रामायण की कथा के कई सारे संस्करण उपलब्ध हैं, लेकिन उस काल का सही वर्णन महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची गई वाल्मीकि रामायण में ही मिलता है। वाल्मीकि रामायण के बाद श्रीराम एवं सीता के जीवन के सफर को अन्य कई ऋषि-विद्वानों ने अपने अनुसार लिखने की सोची।
फलस्वरूप कई सारे ग्रंथों-उपग्रंथों का जन्म हुआ। इनमें असल वाल्मीकि रामायण मंर बताए गए कई तथ्य तो मौजूद होते हैं, लेकिन कुछ रामायण प्रसंगों को कहानी का रूप देते हुए बदल दिया जाता है।
इन सभी ग्रंथों में राम एवं सीता के मिलन से लेकर वनवास एवं रावण के अंत की कथा अवश्य होती है, लेकिन इसके बीच कई सारी ऐसी कहानियां जोड़ दी गई हैं जिनका प्रमाण कहीं नहीं मिलता। उदाहरण के लिए जैन रामायण के अनुसार रावण को श्रीराम ने नहीं, बल्कि लक्ष्मण ने मारा था।
आनंद रामायण के अनुसार श्रीराम एक कठोर राजा थे, वे अपने राज्य में किसी को हंसने की अनुमति नहीं देते थे। किंतु ये सभी बातें वाल्मीकि रामायण में नहीं मिलती। महर्षि वाल्मीकि ने तो कभी “लक्ष्मण रेखा” का भी वर्णन रामायण कथा लिखते हुए नहीं किया।
रामायण काल के जिस प्रसंग की आज हम यहां चर्चा करने जा रहे हैं, वह श्रीराम एवं सीता जी और लक्ष्मण के वनवास से वापस अयोध्या आने के बाद की घटना पर है। यह वह समय है जब श्रीराम एवं सीता जी को पहली बार पता चलता है कि वे माता-पिता बनने वाले हैं।
यह सूचना मिलने पर कि सीता जी गर्भवती हैं, पूरे महल में खुशियों का माहौल बन गया, श्रीराम के साथ-साथ परिवार के सभी सदस्य अत्यंत प्रसन्न थे। लेकिन इन खुशियों के जाने का और दुखों के आने का समय दूर नहीं था।
जल्द ही यह बात सबके समक्ष आने लगी कि सीता जी अपने पति से दूर लंका में रहकर आई हैं, लेकिन सब जानते हुए भी श्रीराम ने उन्हें अपने जीवन में पनाह दी है। यह ऐसा समय था जब पत्नी यदि एक रात भी अपने पति से दूर रहती थी, तो उसे दोबारा पति के घर में दाखिल होने की अनुमति नहीं मिलती थी।
लेकिन लंबे समय के लिए रावण की लंका में रहने के बावजूद भी सीता जी अयोध्या के महल में सुखी थीं। यह देख अयोध्या की सभी पत्नियां भी अपने पति का विरोध करने लगीं। अब बात श्रीराम तक आ पहुंची, इस स्थिति को देखते हुए सीता जी ने स्वयं ही अयोध्या छोड़कर चले जाने का फैसला कर लिया।
स्वयं लक्ष्मण उन्हें जंगल तक छोड़कर आए जहां महर्षि वाल्मीकि उन्हें आकर ले गए। इस समय सीता जी गर्भवती थीं, यह ऐसा समय था जब उन्हें श्रीराम की सबसे अधिक आवश्यकता थी, लेकिन प्रजा का सुख देखते हुए उन्होंने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में एक आम संन्यासिन बनने का निर्णय ले लिया।
आश्रम में पहुंचकर महर्षि वाल्मीकि ने उन्हें अयोध्या की सभी बातें भुलाकर, एक सामान्य जीवन व्यतीत करने की सलाह दी, तभी वे अपने दर्द से बाहर आ सकेंगी।
कई दिन बीत गए, दिन कुछ महीनों में भी तब्दील हो गए। वह समय बेहद समीप आ गया जब सीता जी एक संतान को जन्म देने वाली थीं। इस बीच ना उन्होंने अयोध्या के साथ किसी प्रकार का कोई संपर्क साधने का प्रयास किया और ना ही वहां से वाल्मीकि आश्रम में कोई सुखद संदेश आया।
कहा जाता है कि सीता जी के अयोध्या छोड़ देने के बाद श्रीराम ने राज्य तो बखूबी संभाला, लेकिन वे अंदर से दुखी रहने लगे। यह भी कहा जाता है कि श्रीराम जमीन पर सोते थे।
कुछ और दिन बीते तो वाल्मीकि आश्रम में नन्हें से बच्चे की किलकारी गूंज उठी। सीता जी ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। वाल्मीकि जी के साथ आश्रम के सभी लोग प्रसन्नता से भर गए।
सीता जी द्वारा संतान को जन्म देने की घटना से संबंधित कई कहानियां प्रचलित हैं। लोक कथाओं के अनुसार तो सीता जी ने एक साथ दो बालकों को जन्म दिया था। लेकिन महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची रामायण में इसका उल्लेख नहीं मिलता। ना ही इस बात को कोई प्रमाण दिया जाता है।
बल्कि एक अन्य कथा के अनुसार कुश के जन्म की बात बताई जाती है। जिस पुत्र को सीता जी ने जन्म दिया, उसका नाम ‘लव’ रखा गया। लव के जन्म के बाद सीता जी का अधिकतम समय उसके पालन-पोषण में गुजरता। आश्रम के अन्य लोग भी उसका ध्यान रखने में सीता जी की मदद करते।
एक दिन सीता जी कुछ आवश्यक लकड़ियां लाने के लिए आश्रम से बाहर के पास स्थित जंगल जा रही थीं (अन्य कथा के अनुसार नहाने के लिए नदी तक जा रही थीं), लेकिन उन्हें यह चिंता थी कि वे लव को कैसे लेकर जाएं।
निकलते हुए उन्होंने वाल्मीकि जी को कुछ कार्य करते हुए देखा, तो उन्होंने उनसे लव पर नजर रखने को कहा। सिर हिलाते हुए जवाब में हां कहकर वाल्मीकि जी ने लव को उनके पास बैठाने के लिए कह दिया, लेकिन जैसे ही सीता जी कुछ आगे बढ़ीं तो उन्होंने देखा कि महर्षि का ध्यान केवल अपने कार्य में हैं और वे लव की ओर देख भी नहीं रहे।
इसलिए सीता जी ने लव को साथ ही लेकर जाने का निर्णय लिया, लेकिन जब उन्होंने लव को उठाया तो महर्षि ने यह दृश्य नहीं देखा। कुछ देर बाद जब महर्षि ने इधर-उधर देखा तो उन्हें लव दिखाई नहीं दिया और उन्हें यह भय हुआ कि हो ना हो लव कहीं चला गया होगा और किसी जानवर का शिकार हो गया होगा।
अब वे सीता जी को वापस आश्रम लौटने पर क्या जवाब देंगे, सीता विलाप करने लगेगी, इसी डर के कारण वाल्मीकि जी ने पास में पड़े कुशा (घास) को लिया और कुछ मंत्र पढ़ने के बाद एक ‘नया लव’ बना दिया। यह लव हूबहू पहले जैसे लव की तरह ही था, अब उन्होंने सोचा कि सीता के वापस लौटने पर वो उसे यही लव सौंप देंगे और कुछ नहीं बताएंगे।
कुछ समय के पश्चात जब सीता आश्रम लौटीं ने उन्हें देख महर्षि चकित रह गए। उनके पास लव को पहले से ही देख वे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे। पूछने पर मालूम हुआ कि सीता जी लव को अपने साथ ही ले गई थीं।
लेकिन जब सीता जी ने उस नए लव को देखा, तो वे अत्यंत प्रसन्न हुईं। कुशा के कारण जन्म होने की वजह से, उसका नाम ‘कुश’ रखा गया। और वह श्रीराम और सीता जी की दूसरी संतान के रूप में जाना गया।