रविवार, 3 मार्च 2024

सुनो भाई उधो ....सपना सरकस के

 सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो, जब सर्कस के पिंजरे से शेर निकल कर भाग जाए तब क्या हालत होती होगी दर्शकों की, शहर वालों की? ऐसा ही हो रहा है आज। देहली सर्कस एण्ड  कंपनी का एक खूंखार चीता रिंग मास्टर के हंटर से चमक कर सुरक्षा घेरे से बाहर आ गया है। फिर क्या था अपने आक्रामक तेवर का प्रदर्शन करते हुए बड़े-बड़ों को ऐसे लहूलुहान कर रहा है जिसकी किसी को कल्पना नहीं थी। उस चीते को सभी प्यार से 'ईडी' कहकर पुकारते हैं। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह छत्तीसगढ़ी आलेख-

- अरे भागव रे, भागव, जी परान बचाना हे तब ए तीर ले भागव।

 - काबर भागबो जी ए तीर ले, का होगे हे तेमा भागबो?

- नइ भागव तब जाव मरव रे सारे हो, तुंहर मन के रई आगे हे तेला कोनो नइ बचा सकय?

- अरे का बात होगे हे तेला बताबे ते बस कुकुर मांस खाय बरोबर बड़बड़ावत रहिबे? 

-नइ मानव न मोर बात ल, सारी दुनिया जानगे हे, देशभर के अउ गांव भर के मनखे जानगे हे फेर तुंहर असन मूर्ख मनखे मैं कहूं नइ देखे हौं, अतेक अंधरा, अतेक अड़ानी होके नइ रहना चाही?

- अरे परलोखिहा सारे नइ तो हो जइसे रावन, कंस, दुरजोधन, दुशासन अऊ बड़े-बड़े राक्षस मन के नांव ल सुन के रिसि-मुनि, गियानी अउ आम आदमी कांपय तइसने कस अभू होवत हे। 

ये मेहतरु जकहा-बकहा के मुंह ले अइसन बात सुन के दइहान मं सकलाय राहय तउन मन कहिथे, तुंहर मन के समझ मं आथे गा, एकर बात हा? 

परसादी कहिथे- कोन जनी बुजा हा का कहिथे, का बकथे ते कुछु समझ नइ परय? 

समारु, चिंता, रामनाथ, गोविंद, ईश्वर अउ कन्हैया घला परसादी के बात के समरथन करत कहिथे- कोन जनी ओहर का देख परे हे, सुन डरे हे ते झझके असन बड़बड़ावत हे। 

उही तीर सरपंच जगमोहन रिहिसे तउन कहिथे- राहौ तो गा राहौ,एकदम से हड़बावौ झन। उहू लइका, हा कुछु देखे, सुने, पढ़े होही, कोनो मेर तभे अइसन झझखे हे, डरे हे, तभे तो काहत हे भागव... भागव...। ओला तीर के बला लौ अउ पूछव का बात हे बेटा, काबर, का जिनिस हे तेला देखके तैं झझक गे स?

सरपंच जगमोहन ओ लइका ल तीर मं बलइस, ओकर बर पानी मंगइस। एक गिलास पानी ल गटागट ओहर पीगे। 

सरपंच पूछथे- हां, बता बेटा, का बात हे, काबर सब झन ल भागव... भागव... भागव... काहत हस?

ये बेटा के नांव हे मेहतरु, बने हट्टा-कट्टा, नौजवान हे कोनो जोजवा-भोकवा नइहे। ओहर सरपंच ल बताथे- का बतावौं मालिक, रात के एक ठन भयंकर सपना देख परे हौं।

- का सपना रे, सरपंच हा पूछथे। अब ओ तीर सुनइया मन के मजमा लग जथे अउ सब कान देके ओकर बात ल सुने ले धर लिन जइसे कोनो रहस्य-रोमांच के बात सुनावत हे?

- हां, त बता बेटा मेहतरु का अइसे भयंकर सपना देख डरे के अतेक हड़बड़ागे हस?

- हड़बड़ाय के लइक सपना रिहिस हे, तैं नइ पतियाबे, गउकिन काहत हौं गा, ओ भयंकर सपना ल देखत-देखत डर के मारे मूत (पेशाब) घला कर डरेंव। 

सुनत राहय तउन चंगू-मंगू मन जोर से खिलखिला के हांस भरथे, कठल जथे। कोनो-कोनो कहिथे- ये सारे मेहतरु हा लबारी मारत हे, चुतिया बनावत हे, नइ देखे हे अइसन कोनो सपना, एकर बात मं कोनो झन आहौ। लफंगा हे, झूठ-मूठ के बात बनावत, बेंझावत हे। 

सरपंच कहिथे- राहौ तो गा, थोकन चुप तो राहौ। का काहत हे एहर तउन ल सुन तो लौ?

-हां त बता बेटा मेहतरु, का देखे भयंकर सपना मं?

 -मेहतरु- अरे बाप रे, का बतावौं मालिक, दिल्ली मं सरकस होवत हे तिहां के रिंग मास्टर के हंटर खाके चीता अतेक बौखला गे, सब पंडाल मन ल टोरटार के ऐती-ओती जिहां पावत हे जात हे राड़ छड़ावत हे। सब जी परान दे के एती-ओती भागत हे।

रामनाथ पूछथे- तोर ये सपना सही हे के अइसन डेर्रावत हस?

मेहतरु बताथे- मोला का लेना-देना हे भइया ककरो से। बिहनिया मोर नींद खुलिस तब देखथौं, ओ चीता नोहय, ओ ईडी हे। आईटी, सीबीआई पुलिस घला हे ओकर संग मं। जेन मोटहा आसामी हे, जनता के धन ल लूट-लूट के खाय हे, भोभस मं भरे हे तेकर इहां घुसर-घुसर के छापा मारत हे। कोनो नेता, कोनेा मंतरी, कोनो उद्योगपति, व्यापारी, कलाकार एक ला नइ छोड़त हे। 

मैंहर देखे हौं- गिंधोल कस मोटाय ओ बेईमान, गरकट्टा, दोगला, पाखंडी मन ल अइसन ठठावत हे, धुर्रा छड़ावत हे के ओकर मन के हौसडा बंद होगे हे। सब ल जेल मं धांधत हे। एक नइ सुनत हे ककरो। एक झन नइ बता सकत हे के अतेक रुपिया, सोना-चांदी, जमीन-जायदाद, महल-अटारी, घोड़ा-गाड़ी कहां ले अउ कइसे अतेक जल्दी बटोर डरे हे?

ओहर बताथे- मैं सपना मं देखेंव, रिंग मास्टर जब ओला निरदेस देवत रिहिसे तब कनमटक नइ देवत रिहिसे फेर जब एक हंटर परिस ना तब हां जी मेरे आका काहत पंडाल (ऑफिस) ले बाहिर निकलिन अउ फाइल खोल-खोल के देखिन तब बड़े-बड़े भुंडा के नांव दिखिस। बिहानभर तड़ातड़ छापा कार्रवाई शुरू होगे। 

सरपंच ल बतावत कहिथे साल भर ले ऊपर होगे हे मालिक, तुमन कइसे नइ जानन, सुने हन कहिथौ- बड़े-बड़े सरकार कांपत हे, सरकस के चीता के नांव ल सुन के। सांड बरोबर खुल्ला ढिलाय हे जिहे पावत हे तिहे ल थुथरत हे दोरदिर ले ओइलाय हे। अतेक अखबार, टीवी चैनल मं फोटो सहित ओ सबो जिनिस ल देखावत हे जउन पकड़ावत जात हे।

सरपचं कहिथे- वाह बेटा मेहतरु, तब ये आय तोर सपना सरकस के। इही ला देख के तैं डर्रागेस रे?

- डर्राय के लइक बात हे मालिक। 

दूसर दिन ओकर गांव मं विधायक अउ मंतरी रहिथे तेकर घर ईडी के छापा परगे। पांच किलो सोना, कीमती जेवर, फर्जी लेनदेन, जमीन जायदाद के जांच शुरू होगे। एक झन नेता के घर मं करोड़ों के नगदी मिलिस। 

सब केहे ले धरलिन, मेहतरु किहिस तउन बात सहिच निकलगे। इही पाके ओहर चेतावत रिहिसे- भागव... भागव... भागव... फेर ओकर बात ऊपर कोनो धियान नइ देवत रिहिन हे। बइहा, पगला काहत रिहिन हे। वाजिब मं सपना घला कभू-कभू सच हो जथे भइया...।

परमानंद वर्मा

रविवार, 25 फ़रवरी 2024

तोला का भइगे लेडग़ी..?

 'सुनो भाई उधो'

समाज में अनेक तरह की विसंगतियां, बुराइयां होती है जिसको लेकर आपस में कहा-सुनी हो जाया करती है। दो के झगड़े में तीसरे को नफा अथवा नुकसान तो उठाना ही पड़ता है, इसलिए समझदारी इसी में होती है कि कोई भी इस तरह के मामलो में न पड़ें। लेकिन कुछ मामले ऐसे होते हैं जो भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं, और उससे बच पाना असंभव होता है। इसी तरह के मामले से संबंधित एक प्रेम कहानी है। प्रेमी-प्रेमिका किसी बात को लेकर झगड़ पड़ते हैं और उसका खामियाजा प्रेमिका की बेटी को उठाना पड़ता है। पढिय़े छत्तीसगढ़ी कहानी- ''तोला का भइगे लेडग़ी..?"

तैं काकर भभकी मं आगेस, अइसने कोनो करही, खाय बर देहस तउन थारी ल कोनो नंगाही, झटक के लेगही? का होगे तोला आज, अइसन तो नइ करत रेहे?

सतनारायन अकबका जथे, अंजनी के अइसन चाल ल देखके। ओहर कहिथे- तीन-चार दिन ले ताड़त हौं, तोला कइसे का बात होगे हे ते थोकन अनमने ढंग ले राहत हस। न पहिली जइसे हांस के, परेम के बोली-बात करत हस, सांप-डेडू, बिच्छी तो नइ काट दे हे। 

अंजनी न चिट करत हे न पोट, सतनारायण कुकुर असन अपने अपन हांव-हांव करत भूकत हे। पहिली तो देख, खाना दीस, तहां ले बाहिर पार, खोर दुआरी मं चल दीस अउ परोसिन संग लपर-लिपिर मारे ल धर लीस। पानी घला नइ दीस। जबकि खाना दे के पहिली हमर इहां रिवाज हे पानी पिढ़वा लगाथें। 

परोसिन करा ले कोन जनी का पाठ पढ़के अइस ते ओला पढ़ा दे गिस, आते साठ खाना खाय बर शुरू करत रेहेंव तउन थारी ल उठा के लेगे। 

सतनारायन हड़बड़ागे। ओकर कांही समझ नइ आवत हे कि माजरा का हे? ओहर कहिथे- अंजनी! 

ओहर टेडगा बानी मं कहिथे- झन काह मोला अंजनी, मरगे तोर बर ये अंजनी हा। नइ करत हौं तोला प्यार, हमर-तोर पिंयार  के नाटक इही तीर ले खतम। 

गंज करा धोवन के बरतन मं हाथ-मुंह धोके सतनारायन ओकर तीर मं आथे अउ कहिथे- अंजनी, तोर घर मैं बरपेली नइ आय हौं, ते बलाय रेहे, अमुक तारीख-तिथि, घड़ी मं आबे, मोर गोसइयां बिलासपुर गे हे। बने हांसबो, गोठियाबो, छेहेल्ला मारबो। अब जब तोर बलाय ऊपर ले आगेंव तब तोला का शनिच्चर धर लीस, बही-भुतही कस होगेस?

हां... हां... मैं बही-भूतही होगे हौं, शनिच्चर मोर ऊपर खपलागे हे, बस अतकेच ना, ते अउ कुछु केहे बर बांचे हे? 

सतनारायण ल वाजिब मं कुछु बात समझे नइ परत हे के आखिर एला हो कागे?

ओकर तीर मं जाके ओले पोटारे कस करथे तब घोड़ी हा जइसे घोड़ा ल छटारा मार के अपन तीर ले भगा देथे वइसने कस खेल अंजनी जब करिस तब सतनारायन सुकुरदुम होगे। एकर पहिली तो कभू अइसन नइ होय रिहिस हे? बने रासलीला में मगन हो जावत रिहिस हे दुनो झन। 

अंजनी अउ सतनारायन के बीच तो तीस-पैंतीस बछर ले ये परेम अउ रासलीला चलत आवत हे फेर कोनो अइसे आज तक नइ जान सके हे के ये दूनो झन के बीच मं कोनो खो-खो, फुगड़ी के खेल चलत आवत हे। दूनो झन लोग-लइका वाले हे, उमर खसल के अ्धिया गे हे फेर ओ खेल नइ छूटे हे। 

पहिली चिट्ठी-पतरी अउ फोन के जमाना रिहिसे, उही मं अपन गोठ-बात, मिलना-जुलना, होटल जाना, फिलिम देखा सब हो जात रिहिसे। जब ले इंटरनेट आय हे, मोबाइल आय हे तउन तो अउ सब सुविधा ल परोस दीस। रायपुर मं बइठे हे अउ लंदन, अमरीका, मुंबई, कोलकाता बात कर लेथे, फोटो समेत हांस-गोठिया लेथे आनी-बानी के। जइसन चरित्तर नहीं तइसन ये इंटरनेट अउ मोबाइल हा देखावत सुनावत हे। धुर्रा छोड़ावत हे। 

ओ दिन के घटना, सतनारायन ल बने नइ लगिस, जोरदार ठेस लगिस ओकर दिल मं, अंतस के पीरा ला उही जानही। तीस-पैंतीस साल के पिंयार का ला कहिथे?ओ दिन, ओ बात, ओ हंसी, ओ रात कइसे कोनो भुला जही?

का मन होइस ते सतनारायण के मन उचटगे अउ अंजनी ल ये काहत, तोर दर, तोर दिल अउ तोर घर ले मैं सदा दिन ले निकलके जाथौं, कभू मोर सुरता झन करबे, समझबे- कोनो आवारा, बदमाश, राहू-केतू जीवन मं आय रिहिसे तेकर ले मुक्ति पागेंव। 

सात-आठ महीना गुजरे ऊपर ले ससुराल ले अंजनी के बेटी मइके आय रहिथे तब अपन दाई ल पूछथे- सतनारायन कका के का हालचाल हे, पंदरही होगे मोला आये, एको दिन नजर नइ आइस, कहूं बाहिर गे हे का?

सतनारायन के नांव ल सुनिस तहां ले अंजनी के आंखी डहर ले आंसू झरे ले धर लेथे। बेटी पूछथे- का होगे दाई कका ला, गुजरगे का?

का बतावय अंजनी अपन बेटी ल सतनारायन के बारे मं के ओला का होगे? बताथे- कुछु नइ होय हे बेटी!

तब काबर नइ आवत हे, ओला आरो नइ करे हस का, के सतरूपा आय हे?

अंजनी अब चुप अउ खामोश, बक्का नइ फूटत हे के का काहय अउ नइ काहय?

सतरूपा कहिथे- नहीं दाई आज जाहूं ओकर घर अउ ओला बला के लाहूं, चल कका तोला दाई बलाय हे।

अंजनी समझाथे- नहीं सतरूपा, झन जाबे ओकर घर। 

-काबर, सतरूपा पूछथे?

अंजनी कुछु नइ बोलय, तब सतरूपा समझ जथे जरूर दाई अउ कका के बीच मं कांही बात ल लेके रंगझाझर माते होही, अनबन होगे होही?

सतरूप लम्बा सांस लेवत कहिथे- वाह कका, सतनारायन। तोर गोदी मं खेलेव, बढ़ेंव, तोर पिंयार-दुलार पायेंव, अब कोन हमला बाम्बे के मिठाई अउ बनारस के पेड़ा लान के खवाही?

परमानंद वर्मा