समय नें कृष्ण के बाद 5000 साल गुजार लिए हैं ... तो क्या अब बरसाने से राधा कृष्ण को नहीँ पुकारती होगी...?
बृज की गोपियों, दही बेचने वालियों नें कृष्ण को आवाज़ देनी बँद कर दी होगी ...?
भूखी प्यासी गायें क्या कृष्ण को याद कर नहीँ रम्भाती होगी अब...?
जमुना की वो मछलियाँ जो कृष्ण के पैरों से लिपट के खेलती थी क्या उन्होने कृष्ण को बिसार दिया होगा...?
क्या मीरा नें हाथ की मेहन्दी में कृष्ण का नाम लिख कर उनकी याद में रोना छोड़ दिया होगा...?
आखिर समय नें कृष्ण को क्यों नहीँ पुकारा होगा...?
क्या कृष्ण किसी एक युग,एक धर्म के थे, अगर नहीँ तो क्या बाद के युगों, धर्मों नें कृष्ण को नहीँ पुकारा होगा...?
कृष्ण की आवश्कता तो आज भी हैं... क्या आज कोई कंस नहीँ हैं...?
क्या कोई वासुदेव आज कैद में नहीँ हैं...?
क्या किसी देवकी की कोख आज नहीँ कुचली जाती...?
क्या द्रौपदी का चीर हरण नहीँ होता अब...?
क्या आज भी कालिया का फन कुचले जाने की आवश्कता नहीँ हैं...?
कंस की तानाशाही तो आज भी हैं, करोड़ों गालियाँ देने वाले शिशुपाल तो हर गली हर नुक्कड़ पर जिंदा घूम रहे है...
फ़िर क्यों नहीँ आते कृष्ण...?
शायद इसलिए क्योंकि आज कृष्ण हमारे लिए सिर्फ मूरत होकर, अगबत्ती दिखाने भर के लिए रह गए हैं... गोविंदा आला रे कह कर हुल्लड़ मचाना आसान है पर क्या वाकई हमने कृष्ण को अनुकरणीय समझा है...?
क्या हमने कृष्ण को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की है..? क्या हमने कृष्ण के गुणों का एक प्रतिशत भी खुद में आत्मसात किया है...?
कृष्ण वो शिखर हैं जहाँ पहुँच कर एक इंसान की मानव से ईश्वर बनने कि राह आरम्भ होती हैं... कृष्ण वो केन्द्र बिन्दु हैं जहाँ से ईश्वर की सत्ता शुरू होती हैं... कृष्ण उस ज्योतिर्मय लौ का नाम है जिसमें नृत्य है, गीत है, प्रीत है, समर्पण है, हास है, रास है और ज़रूरत पड़ने पर युध्द का शंखनाद भी है... जय श्रीराम, अल्लाह हो अकबर या लाल सलाम कह कर हथियार उठाने का मतलब कृष्ण होना नहीँ हैं, कृष्ण होने का मतलब हैं ताकत होने के बावजूद समर्पण भाव से मथुरा को बचाना, कृष्ण होने का मतलब है अपनी खुद की द्वारिका बसाना... कृष्ण राजा नहीँ थे, न ही उन्होंने राजा बनने के लिए कोई युद्ध लड़ा, फ़िर भी उनके एक इशारे पर हजारों राजमुकुट उनके चरणों में समर्पित हो सकते थे... कृष्ण महान योगी थे जिन्होने वासना को नहीँ जीवन रस को महत्व दिया... कृष्ण अकेले ऐसे व्यक्ति है जो ईश्वर की सत्ता की परम गहराई और परम ऊँचाई पर पहुँच कर भी आत्म्मुग्ध नहीँ थे... एक हाथ में बंसी और दूसरे हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर महाइतिहास रचने वाला कोई दूसरा व्यक्तिव नहीँ हुआ इस संसार में आज तक...
हम कहते है कृष्ण तुम्हें आना होगा.. कितने मासूम है हम जो आज भी कृष्ण के आने का इंतजार कर रहे है कि वो आयेंगे और हमारी लड़ाई लड़ेंगे, क्योंकि कृष्ण नें कहा था "यदा यदा हि धर्मस्य...", कृष्ण नें "कर्मण्येवाधिकारस्ते..." भी कहा था...कंस, जरासंध,पूतना और दुर्योधन जैसों के नाश के लिए कोई भी कृष्ण बन सकता है, तुम भी... कृष्ण किसी एक धर्म के नहीँ थे, जिस धर्म में भी धर्म और न्याय पीडित होंगे वहाँ न्याय दिलाने के लिए कोई न कोई कृष्ण ज़रूर खड़ा होगा...
कृष्ण क्या किसी और दुनियाँ से आएँगे, कृष्ण कब आयेंगे और कैसे... कृष्ण तो कहीँ गए ही नहीँ हैं, वो तो युगों युगों से यही है... माखन में मिश्री की तरह घुले है कृष्ण, मोर पंख की आँखों में है कृष्ण, बाँसुरी की तान में है कृष्ण, गाय चराते ग्वालो में हैं कृष्ण, जमुना की लहरों में है कृष्ण, कण कण में है कृष्ण,कण कण है कृष्ण... ज़रूरत उन्हे पहचानने की है... कृष्ण लुप्त नहीँ है वो तो अाज भी अपने विराट स्वरूप में सामने आ सकते हैं पर किसमे हिम्मत हैं अर्जुन होने की...?
कौन है जो अपने अतिप्रिय बंधु बान्धवों के विरोध के बावजूद न्याय के साथ खड़ा हो सके...
कौन है जो किसी द्रौपदी का सम्मान स्थापित करने के लिए अपने माथे पर सहर्ष कलंक को धारण कर सके...?
बृज की गोपियों, दही बेचने वालियों नें कृष्ण को आवाज़ देनी बँद कर दी होगी ...?
भूखी प्यासी गायें क्या कृष्ण को याद कर नहीँ रम्भाती होगी अब...?
जमुना की वो मछलियाँ जो कृष्ण के पैरों से लिपट के खेलती थी क्या उन्होने कृष्ण को बिसार दिया होगा...?
क्या मीरा नें हाथ की मेहन्दी में कृष्ण का नाम लिख कर उनकी याद में रोना छोड़ दिया होगा...?
आखिर समय नें कृष्ण को क्यों नहीँ पुकारा होगा...?
क्या कृष्ण किसी एक युग,एक धर्म के थे, अगर नहीँ तो क्या बाद के युगों, धर्मों नें कृष्ण को नहीँ पुकारा होगा...?
कृष्ण की आवश्कता तो आज भी हैं... क्या आज कोई कंस नहीँ हैं...?
क्या कोई वासुदेव आज कैद में नहीँ हैं...?
क्या किसी देवकी की कोख आज नहीँ कुचली जाती...?
क्या द्रौपदी का चीर हरण नहीँ होता अब...?
क्या आज भी कालिया का फन कुचले जाने की आवश्कता नहीँ हैं...?
कंस की तानाशाही तो आज भी हैं, करोड़ों गालियाँ देने वाले शिशुपाल तो हर गली हर नुक्कड़ पर जिंदा घूम रहे है...
फ़िर क्यों नहीँ आते कृष्ण...?
शायद इसलिए क्योंकि आज कृष्ण हमारे लिए सिर्फ मूरत होकर, अगबत्ती दिखाने भर के लिए रह गए हैं... गोविंदा आला रे कह कर हुल्लड़ मचाना आसान है पर क्या वाकई हमने कृष्ण को अनुकरणीय समझा है...?
क्या हमने कृष्ण को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की है..? क्या हमने कृष्ण के गुणों का एक प्रतिशत भी खुद में आत्मसात किया है...?
कृष्ण वो शिखर हैं जहाँ पहुँच कर एक इंसान की मानव से ईश्वर बनने कि राह आरम्भ होती हैं... कृष्ण वो केन्द्र बिन्दु हैं जहाँ से ईश्वर की सत्ता शुरू होती हैं... कृष्ण उस ज्योतिर्मय लौ का नाम है जिसमें नृत्य है, गीत है, प्रीत है, समर्पण है, हास है, रास है और ज़रूरत पड़ने पर युध्द का शंखनाद भी है... जय श्रीराम, अल्लाह हो अकबर या लाल सलाम कह कर हथियार उठाने का मतलब कृष्ण होना नहीँ हैं, कृष्ण होने का मतलब हैं ताकत होने के बावजूद समर्पण भाव से मथुरा को बचाना, कृष्ण होने का मतलब है अपनी खुद की द्वारिका बसाना... कृष्ण राजा नहीँ थे, न ही उन्होंने राजा बनने के लिए कोई युद्ध लड़ा, फ़िर भी उनके एक इशारे पर हजारों राजमुकुट उनके चरणों में समर्पित हो सकते थे... कृष्ण महान योगी थे जिन्होने वासना को नहीँ जीवन रस को महत्व दिया... कृष्ण अकेले ऐसे व्यक्ति है जो ईश्वर की सत्ता की परम गहराई और परम ऊँचाई पर पहुँच कर भी आत्म्मुग्ध नहीँ थे... एक हाथ में बंसी और दूसरे हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर महाइतिहास रचने वाला कोई दूसरा व्यक्तिव नहीँ हुआ इस संसार में आज तक...
हम कहते है कृष्ण तुम्हें आना होगा.. कितने मासूम है हम जो आज भी कृष्ण के आने का इंतजार कर रहे है कि वो आयेंगे और हमारी लड़ाई लड़ेंगे, क्योंकि कृष्ण नें कहा था "यदा यदा हि धर्मस्य...", कृष्ण नें "कर्मण्येवाधिकारस्ते..." भी कहा था...कंस, जरासंध,पूतना और दुर्योधन जैसों के नाश के लिए कोई भी कृष्ण बन सकता है, तुम भी... कृष्ण किसी एक धर्म के नहीँ थे, जिस धर्म में भी धर्म और न्याय पीडित होंगे वहाँ न्याय दिलाने के लिए कोई न कोई कृष्ण ज़रूर खड़ा होगा...
कृष्ण क्या किसी और दुनियाँ से आएँगे, कृष्ण कब आयेंगे और कैसे... कृष्ण तो कहीँ गए ही नहीँ हैं, वो तो युगों युगों से यही है... माखन में मिश्री की तरह घुले है कृष्ण, मोर पंख की आँखों में है कृष्ण, बाँसुरी की तान में है कृष्ण, गाय चराते ग्वालो में हैं कृष्ण, जमुना की लहरों में है कृष्ण, कण कण में है कृष्ण,कण कण है कृष्ण... ज़रूरत उन्हे पहचानने की है... कृष्ण लुप्त नहीँ है वो तो अाज भी अपने विराट स्वरूप में सामने आ सकते हैं पर किसमे हिम्मत हैं अर्जुन होने की...?
कौन है जो अपने अतिप्रिय बंधु बान्धवों के विरोध के बावजूद न्याय के साथ खड़ा हो सके...
कौन है जो किसी द्रौपदी का सम्मान स्थापित करने के लिए अपने माथे पर सहर्ष कलंक को धारण कर सके...?
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