सोमवार, 28 सितंबर 2020

एकता में अनेकता दर्शाता माँ का पल्लू ....


मुझे नहीं लगता कि आज के बच्चे यह जानते हों कि पल्लू क्या होता है, इसका कारण यह है कि आजकल की माताएं अब साड़ी नहीं पहनती हैं। पल्लू बीते समय की बातें हो चुकी है। माँ के पल्लू का सिद्धांत माँ को गरिमामयी छवि प्रदान प्रदान करने के लिए था। लेकिन इसके साथ ही, यह गरम बर्तन को चूल्हे से हटाते समय गरम बर्तन को पकड़ने के काम भी आता था। पल्लू की बात ही निराली थी। पल्लू भी कितना कुछ लिखा जा सकता है। साथ ही पल्लू बच्चों का पसीना / आँसू पूछने, गंदे कानों/मुँह की सफाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। माँ इसको अपना हाथ तौलिये के रूप में भी इस्तेमाल का लेती थी। खाना खाने के बाद पल्लू से मुँह साफ करने का अपना ही आनंद होता था। 

कभी आँख में दर्द होने पर माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर, फूँक मारकर, गरम करके आँख पर लगा देतीं थी, सारा दर्द उसी समय गायब हो जाता था। 

माँ की गोद मे सोने वाले बच्चों के लिए उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू चदरे का काम करता था । जब भी कोई अंजान घर पर आता, तो उसको माँ के पल्लू की ओट ले कर देखते था। जब भी बच्चे को किसी बात पर शर्म आती, वो पल्लू से अपना मुँह ढँक कर छुप जाता था। यही नहीं, जब बच्चों को बाहर जाना होता, तब माँ का पल्लू एक मार्गदर्शक का काम करता था। जब तक बच्चे ने हाथ में थाम रखा होता, तो सारी कायनात उसकी मुट्ठी में होती। जब मौसम ठंडा होता था, माँ उसको अपने चारों और लपेटकर ठंड से बचने की कोशिश करती। 

पल्लू एप्रन का काम भी करता था। पल्लू का उपयोग पेड़ों से गिरने वाले जामुन और मीठे सुगंधित फूलों को लाने के लिए किया जाता था। पल्लू घर में रखे सामान से धूल हटाने मे भी बहुत सहायक होता था। 

पल्लू में गाँठ लगाकर माँ एक चलता फिरता बैंक या तिजोरी रखती थी और अगर सब कुछ ठीक रहा, तो कभी कभी उस बैंक से कुछ पैसे भी मिल जाते थे। मुझे नहीं लगता की विज्ञान इतनी तरक्की करने के बाद भी पल्लू का विकल्प ढूंढ पाया है। 

पल्लू कुछ और नहीं बल्कि एक जादुई अहसास है। मैं पुरानी पीढ़ी से संबंध रखता हैं और अपनी माँ के प्यार और स्नेह को हमेशा महसूस करता हूँ, जो आज की पीढ़ियों की समझ से शायद बिलकुल ही गायब है। 

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रविवार, 27 सितंबर 2020

छुईखदान का इतिहास परत-दर-परत खुला

 पुस्तक समीक्षा  डॉ. गणेश खरे

 दैनिक 'सबेरा संकेत"  राजनांदगांव के वरिष्ठ उप संपादक, पत्रकार, लोककर्मी एवं साहित्यकार श्री वीरेन्द्र बहादुर सिंह द्वारा रचित 'छुईखदान: परत दर परत" नामक ग्रंथ छुईखदान के इतिहास का प्रामाणिक दस्तावेज़ है। इसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ की रियासतों के संक्षिप्त विवरण के साथ छुईखदान की विशिष्टता का परिचय प्रस्तुत करने के साथ-साथ  वहां के सेनानियों के द्वारा स्वतंत्रता आन्दोलन, किसान आन्दोलन और गोली कांड का विस्तार से वर्णन किया है। इस संदर्भ में इतिहास की हर सूक्ष्मता, तटस्थता तथा प्रामाणिकता का पूरा ध्यान रखा गया है। इतना ही नहीं उन्होंने यहां के  बहुमुखी विकास के प्रमुख आयामों में साहित्यिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, पत्रकारिता, उद्योग, व्यापार, क्रीड़ा,  विद्युत व्यवस्था  आदि  के विकास की विभिन्न परतों पर भी प्रकाश डाला है।  इसके परिशिष्ट में आपने स्थानीय 60 स्वतंत्रता सेनानियों के नामों के साथ नगर पालिका परिषद,  नगर पंचायत और छुईखदान बुनकर सहकारी समिति के पदाधिकारियों के आज तक के नाम आदि भी देकर इसे स्थानीय इतिहास का विश्वसनीय कोश बना दिया है। अब ऐसा कोई पक्ष नहीं छूटा है जो छुईखदान से संबंधित हो और उसकी चर्चा इस ग्रंथ में न की गई हो। 

छुईखदान एक छोटी सी रियासत रही है पर छत्तीसगढ़ की समग्र 14 रियासतों में इसका विशिष्ट स्थान रहा है। स्वतंत्रता आन्दोलन में भी यहां के वीर सेनानियों ने अपने स्वाभिमान और आजादी प्राप्ति की संकल्पशीलता का परिचय दिया है। स्वतंत्रता के पश्चात् भी अपने स्थान की तहसीली और  कोषालय की सुरक्षा के लिए यहां की महिलाओं और पुरुषों ने अपने अधिकारों तथा स्वत्व की रक्षा के लिए संघर्ष किया है इससे इस अंचल का शीश सदा गर्व से उन्नत रहेगा पर प्रजातंत्र-युग में भी यहां के निर्दोष जन समूह पर गोली चालन का आदेश देकर तत्कालीन प्रशासन ने अपनी निर्लज्जता और कू्ररता का जो परिचय दिया वह भारतीय इतिहास का कलंक कहा गया है। श्री  वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने उस स्थानीय गोली कांड के हर पक्ष का भी इस ग्रंथ में प्रामाणिक नामों और तिथियों सहित विवरण प्रस्तुत किया है। अभी तक इस संदर्भ में लोगों को इस कांड की औपचारिक जानकारी प्राप्त थी पर अब इस ग्रंथ के माध्यम से यह गोली कांड भी कालजयी बन जायेगा जिससे भविष्य में भी यह स्थान स्वतंत्रता सेनानियों की खदान के नाम से जाना जाता रहेगा। 

इस रचना के 95 वर्ष पूर्व अर्थात् 1925 में छुईखदान के बाबू धानूलाल श्रीवास्तव ने अपने ग्रंथ 'अष्ट-राज्य-अंभोज" में छत्तीसगढ़ की रियासतों पर प्रामाणिक जानकारी प्रस्तुत की थी पर विकास के इन लगभग सौ वर्षो में हर जगह के सभी क्षेत्रों में बहुत  अधिक परिवर्तन हुए हैं जिनकी जानकारी इस्तत: बिखरी पड़ी है।  छुईखदान रियासत की समृद्धि और सम्पदा की जानकारी भी लोगों को आधी-अधूरी ही ज्ञात है। श्री वीरेन्द्र बहादुर ने अपने  256 पृष्ठों के इस ग्रंथ में यहां के इतिहास को निम्न चार कालों में विभक्त कर सारी बिखरी हुई सामग्री को एक स्थान पर प्रस्तुत करने का प्रशंसनीय कार्य किया है। प्रथम काल है । छुईखदान का रियासत कालीन इतिहास 1750 से 1947 तक, द्वितीय स्वतंत्रता आन्दोलन 1920  से 1947 तक, तृतीय  9 जनवरी 1953 का दुर्भाग्यपूर्ण गोली कांड  और चौथी परत है स्वतंत्रता के इन 70 वषों में छुईखदान का बहुमुखी विकास। इस प्रकार इस ग्रंथ में लगभग 300 वर्षों की विभिन्न गतिविधियों की प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध है। इस ग्रंथ से प्रेरणा लेकर इस जिले के अन्य स्थानों के विकास की भी प्रामाणिक जानकारियां प्रस्तुत की जानी चाहिए। इस संदर्भ में अभी तक श्री रामहृदय तिवारी द्वारा संपादित 'अतीत और आज के आइने में अरजुंदा' नामक पुस्तक देखने मिली है जिसके परिशिष्ट में एक सौ के लगभग वहां के विकास से संबंधित रगीन चित्रों का भी समावेश किया गया है ।

इस ग्रंथ के पहले भी श्री वीरेन्द्र बहादुर ने 'रक्त पुष्प", 'दूर क्षितिज में, 'महुआ झरे और 'पृष्ठों का नीड़" जैसी पुस्तकों का संपादन कार्य भी किया है। इनके प्रकाशन और संपादन में उन्होंने  जिस लगन, मेहनत और साहित्येतिहास के प्रति अपनी मूल्यवान निष्ठा व्यक्त की है, वह प्रशंसनीय है।  हम इनकी इस 'छुईखदान: परत दर परत" पुस्तक का स्वागत करते हैं और उन्हें इसके लिए अपनी शुभ कामनायें देते हैं। 

98 सृष्टि कालोनी, राजनांदगांव, 

छ.ग. मो. 9329879485