुर शहर के कुछ फ़िल्मी पंडित दावा करते रहे थे कि 1971 में प्रदर्शित हुई छत्तीसगढ़ी फ़िल्म घर व्दार का प्रिंट सलामात नहीं है। सच्चाई यह है कि इस फ़िल्म की प्रिंट कहीं-कहीं पर धुंधली ज़रूर हो गई, लेकिन आज भी वह सुरक्षित है। गीत-संगीत के कारण "घर द्वार" ने इतिहास रचा। इस फ़िल्म के निर्माता स्व. विजय कुमार पाण्डेय का छत्तीसगढ़ी सिनेमा में जो योगदान रहा उसे कैसे भुलाया जा सकता है। 23 दिसंबर 1943 को जन्मे विजय कुमार पाण्डेय भनपुरी के मालगुज़ार थे। बचपन से इन्हें फ़िल्मों का शौक था। अपनी छत्तीसगढ़ी भाषा में फ़िल्म बनाने का उनका सपना था। 1965 में वह समय  भी आया जब स्व. पाण्डेय का सपना साकार होते नज़र आने लगा। फ़िल्मों के शौक के कारण स्व. पाण्डेय के बम्बई (अब मुम्बई) के चक्कर लगते रहते थे। बम्बई में उन्हें अपने रायपुर के साथी निर्जन तिवारी मिल गए, जो वहां हिन्दी फ़िल्म निर्माण क्षेत्र में अहम् भूमिका निभा रहे थे। "घर द्वार" को लेकर विजय पाण्डेय एवं निर्जन तिवारी के बीच लंबी बातचीत चली। पाण्डेय जी ने उनसे कहा कि "कितना ही दम क्यों न लगाना पड़े मुझे "घर द्वार" का सपना साकार करना है।" दोनों ने मिलकर उस दौर के हिन्दी फ़िल्मों के कलाकार कान मोहन, दुलारी, रंजीता ठाकुर, गीता कौशल एवं पुष्पांजलि को अपनी फ़िल्म में काम करने के लिए राज़ी कर लिया। पाण्डेय जी ने फ़िल्म के गीत छत्तीसगढ़ अंचल के जाने-माने साहित्यकार हरि ठाकुर से लिखवाए। पाण्डेय जी चाहते थे कि "घर द्वार" के गानों को देश के जाने-माने गायक-गायिका की आवाज़ मिले। उनका यह ख़्वाब भी पूरा हुआ। मोहम्मद रफ़ी एवं सुमन कल्याणपुर जैसे लोकप्रिय गायक-गायिका की मधुर आवाज़ में गाने तैयार हुए, जिन्हें संगीत से सजाया मशहूर संगीतकार जमाल सेन ने। पाण्डेय जी को छत्तीसगढ़ की माटी से गहरा प्रेम रहा और उन्होंने यहां के कलाकारों को "घर द्वार" से जोड़ा। सरायपाली के राज महल समेत अन्य खास लोकेशंस में "घर द्वार" की शूटिंग हुई। 30 अप्रैल 1971 को सेंसर बोर्ड से पास होने के बाद "घर द्वार" जब रुपहले पर्दे पर आई, एक नया इतिहास रच गया। "घर द्वार" के गाने ऐसे बन पड़े कि आकाशवाणी रायपुर से बरसों तक सुने जाते रहे। छत्तीसगढ़ के बहुत से लोक कला मंच आज भी अपने कार्यक्रमों में "घर द्वार" के सबसे पॉपुलर गीत "सुन सुन मोर मया पीरा के संगवारी रे... आ जा नैना तीर आ जा रे... आ जा रे..." की प्रस्तुति ज़रूर देते हैं। आज जब छत्तीसगढ़ी सिनेमा का काफ़ी विस्तार हो चुका, फ़िल्म "घर द्वार" की चर्चा पहले से ज़्यादा होने लगी है। पाण्डेय जी का आगे भी छत्तीसगढ़ी फ़िल्म बनाने का मन था, पर समय के आगे किसकी चली है। 11 मार्च 1987 को सड़क हादसे में पाण्डेय जी का निधन हो गया। पाण्डेय जी के बेटे जयप्रकाश पाण्डेय और परिवार के अन्य सदस्य अपनी विरासत को आगे ले जाने प्रयासरत् हैं। पाण्डेय परिवार का जे.के. फिल्म्स प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले भविष्य में फ़िल्म निर्माण करने का सपना है।

घर द्वार से जुड़ी खास बातें-

0 "घर द्वार" के निर्माण में विजय कुमार पाण्डेय की पत्नी श्रीमती चंद्रकली पाण्डेय का विशेष योगदान रहा। सरायपाली राजमहल में जब फ़िल्म की शूटिंग चली, श्रीमती पाण्डेय ने कदम से कदम मिलाकर पति का साथ दिया था। आगे श्रीमती पाण्डेय कुछ समय तक राजनीति में भी सक्रिय रहीं। सन् 2004 में वे भाजपा की टिकट पर यति यतनलाल वार्ड (भनपुरी) से पार्षद चुनी गईं। विगत 26 अक्टूबर को श्रीमती पाण्डेय का निधन हो गया।

0 "घर द्वार" में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके शिव कुमार दीपक को हाल ही में 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ सरकार ने दाऊ मंदराजी लोक कला सम्मान से सम्मानित किया।

0 निर्माता विजय कुमार पाण्डेय स्वयं "घर द्वार" में एक छोटी भूमिका में नज़र आए थे।

0 हीरो कान मोहन सिंधी फ़िल्मों के जाने-माने कलाकार थे। 

0 फ़िल्म के दूसरे हीरो जाफर अली फरिश्ता रायपुर के रहने वाले थे। कुछ साल पहले उनका मुम्बई में निधन हो गया। 

0 जाफर अली फरिश्ता के दोस्त की भूमिका निभाने वाले इक़बाल अहमद रिज़वी वर्तमान में छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी कांग्रेस) के प्रवक्ता हैं।

0 "घर द्वार" में छत्तीसगढ़ के नीलू मेघ (नीला अहमद), बसंत दीवान, परवीन खान, भगवती चरण दीक्षित, राम कुमार तिवारी, श्रीराम कालेले, भास्कर काठोठे, यशवंत गोविन्द जोगलेकर, ठाकुरदास आहूजा, नरेश कुमार एवं जयबाला पाण्डेय ने काम किया। इनमें जयबाला स्व. विजय कुमार पाण्डेय की पुत्री हैं। 

0 "घर द्वार" के डायरेक्टर निर्जन तिवारी के पिता रामदयाल तिवारी की गिनती जीनियस लोगों में होती थी। रायपुर शहर का आर.डी. तिवारी स्कूल रामदयाल तिवारी के नाम पर है। डायरेक्टर निर्जन तिवारी जिनका मूल नाम लखन तिवारी था, लंबे समय तक मुम्बई में गुमनामी की ज़िन्दगी जीते रहे और वहीं उनका निधन हो गया।

सिंगल कॉलम में जो तस्वीर है, वह स्व. विजय कुमार पाण्डेय की है।

सोमवार, 28 सितंबर 2020

एकता में अनेकता दर्शाता माँ का पल्लू ....


मुझे नहीं लगता कि आज के बच्चे यह जानते हों कि पल्लू क्या होता है, इसका कारण यह है कि आजकल की माताएं अब साड़ी नहीं पहनती हैं। पल्लू बीते समय की बातें हो चुकी है। माँ के पल्लू का सिद्धांत माँ को गरिमामयी छवि प्रदान प्रदान करने के लिए था। लेकिन इसके साथ ही, यह गरम बर्तन को चूल्हे से हटाते समय गरम बर्तन को पकड़ने के काम भी आता था। पल्लू की बात ही निराली थी। पल्लू भी कितना कुछ लिखा जा सकता है। साथ ही पल्लू बच्चों का पसीना / आँसू पूछने, गंदे कानों/मुँह की सफाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। माँ इसको अपना हाथ तौलिये के रूप में भी इस्तेमाल का लेती थी। खाना खाने के बाद पल्लू से मुँह साफ करने का अपना ही आनंद होता था। 

कभी आँख में दर्द होने पर माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर, फूँक मारकर, गरम करके आँख पर लगा देतीं थी, सारा दर्द उसी समय गायब हो जाता था। 

माँ की गोद मे सोने वाले बच्चों के लिए उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू चदरे का काम करता था । जब भी कोई अंजान घर पर आता, तो उसको माँ के पल्लू की ओट ले कर देखते था। जब भी बच्चे को किसी बात पर शर्म आती, वो पल्लू से अपना मुँह ढँक कर छुप जाता था। यही नहीं, जब बच्चों को बाहर जाना होता, तब माँ का पल्लू एक मार्गदर्शक का काम करता था। जब तक बच्चे ने हाथ में थाम रखा होता, तो सारी कायनात उसकी मुट्ठी में होती। जब मौसम ठंडा होता था, माँ उसको अपने चारों और लपेटकर ठंड से बचने की कोशिश करती। 

पल्लू एप्रन का काम भी करता था। पल्लू का उपयोग पेड़ों से गिरने वाले जामुन और मीठे सुगंधित फूलों को लाने के लिए किया जाता था। पल्लू घर में रखे सामान से धूल हटाने मे भी बहुत सहायक होता था। 

पल्लू में गाँठ लगाकर माँ एक चलता फिरता बैंक या तिजोरी रखती थी और अगर सब कुछ ठीक रहा, तो कभी कभी उस बैंक से कुछ पैसे भी मिल जाते थे। मुझे नहीं लगता की विज्ञान इतनी तरक्की करने के बाद भी पल्लू का विकल्प ढूंढ पाया है। 

पल्लू कुछ और नहीं बल्कि एक जादुई अहसास है। मैं पुरानी पीढ़ी से संबंध रखता हैं और अपनी माँ के प्यार और स्नेह को हमेशा महसूस करता हूँ, जो आज की पीढ़ियों की समझ से शायद बिलकुल ही गायब है। 

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रविवार, 27 सितंबर 2020

छुईखदान का इतिहास परत-दर-परत खुला

 पुस्तक समीक्षा  डॉ. गणेश खरे

 दैनिक 'सबेरा संकेत"  राजनांदगांव के वरिष्ठ उप संपादक, पत्रकार, लोककर्मी एवं साहित्यकार श्री वीरेन्द्र बहादुर सिंह द्वारा रचित 'छुईखदान: परत दर परत" नामक ग्रंथ छुईखदान के इतिहास का प्रामाणिक दस्तावेज़ है। इसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ की रियासतों के संक्षिप्त विवरण के साथ छुईखदान की विशिष्टता का परिचय प्रस्तुत करने के साथ-साथ  वहां के सेनानियों के द्वारा स्वतंत्रता आन्दोलन, किसान आन्दोलन और गोली कांड का विस्तार से वर्णन किया है। इस संदर्भ में इतिहास की हर सूक्ष्मता, तटस्थता तथा प्रामाणिकता का पूरा ध्यान रखा गया है। इतना ही नहीं उन्होंने यहां के  बहुमुखी विकास के प्रमुख आयामों में साहित्यिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, पत्रकारिता, उद्योग, व्यापार, क्रीड़ा,  विद्युत व्यवस्था  आदि  के विकास की विभिन्न परतों पर भी प्रकाश डाला है।  इसके परिशिष्ट में आपने स्थानीय 60 स्वतंत्रता सेनानियों के नामों के साथ नगर पालिका परिषद,  नगर पंचायत और छुईखदान बुनकर सहकारी समिति के पदाधिकारियों के आज तक के नाम आदि भी देकर इसे स्थानीय इतिहास का विश्वसनीय कोश बना दिया है। अब ऐसा कोई पक्ष नहीं छूटा है जो छुईखदान से संबंधित हो और उसकी चर्चा इस ग्रंथ में न की गई हो। 

छुईखदान एक छोटी सी रियासत रही है पर छत्तीसगढ़ की समग्र 14 रियासतों में इसका विशिष्ट स्थान रहा है। स्वतंत्रता आन्दोलन में भी यहां के वीर सेनानियों ने अपने स्वाभिमान और आजादी प्राप्ति की संकल्पशीलता का परिचय दिया है। स्वतंत्रता के पश्चात् भी अपने स्थान की तहसीली और  कोषालय की सुरक्षा के लिए यहां की महिलाओं और पुरुषों ने अपने अधिकारों तथा स्वत्व की रक्षा के लिए संघर्ष किया है इससे इस अंचल का शीश सदा गर्व से उन्नत रहेगा पर प्रजातंत्र-युग में भी यहां के निर्दोष जन समूह पर गोली चालन का आदेश देकर तत्कालीन प्रशासन ने अपनी निर्लज्जता और कू्ररता का जो परिचय दिया वह भारतीय इतिहास का कलंक कहा गया है। श्री  वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने उस स्थानीय गोली कांड के हर पक्ष का भी इस ग्रंथ में प्रामाणिक नामों और तिथियों सहित विवरण प्रस्तुत किया है। अभी तक इस संदर्भ में लोगों को इस कांड की औपचारिक जानकारी प्राप्त थी पर अब इस ग्रंथ के माध्यम से यह गोली कांड भी कालजयी बन जायेगा जिससे भविष्य में भी यह स्थान स्वतंत्रता सेनानियों की खदान के नाम से जाना जाता रहेगा। 

इस रचना के 95 वर्ष पूर्व अर्थात् 1925 में छुईखदान के बाबू धानूलाल श्रीवास्तव ने अपने ग्रंथ 'अष्ट-राज्य-अंभोज" में छत्तीसगढ़ की रियासतों पर प्रामाणिक जानकारी प्रस्तुत की थी पर विकास के इन लगभग सौ वर्षो में हर जगह के सभी क्षेत्रों में बहुत  अधिक परिवर्तन हुए हैं जिनकी जानकारी इस्तत: बिखरी पड़ी है।  छुईखदान रियासत की समृद्धि और सम्पदा की जानकारी भी लोगों को आधी-अधूरी ही ज्ञात है। श्री वीरेन्द्र बहादुर ने अपने  256 पृष्ठों के इस ग्रंथ में यहां के इतिहास को निम्न चार कालों में विभक्त कर सारी बिखरी हुई सामग्री को एक स्थान पर प्रस्तुत करने का प्रशंसनीय कार्य किया है। प्रथम काल है । छुईखदान का रियासत कालीन इतिहास 1750 से 1947 तक, द्वितीय स्वतंत्रता आन्दोलन 1920  से 1947 तक, तृतीय  9 जनवरी 1953 का दुर्भाग्यपूर्ण गोली कांड  और चौथी परत है स्वतंत्रता के इन 70 वषों में छुईखदान का बहुमुखी विकास। इस प्रकार इस ग्रंथ में लगभग 300 वर्षों की विभिन्न गतिविधियों की प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध है। इस ग्रंथ से प्रेरणा लेकर इस जिले के अन्य स्थानों के विकास की भी प्रामाणिक जानकारियां प्रस्तुत की जानी चाहिए। इस संदर्भ में अभी तक श्री रामहृदय तिवारी द्वारा संपादित 'अतीत और आज के आइने में अरजुंदा' नामक पुस्तक देखने मिली है जिसके परिशिष्ट में एक सौ के लगभग वहां के विकास से संबंधित रगीन चित्रों का भी समावेश किया गया है ।

इस ग्रंथ के पहले भी श्री वीरेन्द्र बहादुर ने 'रक्त पुष्प", 'दूर क्षितिज में, 'महुआ झरे और 'पृष्ठों का नीड़" जैसी पुस्तकों का संपादन कार्य भी किया है। इनके प्रकाशन और संपादन में उन्होंने  जिस लगन, मेहनत और साहित्येतिहास के प्रति अपनी मूल्यवान निष्ठा व्यक्त की है, वह प्रशंसनीय है।  हम इनकी इस 'छुईखदान: परत दर परत" पुस्तक का स्वागत करते हैं और उन्हें इसके लिए अपनी शुभ कामनायें देते हैं। 

98 सृष्टि कालोनी, राजनांदगांव, 

छ.ग. मो. 9329879485

रविवार, 30 अगस्त 2020

छत्तीसगढ़ के खेल

 " किस्म-किस्म के खेल हमर छत्तीसगढ़ म "

" अपन माटी ले मया चाहे गांव हो या शहर म "
(1) फुगड़ी =
खेत म गुरतूर फर होथे गूरसूकडी
एक गोड म लाल भाजी एक गोड म माहूर
कतेक ल मानव कुरा ससूर = फूगड़ी फूफू
(2) नदी पहाड़ =
हिन्दी म सर्दी , छत्तीसगढ़ी म कथे जाड
उतारु ल नदी , ऊपर ल कथे पहाड़ = नदी पहाड़
(3) घाम छांव =
कुछ पाय खातिर खुद ल
मेहनत के संग लगाय ल लगथे दांव
खेल के नाम बताव = घाम छांव
(4) रेसटीप =
जीओ और जीने दो के जलाओ दीप
चुपचाप रहूं,बताहू झन खेलत हन = रेसटीप
(5) पिठ्ठ्ल =
मीठ बोल‌ईय्या के सुरतिया
नज़रें नजर म झूलथे झूल
खपर‌ईल पथरा के खेलन = पिठ्ठ्ल
(6) बांटी =
बबा संग नाती , दिया संग बाती
मयारू के गोड म चुकचुक ले दिखे साटी
कनेखि नेत के नेतेव = बाटी
(7) गोटा =
आयुर्वेदिक गुण अबड फायदा हे भाजी चरोटा
गरिगन्डा 20-20 आना के खेलबो = गोटा
(8) चुड़ी बिन‌ऊल =
बड़े जनिक मखना ल , हसिया म दूफाकी प‌ऊल
छूआना न‌ई चाहि __ लाल,हरियर = चुड़ी बिन‌ऊल
(9) चोर सिपाही =
जे ज‌ईसन काम करही व‌ईसन फल पाही
कोतवाल, पुलिस,पाछू पडेहे = चोर सिपाही
(10) भटक‌ऊला =
ज्ञान बढाय बर पूछन जन‌ऊला
6:6: घर के रहाय खेल = भटक‌ऊला
(11) अटकन मटकन =
सबों तिहार म देवी-देवता ल सुमरथन
दोनों हाथ ले खेलथन = अटकन-मटकन.....
(12) गोल-गोल रानी
डोकरी दाई हुकारु देवय बबा सुनावय कहानी
माडी भर-भर पानी = गोल-गोल रानी
(13) तिरी-पासा =
झन हो उदास मन में रख आशा
अमली के चिचोल हो,चाहे कौड़ी म
झिर्रा खेलबो खेल = तिरीपासा
(14) कुस्ती =
व्यायाम करेले भाग जही तोर सुस्ती
नाम-संजय निषाद गांव-मुस्की
चलना खेलबो खेल = कुस्ती
(15) गुल्ली-डंडा =
सबले ऊंचा रहे हमर देश के तिरंगा झंडा
कुर्रु के गुल्ली , सेन्हा के डण्डा = गुल्ली-डंडा
(16) ब‌ईला दौड
बड़ ममहाथे जब लगे आमा म मौर
कोन अगवाथे चलतो हो जाय = ब‌ईला दौड़
(17) डंडा पचरंगा =
जाति-धर्म के नाम में झन करव दंगा
मनखे-मनखे एक-हरन ,खेल अच्छा हे =डंडा पचरंगा
(18) पुतरी-पुतरा =
इंग्लिश म गर्ल -बाय
हिन्दी म लड़की-लड़का
अऊ छत्तीसगढ़ी म कथे टूरी-टूरा
सगा प‌ऊना संग खेलेन खेल = पुतरी-पुतरा
(19) केऊ मेऊ मेकरा के जाला
कतेक हाय हपट करबे , संग म लेग जबे काला
तोर कान ल मैं धरव , मोर कान ल तै धर
दूनो झन संघरा कबो = केऊ मेऊ मेकरा के जाला

पीयूष दत्ता की वॉल से

रविवार, 23 अगस्त 2020

एक अत्यंत प्रेरणादायक प्रसंग

 

विवाह उपरांत जीवन साथी को छोड़ने के लिए 2 शब्दों का प्रयोग किया जाता है 

1-Divorce (अंग्रेजी) 

2-तलाक (उर्दू) 

कृपया हिन्दी का शब्द बताए...??

कहानी आजतक के Editor संजय सिन्हा की लिखी है 

तब मैं जनसत्ता में नौकरी करता था एक दिन खबर आई कि एक आदमी ने झगड़ा के बाद अपनी पत्नी की हत्या कर दी मैंने खब़र में हेडिंग लगाई कि पति ने अपनी बीवी को मार डाला खबर छप गई किसी को आपत्ति नहीं थी पर शाम को दफ्तर से घर के लिए निकलते हुए प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी सीढ़ी के पास मिल गए मैंने उन्हें नमस्कार किया तो कहने लगे कि संजय जी, पति की बीवी नहीं होती

“पति की बीवी नहीं होती?” मैं चौंका था

“बीवी तो शौहर की होती है, मियां की होती है पति की तो पत्नी होती है

भाषा के मामले में प्रभाष जी के सामने मेरा टिकना मुमकिन नहीं था हालांकि मैं कहना चाह रहा था कि भाव तो साफ है न ? बीवी कहें या पत्नी या फिर वाइफ, सब एक ही तो हैं लेकिन मेरे कहने से पहले ही उन्होंने मुझसे कहा कि भाव अपनी जगह है, शब्द अपनी जगह कुछ शब्द कुछ जगहों के लिए बने ही नहीं होते, ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है

प्रभाष जी आमतौर पर उपसंपादकों से लंबी बातें नहीं किया करते थे लेकिन उस दिन उन्होंने मुझे टोका था और तब से मेरे मन में ये बात बैठ गई थी कि शब्द बहुत सोच समझ कर गढ़े गए होते हैं

खैर, आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं लेकिन इसके लिए आपको मेरे साथ निधि के पास चलना होगा

निधि मेरी दोस्त है कल उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था फोन पर उसकी आवाज़ से मेरे मन में खटका हो चुका था कि कुछ न कुछ गड़बड़ है मैं शाम को उसके घर पहुंचा उसने चाय बनाई और मुझसे बात करने लगी पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं, फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि नितिन से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है

मैंने पूछा कि नितिन कहां है, तो उसने कहा कि अभी कहीं गए हैं बता कर नहीं गए उसने कहा कि बात-बात पर झगड़ा होता है और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया है ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि अलग हो जाएं, तलाक ले लें

निधि जब काफी देर बोल चुकी तो मैंने उससे कहा कि तुम नितिन को फोन करो और घर बुलाओ, कहो कि संजय सिन्हा आए हैं

निधि ने कहा कि उनकी तो बातचीत नहीं होती, फिर वो फोन कैसे करे?

अज़ीब संकट था निधि को मैं बहुत पहले से जानता हूं मैं जानता हूं कि नितिन से शादी करने के लिए उसने घर में कितना संघर्ष किया था बहुत मुश्किल से दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे, फिर धूमधाम से शादी हुई थी ढेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं ऐसा लगता था कि ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई है पर शादी के कुछ ही साल बाद दोनों के बीच झगड़े होने लगे दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे और आज उसी का नतीज़ा था कि संजय सिन्हा निधि के सामने बैठे थे उनके बीच के टूटते रिश्तों को बचाने के लिए

खैर, निधि ने फोन नहीं किया मैंने ही फोन किया और पूछा कि तुम कहां हो  मैं तुम्हारे घर पर हूं आ जाओ नितिन पहले तो आनाकानी करता रहा, पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया

अब दोनों के चेहरों पर तनातनी साफ नज़र आ रही थी ऐसा लग रहा था कि कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी आंखों ही आंखों में एक दूसरे की जान ले लेंगे दोनों के बीच कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी

नितिन मेरे सामने बैठा था मैंने उससे कहा कि सुना है कि तुम निधि से तलाक लेना चाहते हो

उसने कहा, “हां, बिल्कुल सही सुना है अब हम साथ नहीं रह सकते

मैंने कहा कि तुम चाहो तो अलग रह सकते हो पर तलाक नहीं ले सकते

“क्यों

“क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है”

अरे यार, हमने शादी तो की है

“हां, शादी की है शादी में पति-पत्नी के बीच इस तरह अलग होने का कोई प्रावधान नहीं है अगर तुमने मैरिज़ की होती तो तुम डाइवोर्स ले सकते थे अगर तुमने निकाह किया होता तो तुम तलाक ले सकते थे लेकिन क्योंकि तुमने शादी की है, इसका मतलब ये हुआ कि हिंदू धर्म और हिंदी में कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं

मैंने इतनी-सी बात पूरी गंभीरता से कही थी, पर दोनों हंस पड़े थे दोनों को साथ-साथ हंसते देख कर मुझे बहुत खुशी हुई थी मैंने समझ लिया था कि रिश्तों पर पड़ी बर्फ अब पिघलने लगी है वो हंसे, लेकिन मैं गंभीर बना रहा

मैंने फिर निधि से पूछा कि ये तुम्हारे कौन हैं?

निधि ने नज़रे झुका कर कहा कि पति हैं मैंने यही सवाल नितिन से किया कि ये तुम्हारी कौन हैं? उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि बीवी हैं

मैंने तुरंत टोका ये तुम्हारी बीवी नहीं हैं ये तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं क्योंकि तुम इनके शौहर नहीं तुम इनके शौहर नहीं, क्योंकि तुमने इनसे साथ निकाह नहीं किया तुमने शादी की है शादी के बाद ये तुम्हारी पत्नी हुईं हमारे यहां जोड़ी ऊपर से बन कर आती है तुम भले सोचो कि शादी तुमने की है, पर ये सत्य नहीं है तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ, मैं सबकुछ अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा

बात अलग दिशा में चल पड़ी थी मेरे एक-दो बार कहने के बाद निधि शादी का एलबम निकाल लाई अब तक माहौल थोड़ा ठंडा हो चुका था, एलबम लाते हुए उसने कहा कि कॉफी बना कर लाती हूं

मैंने कहा कि अभी बैठो, इन तस्वीरों को देखो कई तस्वीरों को देखते हुए मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई जहां निधि और नितिन शादी के जोड़े में बैठे थे और पांव पूजन की रस्म चल रही थी मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली और उनसे कहा कि इस तस्वीर को गौर से देखो

उन्होंने तस्वीर देखी और साथ-साथ पूछ बैठे कि इसमें खास क्या है?

मैंने कहा कि ये पैर पूजन का रस्म है तुम दोनों इन सभी लोगों से छोटे हो, जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं

“हां तो

“ये एक रस्म है ऐसी रस्म संसार के किसी धर्म में नहीं होती जहां छोटों के पांव बड़े छूते हों लेकिन हमारे यहां शादी को ईश्वरीय विधान माना गया है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि शादी के दिन पति-पत्नी दोनों विष्णु और लक्ष्मी के रूप हो जाते हैं दोनों के भीतर ईश्वर का निवास हो जाता है अब तुम दोनों खुद सोचो कि क्या हज़ारों-लाखों साल से विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं दोनों के बीच कभी झिकझिक हुई भी हो तो क्या कभी तुम सोच सकते हो कि दोनों अलग हो जाएंगे? नहीं होंगे हमारे यहां इस रिश्ते में ये प्रावधान है ही नहीं तलाक शब्द हमारा नहीं है डाइवोर्स शब्द भी हमारा नहीं है

यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि बताओ कि हिंदी में तलाक को क्या कहते हैं?

दोनों मेरी ओर देखने लगे उनके पास कोई जवाब था ही नहीं फिर मैंने ही कहा कि दरअसल हिंदी में तलाक का कोई विकल्प नहीं हमारे यहां तो ऐसा माना जाता है कि एक बार एक हो गए तो कई जन्मों के लिए एक हो गए तो प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता, उसे करने की कोशिश भी मत करो या फिर पहले एक दूसरे से निकाह कर लो, फिर तलाक ले लेना

अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ काफी पिघल चुकी थी

निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी फिर उसने कहा कि

भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूं

वो कॉफी लाने गई, मैंने नितिन से बातें शुरू कर दीं बहुत जल्दी पता चल गया कि बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं, बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएं हैं, जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं

खैर, कॉफी आई मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि निधि ने रोक लिया, “भैया इन्हें शुगर है चीनी नहीं लेंगे

लो जी, घंटा भर पहले ये इनसे अलग होने की सोच रही थीं और अब इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं

मैं हंस पड़ा मुझे हंसते देख निधि थोड़ा झेंपी कॉफी पी कर मैंने कहा कि अब तुम लोग अगले हफ़्ते निकाह कर लो, फिर तलाक में मैं तुम दोनों की मदद करूंगा

शायद अब दोनों समझ चुके थे

हिन्दी एक भाषा ही नहीं - संस्कृति है

इसी तरह हिन्दू भी धर्म नही - सभ्यता है


फेस बुक से....


शनिवार, 22 अगस्त 2020

आओ, अपनी भाषा का गौरव बढ़ाएँ

 आज के छात्रों को भी नहीं पता होगा कि भारतीय भाषाओं की वर्णमाला विज्ञान से भरी है। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर तार्किक है और सटीक गणना के साथ क्रमिक रूप से रखा गया है। इस तरह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण अन्य विदेशी भाषाओं की वर्णमाला में शामिल नहीं है। जैसे देखे*

*क ख ग घ ड़* - पांच के इस समूह को "कण्ठव्य" *कंठवय* कहा जाता है क्योंकि इस का उच्चारण करते समय कंठ से ध्वनि निकलती है। उच्चारण का प्रयास करें।
*च छ ज झ ञ* - इन पाँचों को "तालव्य" *तालु* कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ तालू महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें।
*ट ठ ड ढ ण* - इन पांचों को "मूर्धन्य" *मुर्धन्य* कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ मुर्धन्य (ऊपर उठी हुई) महसूस करेगी। उच्चारण का प्रयास करें।
*त थ द ध न* - पांच के इस समूह को *दन्तवय* कहा जाता है क्योंकि यह उच्चारण करते समय जीभ दांतों को छूती है। उच्चारण का प्रयास करें।
*प फ ब भ म* - पांच के इस समूह को कहा जाता है *ओष्ठव्य* क्योंकि दोनों होठ इस उच्चारण के लिए मिलते हैं। उच्चारण का प्रयास करें।
दुनिया की किसी भी अन्य भाषा में ऐसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है? हमें अपनी भारतीय भाषा के लिए गर्व की आवश्यकता है, लेकिन साथ ही हमें यह भी बताना चाहिए कि दुनिया को क्यों और कैसे बताएं।
आओ अपनी भाषा का गौरव बढ़ाएँ* ...

रविवार, 16 अगस्त 2020

तिरंगा झंडा फ़्लैग पोस्ट के ऊपर गया और लाखों लोगों से घिरे माउंटबेटन ने अपनी बग्घी पर ही खड़े-खड़े उसे सेल्यूट किया : बीबीसी

 

AUGUST 16, 2020 RAMESH THAKUR LEAVE A COMMENT EDIT

जब 14 अगस्त, 1947 की शाम लॉर्ड माउंटबेटन कराची से दिल्ली लौटे तो वो अपने हवाई जहाज़ से मध्य पंजाब में आसमान की तरफ़ जाते हुए काले धुएं को साफ़ देख सकते थे. इस धुएं ने नेहरू के राजनीतिक जीवन के सबसे बड़े क्षण की चमक को काफ़ी हद तक धुंधला कर दिया था.

14 अगस्त की शाम जैसे ही सूरज डूबा, दो संन्यासी एक कार में जवाहर लाल नेहरू के 17 यॉर्क रोड स्थित घर के सामने रुके. उनके हाथ में सफ़ेद सिल्क का पीतांबरम, तंजौर नदी का पवित्र पानी, भभूत और मद्रास के नटराज मंदिर में सुबह चढ़ाए गए उबले हुए चावल थे.

जैसे ही नेहरू को उनके बारे में पता चला, वो बाहर आए. उन्होंने नेहरू को पीतांबरम पहनाया, उन पर पवित्र पानी का छिड़काव किया और उनके माथे पर पवित्र भभूत लगाई. इस तरह की सारी रस्मों का नेहरू अपने पूरे जीवन विरोध करते आए थे लेकिन उस दिन उन्होंने मुस्कराते हुए संन्यासियों के हर अनुरोध को स्वीकार किया.

थोड़ी देर बाद अपने माथे पर लगी भभूत धोकर नेहरू, इंदिरा गांधी, फ़िरोज़ गाँधी और पद्मजा नायडू के साथ खाने की मेज़ पर बैठे ही थे कि बगल के कमरे मे फ़ोन की घंटी बजी.

ट्रंक कॉल की लाइन इतनी ख़राब थी कि नेहरू ने फ़ोन कर रहे शख़्स से कहा कि उसने जो कुछ कहा उसे वो फिर से दोहराए. जब नेहरू ने फ़ोन रखा तो उनका चेहरा सफ़ेद हो चुका था.

उनके मुँह से कुछ नहीं निकला और उन्होंने अपना चेहरा अपने हाथों से ढँक लिया. जब उन्होंने अपना हाथ चेहरे से हटाया तो उनकी आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं. उन्होंने इंदिरा को बताया कि वो फ़ोन लाहौर से आया था.

वहाँ के नए प्रशासन ने हिंदू और सिख इलाक़ों की पानी की आपूर्ति काट दी थी. लोग प्यास से पागल हो रहे थे. जो औरतें और बच्चे पानी की तलाश में बाहर निकल रहे थे, उन्हें चुन-चुन कर मारा जा रहा था. लोग तलवारें लिए रेलवे स्टेशन पर घूम रहे थे ताकि वहाँ से भागने वाले सिखों और हिंदुओं को मारा जा सके.

फ़ोन करने वाले ने नेहरू को बताया कि लाहौर की गलियों में आग लगी हुई थी. नेहरू ने लगभग फुसफुसाते हुए कहा, ‘मैं आज कैसे देश को संबोधित कर पाऊंगा? मैं कैसे जता पाऊंगा कि मैं देश की आज़ादी पर ख़ुश हूँ, जब मुझे पता है कि मेरा लाहौर, मेरा ख़ूबसूरत लाहौर जल रहा है.’

इंदिरा गाँधी ने अपने पिता को दिलासा देने की कोशिश की. उन्होंने कहा आप अपने भाषण पर ध्यान दीजिए जो आपको आज रात देश के सामने देना है. लेकिन नेहरू का मूड उखड़ चुका था.

नेहरू के सचिव रहे एम ओ मथाई अपनी किताब ‘रेमिनिसेंसेज ऑफ़ नेहरू एज’ में लिखते हैं कि नेहरू कई दिनों से अपने भाषण की तैयारी कर रहे थे. जब उनके पीए ने वो भाषण टाइप करके मथाई को दिया तो उन्होंने देखा कि नेहरू ने एक जगह ‘डेट विद डेस्टिनी’ मुहावरे का इस्तेमाल किया था.

मथाई ने रॉजेट का इंटरनेशनल शब्दकोश देखने के बाद उनसे कहा कि ‘डेट’ शब्द इस मौके के लिए सही शब्द नहीं है क्योंकि अमरीका में इसका आशय महिलाओं या लड़कियों के साथ घूमने के लिए किया जाता है.

मथाई ने उन्हें सुझाव दिया कि वो डेट की जगह रान्डेवू (rendezvous ) या ट्रिस्ट (tryst) शब्द का इस्तेमाल करें. लेकिन उन्होंने उन्हें ये भी बताया कि रूज़वेल्ट ने युद्ध के दौरान दिए गए अपने भाषण में ‘रान्डेवू’ शब्द का इस्तेमाल किया है.

नेहरू ने एक क्षण के लिए सोचा और अपने हाथ से टाइप किया हुआ डेट शब्द काट कर ‘ट्रिस्ट’ लिखा. नेहरू के भाषण का वो आलेख अभी भी नेहरू म्यूज़ियम लाइब्रेरी में सुरक्षित है.

संसद के सेंट्रल हॉल में ठीक 11 बजकर 55 मिनट पर नेहरू की आवाज़ गूंजी, ‘बहुत सालों पहले हमने नियति से एक वादा किया था. अब वो समय आ पहुंचा है कि हम उस वादे को निभाएं…शायद पूरी तरह तो नहीं लेकिन बहुत हद तक ज़रूर. आधी रात के समय जब पूरी दुनिया सो रही है, भारत आज़ादी की सांस ले रहा है.’

अगले दिन के अख़बारों के लिए नेहरू ने अपने भाषण में दो पंक्तियाँ अलग से जोड़ीं. उन्होंने कहा, ‘हमारे ध्यान में वो भाई और बहन भी हैं जो राजनीतिक सीमाओं की वजह से हमसे अलग-थलग पड़ गए हैं और उस आज़ादी की ख़ुशियाँ नहीं मना सकते जो आज हमारे पास आई है. वो लोग भी हमारे हिस्से हैं और हमेशा हमारे ही रहेंगे चाहे जो कुछ भी हो. ‘

जैसे ही घड़ी ने रात के बारह बजाए शंख बजने लगे. वहाँ मौजूद लोगों की आँखों से आंसू बह निकले और महात्मा गाँधी की जय के नारों से सेंट्रल हॉल गूंज गया.

सुचेता कृपलानी ने, जो साठ के दशक में उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं, पहले अल्लामा इक़बाल का गीत ‘सारे जहाँ से अच्छा’ और फिर बंकिम चंद्र चैटर्जी का ‘वंदे मातरम’ गाया, जो बाद में भारत का राष्ट्रगीत बना. सदन के अंदर सूट पहने हुए एंग्लो – इंडियन नेता फ़्रैंक एन्टनी ने दौड़ कर जवाहरलाल नेहरू को गले लगा लिया.

संसद भवन के बाहर मूसलाधार बारिश में हज़ारों भारतीय इस बेला का इंतज़ार कर रहे थे. जैसे ही नेहरू संसद भवन से बाहर निकले मानो हर कोई उन्हें घेर लेना चाहता था. 17 साल के इंदर मल्होत्रा भी उस क्षण की नाटकीयता से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे.

जैसे ही घड़ी ने रात के बारह बजाए उन्हें ये देख कर ताज्जुब हुआ कि दूसरे लोगों की तरह उनकी आँखें भी भर आई थीं.

वहाँ पर मशहूर लेखक खुशवंत सिंह भी मौजूद थे जो अपना सब कुछ छोड़ कर लाहौर से दिल्ली पहुंचे थे. उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए कहा था. ‘हम सब रो रहे थे और अनजान लोग खुशी से एक दूसरे को गले लगा रहे थे.’

आधी रात के थोड़ी देर बाद जवाहरलाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद लॉर्ड माउंटबेटन को औपचारिक रूप से भारत के पहले गवर्नर जनरल बनने का न्योता देने आए.

माउंटबेटन ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया. उन्होंने पोर्टवाइन की एक बोतल निकाली और अपने हाथों से अपने मेहमानों के गिलास भरे. फिर अपना गिलास भर कर उन्होंने अपना हाथ ऊँचा किया,’ ‘टु इंडिया.’

एक घूंट लेने के बाद नेहरू ने माउंटबेटन की तरफ अपना गिलास कर कहा ‘किंग जॉर्ज षष्टम के लिए.’ नेहरू ने उन्हें एक लिफ़ाफ़ा दिया और कहा कि इसमें उन मंत्रियों के नाम हैं जिन्हें कल शपथ दिलाई जाएगी.

नेहरू और राजेंद्र प्रसाद के जाने के बाद जब माउंटबेटन ने लिफ़ाफ़ा खोला तो उनकी हँसी निकल गई क्योंकि वो खाली था. जल्दबाज़ी में नेहरू उसमें मंत्रियों के नाम वाला कागज़ रखना भूल गए थे.

अगले दिन दिल्ली की सड़कों पर लोगों का सैलाब उमड़ा पड़ा था. शाम पाँच बजे इंडिया गेट के पास प्रिंसेज़ पार्क में माउंटबेटन को भारत का तिरंगा झंडा फहराना था. उनके सलाहकारों का मानना था कि वहाँ करीब तीस हज़ार लोग आएंगे लेकिन वहाँ पाँच लाख लोग इकट्ठा थे.

भारत के इतिहास में तब तक कुंभ स्नान को छोड़ कर एक जगह पर इतने लोग कभी नहीं एकत्रित हुए थे. बीबीसी के संवाददाता और कमेंटेटर विनफ़र्ड वॉन टामस ने अपनी पूरी ज़िदगी में इतनी बड़ी भीड़ नहीं देखी थी.

माउंटबेटन की बग्घी के चारों ओर लोगों का इतना हुजूम था कि वो उससे नीचे उतरने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. चारों ओर फैले हुए इस अपार जन समूह की लहरों ने झंडे के खंबे के पास बनाए गए छोटे से मंच को अपनी लपेट में ले लिया था.

भीड़ को रोकने के लिए लगाई गई बल्लियाँ, बैंड वालों के लिए बनाया गया मंच, बड़ी मेहनत से बनाई गई विशिष्ट अतिथियों की दर्शक दीर्घा और रास्ते के दोनों ओर बाँधी गई रस्सियाँ- हर चीज़ लोगों की इस प्रबल धारा में बह गईं थीं. लोग एक दूसरे से इतना सट कर बैठे हुए थे कि उनके बीच से हवा का गुज़रना भी मुश्किल था.

फ़िलिप टालबोट अपनी किताब ‘एन अमेरिकन विटनेस’ में लिखते हैं, ‘भीड़ का दवाब इतना था कि उससे पिस कर माउंटबेटन के एक अंगरक्षक का घोड़ा ज़मीन पर गिर गया. सब की उस समय जान में जान आई जब वो थोड़ी देर बाद खुद उठ कर चलने लगा.’

माउंटबेटन की 17 वर्षीय बेटी पामेला भी दो लोगों के साथ उस समारोह को देखने पहुंचीं थीं. नेहरू ने पामेला को देखा और चिल्ला कर कहा लोगों के ऊपर से फाँदती हुई मंच पर आ जाओ.

पामेला भी चिल्लाई, ‘मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ. मैंने ऊंची एड़ी की सैंडल पहनी हुई है.’ नेहरू ने कहा सैंडल को हाथ में ले लो. पामेला इतने ऐतिहासिक मौके पर ये सब करने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकती थीं.

अपनी किताब ‘इंडिया रिमेंबर्ड’ में पामेला लिखती हैं, ‘मैंने अपने हाथ खड़े कर दिए. मैं सैंडल नहीं उतार सकती थी. नेहरू ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा तुम सैंडल पहने-पहने ही लोगों के सिर के ऊपर पैर रखते हुए आगे बढ़ो. वो विल्कुल भी बुरा नहीं मानेंगे. मैंने कहा मेरी हील उन्हें चुभेगी. नेहरू फिर बोले बेवकूफ़ लड़की सैंडल को हाथ में लो और आगे बढ़ो.’

पहले नेहरू लोगों के सिरों पर पैर रखते हुए मंच पर पहुंचे और फिर उनकी देखा देखी भारत के अंतिम वॉयसराय की लड़की ने भी अपने सेंडिल को उतार कर हाथों में लिया और इंसानों के सिरों की कालीन पर पैर रखते हुए मंच तक पहुंच गईं, जहाँ सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल पहले से मौजूद थीं.

डोमिनीक लापिएर और लैरी कॉलिंस इपनी किताब ‘फ़्रीडम एट मिडनाइट’ में लिखते हैं, ‘मंच के चारों ओर उमड़ते हुए इंसानों के उस सैलाब में हज़ारों ऐसी औरतें भी थीं जो अपने दूध पीते बच्चों को सीने से लगाए हुए थीं. इस डर से कि कहीं उनके बच्चे बढ़ती हुई भीड़ में पिस न जाएं, जान पर खेल कर वो उन्हें रबड़ की गेंद की तरह हवा में उछाल देतीं और जब वो नीचे गिरने लगते तो उन्हें फिर उछाल देतीं. एक क्षण में हवा में इस तरह सैकड़ों बच्चे उछाल दिए गए. पामेला माउंटबेटन की आखें आश्चर्य से फटी रह गईं और वो सोचने लगीं, ‘हे भगवान, यहाँ तो बच्चों की बरसात हो रही है.”

उधर अपनी बग्घी में कैद माउंटबेटन उससे नीचे ही नहीं उतर पा रहे थे. उन्होंने वहीं से चिल्ला कर नेहरू से कहा,’ बैंड वाले भीड़ के बीच में खो गए हैं. लेट्स होएस्ट द फ़्लैग.’

वहाँ पर मौजूद बैंड के चारों तरफ़ इतने लोग जमा थे कि वो अपने हाथों तक को नहीं हिला पाए. मंच पर मौजूद लोगों ने सौभाग्य से माउंटबेटन की आवाज़ सुन ली. तिंरंगा झंडा फ़्लैग पोस्ट के ऊपर गया और लाखों लोगों से घिरे माउंटबेटन ने अपनी बग्घी पर ही खड़े खड़े उसे सेल्यूट किया.

लोगों के मुंह से बेसाख़्ता आवाज़ निकली,’माउंटबेटन की जय….. पंडित माउंटबेटन की जय !’ भारत के पूरे इतिहास में इससे पहले किसी दूसरे अंग्रेज़ को ये सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था कि वो लोगों को इतनी दिली भावना के साथ ये नारा लगाते हुए सुने. उस दिन उन्हें वो चीज़ मिली जो न तो उनकी परनानी रानी विक्टोरिया को नसीब हुई थी और न ही उनकी किसी और संतान को.

भारत के इतिहास में किसी दूसरे अंग्रेज़ को ये सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ था कि वो लोगों को इतनी शिद्दत के साथ ये नारा लगाते हुए सुने. यह माउंटबेटन की कामयाबी को भारत की जनता का समर्थन था.

उस मधुर क्षण के उल्लास में भारत के लोग प्लासी की लड़ाई, 1857 के अत्याचार, जालियाँवाला बाग की ख़ूनी दास्तान सब भूल गए. जैसे ही झंडा ऊपर गया उसके ठीक पीछे एक इंद्रधनुष उभर आया, मानो प्रकृति ने भी भारत की आज़ादी के दिन का स्वागत करने और उसे और रंगीन बनाने की ठान रखी हो.

वहाँ से अपनी बग्घी पर गवर्नमेंट हाउज़ लौटते हुए माउंटबेटन सोच रहे थे सब कुछ ऐसा लग रहा है जैसे लाखों लोग एक साथ पिकनिक मनाने निकले हों और उन में से हर एक को इतना आनंद आ रहा हो जितना जीवन में पहले कभी नहीं आया था.

इस बीच माउंटबेटन और एडवीना ने उन तीन औरतों को अपनी बग्घी में चढ़ा लिया जो थक कर निढ़ाल हो चुकी थीं और उनकी बग्घी के पहिए के नीचे आते आते बची थीं. वो औरतें काले चमड़ों से मढ़ी हुई सीट पर बैठ गईं जिसकी गद्दियाँ इंग्लैंड के राजा और रानी के बैठने के लिए बनाई गई थीं.

उसी बग्घी में भारत के प्रधानमंत्री जवाहललाल नेहरू उसके हुड पर बैठे हुए थे क्योंकि उनके लिए बग्घी में बैठने के लिए कोई सीट ही नहीं बची थी.

अगले दिन माउंटबेटन के बेहद करीबी उनके प्रेस अटाशे एलन कैंपबेल जॉन्सन ने अपने एक साथी से हाथ मिलाते हुए कहा था, ‘आखिरकार दो सौ सालों के बाद ब्रिटेन ने भारत को जीत ही लिया !’

उस दिन पूरी दिल्ली में रोशनी की गई थी. कनॉट प्लेस और लाल किला हरे केसरिया और सफ़ेद रोशनी से नहाये हुए थे. रात को माउंटबेटन ने तब के गवर्नमेंट हाउस और आज के राष्ट्रपति भवन ने 2500 लोगों के लिए भोज दिया.

बीबीसी,

DrAlok Gupta,

Ramesh Thakkur, 16-8-2020


रविवार, 10 मई 2020