बुधवार, 9 जून 2021

सभी धर्मो के ग्रंथों में पर्यावरण का उल्लेख




कुरान में 485 बार प्रकृति का जिक्र, गुरुग्रंथ साहिब के पहले श्लोक में ही ग्लोबल वार्मिंग का समाधान, जैन धर्म में 24 तीर्थंकरों के नाम से 24 पौधे कोरोनाकाल में सांसों पर छाया संकट अभी दूर नहीं हुआ है। दवा, दुआ और प्रार्थना के दौर के बीच यह सत्य भी एक बार फिर उभरकर सामने आ चुका है कि हमें अपने प्राण बचाने के लिए प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन की कितनी जरूरत है। इस प्राणवायु का शुद्ध होना भी जरूरी है, ताकि हमारे फेफड़े भी पाक-साफ रहे। 

कैसी विडंबना है कि हम जिस परमात्मा और रब से प्राणों की रक्षा के लिए गुहार लगाते हैं, उसकी कही बातों पर ही अमल नहीं करते। ऐसा कोई धर्म नहीं है, जिसके ग्रंथों और देवी-देवताओं से लेकर पैगंबर और तीर्थंकर तक ने प्रकृति व पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण का संदेश न दिया हो। गीता में प्रकृति के साथ अभेद को व्यक्त करते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं- “अश्वथ सर्ववृक्षाणां” अर्थात वृक्षों में वह अपने को पीपल बतलाते हैं। सनातन धर्म में तो पेड़ और पर्वतों की पूजा का विधान है। रामायणकालीन भारत में समाज में पेड़-पौधों, नदी व जलाशयों के प्रति लोगों में जैव सत्ता का भाव था। गुरुनानक देव ने अपनी बाणी के जरिए इंसान को कुदरत में समाने का संदेश दिया है। 

इस्लाम में कायनात का शोषण गुनाह और संरक्षण करना इबादत माना है। भगवान बुद्ध पर्यावरण के रक्षक- भंते शाक्यपुत्र सागर का कहना है कि भगवान बुद्ध ने ढाई हजार साल पहले कहा था कि-जीव संजिनों अर्थात पेड़ों में जीवन है। प्रकृति इन सभी मानवीय घटकों में सर्वोपरि है।

गुरुग्रंथ साहिब- श्री गुरुग्रंथ साहिबजी के पहले श्लोक के 7 अक्षर ही ग्लोबल वार्मिंग का समाधान की बात दर्शाते हैं। उन्होंने संदेश में सात शब्द कहें हैं। इनमें उन्होंने हवा को गुरु,पानी को पिता व धरती को मां कहा है। हम इनका सम्मान व संरक्षण करें, तो सृष्टि और हम सभी सुरक्षित रह सकते है।

जैन धर्म- प्रतिष्ठाचार्य कमल कमलांकुर का कहना है कि जैन धर्म में 24 तीर्थंकरों के नाम से अलग-अलग 24 पौधे हैं। जैन धर्म वृक्षों को ईश्वर का प्रतिनिधि मानता है। पेड़ काटने को हत्या जैसे अपराध में शामिल किया गया है।

बाइबिल- प्रोटेस्टेंट चर्च के पास्टर अर्जुन सिंह व अनिल मार्टिन के अनुसार बाइबिल में सर्व शक्तिमान परमेश्वर यहोवा, जिसने धरती पर पर्यावरण को बनाया है, तो उसने मानव को इसकी सुरक्षा करने का जिम्मा दिया है। उन्होंने कहा कि मानव के प्रकृति का केयर टेकर मानना चाहिए, न की मालिक।

तुलसीदासजी ने कहा- पंचतत्वों में ही जीवन समाया है, प्रकृति निर्मल रहने पर यह प्राणीमात्र के लिए सुखदायी हो जाती हैवित्र कुरान- मप्र उलेमा बोर्ड के अध्यक्ष काजी सैयद अनस अली ने बताया कि कुरान में तकरीबन 1600 में से 700 में प्रकृति का उल्लेख है। कुरान में धरती शब्द का प्रयोग 485 बार हुआ है। पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब से जुड़ीं सैकड़ों हदीसों में पर्यावरण संबंधी प्रसंग हैं। कुरान और हदीस में वन संरक्षण की सीख दी गई है।

रामचरित मानस- गोस्वामी तुलसीदास ने बताया कि प्रकृति निर्मल रहने पर प्राणीमात्र के लिए सुखदायी होती है। चौपाई से स्पष्ट है-क्षिती जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अधम सरीरा। कल्पना लोक प्रत्येक मानव हृदय का ऐसा स्वप्न लोक है जहाँ सजग मस्तिष्क से वह अपनी समस्त अनुभूतियों, सुख, वेदना, भक्ति, प्रेम, वात्सल्य, मानवीय बोध, प्रकृति के सौंदर्य के सत्य को जीता ही नहीं, बल्कि पहचानने का प्रयास भी करता है। यह मन का मौन है, जहाँ भावनाओं की छटपटाहट व अंतर्द्वंद्व है और इन्हीं से संवाद बनता है और फिर कल्पना साकार रूप लेती है।