बहुत-से लोगों को है ईर्ष्या
जब तुम ठिठुरती ठंड में
सुबह की सैर पर जाते हो,
बिना स्वेटर के फुर्ती से
कदम ताल मिलाते हो।
जल उठते हैं सारे कि
क्या तुम्हें ठंड भी नहीं लगती?
पिछले साल ही तो इन्हीं दिनों में
जीवन-संघर्ष किया था तुमने
सारे ईर्ष्यालु इसके साक्षी हैं
इसलिए हैरत की लकीरें
इनके माथे पर बन आती है
कुछ तुम तक पहुँचती है
कुछ मुझसे जुड़ जाती है।
मुझे मालूम है,
ठंड तुमसे होकर गुजरती है
तुम्हारे पास बसेरा नहीं करती,
पर किसी और की नज़र में
दबंग बनोगे तो ईर्ष्यालु बन जाऊँगी मैं
जो गैरों की नज़र लगी तुम्हें
तो कैसे तुम्हें सम्हालूंगी मैं?
मेरे सुपरमैन, तुम हमारे पॉवरमैन हो
शक्तिस्रोत बनने के लिए,
इस ठिठुरती ठंड में
एक स्वेटर तो बनता है।
बेचारे स्वेटर ने क्या बिगाड़ा है,
पूरे साल भर बाद उसे भी तो
तुम्हारे नज़दीक आने का हक़ बनता है।
भारती परिमल
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