रविवार, 19 दिसंबर 2021

चार दिन के जिनगानी

का होगे कउंवा मन आजकल कांव-कांव नइ करत हे, बिलई मन मियाउं-मियाउं नइ करत हे, कुकुर मन भुके बर भुलागे हे, कोलिहा मन हुंआ-हुंआ नइ करत हे, सुआ अउ पड़की-परेवना मन के घला बोलती बंद होगे हे। खबर तो ये घला मिलत हे के जंगल के शेर, भालू मन के दहड़ई घला सटकगे हे। गजराज मन घला चिंघाड़े ले छोड़ देहे, कइसे का होगे हे ते ओकरो मन के कांही आरो नइ मिलत हे? कुंआरी टूरी मन असन छेहेल्ला मारत, फुगड़ी रे फांय-फांय कस कूदत-फुदकत राहय तेनो हिरनी मन अइसे गत ला उतार देहें जइसे दस दिन के लांघन-पियास मरत हे। ये पशु-पक्षी मन ला अइसे का होगे हे ते कोनो चिटपोट नइ करत हे ? गोठियाय बताय ले छोड़ देहें। अउ तो अउ टेड़गी (बिच्छु) घला हा डंक मारे ले छोड़ देहे, अतके नहीं ढोड़िहा, पिटपिटी मन लरघियाय असन परे हे अउ घोड़ा करायत अउ डोमी सांप मन घला कोनो ला नइ डसत हे। अतेक माथा मारत हौं, जाने-समझे के कोशिश करथौं फेर मोर मगज मं थोरको कांही बात नइ बइठत हे। सोचत-सोचत मति हेरागे, पथरा परगे अक्कल ला फेर कांही पल्ला नइ परत हे? कोन अइसे का मंतर मार देहे ये जानवर मन ला, का जादू-टोना कर देहें ओला समझ नइ सकत हौं ? कुकुर मन मेर जाथौं तब मोला आवत देख के अइसे भाग जथे जइसे पुलिस ला देख के चोर मन भागथें। पहिली उही कुकुर मन देखयं तहां ले पूछी हलावत, मुड़ी मटकावत मोर करा आके पांव में लोटय, चांटय, चुमय फेर आज अइसे का होगे ते उलटा गंगा बोहाय ले धर लेहे? पिंजरा मं बइठे सुआ देखय तहां ले सीताराम..सीताराम.. काहय, मोर हाथ मं लाली मिरचा ला झटक के कोंटा मं जातिस तहां ले खा लेवय। बदमाश कउंआ अतेक सिधवा अउ मौनी बाबा बन जाही अइसन कभू सोचे नइ रेहेंव, कई घौं मोर हाथ ले रोटी ला झटक के चोरहा मन असन भाग जतिस अउ छानही मं बइठ के मोला टुहूं देखावत खातिस तेला आज का होगे हे, कांव-कांव नइ करत हे? ओकर बर आरुग रोटी लेके आय हौं लेवना डार के फेर वाह रे चंडाल थोरको कनमटक नइ मारत हे। नइ जानौं अइसे काबर होगे फेर कोनो न कोनो अइसे बात हे जेकर सेती ये सबो झन के बोलती बंद होगे हे। गुनी, ओझा, जोतिसी अउ पंडित मन करा जब जाके देखावत, सुनावत अउ बिचरावत हौं के का अइसे बात होगे जेकर से एमन चिंव-चांव नइ करत हें, मौन साध लेहें बैरागी मन बरोबर। कुछु जबर कारन हे का, अइसन तो कभू देखे-सुने ले नइ मिलत रिहिस हे ? शनि, राहू अउ केतू के कोनो भारी नजर तो नइ लग गेहे? कोनो बिनाश के समय तो नइ अवइया हे एकर मन उपर, दुख के पहाड़ तो नइ गिरइया हे? ओमन पंचांग ला उलट-पुलट के अतेक देखिन फेर कोनो अइसे बात ओकर मन के पकड़ में नइ अइस जइसे बइद मन बीमार मनखे के नाड़ी ला टमड़ते साठ रोग के लछन ला जान जथे अउ बीमारी ला बता देथें। उदास होगे हौं, का करौं कांही समझ नइ परत हे? एक दिन गऊ माता करा जाथौं तब देखथौं ओकर आंखी डाहर ले आंसू झरत रहिथे। गुनेंव पहिली रोटी खवाय ले जात रेहेंव तब ललक के अपन पांव ला सरकावत मोर कोती बढ़य। बछरु कभू ओकर आंखी ले ओझल हो जाय तब रंभावत सुने हौं। ओकर रंभई ला सुनके बछरु दउड़ के आ जाय। आज देखथौं, ओ बछरु नइ हे ओकर तीर मं न ये गाय रंभावत हे। कुछ समझ नइ परत हे। गऊ माता के ढरत आंसू ला देख के मोरो आंखी डबडबा जथे। सोचौं, जरूर ये माता उपर कोनो भारी बिपत आगे हे, संकट खपलागे हे। ओकर पीठ उपर अपन हाथ फेरथौं, आंसू ला पोंछथौं। अपन कान ला ओकर मुंह मेर दताथौं, तब ओहर बतइस, तौंन ला सुनके मोर जीव करलागे। किहिस-बेटा अब ये संसार हमर मन के लइक नइ रहिगे हे, जीना अबिरथा होवत हे। ये उही भारत देश हे जिहां भगवान कृष्ण गऊ चरावय, बंशी बजा-बजा के हमर मन के मनोरंजन करय, आज उही देश मं हमर मन के खुलेआम हत्या होवत हे, गऊ मांस बिकत हे। सब ले जादा गऊ मांस तो इही देश ले निरयात होवत हे तौंन शरम के बात हे। सब गऊ मांस खाय ले धर लेहें। जीयत मारत हे हमन ला। अइसन अधरमी देश मं तो अब एको पल जीये के मन नइ होवत हे। हमर मन के जीवन संकट मं हे| न हमर रक्षा देश के जनता कर सकत हे अउ न इहां के सरकार। उही पाके मौत ला सुरता करके रोवत हौं। 

देखथौं, सब कोती ककरो जीवन अब इहां सुरक्षित नइहे। हाथी, भालू, शेर, चीता अउ बेंदरा मन घला एती तेती भटके ले धर ले हें। जंगल के जंगल सफाचट होवत जात हे तब उहां के रहवइया जीवधारी अउ परानी मन कहां जाही। उकरो मन के मरे बिहान हे। बड़े-बड़े राक्षस मन काल बन के उहां मंडरावत हे। मनखे मन अपन सुख के खातिर बड़े-बड़े उद्योग अउ कल-कारखाना लगाावत हे। सरकार हा ओमन ला पंदोली देवत हे। महाकाल बन के ये धरती मं उतरे शैतान मन ला देख-देख के नदिया, नरवा, तरिया, डोंगरी, पहाड़, रुख-राई ठाढ़ सुखावत हें, ओकर मन के जीव कांपे ले धर लेहे। कभू बारहों महीना नदी-नरवा मं बहइया पानी सागर मेर जाके पांव पखारय तेन मन सुखाय ले धर लेहें, पहाड़ अउ रुख राई मन तो बड़े-बड़े थ्रेसर मशीन मन देखते साठ कांपे ले धर लेथे। कब कोन मशीन आके ओकर छाती ला दंदोर दिही, फोकला ओदार दिही। कोन जानही ओकर मन के दुख ला, आंखी के आंसू ला? अपन मरावय तब काला बतावय तइसे कस हाल होगे हे ओकर मन के। सोचेंव, ये मनखे मन हा सब के बइरी तो नइ बनगे हे, काल बन के तो नइ आगे हे? जहर उगलत हे नाग बन के, डसत हे सबो झन ला, मुरकेटत हे सब के जीवन ला। काबर दुख देवत हे, का मिलही अइसन करे ले? का ये बात ला नइ जानत हे के जौंन जइसन करहीं तइसन पांही तौंन ला? तब काबर अइसन अजलइत करथें, काबर छानही मं चढ़ के होरा भुंजत हें? उत्तराखंड मं ओ साल का होइस, कइसे प्रकृति ओकर मन के बारा ला बजाय रिहिस हे? कोरोना हा का तमाशा खेल के नइ गिस तेला अतेक जल्दी भुला गेव? अइस कोनो ओकर मन के बाप बचाय बर ओमन ला? चेत जाव, जान जाव, कोनो ला सतावौ अउ दुख देवौ झन। चार दिन के जिनगी, जीयव अउ सब ला जीयन दौ। सब संग हांस गोठिया लौ, परेम के दू भाखा बोले मं काकर का बिगड़त हे? इही धरम हे, परेम बेवहार हे। जइसे करिहौ तइसे पाहौ, नइ मानिहौ तब जाहौ बाबाजी के ला धर के धारे धार।

परमानंद वर्मा

गुरुवार, 18 नवंबर 2021

ये तो होना ही था...

भी सोचा न था, न ही समझा और जाना व माना था कि एक दिन ऐसा आयेगा कि मनुष्य जानवरों की तरह बेमौत मारे जाएंगे और उनकी लाशों को प्लास्टिक के पैकेट में लपेट कर यदा-कदा फेंक दिए जाएंगे, कुत्तों, कौंओ, चीलों और गिद्धों को भी मानव मांस चखने को नहीं मिलेगा। वक्‍त अपना खेल और करतब मदारी की तरह दिखाता है। देखने वाले देखते रह जाते हैं सशंकित होकर कि जैसा हो रहा है, देख रहे है कि ही वैसा ही दिन उलट कर उनकी तरफ ही न लौट जाए।

चौसर सौर शतरंज के खिलाडी अच्छी तरह जानते हैं खेल का कोई भरोसा नही। पांडव सब कुछ हार गए थे लेकिन कया जरूरत थी खेल को आगे बढ़ाने के लिए। हालांकि मना कर रहे थे कि आगे नही खेलेंगे लेकिन शकुनि मामा के झांसे में आखिर आ ही गए और फंस गए उनकी चाल में | कोई पत्नी को दांव पर लगाता है क्‍या, ऐसा तो उस समय के इतिहास में नहीं हुआ था। और द्रोपदी तो कुलवधू थी। क्‍या शकुनि, कौरव सम्राट, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण जैसे महान हस्तियां उस समय वहां उपस्थित थी। जब द्रौपदी को दांव पर लगाया गया तब किसी की बुद्धि काम नही आई, गिरवी रख दी गई थी अकल को। खेल जो होना था, हुआ जरा सी बात ने महाभारत रच दिया। ऐसा ही होता है, अनहोनी हो जाती है, जिसकी कभी सपने में कल्पना नही की गई थी।

सत्य और शांति, धर्म का मूल तत्व है। जब ये दोनों तत्व विद्यमान होते हैं संसार में प्राणी सुखमय जीवन व्यतीत करते है। लेकिन कहते हैं समय कभी एक समान नही रहता। सत्य और शांति को कालांतर में ग्रहण घेर लेता है और असत्य और अशांति के भंवर जाल में जब वह फंस जाता है तब कलह और क्लेश बढ़ जाता है। संसार में हाहाकर मचने लगता है। धर्म, अधर्म का रूप ले लेता है। सज्जन दुर्जन बन जाते है और धार्मिक स्थल शैतानो का गढ़ बन जाता है।

सब कुछ ठीक-ठीक चल रहा था, कहीं किसी बात की आशंका नहीं थी, कि ऐसा भी हो जाएगा लेकिन अनहोनी को भला कौन रोक सकता है। एक दिन अचानक शूर्पनखा का प्रवेश हुआ और सब कुछ तमाम हो गया। सारी चतुराई धरी की धरी गई और उसको जो करना था किया, बर्बादी के सिवा हासिल आया कुछ भी नही। जब अशुभ ग्रहो का प्रवेश होता है और ग्रह गोचर अनिष्ट चाल चलते है तब अमरीका जैसे देश के भी होश ठिकाने आ जाते है । यदि ऐसा न होता तो अफगानिस्तान से उसको भागना नहीं पड़ता। तालिबानियो के सामने उसने घुटने टेक दिए। न धन काम आया और न शक्ति।

कुत्ते, कुत्ते ही होते है चाहे उसे कितने ही दुध पिलाओं, मांस खिलाओं, कार में बिठाकर तफरीह कराओं। उसका जो मौलिक और प्राकृतिक गुण होता है , उसे काई भी नष्ट नही कर सकता। हिंसक पशुएं कितने पालतू क्यो न हो जाए लेकिन वक्‍त आने पर अपनी असलियत गुण को वह दिखा ही देता है उसी तरह मनुष्यों में भी आजकल पाशविकता बढ़ रही है। जहां सत्य, शांति, और धर्म का हास होगा वहां शैतानों की संख्या निरंतर बढ़ती जाएगी। अब तो कुछ देशो ने शैतानो की पाठशालाएं भी खोल रखी है। इन शालाओ से पढ़कर निकले छात्र अराजकता, आतंक, लूटपाट, अपहरण, आगजनी, हत्या और कुकर्मो से अशांत है, उद्वेलित है। कब, कहां, किस समय, क्‍या हो जाएगा कहा नहीं जा सकता ?

अभी अपने ही देश में देख लीजिए, सलमान खुर्शीद के नव प्रकाशित किताब को लेकर कोहराम मच गया। उनके नैनीताल स्थित घर पर तोड़फोड़ और आगजनी हो गई। कहा जा रहा है कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के किताब “सनराइज ओवर आयोध्या : नेशनहुड इन ओवर टाइम्स” में हिंदुत्व की तुलना आतंकी समूहों बोकोहराम और आईएसआईएस से की गई है। इसके बाद से खुर्शीद निशाने पर हैं। कुमाऊं के डी आई जी के अनुसार कुछ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। किसी धर्म व सम्प्रदाय के खिलाफ इस तरह की टिप्पणी व आरोप अवांछनीय और निंदनीय है। क्‍या सोचकर ऐसा पत्थर फेंका गया है इसे वही जाने लेकिन खुर्शीद तो वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं एडवोकेट हैं। केंद्रीय मंत्री रहे हैं, उनसे ऐसी अपेक्षा नहीं थी। लेकिन होनी को कौन रोक सकता है? जब द्रौपदी को दाँव पर लगाने और चीरहरण जैसी घटना को बड़े-बड़े धुरंधर नही रोक सके, उनकी मति मार गई तब खुर्शीद जैसे खिलाड़ी का क्‍या कहिए, ऐसा तो होना ही था और हो गया। पासा फेंका गया है, खेल आगे देखिये क्‍या-क्या होता है ?

   – परमानंद वर्मा


शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

छत्तीसगढ़ के राऊत नाचा के दोहों में कटाक्ष





छत्तीसगढ़ की दिवाली में एक प्रमुख आकर्षण होता है राऊत-नाचा। यदुवंशियों द्वारा पारे जाने वाले दोहों और  गाये जाने वाले गीतों के साथ ताल मिलाते हुए आकर्षक परिधानों से सुसज्जित बजनियों की थाप से जब गांड़ा बाजा घिड़कता है तब शौर्य-श्रृंगार से सजे अहीरों के संग संग समूचा छत्तीसगढ़ थिरकने लगता है।सरस दोहों, गीतों और नृत्यों की त्रिवेणी में पूरा छत्तीसगढ़ डूबकी लगाता है,

तब लगता है कि ये मतवाली दिवाली छत्तीसगढ़ की है।
राऊत नाचा छत्तीसगढ़ के लोकगीत,लोकसंगीत व  लोकनृत्यों का सिरमौर है। ऐसी कोई लोकविधा नही जो इसमें न समाया हो। स्वागत सत्कार,रामकृष्ण भक्ति,देवधामी पूजा अर्चना,संत कबीर,तुलसीदास व रहीम के दोहे,प्रकृति-प्रेम,पशुधन महिमा,आल्हा-उदल गाथा,लोकगाथायें,सुआ पंड़की,ददरिया,करमा,समाजोपयोगी संदेश परक दोहों गीतों के अलावा हास-परिहास के साथ हास्य-व्यंग्य के दोहे भी नर्तकों द्वारा उच्चारित किया जाता है जिसे दोहा पारना कहते हैं।जैसे सुआ गीत का परिचय मुखड़ा तरी हरि नाहना मोर नाहा नरी नाहना रे सुआ होता है वैसे ही राऊत नाचा दोहों-गीतों का परिचय मुखड़ा होता है- अरे ररे ररे ररे भाई रे.....होता है।इसी के साथ ही नर्तक दोहों व गीतों का उच्चारण करते हैं।
सबसे पहले सगा-पहुनों और आगन्तुकों के स्वागत में गांव एवं ग्राम देवता की महिमा बखान करते हुए दोहे की ये बानगी देखिए-

भले गांव मोर तुमगांव भईया कि,बहुते उबजे बोहार हो।
ठाकूर देवता के पंईया लागंव कि,सबो सगा ल जोहार हो।

दिवाली में गौमाता और उसका चरवाहा यानी अहीरों के शोभायमान साज श्रृंगार व मदमस्त मनोभावों को अभिव्यक्त करता एक दोहा- 

रंग माते रंगरसिया भईया कि,छापर माते गाय हो।
अहीरा माते देवारी संगी कि,शोभा बरन नहि जाय हो।।

राऊत चरवाहों के दैनिक उपयोग व उनके साज श्रृंगार में लाठी विशेष मायने रखती है।उनकी लाठी बहूधा तेंदू पेड़ की होती है जो काफी मजबूत मानी जाती है।लाठी उसकी मान-मर्यादा,ताकत और स्वाभिमान का प्रतीक होती है-

तेंदूसार के लउठी भईया कि,सेर सेर घीव खाय।
इही लउठी के परसादे अहीरा,पेल के गाय चराय।।

भगवान कृष्ण के वंशज होने के नाते कृष्ण ही उनके आराध्य हैं।संकट के समय उन्हे पुकारते ही सभी बाधाओं से मुक्त हो जाने का अहसास देखिये-

अड़गड़ टूटगे बड़गड़ टूटगे,भूरी भंईस के छांद हो।
उँहा ले निकले गोकुल कन्हैया,भागे भूत मसान हो।।

जैसे बाजा वैसे नाचा।बाजा ठीक से बजता रहे तभी नर्तकों में स्फूर्ति बनी रहती है और नाचा का आकर्षण बरकरार रहता है।वाद्यों को टन्न रखने व  वादकों में ऊर्जा का संचार करते रहने के लिये उनका हौसला आफजाई करने का अनोखा ढंग इस दोहे में-

आमा खांधी के ढोल बनाये,बेंदरा खाल छवाय हो।
परे बठेना बजकरी के तब,उदल खाँव खाँव नरियाय हो।।

माता पिता का स्वयं की सुख-सुविधा में मगन रहना और बच्चों के प्रति उनकी गैरजिम्मेदाराना हरकतों व लापरवाही  पर कटाक्ष करता यह दोहा-

दार भात के सरपट सईया,मोंगरी मछरी के झोर हो।
दाई ददा सुत भुलाईन, लईका ला लेगे चोर हो।।

भाइयों के प्रति स्नेह,दुलार व अपनापन झलकता यह प्रसंग-

राम दुलरवा लछमन भईया,पण्डो दुलरवा भीम हो।
आल्हा दुलरवा उदला भईया कि, रन में फिरे अधीर हो।।

जीवनसंगिनी के रंग रूप के फेर में न पडें,जीवन के सुख दुख में उसकी भूमिका को महत्व दें। हास-परिहास व हास्य-व्यंग्य से सराबोर यह दोहा-

तींवरा भाजी पेट पिरौना,बेल फर मतौना हो।
कारी सुआरी मन मिलौना,गोरी बड़ बिटोना हो।।

पर्यावरण संरक्षण में पेंड़ पौधों का खास महत्व है। पेड़ पौधों को न काटें,उसके काटने पर बुरा परिणाम भोगना पड़ता है। प्रकृति संरक्षण का भाव प्रकट करती ये पंक्तियाँ-

बर काटे बईमान कहाये,पीपर काटे चण्डाल हो।
मऊरत आमा ल काटे,तेला नइ आवय मनुख अवतार हो।।

राऊत चरवाहा अपने मालिक के प्रति यद्यपि पूज्य भाव रखता है तथापि जब वह मालिक के घर के आँगन में नृत्य करने जाता है तो आखिर में उन्हे सःपरिवार दीर्घायु होने की मंगलकामना के साथ हास्य से भरपूर आशीष कुछ इस तरह देता है-

भात भात ल खाहू मालिक,दार ल घलो पीहू।
असीस लेलव हमर अहिरा के,टूकना तोपात ले जींहू।
          
                                      बन्धु राजेश्वर राव खरे
                                           लक्ष्मण कुंज
             .        शिव मंदिर के पास,अयोध्यानगर महासमुन्द
छत्तीसगढ़ 493445

गुरुवार, 9 सितंबर 2021

सूरदास का स्वप्न

कभी सूरदास ने एक स्वप्न देखा था कि रुक्मिणी और राधिका मिली हैं और एक दूजे पर न्योछावर हुई जा रही हैं।  सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी। दोनों ने प्रेम किया था। एक ने बालक कन्हैया से, दूसरे ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से। एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था, और दूसरे को मिले थे सुदर्शन चक्र धारी, महायोद्धा कृष्ण। कृष्ण राधिका के बाल सखा थे, पर राधिका का दुर्भाग्य था कि उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा। राधिका को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर कृष्ण मिले, न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण मिले। 

रुक्मिणी कृष्ण की पत्नी थीं, पटरानी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण रखता है। उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को। उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन। कितनी अद्भुत लीला है। राधिका के लिए कृष्ण कन्हैया था, रुक्मिणी के लिए कन्हैया कृष्ण थे। पत्नी होने के बाद भी रुक्मिणी को कृष्ण उतने नहीं मिले कि वे उन्हें "तुम" कह पातीं। आप से तुम तक की इस यात्रा को पूरा कर लेना ही प्रेम का चरम पा लेना है. रुक्मणि कभी यह यात्रा पूरी नहीं कर सकीं।

राधिका की यात्रा प्रारम्भ ही 'तुम' से हुई थीं। उन्होंने प्रारम्भ ही "चरम" से किया था। शायद तभी उन्हें कृष्ण नहीं मिले। कितना अजीब है न! कृष्ण जिसे नहीं मिले, युगों युगों से आजतक उसी के हैं, और जिसे मिले उसे मिले ही नहीं। तभी कहता हूँ, कृष्ण को पाने का प्रयास मत कीजिये। पाने का प्रयास कीजियेगा तो कभी नहीं मिलेंगे। बस प्रेम कर के छोड़ दीजिए, जीवन भर साथ निभाएंगे कृष्ण। कृष्ण इस सृष्टि के सबसे अच्छे मित्र हैं। राधिका हों या सुदामा, कृष्ण ने मित्रता निभाई तो ऐसी निभाई कि इतिहास बन गया।

राधा और रुक्मिणी जब मिली होंगी तो रुक्मिणी राधा के वस्त्रों में माखन की गंध ढूंढती होंगी, और राधा ने रुक्मिणी के आभूषणों में कृष्ण का वैभव तलाशा होगा। कौन जाने मिला भी या नहीं। सबकुछ कहाँ मिलता है मनुष्य को...  कुछ न कुछ तो छूटता ही रहता है। जितनी चीज़ें कृष्ण से छूटीं उतनी तो किसी से नहीं छूटीं। कृष्ण से उनकी माँ छूटी, पिता छूटे, फिर जो नंद-यशोदा मिले वे भी छूटे। संगी-साथी छूटे। राधा छूटीं। गोकुल छूटा, फिर मथुरा छूटी। कृष्ण से जीवन भर कुछ न कुछ छूटता ही रहा। कृष्ण जीवन भर त्याग करते रहे। 

हमारी आज की पीढ़ी जो कुछ भी छूटने पर टूटने लगती है, उसे कृष्ण को गुरु बना लेना चाहिए। जो कृष्ण को समझ लेगा वह कभी अवसाद में नहीं जाएगा। कृष्ण आनंद के देवता है। कुछ छूटने पर भी कैसे खुश रहा जा सकता है, यह कृष्ण से अच्छा कोई सिखा ही नहीं सकता।


रविवार, 5 सितंबर 2021

तो हो जाए एक एक समोसा... ।।

"समोसा" सुनते ही मुंह में पानी आ जाना स्वाभाविक है। यह तिकोना, मोटा और भूरा सा व्यंजन अपनी कद काठी के कारण अपनी बिरादरी में अलग ही नजर आता है। अपने रूप रंग में भले ही यह उन्नीस बैठता हो लेकिन स्वाद में पूरा बीस है और शायद यही कारण है कि तेल की कढ़ाई में घंटों उछलकूद करने वाला गरमागरम समोसा हर उम्र के लोगों की पहली पसंद है। शायद ही कोई अभागा हो, जिसे समोसा खाने का मौका न मिला हो क्योंकि यह तो हर छोटी-बड़ी पार्टी की शान है....लेकिन क्या आपको पता है कि आपके जन्मदिन की तरह आपके प्रिय समोसे का भी एक दिन है जिसे विश्व समोसा दिवस (World Samosa Day) जाता है।...शायद कम ही लोगों को यह पता होगा कि दुनिया भर में 5 सितम्बर को विश्व समोसा दिवस मनाया जाता है।

हमारे-आपके प्रिय समोसे का बस यह दुर्भाग्य है कि उसका दिन ‘शिक्षक दिवस’ के साथ पड़ता है और गुरुओं को समर्पित इस दिन की गरिमा-भव्यता और दिव्यता में समोसा समर्पित शिष्य की भाँति अपने दिन को कुर्बान कर देता है।...इसलिए भले ही वह शिक्षक दिवस की हर दावत में डायनिंग टेबल पर पूरी शान और गर्व से इठलाता हो लेकिन अपना दिन खुलकर नहीं माना पाता। शिक्षक दिवस और समोसे के बीच एक खास सम्बन्ध यह भी है हर व्यक्ति का और प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी का ‘समोसा गुरु’ जरुर होता है, जो यह बताता है कि ‘गुरु फलाने शहर में फलाने के समोसे बहुत गज़ब हैं’...और हर शहर-हर गली नुक्कड़ पर स्वादिष्ट समोसे का यह गुरुपन पलता-बढ़ता रहता है।
समोसा दिवस पर अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए जब हमने इस लज़ीज़-मोटे समोसे का इतिहास खंगालना शुरू किया तो गूगल गुरु ने बताया कि समोसा असल में फारसी शब्द 'सम्मोकसा' से बना है। माना जाता है कि समोसे की उत्पत्ति 10वीं शताब्दी से पहले मध्य पूर्व में कहीं हुई थी और यह 13वीं से 14वीं शताब्दी के बीच भारत में आया। ऐसा माना जाता है कि समोसा मध्य-पूर्व के व्यापारियों के साथ भारत आया और आते ही पूरा भारतीय हो गया। तभी तो आजकल हर शहर की गली,मोहल्ले और नुक्कड पर समोसा आसानी से मिल जाता है। वैसे इन दिनों एक थ्योरी यह भी चल रही है कि अरब देशों में गेहूँ तो होता नहीं है तो उनको समोसा बनाने के लिए मैदा कहाँ से मिलेगा इसलिए समोसा पूरी तरह भारतीय पैदाइश है। बहरहाल अब तो समय के साथ समोसा रंग-रूप,आकार-प्रकार,स्वाद और गुण भी बदलता जा रहा है। शहरों में नमकीन की दुकानों पर मिलने वाले छोटे सूखे समोसों से लेकर दिल्ली के पास नोएडा में मिलने वाले गरमा-गरम छोटे समोसों और दिल्ली के ही नूडल्स वाले समोसे तक इसने लम्बा सफ़र तय किया है। अब तो इसने धीरे से मिठाइयों के बीच भी घुसपैठ कर ली है और चाकलेट और खोया भरे मीठे समोसे के रूप में भी अपने स्वाद से आमोखास की जुबान पर चढ़ने लगा है। पूर्वी दिल्ली में तो करीब 25 प्रकार के समोसे मिलते हैं। यहां आलू के साथ पास्ता, नूडल्स, पिज्जा और चॉकलेट समोसे जैसे कई प्रकार के समोसे लोगों को खूब भा रहे हैं । समोसे की लोकप्रियता का ही प्रमाण है कि दशक भर पहले बिहार के साथ साथ हिंदी पट्टी में यह नारा खूब लोकप्रिय हुआ था... ‘ जब तक रहेगा समोसे में आलू-तब तक रहेगा बिहार में लालू’...और इसीतरह ‘मिस्टर और मिसेज खिलाड़ी’ फिल्म के एक गीत ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहूँगा तेरा मैं शालू..’ ने भी समोसे की लोकप्रियता की आड़ में खूब कमाई की थी।....खैर इस फिल्म या लालूप्रसाद की लोकप्रियता तो समय के साथ कम होती गयी लेकिन हमारा समोसा आज भी पूरी आन-बान-शान के साथ स्वाद के पहले पायदान पर कायम है....तो चलिए हो जाए एक-एक समोसा.... ।।
संजीव शर्मा

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

शिक्षक, अध्यापक और गुरु में क्या अंतर है

ज शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर सभी शिक्षकों को बधाइयाँ मिल रही हैं। लेकिन एक सत्य ये भी है की हमारा समाज शिक्षक शब्द का अर्थ भी भूलता जा रहा है| हम अध्यापक और शिक्षक को एक ही समझने लगे हैं। एक अध्यापक शिक्षक हो सकता है, लेकिन ये जरूरी नहीं कि हर अध्यापक शिक्षक हो। इस बात को समझने के लिए आपको शिक्षक, अध्यापक और गुरु जैसे शब्दों का शाब्दिक अर्थ पता होना जरूरी है| हिंदी एक अनूठी भाषा है। हम कुछ शब्दों को पर्यायवाची समझते हैं, जबकि असलियत ये है की हिंदी के हर शब्द का अर्थ अलग है। कुछ शब्द एक जैसे प्रतीत होते हैंख् पर उनके असली अर्थ में कुछ बारीक फर्क जरूर होता है। शिक्षक और अध्यापक भी दो ऐसे ही शब्द हैं। जो लोग गुरु को शिक्षक समझने की भूल करते हैं, उन्हें तो अपनी शब्दावली को विकसित करने की जरूरत है।

शिक्षक: शिक्षक से हम शिक्षा प्राप्त करते हैं। शिक्षक वह व्यक्ति है, जो हमें जीवन में उपयोग में आने वाली चीज़ें सिखाता है। इसमें व्यावहारिक ज्ञान से लेकर हमारे त्योहारों और रीति-रिवाजों तक का ज्ञान शामिल होता है। इसलिए किसी भी व्यक्ति का सबसे पहला शिक्षक उसके माता-पिता, सगे-संबंधी होते हैं। शिक्षक हमें शिक्षा देने के बदले किसी आर्थिक लाभ की अपेक्षा नहीं रखते, बल्कि सम्मान की अपेक्षा रखते हैं।

अध्यापक : अध्यापक वह होता है जो हमें अध्ययन करायए। इसका अर्थ यह है की अध्यापक हमें किताबी ज्ञान देता है| इस तरह का ज्ञान हमें कागज़ी प्रमाणपत्र अर्थात डिग्री लेने में मदद करते हैं। अध्यापक किसी ऐसे संसथान का अंग होते हैं जो हमें कागज़ी ज्ञान देने के बदले अध्यापक को वेतन प्रदान करता है। कुछ अध्यापक हमें शिक्षक की भूमिका निभाते हुए भी मिलते हैं, जो उन्हें बाकी अध्यापकों से अलग और बेहतर बनरता है|

गुरु : गुरु वह होता है जो हमें सबसे उच्च कोटि का ज्ञान दे। उच्च कोटि के ज्ञान का अर्थ आध्यात्मिक ज्ञान। ये ज्ञान हमें एक साधारण मनुष्य से कुछ अधिक बना देता है। ये वह ज्ञान है जो हमें किसी शिक्षक या अध्यापक से प्राप्त नहीं हो सकता। एक अध्यापक या शिक्षक हमें अपने जन्म या धन से मिल सकते हैं, किन्तु एक गुरु को आपका ढूँढना ब्बाँर अर्जित करना पड़ता। किसी गुरु का शिष्य बनने के लिए आपका अपनी पात्रता सिद्ध करनी पड़ती है। एक शिक्षक या अध्यापक जब आपको शिक्षा देता है हो उसके पीछे उसका कुछ स्वार्थ निहित होता है, लेकिन एक गुरु का ज्ञान निस्वार्थ होता है।

इन तीन के अलावा शुद्ध हिंदी में कुछ अन्य भी मिलते जुलते शब्द हैं, जो अक्सर प्रयोग में लाए जाते हैं, लेकिन किसी को उनका सही अर्थ नहीं पता।

आचार्य: आचार्य वह व्यक्ति होता है जो अपने द्वारा अर्जित ज्ञान को अपने आचरण / व्यवहार का अंग बना लेता है और फिर उस ज्ञान को अपने शिष्यों को देता है। आचार्य एक ऐसी स्तिथि है जो अध्यापक से कुछ अधिक है और गुरु से कुछ कम।

प्राचार्य : प्राचार्य आचार्य से श्रेष्ठ होता है। प्राचार्य ये सुनिश्चित करता है कि जिसको वह ज्ञान दे रहा है वो भी उस ज्ञान को अपने व्यवहार का अंग बना रहा है।

आज के दौर में जहाँ किताबी ज्ञान का बोल-बाला है, वहीं माता-पिता यह भूलते जा रहे हैं कि आपके बच्चे को विद्यालय में अध्यापक अवश्य मिल जाएंगे, किन्तु शिक्षक नहीं। आज के दौर में बच्चों को सर्वाधिक आवश्यकता एक अच्छे शिक्षक की होती है, जो बहुत कम माता-पिता या अध्यापक बन पाते हैं। एक अच्छे शिक्षक के अभाव में बच्चे पढ़ तो जरूर लेते हैं, किन्तु वो व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते जो उन्हें एक उच्च कोटि का ज्ञानवान मनुष्य बनाए।

सोमवार, 19 जुलाई 2021

परिंदे की गुहार....


सुबह कुछ जल्दी ही जाग गई थी,

टक - टक की आवाज़ आ रही थी | 

दरवाज़ा  खोलकर देखा

कोई दिखा नहीं ! ...

आवाज़ की दिशा में देखा

खिड़की पर दिखा एक पक्षी

अपनी चोंच से खिड़की पर

उकेर रहा था नक्काशी ...

मैंने पूछा -

"भाई क्या बात है"

बोला " क्या किराये से मिलेगा

कोई पेड़ घोंसला बनाने के लिए ?

अकेला तो कहीं भी रह लेता,

परन्तु घर चाहिए चूज़ों के लिए

तुम्हारे ही भाइयों ने लूट लिया है,

हमारा जंगल पूरा ही काट दिया है | 

बेघर तो कर ही दिया है, 

दाने-पानी के लिए भी तरसा दिया  है | 

पुण्य कमाने के लिए रख देते हैं ,

छत पर थोड़ा दाना थोड़ा पानी,

पर रहने के लिए छत भी तो चाहिए

यह तो कोई सोचता भी नहीं 

पेट तो भरना ही है,

भीख ही सही ,थोड़ा खा-पी लेते हैं 

थोड़ा घर भी ले जाते हैं  

भले ही सर पर छत न हो

पेट में भूख तो है ना?

कभी -कभी सोचता हूँ 

आत्मघात कर लूँ | 

बिजली के तारों  पर बैठ जाऊँ ,

या पटक दूँ सर मोबाइल के ऊँचे टावर पर 

जैसे सरकार दे देती है कुछ

फाँसी  लगाने वाले किसान को

वैसे ही मिल जाएगा  कोई पेड़

मेरे चूज़ों के घोंसले के लिए "

सुनकर मैं सुन्न हो गया

इतना कुछ तो सोचा न था ?

जंगल काटकर घर उजाड़ दिया 

इन बेचारों का विचार नहीं किया ! 

मैंने हाथ जोड़कर उससे कहा

"  सबकी ओर से मैं माफी माँगता हूँ , आत्मघात का विचार त्याग दो, यह दिल से निवेदन है मेरा 

अभी तो इस गमले के पौधे पर

अपना वन रूम किचन  का घर बसा लो

थोड़ी अड़चन तो होगी परंतु अभी इसी से काम चला लो"

उसने कहा 

"बड़ा  उपकार होगा 

परंतु किराया क्या होगा ? 

और कैसे चुकाऊँगा "

मैंने कहा-

 "तीनों पहर मंगल कलरव सुनूँगा , और कुछ नही माँगूँगा "

वह बोला "मुझे तो आप मिल गए पर मेरे भाई बंधुओ का क्या?

उन्हें भी तो घर चाहिए ,कहाँ रहेंगे वे सब ?"

मैंने कहा "अरे ! अब लोग जाग रहे हैं,

बड़, पीपल, नीम, गूलर रोप रहे हैं

धीरे -धीरे बदलाव आ रहा है

किसी को आत्मघात करने की आवश्यकता अब नहीं  है"

सुनकर पक्षी उड़ गया,

घोंसले  का सामान लाने के लिए

और मैंने मोबाइल उठाया

आपको बताने के लिए


पक्षी की टक -टक से 

मेरे मन का द्वार खुल गया

आप भी एक पेड तो रोपेंगे !

आंगन में... या गमले में ही सही...

वाट्स एप्प से प्राप्त

गुरुवार, 15 जुलाई 2021

शब्द बोलते हैं...

खाना और ख़ाना

दो मित्र रास्ते में मिले, दोनों ने परस्पर पूछा-किधर चले? एक ने कहा-ख़ाना खाने। दूसरे ने कहा-कारखाने। वे दोनों तो चले गए, पर तीसरा व्यक्ति जो उनकी बातें सुन रहा था, उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, हँसी भी आई, वह सोचने लगा-भला, ये भी कोई बात हुई। कोई खाना खाए, यह तो समझ में आता है, पर कोई कार खाए! यह क्या संभव है? आइए उस व्यक्ति की उलझन दूर करने का प्रयास करें-

सबसे पहले शब्द लें-‘खाना’ और ‘खाना’। शब्द कोश के अनुसार सकर्मक क्रिया ‘खाना’ का आशय है, ठोस आहार को चबाकर निगलना, भक्षण करना, निगलना, हिंस्र पशुओं को मारकर भक्षण करना, चूसना, चबाना (पान, गड़ेरियाँ), चाट जाना (कीड़ों आदि का), खर्च करना, नष्ट करना, आदि। फ़ारसी शब्द ‘ख़ाना’ यानी गृह, घर, आलम, डिबिया, केस, अलमारी, संदूक आदि का ख़ाना, रजिस्टर का ख़ाना, कागज या कपड़े पर रेखाओं से बना, विभाग, कोष्ठक, फ़ारसी में इसकी वर्तनी ख़ानः है। अब यह निश्चित रूप से जान लें कि ‘खाना’ हिंदी का शब्द है और ‘ख़ाना’ फ़ारसी का मात्र एक (.) नुक्ते में दोनों शब्दों का अर्थ ही बदल दिया। ‘ख़ुदा’ और ‘जुदा’ की तरह।

अब चलें ‘कार’ की ओर, यह शब्द फ़ारसी का है, जिसका अर्थ है कार्य, काम, उद्यम, पेशा, कला, फ़न, विषय, मुआमला, ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि इसे ‘कार’ ही लिखें, ‘क़ार’ नहीं, क्योंकि ‘क़ार’ का अर्थ बर्फ़, तुहिन, क़ीर, रील, तारकोल होता है। अब दोनों शब्दों को मिलाकर बने शब्द ‘कारख़ाना’ का अर्थ देख लिया जाए। ‘कारख़ाना’ का अर्थ हुआ वह स्थान जहाँ चीजें बनती हैं, शिल्पशाला, उद्योगशाला, कार्यालय यह शब्द भी फ़ारसी है।

शब्‍दों के उलझन में पड़ा तीसरा व्यक्ति हिंदी, उर्दू, फ़ारसी की थोड़ी समझ भी रखता होता, तो शायद उसकी उलझन तुरंत दूर हो जाती, पर केवल हिंदी के जानकार लोगों के लिए यह उलझन बनी रह सकती है। ‘कारख़ाना’ और ‘खाना-खाना’ में मूलभूत अंतर है कि खाना में नुक्ता नहीं है और ‘ख़ाना’ में है। ‘खाना’ का आशय हम ‘भोजन’ से लेते हैं। भोजन को ग्रहण करने की क्रिया ‘खाना’ कहलाती है, इसीलिए शब्द बना ‘खाना-खाना’ इसमें पहले वाला ‘खाना’ भोजन है और दूसरे वाला ‘खाना’ क्रिया है।

अब तो आप समझ गए होंगे कि रास्ते में दोनों मित्र का विपरीत दिशा में जाकर ‘खाना-खाने’ और ‘कारखाने’ का आशय क्या था? 



बातें घर-द्वार की

आज बातें होंगी घर-द्वार की। ‘घर-द्वार’ इन दो शब्दों में ‘द्वार’ का आशय तो ‘दहलीज’ है, पर ‘घर’ विस्तृत अर्थो में है। ‘घर’ शब्द ‘गृह’ से बना है। इसका अर्थ हिंदी में पूरे मकान से या उस भवन से, जिसमें निवास करते हैं, लिया जाता है। बंगला भाषा में ‘घर’ का आशय होता है ‘बाड़ी’। ‘पिसी बाड़ी’ यानी मौसी का घर। ‘बाड़ी’ ‘बारी’ का दूसरा रूप है। ‘बासा’ बंगाल में और ‘डेरा’ बिहार में रहने का स्थान बताने के लिए कहा जाता है। रहने की इमारत के लिए नहीं। कहीं से आकर किसी जगह में ठहर जाने, रह जाने को ‘डेरा’ डालना कहते हैं। नगर निगम का अमला जब अवैध रूप से बसाई गई झुग्गी बस्तियों में पहुँचता है, तब चेतावनी स्वरूप लोगों से ‘डेरा-डंडा’ उठा लेने की अपील करता है।

इसी ‘डेरा-डंडा’ को थोड़ा दार्शनिक अर्थ में सोचें तो ‘रमना’ शब्द सामने आता है। संस्कृत के ‘रमण’ से आया है यह शब्द। ‘रमण’ का आशय है ‘खेल’ या ‘खेल करना’। जिस स्थान पर बैठकर या ठहरकर मन को विनोद मिलता हो वह स्थान होगा ‘रमण करने लायक’ यानी ‘रमणीय’ रमन कराने वाला रमणीक। इसे रम्य भी कहते हैं। ‘सुरम्य’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘रम्य’ से हुई है। जब कोई कहे ‘मेरा मन यहाँ ‘रम’ रहा है’, तो इसका आशय यह हुआ यहाँ मुझे अच्छा लग रहा है। जब कोई कहता है कि आप कहाँ रमते हैं? तब यही समझा जाता है कि ठहरने का स्थान पूछ रहा है, उपरोक्त प्रश्न केवल साधुओं या सिद्ध लोगों के साथ ही किया जाता है। ‘ग्रह’ शब्द ‘गृह’ से एकदम अलग है, इसमें कोई समानता नहीं है।

‘मकान’, ‘गृह’, ‘घर’, ‘बसेरा’, ‘घरोंदा’, ‘गरीबख़ाना’, ‘दौलतख़ाना’, ये सभी निवास स्थान का संकेत देते हैं, पर हमने कभी ध्यान दिया कि हम जहाँ रहते हैं, उस घर के कितने हिस्से हैं? कौन-सा हिस्सा कहाँ खत्म होता है और कहाँ से शुरू होता है। उस घर मंे जहाँ हम ‘रमते’ हैं, उस स्थान को अब घ्यान से देखें और निम्नांकित हिस्सों को समझने का प्रयास करें- चौपाल, चौतरा, चबूतरा, छज्जा, बरामदा, दर, दरीचा, मुंडेर, छत, सहन, आँगन, ज़ीना, कुर्सी, ताक़, आला, महराब, खंभा, कोठरी, परछत्‍ती, अटारी, दहलीज, चौखट, ड्योढी, देहरी, कमान, हौज, चहबच्चा, दुछत्‍ती , बैठक, धंँुआरा, हाता, चहारदीवारी, फर्श, नींव, बुनियाद, चौकी, भोखा, मोहरी, नाली, तहख़ाना, किवाड़, सीढ़ी, खंड, माला, मंजिल, रोशनदान, तल्ला, मियानी, बरोठा, झरोखा, ओसारा, बंगला, कोठी, कोठा, तांड और खिड़की।

घर के इन हिस्सों को आपने जिस क्षण पहचान लिया सचमुच उस वक्त अपना घर ‘घर’ लगेगा।



बुधवार, 9 जून 2021

सभी धर्मो के ग्रंथों में पर्यावरण का उल्लेख




कुरान में 485 बार प्रकृति का जिक्र, गुरुग्रंथ साहिब के पहले श्लोक में ही ग्लोबल वार्मिंग का समाधान, जैन धर्म में 24 तीर्थंकरों के नाम से 24 पौधे कोरोनाकाल में सांसों पर छाया संकट अभी दूर नहीं हुआ है। दवा, दुआ और प्रार्थना के दौर के बीच यह सत्य भी एक बार फिर उभरकर सामने आ चुका है कि हमें अपने प्राण बचाने के लिए प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन की कितनी जरूरत है। इस प्राणवायु का शुद्ध होना भी जरूरी है, ताकि हमारे फेफड़े भी पाक-साफ रहे। 

कैसी विडंबना है कि हम जिस परमात्मा और रब से प्राणों की रक्षा के लिए गुहार लगाते हैं, उसकी कही बातों पर ही अमल नहीं करते। ऐसा कोई धर्म नहीं है, जिसके ग्रंथों और देवी-देवताओं से लेकर पैगंबर और तीर्थंकर तक ने प्रकृति व पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण का संदेश न दिया हो। गीता में प्रकृति के साथ अभेद को व्यक्त करते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं- “अश्वथ सर्ववृक्षाणां” अर्थात वृक्षों में वह अपने को पीपल बतलाते हैं। सनातन धर्म में तो पेड़ और पर्वतों की पूजा का विधान है। रामायणकालीन भारत में समाज में पेड़-पौधों, नदी व जलाशयों के प्रति लोगों में जैव सत्ता का भाव था। गुरुनानक देव ने अपनी बाणी के जरिए इंसान को कुदरत में समाने का संदेश दिया है। 

इस्लाम में कायनात का शोषण गुनाह और संरक्षण करना इबादत माना है। भगवान बुद्ध पर्यावरण के रक्षक- भंते शाक्यपुत्र सागर का कहना है कि भगवान बुद्ध ने ढाई हजार साल पहले कहा था कि-जीव संजिनों अर्थात पेड़ों में जीवन है। प्रकृति इन सभी मानवीय घटकों में सर्वोपरि है।

गुरुग्रंथ साहिब- श्री गुरुग्रंथ साहिबजी के पहले श्लोक के 7 अक्षर ही ग्लोबल वार्मिंग का समाधान की बात दर्शाते हैं। उन्होंने संदेश में सात शब्द कहें हैं। इनमें उन्होंने हवा को गुरु,पानी को पिता व धरती को मां कहा है। हम इनका सम्मान व संरक्षण करें, तो सृष्टि और हम सभी सुरक्षित रह सकते है।

जैन धर्म- प्रतिष्ठाचार्य कमल कमलांकुर का कहना है कि जैन धर्म में 24 तीर्थंकरों के नाम से अलग-अलग 24 पौधे हैं। जैन धर्म वृक्षों को ईश्वर का प्रतिनिधि मानता है। पेड़ काटने को हत्या जैसे अपराध में शामिल किया गया है।

बाइबिल- प्रोटेस्टेंट चर्च के पास्टर अर्जुन सिंह व अनिल मार्टिन के अनुसार बाइबिल में सर्व शक्तिमान परमेश्वर यहोवा, जिसने धरती पर पर्यावरण को बनाया है, तो उसने मानव को इसकी सुरक्षा करने का जिम्मा दिया है। उन्होंने कहा कि मानव के प्रकृति का केयर टेकर मानना चाहिए, न की मालिक।

तुलसीदासजी ने कहा- पंचतत्वों में ही जीवन समाया है, प्रकृति निर्मल रहने पर यह प्राणीमात्र के लिए सुखदायी हो जाती हैवित्र कुरान- मप्र उलेमा बोर्ड के अध्यक्ष काजी सैयद अनस अली ने बताया कि कुरान में तकरीबन 1600 में से 700 में प्रकृति का उल्लेख है। कुरान में धरती शब्द का प्रयोग 485 बार हुआ है। पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब से जुड़ीं सैकड़ों हदीसों में पर्यावरण संबंधी प्रसंग हैं। कुरान और हदीस में वन संरक्षण की सीख दी गई है।

रामचरित मानस- गोस्वामी तुलसीदास ने बताया कि प्रकृति निर्मल रहने पर प्राणीमात्र के लिए सुखदायी होती है। चौपाई से स्पष्ट है-क्षिती जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अधम सरीरा। कल्पना लोक प्रत्येक मानव हृदय का ऐसा स्वप्न लोक है जहाँ सजग मस्तिष्क से वह अपनी समस्त अनुभूतियों, सुख, वेदना, भक्ति, प्रेम, वात्सल्य, मानवीय बोध, प्रकृति के सौंदर्य के सत्य को जीता ही नहीं, बल्कि पहचानने का प्रयास भी करता है। यह मन का मौन है, जहाँ भावनाओं की छटपटाहट व अंतर्द्वंद्व है और इन्हीं से संवाद बनता है और फिर कल्पना साकार रूप लेती है।

सोमवार, 24 मई 2021

शब्दों का संसार

 


शब्द रचे जाते हैं,

शब्द गढ़े जाते हैं,

शब्द मढ़े जाते हैं,

शब्द लिखे जाते हैं,

शब्द पढ़े जाते हैं,

शब्द बोले जाते हैं,

शब्द तौले जाते हैं,

शब्द टटोले जाते हैं,

शब्द खंगाले जाते हैं,

अंततः

शब्द बनते हैं,

शब्द संवरते हैं,

शब्द सुधरते हैं,

शब्द निखरते हैं,

शब्द हंसाते हैं,

शब्द मनाते हैं,

शब्द रूलाते हैं,

शब्द मुस्कुराते हैं,

शब्द खिलखिलाते हैं,

शब्द गुदगुदाते हैं, 

शब्द मुखर हो जाते हैं,

शब्द प्रखर हो जाते हैं,

शब्द मधुर हो जाते हैं,


फिर भी-

शब्द चुभते हैं,

शब्द बिकते हैं,

शब्द रूठते हैं,

शब्द घाव देते हैं,

शब्द ताव देते हैं,

शब्द लड़ते हैं,

शब्द झगड़ते हैं,

शब्द बिगड़ते हैं,

शब्द बिखरते हैं

शब्द सिहरते हैं,

किंतु-


शब्द मरते नहीं,

शब्द थकते नहीं,

शब्द रुकते नहीं,

शब्द चुकते नहीं,

अतएव-

शब्दों से खेले नहीं,

बिन सोचे बोले नहीं,

शब्दों को मान दें,

शब्दों को सम्मान दें,

शब्दों पर ध्यान दें,

शब्दों को पहचान दें,

ऊँची लंबी उड़ान दे,

शब्दों को आत्मसात करें...

उनसे उनकी बात करें,

शब्दों का अविष्कार करें...

गहन सार्थक विचार करें,


क्योंकि-

शब्द अनमोल हैं...

ज़ुबाँ से निकले बोल हैं,

शब्दों में धार होती है,

शब्दों की महिमा अपार होती,

शब्दों का विशाल भंडार होता है,


और सच तो यह है कि-

शब्दों का अपना एक संसार होता है....

सोमवार, 17 मई 2021

वह पागल भिखारी...

जब बुढ़ापे में अकेला ही रहना है तो औलाद क्यों पैदा करें उन्हें क्यों काबिल बनाएं जो हमें बुढ़ापे में दर-दर के ठोकरें खाने  के लिए छोड़ दे ।

क्यों दुनिया मरती है औलाद के लिए, जरा सोचिए इस विषय पर।

मराठी भाषा से हिन्दी ट्रांसलेशन की गई ये सच्ची कथा है ।

जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण आपको प्राप्त होगा।समय निकालकर अवश्य पढ़ें।

हमेशा की तरह मैं आज भी, परिसर के बाहर बैठे भिखारियों की मुफ्त स्वास्थ्य जाँच में व्यस्त था। स्वास्थ्य जाँच और फिर मुफ्त मिलने वाली दवाओं के लिए सभी भीड़ लगाए कतार में खड़े थे।

अनायाश सहज ही मेरा ध्यान गया एक बुजुर्ग की तरफ गया, जो करीब ही एक पत्थर पर बैठे हुए थे। सीधी नाक, घुँघराले बाल, निस्तेज आँखे, जिस्म पर सादे, लेकिन साफ सुथरे कपड़े। 

कुछ देर तक उन्हें देखने के बाद मुझे यकीन हो गया कि, वो भिखारी नहीं हैं। उनका दाँया पैर टखने के पास से कटा हुआ था, और करीब ही उनकी बैसाखी रखी थी।

फिर मैंने देखा कि,आते जाते लोग उन्हें भी कुछ दे रहे थे और वे लेकर रख लेते थे। मैंने सोचा ! कि मेरा ही अंदाज गलत था, वो बुजुर्ग भिखारी ही हैं।

उत्सुकतावश मैं उनकी तरफ बढ़ा तो कुछ लोगों ने मझे आवाज लगाई : 

"उसके करीब ना जाएँ डॉक्टर साहब, 

वो बूढा तो पागल है । "

लेकिन मैं उन आवाजों को नजरअंदाज करता, मैं उनके पास गया। सोचा कि, जैसे दूसरों के सामने वे अपना हाथ फैला रहे थे, वैसे ही मेरे सामने भी हाथ करेंगे, लेकिन मेरा अंदाज फिर चूक गया। उन्होंने मेरे सामने हाथ नहीं फैलाया।

मैं उनसे बोला : "बाबा, आपको भी कोई शारीरिक परेशानी है क्या ? "

मेरे पूछने पर वे अपनी बैसाखी के सहारे धीरे से उठते हुए बोले : "Good afternoon doctor...... I think I may have some eye problem in my right eye .... "

इतनी बढ़िया अंग्रेजी सुन मैं अवाक रह गया। फिर मैंने उनकी आँखें देखीं। 

पका हुआ मोतियाबिंद था उनकी ऑखों में । 

मैंने कहा : " मोतियाबिंद है बाबा, ऑपरेशन करना होगा। "

बुजुर्ग बोले : "Oh, cataract ? 

I had cataract operation in 2014 for my left eye in Ruby Hospital."

मैंने पूछा : " बाबा, आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? "

बुजुर्ग : " मैं तो यहाँ, रोज ही 2 घंटे भीख माँगता हूँ  सर" ।

मैं : " ठीक है, लेकिन क्यों बाबा ? मुझे तो लगता है, आप बहुत पढ़े लिखे हैं। "

बुजुर्ग हँसे और हँसते हुए ही बोले : "पढ़े लिखे ?? "

मैंने कहा : "आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं बाबा। "

बाबा : " Oh no doc... Why would I ?... Sorry if I hurt you ! "

मैं : " हर्ट की बात नहीं है बाबा, लेकिन मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। "

बुजुर्ग : " समझकर भी, क्या करोगे डॉक्टर ? "

अच्छा "ओके, चलो हम, उधर बैठते हैं, वरना लोग तुम्हें भी पागल हो कहेंगे। "(और फिर बुजुर्ग हँसने लगे)

करीब ही एक वीरान टपरी थी। हम दोनों वहीं जाकर बैठ गए।

" Well Doctor, I am Mechanical Engineer...."--- बुजुर्ग ने अंग्रेजी में ही शुरुआत की--- " 

मैं, *** कंपनी में सीनियर मशीन ऑपरेटर था।

एक नए ऑपरेटर को सिखाते हुए, मेरा पैर मशीन में फंस गया था, और ये बैसाखी हाथ में आ गई। कंपनी ने इलाज का सारा खर्चा किया, और बाद में  कुछ रकम और सौंपी, और घर पर बैठा दिया। क्योंकि लंगड़े बैल को कौन काम पर रखता है सर ? "

"फिर मैंने उस पैसे से अपना ही एक छोटा सा वर्कशॉप डाला। अच्छा घर लिया। बेटा भी मैकेनिकल इंजीनियर है। वर्कशॉप को आगे बढ़ाकर उसने एक छोटी कम्पनी और डाली। "

मैं चकराया, बोला : " बाबा, तो फिर आप यहाँ, इस हालत में कैसे ? "

बुजुर्ग : " मैं...? 

किस्मत का शिकार हूँ ...."

" बेटे ने अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए, कम्पनी और घर दोनों बेच दिए। बेटे की तरक्की के लिए मैंने भी कुछ नहीं कहा। सब कुछ बेच बाचकर वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जापान चला गया, और हम जापानी गुड्डे गुड़िया यहाँ रह गए। "

ऐसा कहकर बाबा हँसने लगे। हँसना भी इतना करुण हो सकता है, ये मैंने पहली बार अनुभव किया।

फिर बोला : " लेकिन बाबा, आपके पास तो इतना हुनर है कि जहाँ लात मारें वहाँ पानी निकाल दें। "

अपने कटे हुए पैर की ओर ताकते बुजुर्ग बोले : " लात ? कहाँ और कैसे मारूँ, बताओ मुझे  ? "

बाबा की बात सुन मैं खुद भी शर्मिंदा हो गया। मुझे खुद बहुत बुरा लगा।

प्रत्यक्षतः मैं बोला : "आई मीन बाबा, आज भी आपको कोई भी नौकरी दे देगा, क्योंकि अपने क्षेत्र में आपको इतने सालों का अनुभव जो है। "

बुजुर्ग : " Yes doctor, और इसी वजह से मैं एक वर्कशॉप में काम करता हूँ। 8000 रुपए तनख्वाह मिलती है मुझे। "


मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मैं बोला : 

"तो फिर आप यहाँ कैसे ? "

बुजुर्ग : "डॉक्टर, बेटे के जाने के बाद मैंने एक चॉल में एक टीन की छत वाला घर किराए पर लिया। वहाँ मैं और मेरी पत्नी रहते हैं। उसे Paralysis है, उठ बैठ भी नहीं सकती। "

" मैं 10 से 5 नौकरी करता हूँ । शाम 5 से 7 इधर भीख माँगता हूँ और फिर घर जाकर तीनों के लिए खाना बनाता हूँ। "

आश्चर्य से मैंने पूछा : " बाबा, अभी तो आपने बताया कि, घर में आप और आपकी पत्नी हैं। फिर ऐसा क्यों कहा कि, तीनों के लिए खाना बनाते हो ? "

बुजुर्ग : " डॉक्टर, मेरे बचपन में ही मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया था। मेरा एक जिगरी दोस्त था, उसकी माँ ने अपने बेटे जैसे ही मुझे भी पाला पोसा। दो साल पहले मेरे उस जिगरी दोस्त का निधन हार्ट अटैक से हो गया तो उसकी 92 साल की माँ को मैं अपने साथ अपने घर ले आया तब से वो भी हमारे साथ ही रहती है। "

मैं अवाक रह गया। इन बाबा का तो खुद का भी हाल बुरा है। पत्नी अपंग है। खुद का एक पाँव नहीं, घरबार भी नहीं, 

जो था वो बेटा बेचकर चला गया, और ये आज भी अपने मित्र की माँ की देखभाल करते हैं। 

कैसे जीवट इंसान हैं ये ?

कुछ देर बाद मैंने समान्य स्वर में पूछा : " बाबा, बेटा आपको रास्ते पर ले आया, ठोकरें खाने को छोड़ गया। आपको गुस्सा नहीं आता उस पर ? "

बुजुर्ग : " No no डॉक्टर, अरे वो सब तो उसी के लिए कमाया था, जो उसी का था, उसने ले लिया। इसमें उसकी गलती कहाँ है ? "

" लेकिन बाबा "--- मैं बोला "लेने का ये कौन सा तरीका हुआ भला ? सब कुछ ले लिया। ये तो लूट हुई। "

" अब आपके यहाँ भीख माँगने का कारण भी मेरी समझ में आ गया है बाबा। आपकी तनख्वाह के 8000 रुपयों में आप तीनों का गुजारा नहीं हो पाता अतः इसीलिए आप यहाँ आते हो। "

बुजुर्ग : " No, you are wrong doctor. 8000 रुपए में मैं सब कुछ मैनेज कर लेता हूँ। लेकिन मेरे मित्र की जो माँ है, उन्हें, डाइबिटीज और ब्लडप्रेशर दोनों हैं। दोनों बीमारियों की दवाई चल रही है उनकी। बस 8000 रुपए में उनकी दवाईयां मैनेज नहीं हो पाती । "

" मैं 2 घंटे यहाँ बैठता हूँ लेकिन भीख में पैसों के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करता। मेडिकल स्टोर वाला उनकी महीने भर की दवाएँ मुझे उधार दे देता है और यहाँ 2 घंटों में जो भी पैसे मुझे मिलते हैं वो मैं रोज मेडिकल स्टोर वाले को दे देता हूँ। "

मैंने अपलक उन्हें देखा और सोचा, इन बाबा का खुद का बेटा इन्हें छोड़कर चला गया है और ये खुद किसी और की माँ की देखभाल कर रहे हैं।

मैंने बहुत कोशिश की लेकिन खुद की आँखें भर आने से नहीं रोक पाया।

भरे गले से मैंने फिर कहा : "बाबा, किसी दूसरे की माँ के लिए, आप, यहाँ रोज भीख माँगने आते हो ? "

बुजुर्ग : " दूसरे की ? अरे, मेरे बचपन में उन्होंने बहुत कुछ किया मेरे लिए। अब मेरी बारी है। मैंने उन दोनों से कह रखा है कि, 5 से 7 मुझे एक काम और मिला है। "

मैं मुस्कुराया और बोला : " और अगर उन्हें पता लग गया कि, 5 से 7 आप यहाँ भीख माँगते हो, तो ? "

बुजुर्ग : " अरे कैसे पता लगेगा ? दोनों तो बिस्तर पर हैं। मेरी हेल्प के बिना वे करवट तक नहीं बदल पातीं। यहाँ कहाँ पता करने आएँगी.... हा....हा... हा...."

बाबा की बात पर मुझे भी हँसी आई। लेकिन मैं उसे छिपा गया और बोला : " बाबा, अगर मैं आपकी माँ जी को अपनी तरफ से नियमित दवाएँ दूँ तो ठीक रहेगा ना। फिर आपको भीख भी नहीं मांगनी पड़ेगी। "

बुजुर्ग : " No doctor, आप भिखारियों के लिए काम करते हैं। माजी के लिए आप दवाएँ देंगे तो माजी भी तो भिखारी कहलाएंगी। मैं अभी समर्थ हूँ डॉक्टर, उनका बेटा हूँ मैं। मुझे कोई भिखारी कहे तो चलेगा, लेकिन उन्हें भिखारी कहलवाना मुझे मंजूर नहीं। "

" OK Doctor, अब मैं चलता हूँ। घर पहुँचकर अभी खाना भी बनाना है मुझे। "

मैंने निवेदन स्वरूप बाबा का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला : " बाबा, भिखारियों का डॉक्टर समझकर नहीं बल्कि अपना बेटा समझकर मेरी दादी के लिए दवाएँ स्वीकार कर लीजिए। "

अपना हाथ छुड़ाकर बाबा बोले : " डॉक्टर, अब इस रिश्ते में मुझे मत बांधो, please, एक गया है, हमें छोड़कर...."

" आज मुझे स्वप्न दिखाकर, कल तुम भी मुझे छोड़ गए तो ? अब सहन करने की मेरी ताकत नहीं रही...."

ऐसा कहकर बाबा ने अपनी बैसाखी सम्हाली। और जाने लगे, और जाते हुए अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा और भर भराई, ममता मयी आवाज में बोले : "अपना ध्यान रखना मेरे बच्चे..."

शब्दों से तो उन्होंने मेरे द्वारा पेश किए गए रिश्ते को ठुकरा दिया था लेकिन मेरे सिर पर रखे उनके हाथ के गर्म स्पर्श ने मुझे बताया कि, मन से उन्होंने इस रिश्ते को स्वीकारा था।

उस पागल कहे जाने वाले मनुष्य के पीठ फेरते ही मेरे हाथ अपने आप प्रणाम की मुद्रा में उनके लिए जुड़ गए।

हमसे भी अधिक दुःखी, अधिक विपरीत परिस्थितियों में जीने वाले ऐसे भी लोग हैं।

हो सकता है इन्हें देख हमें हमारे दु:ख कम प्रतीत हों, और दुनिया को देखने का हमारा नजरिया बदले....

हमेशा अच्छा सोचें, हालात का सामना करे...।

वाट्स एप से साभार

गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

कल कभी न आने वाली मनोदशा है


म जब एक गहरी यात्रा से गुज़रते हैं तो यात्रा के ऐसे आदी हो जाते हैं कि यक़ीन ही नहीं होता कि यात्रा ख़तम हो गई है। इस मोड़ पर जब आगे के लक्ष्य तय किये जाने चाहिए हम अतीत में ही जीते और झुंझलाते रहते हैं कि जैसे अभी भी कुछ भी नहीं बदला। हिन्दू मनीषा ने तो यात्रा को भी जीवन और जगत का सबसे बड़ा भ्रम कहा है क्योंकि यात्रा भी कोई बाहरी अवधारणा नहीं है।

एक कथा है- 

एक बार एक व्यक्ति तपस्या को बैठा। उसने भैरव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। धूप, बारिश, ठंड पतझड़ बसंत आए गए पर तपस्या चलती रही। एकदिन भैरव आ गए और कहा 'उठो, मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ। वर मांगों।'  व्यक्ति ने आंखें खोलीं। देखा कोई नहीं है। वह क्षुब्ध हुआ, पर फिर आंखें मूंद ली और पुनः तपस्या में लीन हो गया। ऐसा ही कई बार घटा। भैरव की आवाज़ आती, व्यक्ति आंखें खोलता और किसी को न पा फिर उदास हो आंखें मूंद लेता। उसकी क्षुब्धता बढ़ती रही, बेचैनी बढ़ती रही। वह अपनी स्थिति से निराश, अवसाद में जाता रहा लेकिन तपस्या बन्द न की। बहुत दिनों बाद एक बार फिर जब भैरव की आवाज़ आई तब उसने झल्लाकर कहा कि कौन है जो भैरव बनकर बार बार मेरी तपस्या भंग कर रहा है। तब आवाज़ आई- 'मैं भैरव ही हूँ।' व्यक्ति ने कहा 'तब आप दिखाई क्यों नहीं देते।'  भैरव ने कहा 'तुम पीछे देखो मैं खड़ा हूँ। तुम्हारी तपस्या से तुम्हारी आभा इतनी बढ़ गई है कि तुम मुझे देख नहीं पा रहे हो।' असल में भैरव कब के प्रसन्न हो गए थे लेकिन व्यक्ति तपस्या में इतना मग्न था कि समझ ही नहीं पा रहा था। 

हमारी भी यही दशा है. हम बरसों बरस जिस आग में जलकर अपने लिए तप करते हैं, वह अर्जित कर लेने के बाद भी अतीत में ही जीते रहते हैं। हम अतीत के दुखों में ही खुद को स्थित कर रोते हैं, कुढ़ते हैं, झल्लाते हैं जबकि भैरव प्रसन्न हो चुके होते हैं। अपने अपने भैरवों के लिए तपना जितना ज़रूरी है भैरवों के प्रसन्न हो जाने के बाद उन्हें चिन्हित कर जीवन लक्ष्य के लिए और और आगे बढ़ना भी उतना ही ज़रूरी है।  दु:ख में रहने को जीते-जीते, सुख के आने की ख़बर ही नहीं होती। सुख आ गया है, ठीक से आंखें खोलिए और पहचानिए। कृपणता जीवन की मृत्यु है, हिन्दू मनीषा ने आनंद को जीवन का लक्ष्य कहा है और आनन्द की प्राप्ति के लिए भीतर स्पेस और स्वीकार्यता की जितनी ज़रूरत है उतनी ही कृपण भावबोध से मुक्त होकर उदारता की भी। योरोप में लोंजाइनस इसी को उदात्तवाद कहते हैं।  जब तक मन कृपणता में, संकुचन में, क्षुब्धता में रहेगा वह वर्तमान को स्वीकार नहीं कर सकेगा। आपने देखा होगा कुछलोग कितना भी पा लें, फिर भी भिखारियों जैसा व्यवहार करते हैं कि अभी पाया ही क्या। ऐसे लोगों की असल दिक्क़त असन्तोष है, यह एक ऐसा असन्तोष है जो कभी तुष्ट नहीं होता। इसलिए होश में रहकर जीने को कहा गया है और जिस तरह कृपण व्यक्ति कभी भी आनंद को नहीं पा सकता ठीक वैसे ही अति महत्वाकांक्षी भी आनन्द प्राप्ति में कृपण का ही सहोदर होता है। हम सुख के, वस्तुओं के, अन्य के जितने आग्रही होंगे आनन्द उतना ही दूर होता जाएगा। सुख वस्तुओं में नहीं होता। अगर आप आज, यहीं खुश नहीं तो आप कभी, कहीं खुश नहीं हो सकते। इसलिए कल जब यह, यह और वह अर्जित हो जाएगा तब खुशी आ जाएगी सोचने की जगह उसे आज में, इस में, ऐसे ही में तलाशने की कोशिश करें।

आनन्द, वस्तुओं और वासनाओं में नहीं, गहराई, वर्तमान और उपलब्ध में है। किसी भैरव को अन्य में, कल में, दूर में न खोजें, वह आज में, आपमें और एकदम भीतर है। जबतक यह नहीं जानते तबतक भैरव प्रसन्न हो आवाज़ देते रहेंगे और आप उनके निकट होकर भी क्षुब्ध होते रहेंगे।

वाट्सएप से....

सोमवार, 8 मार्च 2021

मोदी है तभी मुमकिन हुआ!!!

विंग कमांडर अभिनंदन का नाम तो आप निश्चय ही नहीं भूले होंगे....... शायद उनकी मूछें भी याद ही होंगी....लेकिन इसी भारतीय सेना के कुछ अन्य जांबाज़ पायलेट के नाम नीचे दिए गए हैं...... इनकी तश्वीरें देखना तो दूर हममें से कोई एकाध ही होगा, जिसने ये नाम सुन रखे होंगे...लेकिन इनका रिश्ता अभिनंदन से बड़ा ही गहरा है.... पढ़िए ये नाम....

विंग कमांडर हरसरण सिंह डंडोस, स्क्वाड्रन लीडर मोहिंदर कुमार जैन, स्क्वाड्रन लीडर जे. एम. मिस्त्री, स्क्वाड्रन लीडर जे. डी. कुमार, स्क्वाड्रन लीडर देव प्रसाद चटर्जी,  फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुधीर गोस्वामी, फ्लाइट लेफ्टिनेंट वी. वी. तांबे, फ्लाइट लेफ्टिनेंट नागास्वामी शंकर,  फ्लाइट लेफ्टिनेंट राम एम. आडवाणी,  फ्लाइट लेफ्टिनेंट मनोहर पुरोहित, फ्लाइट लेफ्टिनेंट तन्मय सिंह डंडोस , फ्लाइट लेफ्टिनेंट बाबुल गुहा, फ्लाइट लेफ्टिनेंट सुरेश चंद्र संदल, फ्लाइट लेफ्टिनेंट हरविंदर सिंह, फ्लाइट लेफ्टिनेंट  एल एम सासून, फ्लाइट लेफ्टिनेंट के. पी. एस. नंदा, फ्लाइट लेफ्टिनेंट अशोक धवले, फ्लाइट लेफ्टिनेंट  श्रीकांत महाजन, फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुरदेव सिंह राय, फ्लाइट लेफ्टिनेंट रमेश कदम, फ्लाइट लेफ्टिनेंट प्रदीप वी आप्टे, फ्लाइंग ऑफिसर कृष्ण मलकानी, फ्लाइंग ऑफिसर  के पी मुरलीधरन, फ्लाइंग ऑफिसर  सुधीर त्यागी, फ्लाइंग ऑफिसर तेजिंदर सेठी

ये सभी नाम अनजाने लगे होंगे...... ये भी भारतीय वायुसेना के योद्धा थे, जो 1971 की जंग में पाकिस्तान में बंदी बना लिए गए..और फिर कभी वापस नहीं आए। इनकी चिट्ठियां घर वालों तक आईं, पर भारत सरकार ने कभी इनकी खोज खबर न ली 1972 में शिमला में एक कथित लौह महिला इंदिरा गांधी, जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ डॉक्टर डॉक्टर खेल 90 हज़ार पाकिस्तानियों को छोड़ने का समझौता तो कर आई, पर इन्हें भूल गई...ये विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान जितने खुशकिस्मत न थे के इनके लिए इनकी सरकार ने मिसाइलें नहीं तानी, न देश के लोगों ने इनकी खबर ली, न अखवारों ने फोटो छापे..... इन्हें मरने को, पाकिस्तानी जेलों में सड़ने को छोड़ दिया गया...... इनके वजूद को नकार दिया गया....

और ये पहली बार नहीं हुआ था। रेज़ांगला के वीर अहीरों को भी नेहरू ने भगोड़ा करार दिया था..शैतान सिंह भाटी को कायर मान लिया था..... अगर चीन ने इनकी जांबाजी को न स्वीकारा होता, एक लद्दाखी गडरिये को इनकी लाशें न मिलती, तो ये वीर अहीर न कहलाते, शैतान सिंह भाटी परम वीर चक्र का सम्मान न पाते.....

यही रवैया रहा गांधी-नेहरू कुनबे का देश के वीर सपूतों के प्रति...... और यही फ़र्क़ है मोदी के होने न होने का...

आप कल्पना भी नहीं कर सकते अगर मोदी की जगह उनका गूंगा पूर्ववर्ती होता अभिनंदन का नाम भी शायद इसी लिस्ट में लिखा होता......

वो मोदी है, देश के सम्मान की रक्षा को दृणप्रतिज्ञ और रक्षक योद्धाओं के लिए भी पूर्ण समर्पित.......

और यही वजह है के हम उसके भक्त हैं...

भाई उपेन्द्र तिवारी


बुधवार, 3 मार्च 2021

कटी प्याज के नुकसान

मानो या ना मानो यह पूर्णतया सत्य है. देर से कटी प्याज का कभी उपयोग ना करें. प्याज हमेशा तुरंत काट कर खाएं. कटी रखी प्याज दस मिनिट में अपने आस पास के सारे कीटाणु अवशोषित कर लेती है. यह वेज्ञानिक तौर पर सिद्ध हो चुका है. जब भी किसी मौसमी बीमारी का प्रकोप फैले घर में सुबह शाम हर कमरें में प्याज काट कर रख दें. बाद में उसे फैंक दें. सुरक्षित बने रहेंगे.
सन 1919 में फ्लू से चार करोड़ लोग  मारे जा चुके थे, तब एक डॉक्टर कई किसानों से उनके घर इस प्रत्याशा में मिला कि वो कैसे इन किसानों को इस महामारी से लड़ने में सहायता कर सकता है. बहुत सारे किसान इस फ्लू से ग्रसित थे और उनमें से बहुत से मारे जा चुके थे. डॉक्टर जब इनमें से एक किसान के संपर्क में आया तो उसे ये जान कर बहुत आश्चर्य हुआ, कि सारे गाँव के फ्लू से ग्रसित होने के बावजूद ये किसान परिवार बिलकुल स्वस्थ्य था. तब डॉक्टर को ये जानने की इच्छा जागी कि ऐसा इस किसान के परिवार ने सारे गाँव से हटकर क्या किया कि वो इस भंयकर महामारी में भी स्वस्थ्य थे. तब किसान की पत्नी ने उन्हें बताया कि उसने अपने मकान के दोनों कमरों में एक प्लेट में  छिली हुई प्याज रख दी थी  तब डॉक्टर ने प्लेट में रखी इन प्याज को माइक्रोस्कोप से देखा तो उसे इस प्याज में  उस घातक फ्लू के बैक्टेरिया मिले जो संभवतया इन प्याज द्वारा अवशोषित  कर लिए गए थे और शायद यही कारण था कि इतनी बड़ी महामारी में ये परिवार  बिलकुल स्वस्थ्य था, क्योंकि फ्लू के वायरस इन प्याज द्वारा सोख लिए गए थे. जब मैंने अपने एक मित्र जो अमेरिका में रहते थे और मुझे हमेशा स्वास्थ्य संबधी मुद्दों पर  बेहद ज्ञानवर्धक जानकारी भेजते रहते हैं, तब उन्होंने प्याज के संबध में बेहद महत्वपूर्ण जानकारी/अनुभव मुझे भेजा. उनकी इस बेहद रोचक कहानी के लिए धन्यवाद.

जब मैं न्यूमोनिया से ग्रसित था और कहने की आवश्यकता नहीं थी कि मैं बहुत कमज़ोर महसूस कर रहा था तब मैंने एक लेख पढ़ा था जिसमें ये बताया गया था कि प्याज को बीच से काटकर रात में  न्यूमोनिया से ग्रस्त मरीज़ के कमरे में एक जार में रख दिया गया था और सुबह यह देख कर बेहद आश्चर्य हुआ कि प्याज सुबह कीटाणुओं की वज़ह से  बिलकुल काली हो गई थी तब मैंने भी अपने कमरे में वैसे ही किया और देखा अगले दिन प्याज बिलकुल काली होकर खराब हो चुकी थी और मैं काफी स्वस्थ्य महसूस कर रहा था.

कई बार हम पेट की बीमारी से दो चार होते है तब हम इस बात से अनजान रहते है कि इस बीमारी के लिए किसे दोषी ठहराया जाए. तब नि :संदेह प्याज को इस बीमारी के लिए दोषी ठहराया जा सकता है. प्याज बैक्टेरिया को अवशोषित कर लेती है यही कारण है कि अपने इस गुण के कारण प्याज हमें ठण्ड और फ्लू से बचाती है. अत: वे प्याज बिलकुल नहीं खाना चाहिए जो बहुत देर पहले काटी गई हो और प्लेट में रखी गई हों. ये जान लें कि  काट कर रखी गई प्याज बहुत विषाक्त होती हैं.

जब कभी भी फ़ूड पॉइसनिंग के केस अस्पताल में आते हैं तो सबसे पहले इस बात की जानकारी ली जाती कि मरीज़ ने अंतिम बार प्याज कब खाई थी. और वे प्याज कहाँ से आई थीं , (खासकर सलाद में )  प्याज बैक्टेरिया के लिए चुंबक की तरह काम करती हैं  खासकर कच्ची प्याज आप कभी भी थोड़ी सी भी कटी हुई प्याज को देर तक रखने की गलती करे ये बेहद खतरनाक हैं.

यहाँ तक कि किसी बंद थैली में इसे रेफ्रिजरेटर में रखना भी सुरक्षित नहीं है. प्याज ज़रा सी काट देने पर ये बैक्टेरिया से ग्रसित हो सकती है और आपके लिए खतरनाक हो सकती है. यदि आप कटी हुई प्याज को सब्ज़ी बनाने के लिए उपयोग कर रहें हो, तब तो ये ठीक है, लेकिन यदि आप कटी हुई प्याज अपनी ब्रेड पर रख कर खा रहें है तो ये बेहद खतरनाक है. ऐसी स्थिति में आप मुसीबत को न्योता दे रहें हैं. याद रखे कटी हुई प्याज और कटे हुए आलू की नमी बैक्टेरिया को तेज़ी से  पनपने में बेहद सहायक होता है.कुत्तों को कभी भी प्याज नहीं खिलाना चाहिए, क्योंकि प्याज को उनका पेट का मेटाबोलिज़ कभी भी नहीं पचाता. कृपया ध्यान रखे कि प्याज को काट कर अगले दिन सब्ज़ी बनाने के लिए नहीं रखना चाहिए क्योंकि ये बहुत खतरनाक है यहाँ तक कि कटी हुई प्याज एक रात में बहुत विषाक्त हो जाती है क्योंकि ये टॉक्सिक बैक्टेरिया बनाती है जो पेट खराब करने के लिए पर्याप्त रहता है।  प्याज परमाणविक रेडिएशन को भी सोख लेता हैपोखरण में भी इसका इस्तेमाल हुआ था।

वाट्स एप से साभार...