बुधवार, 4 नवंबर 2020

छत्तीसगढ़ी सिनेमा का सुनहरा पन्ना 'घर द्वार'

गीता कौशल, ज़ाफर अली फरिश्ता, कान मोहन एवं रंजीता ठाकुर



. जाफर अली फरिश्ता एवं गीता कौशल

■ अनिरुद्ध दुबे 

रायपुर शहर के कुछ फ़िल्मी पंडित दावा करते रहे थे कि 1971 में प्रदर्शित हुई छत्तीसगढ़ी फ़िल्म घर व्दार का प्रिंट सलामात नहीं है। सच्चाई यह है कि इस फ़िल्म की प्रिंट कहीं-कहीं पर धुंधली ज़रूर हो गई, लेकिन आज भी वह सुरक्षित है। गीत-संगीत के कारण "घर द्वार" ने इतिहास रचा। इस फ़िल्म के निर्माता स्व. विजय कुमार पाण्डेय का छत्तीसगढ़ी सिनेमा में जो योगदान रहा उसे कैसे भुलाया जा सकता है। 23 दिसंबर 1943 को जन्मे विजय कुमार पाण्डेय भनपुरी के मालगुज़ार थे। बचपन से इन्हें फ़िल्मों का शौक था। अपनी छत्तीसगढ़ी भाषा में फ़िल्म बनाने का उनका सपना था। 1965 में वह समय  भी आया जब स्व. पाण्डेय का सपना साकार होते नज़र आने लगा। फ़िल्मों के शौक के कारण स्व. पाण्डेय के बम्बई (अब मुम्बई) के चक्कर लगते रहते थे। बम्बई में उन्हें अपने रायपुर के साथी निर्जन तिवारी मिल गए, जो वहां हिन्दी फ़िल्म निर्माण क्षेत्र में अहम् भूमिका निभा रहे थे। "घर द्वार" को लेकर विजय पाण्डेय एवं निर्जन तिवारी के बीच लंबी बातचीत चली। पाण्डेय जी ने उनसे कहा कि "कितना ही दम क्यों न लगाना पड़े मुझे "घर द्वार" का सपना साकार करना है।" दोनों ने मिलकर उस दौर के हिन्दी फ़िल्मों के कलाकार कान मोहन, दुलारी, रंजीता ठाकुर, गीता कौशल एवं पुष्पांजलि को अपनी फ़िल्म में काम करने के लिए राज़ी कर लिया। पाण्डेय जी ने फ़िल्म के गीत छत्तीसगढ़ अंचल के जाने-माने साहित्यकार हरि ठाकुर से लिखवाए। पाण्डेय जी चाहते थे कि "घर द्वार" के गानों को देश के जाने-माने गायक-गायिका की आवाज़ मिले। उनका यह ख़्वाब भी पूरा हुआ। मोहम्मद रफ़ी एवं सुमन कल्याणपुर जैसे लोकप्रिय गायक-गायिका की मधुर आवाज़ में गाने तैयार हुए, जिन्हें संगीत से सजाया मशहूर संगीतकार जमाल सेन ने। पाण्डेय जी को छत्तीसगढ़ की माटी से गहरा प्रेम रहा और उन्होंने यहां के कलाकारों को "घर द्वार" से जोड़ा। सरायपाली के राज महल समेत अन्य खास लोकेशंस में "घर द्वार" की शूटिंग हुई। 30 अप्रैल 1971 को सेंसर बोर्ड से पास होने के बाद "घर द्वार" जब रुपहले पर्दे पर आई, एक नया इतिहास रच गया। "घर द्वार" के गाने ऐसे बन पड़े कि आकाशवाणी रायपुर से बरसों तक सुने जाते रहे। छत्तीसगढ़ के बहुत से लोक कला मंच आज भी अपने कार्यक्रमों में "घर द्वार" के सबसे पॉपुलर गीत "सुन सुन मोर मया पीरा के संगवारी रे... आ जा नैना तीर आ जा रे... आ जा रे..." की प्रस्तुति ज़रूर देते हैं। आज जब छत्तीसगढ़ी सिनेमा का काफ़ी विस्तार हो चुका, फ़िल्म "घर द्वार" की चर्चा पहले से ज़्यादा होने लगी है। पाण्डेय जी का आगे भी छत्तीसगढ़ी फ़िल्म बनाने का मन था, पर समय के आगे किसकी चली है। 11 मार्च 1987 को सड़क हादसे में पाण्डेय जी का निधन हो गया। पाण्डेय जी के बेटे जयप्रकाश पाण्डेय और परिवार के अन्य सदस्य अपनी विरासत को आगे ले जाने प्रयासरत् हैं। पाण्डेय परिवार का जे.के. फिल्म्स प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले भविष्य में फ़िल्म निर्माण करने का सपना है।

घर द्वार से जुड़ी खास बातें-

0 "घर द्वार" के निर्माण में विजय कुमार पाण्डेय की पत्नी श्रीमती चंद्रकली पाण्डेय का विशेष योगदान रहा। सरायपाली राजमहल में जब फ़िल्म की शूटिंग चली, श्रीमती पाण्डेय ने कदम से कदम मिलाकर पति का साथ दिया था। आगे श्रीमती पाण्डेय कुछ समय तक राजनीति में भी सक्रिय रहीं। सन् 2004 में वे भाजपा की टिकट पर यति यतनलाल वार्ड (भनपुरी) से पार्षद चुनी गईं। विगत 26 अक्टूबर को श्रीमती पाण्डेय का निधन हो गया।

0 "घर द्वार" में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके शिव कुमार दीपक को हाल ही में 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ सरकार ने दाऊ मंदराजी लोक कला सम्मान से सम्मानित किया।

0 निर्माता विजय कुमार पाण्डेय स्वयं "घर द्वार" में एक छोटी भूमिका में नज़र आए थे।

0 हीरो कान मोहन सिंधी फ़िल्मों के जाने-माने कलाकार थे। 

0 फ़िल्म के दूसरे हीरो जाफर अली फरिश्ता रायपुर के रहने वाले थे। कुछ साल पहले उनका मुम्बई में निधन हो गया। 

0 जाफर अली फरिश्ता के दोस्त की भूमिका निभाने वाले इक़बाल अहमद रिज़वी वर्तमान में छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी कांग्रेस) के प्रवक्ता हैं।

0 "घर द्वार" में छत्तीसगढ़ के नीलू मेघ (नीला अहमद), बसंत दीवान, परवीन खान, भगवती चरण दीक्षित, राम कुमार तिवारी, श्रीराम कालेले, भास्कर काठोठे, यशवंत गोविन्द जोगलेकर, ठाकुरदास आहूजा, नरेश कुमार एवं जयबाला पाण्डेय ने काम किया। इनमें जयबाला स्व. विजय कुमार पाण्डेय की पुत्री हैं। 

0 "घर द्वार" के डायरेक्टर निर्जन तिवारी के पिता रामदयाल तिवारी की गिनती जीनियस लोगों में होती थी। रायपुर शहर का आर.डी. तिवारी स्कूल रामदयाल तिवारी के नाम पर है। डायरेक्टर निर्जन तिवारी जिनका मूल नाम लखन तिवारी था, लंबे समय तक मुम्बई में गुमनामी की ज़िन्दगी जीते रहे और वहीं उनका निधन हो गया।

सिंगल कॉलम में जो तस्वीर है, वह स्व. विजय कुमार पाण्डेय की है।