रविवार, 27 दिसंबर 2020

वैज्ञानिक समय गणना तंत्र

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तंत्र (ऋषि मुनियो पर किया अनिल अनुसंधान )

■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग

■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग

■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,

■ 1 लव = 1 क्षण

■ 30 क्षण = 1 विपल ,

■ 60 विपल = 1 पल

■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,

■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )

■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,

■ 7 दिवस = 1 सप्ताह

■ 4 सप्ताह = 1 माह ,

■ 2 माह = 1 ऋतू

■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,

■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी

■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,

■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग

■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,

■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,

■ 4 युग = सतयुग

■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग

■ 72 महायुग = मनवन्तर ,

■ 1000 महायुग = 1 कल्प

■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )

■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )

■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )


सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l

दो लिंग : नर और नारी ।

दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।

दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।

दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।


तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।

तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।

तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।

तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।

तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।

तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।

तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।

तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।

तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।

तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।

तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।

तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।

तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।


चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।

चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।

चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।

चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।

चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।

चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।

चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।

चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।

चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।

चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।

चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।

चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।

चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।

चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।

चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।

चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।

चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।


पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।

पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।

पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।

पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।

पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।

पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।

पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।

पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।

पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।

पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।

पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।

पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।

पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।

पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।


छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।

छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।

छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।

छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।


सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।

सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।

सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।

सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।

सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।

सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।

सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।

सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।

सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।

सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।

सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।

सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।

सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।

सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।


आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।

आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।

आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।

आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।

आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।


नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।

नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।

नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।


दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।

दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।

दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।

दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।

दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।


उक्त जानकारी शास्त्रोक्त आधार पर है ।

गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

ढाई अक्षर का रहस्य

 मैंने बचपन में पढा था, 

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय

ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय 

अब पता लगा ये ढाई अक्षर क्या है-

ढाई अक्षर के ब्रह्मा और ढाई अक्षर की सृष्टि

ढाई अक्षर के विष्णु और ढाई अक्षर के लक्ष्मी

ढाई अक्षर के कृष्ण और ढाई अक्षर की कान्ता।(राधा रानी का दूसरा नाम)

ढाई अक्षर की दुर्गा और ढाई अक्षर की शक्ति

ढाई अक्षर की श्रद्धा और ढाई अक्षर की भक्ति

ढाई अक्षर का त्याग और ढाई अक्षर का ध्यान


ढाई अक्षर की तुष्टि और ढाई अक्षर की इच्छा

ढाई अक्षर का धर्म और ढाई अक्षर का कर्म

ढाई अक्षर का भाग्य और ढाई अक्षर की व्यथा

ढाई अक्षर का ग्रन्थ और ढाई अक्षर का सन्त

ढाई अक्षर का शब्द और ढाई अक्षर का अर्थ

ढाई अक्षर का सत्य और ढाई अक्षर की मिथ्या

ढाई अक्षर की श्रुति और ढाई अक्षर की ध्वनि

ढाई अक्षर की अग्नि और ढाई अक्षर का कुण्ड

ढाई अक्षर का मन्त्र और ढाई अक्षर का यन्त्र

ढाई अक्षर की श्वांस और ढाई अक्षर के प्राण

ढाई अक्षर का जन्म ढाई अक्षर की मृत्यु

ढाई अक्षर की अस्थि और ढाई अक्षर की अर्थी

ढाई अक्षर का प्यार और ढाई अक्षर का युद्ध

ढाई अक्षर का मित्र और ढाई अक्षर का शत्रु

ढाई अक्षर का प्रेम और ढाई अक्षर की घृणा

जन्म से लेकर मृत्यु तक हम बंधे हैं ढाई अक्षर में। 

हैं ढाई अक्षर ही वक़्त में और ढाई अक्षर ही अन्त में।

 समझ न पाया कोई भी है रहस्य क्या ढाई अक्षर में।

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

1971 में पाकिस्तान की कैद में रहे भारतीय पायलटों की कहानी

जिन 3 पायलटों की बात हम आपको बताने जा रहे हैं, वह दिलीप पारुलकर, मलविंदर सिंह गरेवाल और हरीश सिंह जी हैं। यह तीनों ही 1971 युद्ध के समय भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात थे। इस दौरान वह पाकिस्तान के कब्जे में आ गए। 

रेड वन, यू आर ऑन फ़ायर'… स्क्वाड्रन लीडर धीरेंद्र जाफ़ा के हेडफ़ोन में अपने साथी पायलट फ़र्डी की आवाज़ सुनाई दी.

दूसरे पायलट मोहन भी चीख़े, 'बेल आउट रेड वन बेल आउट.' तीसरे पायलट जग्गू सकलानी की आवाज़ भी उतनी ही तेज़ थी, 'जेफ़ सर... यू आर.... ऑन फ़ायर.... गेट आउट.... फ़ॉर गॉड सेक.... बेल आउट..'

जाफ़ा के सुखोई विमान में आग की लपटें उनके कॉकपिट तक पहुंच रही थीं. विमान उनके नियंत्रण से बाहर होता जा रहा था. उन्होंने सीट इजेक्शन का बटन दबाया जिसने उन्हें तुरंत हवा में फेंक दिया और वो पैराशूट के ज़रिए नीचे उतरने लगे.

जाफ़ा बताते हैं कि जैसे ही वो नीचे गिरे नार-ए-तकबीर और अल्लाह हो अकबर के नारे लगाती हुई गाँव वालों की भीड़ उनकी तरफ़ दौड़ी.

लोगों ने उन्हें देखते ही उनके कपड़े फाड़ने शुरू कर दिए. किसी ने उनकी घड़ी पर हाथ साफ़ किया तो किसी ने उनके सिगरेट लाइटर पर झपट्टा मारा.

सेकेंडों में उनके दस्ताने, जूते, 200 पाकिस्तानी रुपए और मफ़लर भी गायब हो गए. तभी जाफ़ा ने देखा कि कुछ पाकिस्तानी सैनिक उन्हें भीड़ से बचाने की कोशिश कर रहे हैं.

एक लंबे चौड़े सैनिक अफ़सर ने उनसे पूछा, 'तुम्हारे पास कोई हथियार है?' जाफ़ा ने कहा, 'मेरे पास रिवॉल्वर थी, शायद भीड़ ने उठा ली.'

'क्या जख़्मी हो गए हो?'

'लगता है रीढ़ की हड्डी चली गई है. मैं अपने शरीर का कोई हिस्सा हिला नहीं सकता.' जाफ़ा ने कराहते हुए जवाब दिया.

उस अफ़सर ने पश्तो में कुछ आदेश दिए और जाफ़ा को दो सैनिकों ने उठा कर एक टेंट में पहुंचाया.

जाफ़ा की कमर में प्लास्टर लगाया गया और उन्हें जेल की कोठरी में बंद कर दिया गया. रोज़ उनसे सवाल-जवाब होते.

जब उन्हें टॉयलेट जाना होता तो उनके मुंह पर तकिये का गिलाफ़ लगा दिया जाता ताकि वो इधर उधर देख न सकें. एक दिन उन्हें उसी बिल्डिंग के एक दूसरे कमरे में ले जाया गया.

जैसे ही वो कमरे के पास पहुंचे, उन्हें लोगों की आवाज़ें सुनाई देने लगीं. जैसे ही वो अंदर घुसे, सारी आवाज़ें बंद हो गईं…


अचानक ज़ोर से एक स्वर गूंजा, 'जेफ़ सर!'… और फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट दिलीप पारुलकर उन्हें गले लगाने के लिए तेज़ी से बढ़े.

उन्हें दिखाई ही नहीं दिया कि जाफ़ा की ढीली जैकेट के भीतर प्लास्टर बंधा हुआ था. वहाँ पर दस और भारतीय युद्धबंदी पायलट मौजूद थे. इतने दिनों बाद भारतीय चेहरे देख जाफ़ा की आँखों से आंसू बह निकले. तभी युद्धबंदी कैंप के इंचार्ज स्क्वाड्रन लीडर उस्मान हनीफ़ ने मुस्कराते हुए कमरे में प्रवेश किया. उनके पीछे उनके दो अर्दली एक केक और सबके लिए चाय लिए खड़े थे. उस्मान ने कहा- मैंने सोचा मैं आप लोगों को क्रिसमस की मुबारकबाद दे दूँ. वो शाम एक यादगार शाम रही. हँसी मज़ाक के बीच वहाँ मौजूद सबसे सीनियर भारतीय अफ़सर विंग कमांडर बनी कोएलहो ने कहा कि हम लोग मारे गए अपने साथियों के लिए दो मिनट का मौन रखेंगे और इसके बाद हम सब लोग राष्ट्र गान गाएंगे.

जाफ़ा बताते हैं कि 25 दिसंबर, 1971 की शाम को पाकिस्तानी जेल में जब भारत के राष्ट्र गान की स्वर लहरी गूंजी तो उनके सीने गर्व से चौड़े हो गए.

जब भारत के नीति नियोजन समिति के अध्यक्ष डीपी धर पाकिस्तान आ कर वापस लौट गए और युद्धबंदियों के भाग्य पर कोई फैसला नहीं हुआ तो पारुलकर और गरेवाल बहुत निराश हुए।

दीवार में छेद करके भागने की योजना बनी

लड़ाई से पहले पारुलकर ने अपने साथियों से कहा था कि अगर वह पकड़े गए तो जेल में नहीं बैठेंगे और वहां से भागने की कोशिश करेंगे।

उनके कहे को हकीकत बनाने में उनके साथी बने गरेवाल और हरीश।

तीनों ने तय किया कि वह कोठरी संख्या 5 की दीवार में 21 बाई 15 इंच का छेद करके पाकिस्तानी वायुसेना के रोजगार दफ्तर के अहाते में निकलेंगे और फिर 6 फुट की दीवार फलांग कर माल रोड पर कदम रखेंगे।

आसान नहीं था योजना को अमलीजामा पहनाना

इस योजना को अंजाम देना बेहद कठिन था और इसके लिए रावलपिंडी जेल की करीब 56 इंटों को उनका प्लास्टर निकाल कर ढीला करना था और इसके मलबे को कहीं छिपाना था। 

प्लास्टर खुरचने का काम रात को 10 बजे के बाद किया जाता था इस बीच ट्रांज़िस्टर के वॉल्यूम को बढ़ा दिया जाता। आखिर में तीनों अपने अन्य साथियों की मदद से दीवार में छेद करने में कामयाब रहे।

भारतीय क़ैदियों को जिनेवा समझौते की शर्तों के हिसाब से पचास फ़्रैंक के बराबर पाकिस्तानी मुद्रा हर माह वेतन के तौर पर मिला करती थी जिससे वो अपनी ज़रूरत की चीज़े ख़रीदते और कुछ पैसे बचा कर भी रखते.

इस बीच पारुलकर को पता चला कि एक पाकिस्तानी गार्ड औरंगज़ेब दर्ज़ी का काम भी करता है. उन्होंने उससे कहा कि भारत में हमें पठान सूट नहीं मिलते हैं. क्या आप हमारे लिए एक सूट बना सकते हैं?

औरंगज़ेब ने पारुलकर के लिए हरे रंग का पठान सूट सिला. कामत ने तार और बैटरी की मदद से सुई को मैग्नेटाइज़ कर एक कामचलाऊ कंपास बनाया जो देखने में फ़ाउंटेन पेन की तरह दिखता था.

14 अगस्त को तय किया गया भागने का दिन

पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को भागने का दिन तय किया गया क्योंकि इन दिन गार्ड छुट्टी के मूड में होंगे और कम सतर्क रहेंगे।

लेकिन 12 अगस्त की रात उन्हें बिजली कड़कने की आवाज़ सुनाई दी और उसी समय प्लास्टर की आखिरी परत भी गिर गई।

इसके बाद तीनों पायलट छेद से बाहर निकले। और दीवार के पास इंतज़ार करने लगे. धूल भरी आँधी के थपेड़े उनके मुँह पर लगना शुरू हो गए थे.

एक पहरेदार चारपाई पर बैठा हुआ था, लेकिन उसने धूल से बचने के लिए अपने सिर पर कंबल डाला हुआ था. तीनों ने बाहरी दीवार से माल रोड की तरफ़ देखा. उन्हें सड़क पर ख़ासी हलचल दिखाई दी. उसी समय रात का शो समाप्त हुआ था.

तभी आँधी के साथ बारिश भी शुरू हो गई. चौकीदार ने अपने मुंह के ऊपर से कंबल उठाया और चारपाई समेत वायुसेना के रोज़गार दफ़्तर के बरामदे की तरफ़ दौड़ लगा दी.

जैसे ही उसमे अपने सिर पर दोबारा कंबल डाला तीनों ने जेल की बाहरी दीवार फलांग ली. तेज़ चलते हुए वो माल रोड पर बांए मुड़े और सिनेमा देख कर लौट रहे लोगों की भीड़ में खो गए.

तीनों ने रखे ईसाई नाम

थोड़ी दूर चलने के बाद हरीश सिंह जी को जब एहसास हुआ कि वो पाकिस्तान की सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली जेल से बाहर आ गए हैं, तो वो जोर से चिल्लाए 'आज़ादी'।

इस पर गरेवाल ने कहा, "अभी नहीं।"

तीनों को नमाज नहीं आती थी, इसलिए खुद को ईसाई बताकर आगे जाने का फैसला किया और उसी हिसाब से नाम तय किए।

लंबे चौड़ क़द के गरेवाल ने दाढ़ी बढ़ाई हुई थी. उनके सिर पर बहुत कम बाल थे और वो पठान जैसे दिखने की कोशिश कर रहे थे. उनकी बग़ल में चल रहे थे फ़्लाइट लेफ्टिनेंट दिलीप पारुलकर. उन्होंने भी दाढ़ी बढ़ाई हुई थी और इस मौक़े के लिए ख़ास तौर पर सिलवाया गया हरे रंग का पठान सूट पहना हुआ था.

पाकिस्तानी वायु सेना में भी बहुत से ईसाई काम करते थे, इससे भी उन्हें मदद मिलने की उम्मीद थी। उन्हें ये भी पता था कि पाकिस्तानी वायु सेना में भी बहुत से ईसाई काम करते थे. दिलीप का नया नाम था फ़िलिप पीटर और गरेवाल ने अपना नया नाम रखा था अली अमीर.

ये दोनों लाहौर के पीएएफ़ स्टेशन पर काम कर रहे थे. सिंह जी का नया नाम था हारोल्ड जैकब, जो हैदराबाद सिंध में पाकिस्तानी वायु सेना में ड्रमर का काम करते थे. 

अफगानिस्तान से बस 5 किलोमीटर दूर रह गए थे तीनों

बस स्टेशन पहुंच तक उन्होंने पेशावर की बस ली। वहां से उन्होंने जमरूद रोड जाने के लिए तांगा किया।

इसके बाद वह एक बस में बैठे। बस में जगह ना होने के कारण कंडक्टर ने उन्हें छत पर बैठा दिया। करीब साढ़े नौ बजे वह लंडी कोतल पहुंचे, जहां से अफगानिस्तान महज 5 किलोमीटर दूर था।

पारुलकर ने देखा कि सभी स्थानीय लोगों ने सिर पर कुछ ना कुछ पहना हुआ है तो उन्होंने भी दो पेशावरी टोपियां ले ली।

तहसीलदार के अर्जीनवीस को हुआ शक

गरेवाल के सिर पर टोपी फिट नहीं आई तो पारुलकर इसे बदलने के लिए दोबारा दुकान पर गए। लेकिन इसी बीच गरेवाल से एक गलती हो गई. उन्होंने वहां एक चाय की दुकान पर शख्स से पूछ लिया कि यहां से लंडीखाना कितनी दूर है. 

इस दौरान एक लड़का जोर से चिल्लाने लगा कि टैक्सी से लण्डी खाना जाने के लिए 25 रुपए लगेंगे। तीनों टैक्सीवाले की तरफ बढ़ ही रहे थे कि……….. 

पीछे से एक आवाज़ सुनाई दी। वह व्यक्ति तहसीलदार का अर्जीनवीस था।

एक प्रौढ़ व्यक्ति उनसे पूछ रहा था क्या आप लंडीखाना जाना चाहते हैं? उन्होंने जब 'हाँ' कहा तो उसने पूछा आप तीनों कहाँ से आए हैं?

दिलीप और गैरी ने अपनी पहले से तैयार कहानी सुना दी. एकदम से उस शख़्स की आवाज़ कड़ी हो गई. वो बोला, 'यहाँ तो लंडीखाना नाम की कोई जगह है ही नहीं... वो तो अंग्रेज़ों के जाने के साथ ख़त्म हो गई.'

उसे संदेह हुआ कि ये लोग बंगाली हैं जो अफ़गानिस्तान होते हुए बांगलादेश जाना चाहते हैं. गरेवाल ने हँसते हुए जवाब दिया, 'क्या हम आप को बंगाली दिखते हैं? आपने कभी बंगाली देखे भी हैं अपनी ज़िंदगी में?'

उसने तीनों से पूछताछ करनी शुरु कर दी और उनकी एक ना सुनते हुए उन्हें तहसीलदार के पास ले गया।

तहलीसदार भी उनकी बातों से संतुष्ट नहीं हुआ और उन्हें जेल में डालने का आदेश दिया।

अचानक पारुलकर ने कहा कि वो पाकिस्तानी वायुसेना के प्रमुख के एडीसी स्क्वाड्रन लीडर उस्मान से बात करना चाहते हैं।

ये वही उस्मान थे जो रावलपिंडी जेल के इंचार्ज थे । पारुलकर से बात करने के बाद उस्मान ने तहसीलदार से कहा कि ये तीनों हमारे आदमी हैं और उन्हें अच्छे से रखे। इन तीनों को वापस बाकी युद्धबंदियों के साथ लायलपुर जेल भेज दिया गया, जहां भारती थलसेना के युद्धबंदी भी थे। फिर सब युद्धबंदियों को लायलपुर जेल ले जाया गया. वहाँ भारतीय थलसेना के युद्धबंदी भी थे. एक दिन अचानक वहाँ पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो पहुंचे.

उन्होंने भाषण दिया, "आपकी सरकार को आपके बारे में कोई चिंता नहीं है. लेकिन मैंने अपनी तरफ़ से आपको छोड़ देने का फ़ैसला किया है."

 लेकिन जब तक मामला हाईलाइट हो चुका था. यूएन ने भी हस्तक्षेप कर दिया.  हस्तक्षेप से बाद में उनको रिहा कर दिया गया.

एक दिसंबर, 1972 को सारे युद्धबंदियों ने वाघा सीमा पार की. उनके मन में क्षोभ था कि उनकी सरकार ने उन्हें छुड़ाने के लिए कुछ भी नहीं किया.  लेकिन जैसे ही उन्होंने भारतीय सीमा में क़दम रखा वहाँ मौजूद हज़ारों लोगों ने मालाएं पहना और गले लगा कर उनका स्वागत किया. पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ख़ुद वहाँ मौजूद थे. 

विंग कमांडर धीरेंद्र एस जाफ़ा की पुस्तक 'डेथ वाज़ंट पेनफ़ुल' पर आधारित (By Dr. Mansij Kumar Pathik)




नारी! तुम सचमुच महान हो...

 मैंने एक दिन अपनी पत्नी से पूछा क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता मैं बार-बार तुमको बोल देता हूँ, डाँट देता हूँ , फिर भी तुम ,पति भक्ति में लगी रहती हो जबकि मैं कभी पत्नी भक्त बनने का प्रयास नहीं करता ?

 मैं विधि का विद्यार्थी और मेरी पत्नी विज्ञान की, परन्तु उसकी आध्यात्मिक शक्तियाँ मुझसे कई गुना ज्यादा हैं क्योकि मैं केवल पढता हूँ और वो जीवन में उसका पालन करती है।

 मेरे प्रश्न पर, जरा वो हँसी, और गिलास में पानी देते हुए बोली ये बताइए, एक पुत्र यदि माता की भक्ति करता है, तो उसे मातृ भक्त कहा जाता है, परन्तु माता यदि पुत्र की कितनी भी सेवा करे उसे पुत्र भक्त तो नहीं कहा जा सकता न।

 मैं सोच रहा था,आज पुनः ये मुझे निरुत्तर करेगी।मैंने प्रश्न किया ये बताओ जब जीवन का प्रारम्भ हुआ, तो पुरुष और स्त्री समान थे फिर पुरुष बड़ा कैसे हो गया, जबकि स्त्री तो शक्ति का स्वरूप होती है ?

        मुस्काते हुए उसने कहा आपको, थोड़ी विज्ञान भी पढ़नी चाहिए थी.मैं झेंप गया।

       उसने कहना प्रारम्भ किया दुनिया मात्र दो वस्तु से निर्मित है ऊर्जा और पदार्थ। पुरुष ऊर्जा का प्रतीक है, और स्त्री पदार्थ की।पदार्थ को यदि विकसित होना हो, तो वह ऊर्जा का आधान करता है ना कि ऊर्जा, पदार्थ का।ठीक इसी प्रकार जब एक स्त्री, एक पुरुष का आधान करती है, तो शक्ति स्वरूप हो जाती है, और आने वाली पीढ़ियों अर्थात् अपनी संतानों के लिए प्रथम पूज्या हो जाती है क्योंकि वह पदार्थ और ऊर्जा दोनों की स्वामिनी होती है जबकि पुरुष मात्र ऊर्जा का ही अंश रह जाता है।

मैंने पुनः कहा ~तब तो तुम मेरी भी पूज्य हो गई न, क्योंकि तुम तो ऊर्जा और पदार्थ दोनों की स्वामिनी हो ?

अब उसने झेंपते हुए कहा आप भी पढ़े लिखे मूर्खो जैसे बात करते हैं। आपकी ऊर्जा का अंश मैंने ग्रहण किया और शक्तिशाली हो गई, तो क्या उस शक्ति का प्रयोग आप पर ही करूँ ? ये तो कृतघ्नता हो जाएगी।

 मैंने कहा मैं तो तुम पर,शक्ति का प्रयोग करता हूँ ,फिर तुम क्यों नहीं ?

उसका उत्तर सुन मेरीआँखों में आँसू आ गए.उसने कहा जिसके संसर्ग मात्र से मुझमें जीवन उत्पन्न करने की,क्षमता आ गई, और ईश्वर से भी ऊँचा जो पद आपने मुझे प्रदान किया,जिसे माता कहते हैं उसके साथ मैं विद्रोह नहीं कर सकती।

फिर मुझे चिढ़ाते हुए उसने कहा यदि शक्ति प्रयोग करना भी होगा,तो मुझे क्या आवश्यकता ? मैं तो माता सीता की भाँति,लव कुश तैयार कर दूँगी जो आपसे मेरा हिसाब किताब कर लेंगे।  



🙏 नमन है ... सभी मातृ शक्तियों को जिन्होंने अपने प्रेम और मर्यादा में समस्त सृष्टि को बाँध रखा है।

मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

गहरी नदी का बहाव शांत होता है

Indeed Deeper Rivers Flow in

Majestic Silence! 

करीब 30 वर्ष के अन्तराल के बाद होटल की लाबी मे मेरे एक पुराने मित्र के साथ मुलाकात हुई।  हमेशा से अति साधरण, शांत, शिष्ट, भद्र व विनयी वह मित्र अभी भी देखने मे ठीक वैसा ही दिख रहा था। उसका व्यवहार व आचरण पहले जैसा ही साधारण था। आपसी औपचारिक कुशलक्षेम पूछने के उपरांत मैने प्रस्ताव दिया की मै उसे घर तक अपने गाड़ी मे छोड़ सकता हूं।

असल मे घर छोड़ने के बहाने मेरा आग्रह अपनी मर्सिडीज गाड़ी को उसे दिखाने हेतु ज्यादा था।पर उसने धन्यवाद कहकर कहा कि वह अपनी ही गाड़ी से घर जायेगा। पार्किंग लाट मे कुछ देर साथ चलने के बाद वह अपनी एक साधारण गाड़ी से लौट गया।

अगले हप्ते मैने उसे अपने घर डिनर पर आमंत्रित किया। वह अपने परिवार के साथ मेरे घर आया। एक बहोत ही आडम्बरहीन मर्यादित परिवार, पर मुझे लगा एक खुशहाल परिवार है।

मेरे मन के किसी कोने मे यह उत्कंठा थी कि डिनर के बहाने मै उसे अपने इतनी सुन्दर और आभिजात्यपूर्ण कीमती व बहुत आरामदेह,  मँहगी और सुंदर विलास की वस्तुओं से भरा हुआ, कीमती साज सज्जा से सुसज्जित घर को दिखा सकूं।

एक दूसरे से वार्तालाप मे बीच बीच में मैं यह भी समझाने की कोशिश करता रहा कि आफिस के काम से प्राय: मुझे कितने ही विदेशों मे आना जाना पड़ता है। इशारों इशारों मे यह भी उसे समझाता रहा कि वह चाहे तो किसी बिजनेस को ज्वायन कर सकता है क्योंकि न जाने कितने धनी लोगों के बीच मेरा उठना बैठना रहता है और उनसे मेरा व्यक्तिगत सम्पर्क भी है। इस सिलसिले में  किसी बड़े बिजनेस लोन की व्यवस्था करवाना मेरे लिए एक साधारण सी बात है। लेकिन इन सब बातों मे उसने कोई आग्रह या रुचि नहीं दिखाई।

विदेशों मे भ्रमण के दौरान विभिन्न दर्शनीय स्थलों, अजायबघरों आदि के एल्बम उसे दिखाते हुये मै उसे जताना चाह रहा था कि हमारा जीवन कितना आकर्षक व मनमोहक है। इतना ही नहीं, आनेवाले दिनों मे शहर मे होने वाले आर्टगैलरी प्रदर्शनी की सूचना उसे देकर जैसे मै उसे बताना चाह रहा था कि मेरे पास केवल सुन्दर व कीमती मकान और गाड़ी ही नही है, हमारे पास एक सुन्दर कलाकृतियों को 

समझने वाली शिल्पकारी रुचि भी है। एल्बम की सभी फोटो को उसने ध्यान से देखा और प्रशंसा भी किया और लगा कि हमारी उपलब्धियों व सफल जीवन से वह खुश हो रहा था।

फिर उसने कहा इन सबको देखने के साथ साथ कभी कभी पुराने यार दोस्तों, अपने उम्रदराज शिक्षकों, अपने आत्मजनों को भी देखा करो और यदि न देख पाओ तो कम से कम उनकी खबर लिया करो।

मुझे लगा हमारे व्यवसायिक वार्तालाप को उसने बहोत ज्यादा महत्व नहीं दिया। तब मैने बचपन की बातें करना शुरू किया। पूछा हमारे पुराने उम्रदराज शिक्षक और मित्र कैसे हैं, वगैरह वगैरह। यह सुनकर थोड़ा हृदय आद्र भी हुआ कि कुछ शिक्षक और पुराने दोस्त अब इस दुनिया मे नही रहे।

पर मेरी श्रीमती जी को ये सब बीते जमाने की वार्ता बहोत अच्छी नहीं लगी और वह कह बैठी केवल बचपन की यादों मे खोये रहने से आगे नहीं बढ़ा जा सकता, सभी का एक बचपन रहा है, यह कोई बड़ी बात नही है। मुझे यह सुनकर थोड़ा हिचक महसूस हुई। इसके बाद आगे बैठक जमी नही, वे दोनो चले गये।

कुछ हप्तों बाद मेरे मित्र का फोन आया, उसने अपने निवास स्थान का पता बताकर लंच पर हम दोनों को उसने आमंत्रित किया। मेरे श्रीमती जी ने इस पर रूचि नहीं दिखाई पर मेरे बहुत कहने पर जाने को राजी हुईं ।

मित्र के घर आकर देखा कि उसके घर मे ज्यादा कीमती सामान की चमक तो नहीं थी पर बहोत सलीके व सुन्दर ढंग से और करीने से घर सजा हुआ था। एकाएक मेरी नजर कोने मे रखे टेबल पर रखे एक सुन्दर गिफ्ट बाक्स पर गयी।यह गिफ्ट बाक्स उसी कम्पनी से आया हुआ लग रहा था जहां मै काम करता हूं। मैने कौतूहल वश मित्र से पूछा, यह तो मेरे कम्पनी का ही गिफ्ट है, क्या तुम मेरे कम्पनी के किसी से परिचित हो। उसने कहा डेविड ने भेजा है। मैने कहा कौन डेविड, तुम्हारा मतलब डेविड थाम्पसन से है क्या? उसने कहा हां वही। मै ने आश्चर्यचकित होकर कहा, वह तो मेरे कम्पनी का एम डी है। उससे तुम कैसे  और किस प्रकार परिचित हो। मेरे मन बहोत सारे प्रश्न एक साथ खड़े होने लगे।

जहां तक मुझे पता था, डेविड उस कम्पनी का 30 प्रतिशत मालिक है और बाकि 70 प्रतिशत का मालिक डेविड का कोई एक दोस्त है और कम्पनी के इतने बड़े भूखंड का मालिक भी वही दोस्त ही है। कुछ सेकेंड पहले मेरी कल्पना मे भी नही था कि  कुछ पलों मे मुझे इतने बड़े आश्चर्य का सामना करना होगा।

मन के जिस कोने से मैने उसे बार बार अपनी कीमती मर्सिडीज, कीमती मकान व साज सज्जा आदि दिखाकर अपने आभिजात्य के प्रदर्शन का प्रयास कर रहा था, मन के उसी कोने से कब उसे सर सर कहकर सम्बोधित करना शुरू किया, समझ नहीं पा रहा हूं। एक मन बोल रहा है मित्र को सर  नही कहना चाहिए और एक मन कह रहा है जो मेरे एम डी सर का दोस्त है, और जो कम्पनी के 70 प्रतिशत का मालिक होने के साथ साथ पूरे जमीन व सम्पत्ति का भी मालिक है उसे अब सर न कह कर और क्या कह कर सम्बोधित करें।


मुझे लगा मेरे दम्भ, अहंकार व आभिजात्य के गुब्बारे की  हवा  एक क्षण मे निकल कर सेव पिचका गई। किसी तरह लंच समाप्त कर घर लौट रहा हूं। गाड़ी मे हम दोनों चुपचाप बैठे है। मेरी श्रीमती जी मुझसे कहीं ज्यादा शांत व मौन दिख रहीं थी। मै स्पष्ट रूप से समझ पा रहा था कि इस समय उनके मन मे क्या चल रहा है।

हमारे मे  दम्भ, गरिमा व अहंकार की मात्रा जितना अधिक है, उतना ही उसके पास इन भावनाओं की कमी है जिससे हमे वेतन आदि मिल रहे हैं। उसका जीवनयापन कितना आडम्बर हीन, कितना विनम्र और कितना साधारण है।

किशोरावस्था मे गुरूजी के बताये ये शब्द अनायास ही बार बार याद आने लगे

"जो नदी जितनी ज्यादा गहरी होती है उसके बहने का शोर उतना ही कम होता है"।  

"Indeed Deeper Rivers Flow in

Majestic Silence"! 



कितनी सत्यता है गुरूजी के इन शब्दों में। मैं, जो सुन्दर शिल्पकारी व नक्कासी किये हुए एक लोटे में रखा जल हूं, आज एक गहरी नदी देख कर लौट रहा हूं ।

(यह मूलरूप से एक अंग्रेजी कहानी का  भावानुवाद है)