भारत के लोग साल में दो तीन बार नया साल मनाते हैं इसका कारण यहाँ पाए जाने वाले कैलेंडरों की विविधता है । इसके अलावा तीज त्योहार भी कई तरह से मनाते हैं ।
तीज - त्योहारों की बात आई है तो सबसे पहले चाँद के कैलेण्डर के बारे में बात करना ज़रूरी है । यह तो आप जानते ही होंगे कि हिन्दू धर्म के अलावा इस्लाम में भी सारे त्योहार चांद के घटने - बढ़ने पर ही आधारित होते हैं।
इसका कारण यह है कि मनुष्य ने सबसे पहले आकाश में चाँद को घटते बढ़ते देखा । सूरज तो रोज एक जैसा ही दिखता था । इसलिए चांद का कैलेंडर ही मनुष्य का पहला कैलेंडर बना।
आपको ज्ञात होगा कि बहुत सारे तीज त्यौहार चाँद पर ही आधारित हैं ।
चाँद का वर्ष 354-355 दिनों का होता है जबकि सूरज का साल यानि सौर वर्ष 365-366 दिनों का होता है ।
दोनों कैलेण्डर में 10-11 दिनों का अंतर है । हम मकर संक्रांति हर साल 14-15 जनवरी को मनाते हैं क्योंकि यह सूर्य के केलेंडर पर आधारित है लेकिन चाँद पर आधारित कैलेण्डर में ईद और दीवाली हर साल 10 दिन पहले आ जाती है । बल्कि हर त्योहार दस दिन पहले आता है ।
जैसे दीवाली
2012 में 13 नवम्बर को आई थी ।
2013 में 3 नवम्बर को आई थी ।
2014 में 23 अक्टूबर को आई थी ।
देखिये सभी में 10-11 दिन कम होते गए , इस घटते क्रम से इसे
2015 में 12 या 13 अक्तूबर को आना था लेकिन 2015 में यह 2012 की दीवाली से मिलती -जुलती तारीख 11 नवम्बर को आई ।
आप देख। सकते हैं कि प्रत्येक दिवाली में 354-355 दिन का अंतर है ।
ऐसा क्यों हुआ?
इसका कारण यह है कि चन्द्र वर्ष में 354 दिनों बाद आने के कारण जनवरी -दिसम्बर वाले 365 दिनों वाले कैलेंडर की तुलना में हर पर्व में प्रतिवर्ष 10-11 दिन कम होते जाते हैं और फिर तीन साल बाद जब एक माह के 30-31 दिन जमा हो जाते हैं हर चौथे साल में 1 माह जोड़ दिया जाता है ,इसे अधिक मास या खर मास कहते हैं । इस तरह चाँद का कैलेंडर फिर सूरज के कैलेंडर के अनुसार चलने लगता है ।
और फिर यह क्रम अगले तीन साल तक चलता है । लेकिन हिजरी केलेंडर में तीन साल बाद एक माह नहीं जोड़ा जाता इसलिए ईद हर साल 10-11 दिन पहले आ जाती है । जैसे 2012 में 20 अगस्त को आई , 2013 में 9 अगस्त को आई , 2014 में 29 जुलाई ,2015 में 19 जुलाई , और 2016 में 8 जुलाई को आई । अगले साल फिर इसमें दस या ग्यारह दिन कम हो जायेंगे । अर्थात यहाँ भी दो त्योहारों में 354 दिन का अंतर है ।
ऐसा कैसे हुआ?
यह कुछ इस तरह हुआ कि डेढ़ हजार साल पहले जब हिजरी कैलेण्डर बना तब हजरत पैगम्बर ने एक बैठक ली और तय किया कि सूर्य के कैलेण्डर की तुलना में वे हर साल इस कैलेण्डर में दस दिन कम करते जायेंगे । ऐसा कुरआन में उल्लेख है । यह उनकी अपनी व्यवस्था थी और इसमें अन्य किसी धर्म से प्रतिद्वंद्विता या उसका हस्तक्षेप नही था । हिन्दू भी 354 दिन का ही कैलेण्डर मानते हैं , बस हर तीन साल पर उसे सूरज के हिसाब से एडजस्ट कर देते हैं । इसका कारण यह भी है कि यह व्यवस्था कृषि पर आधारित है । अरब में कृषि आधारित नही थी सो उन्हें ज़रूरत नही पड़ी ।
कैलेण्डर की यह व्यवस्था अलग अलग भूभागों में रहने वाले हमारे पूर्वजों द्वारा की गई है और अब तक उसका पालन हो रहा है । हिन्दू हों या मुस्लिम हम धार्मिक त्योहारों में चाँद के कैलेण्डर का इस्तेमाल करते हैं । और इसमें कोई मतभेद नही है ।
दूसरी ओर हम सभी अपनी भौतिक जीवन शैली के अनुसार ग्रेगोरियन यानि सूर्य के कैलेण्डर का इस्तेमाल करते हैं । जन्मदिन सूर्य के कैलेंडर से मनाते हैं , यात्रा की तारीख सूर्य के कैलेंडर से तय होती है , बच्चों की परीक्षाओं का टाइम टेबल सूर्य के कैलेंडर से बनता है आदि आदि । यह सब सरलता से चलता रहता है और कहीं कोई विरोध नही होता ।
दुनिया के सारे धर्मो के लोगों के लिए चाँद और सूरज एक हैं , ऐसा नही हो सकता कि हम अपने अपने चाँद सूरज पैदा कर लें । फिर भी हमने उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार बांट लिया है । चाँद सूरज तो भौतिकीय परिघटना के अनुसार पैदा हुए लेकिन हमने अपने हिसाब से उनके जन्म की अलग अलग कथा गढ़ ली ।
जब प्रकृति सब के लिए एक जैसी है ,चाँद सूरज सबके लिए एक जैसे हैं , ग्रह नक्षत्र सबके लिए एक जैसे हैं तो फिर क्यों हम लोग आजकल अपने बनाये धर्म के नाम पर अपने अपने देवी देवता , पूजा पद्धति , परम्परा , रीति रिवाज , कर्म काण्ड और तीज त्योहारों को लेकर आपस में लड़ते रहते हैं ?
*यह उनका नया साल है , यह हमारा नया साल है ,यह उनका त्योहार है यह हमारा त्योहार है , यह उनका खानपान है यह हमारा खानपान है , यह उनकी वेशभूषा है , यह हमारी वेशभूषा है..
क्या है यह सब? क्यों है यह सब?
मान लीजिए अगर हम लोगों की लड़ाई देखकर जिस दिन चाँद सूरज निकलना बंद कर देंगे , सब समझ में आ जायेगा । धरा रह जायेगा , यह मेरा धरम यह तेरा धरम मिट जाएगा सारा भरम ।
(घबड़ाये नहीं ऐसा नही होगा यह सिर्फ कवि कल्पना है ।)
😀😀
(मगर एक दिन हम मनुष्य लोग आपस मे धर्म , तीज त्योहार , परम्परा आदि के नाम पर लड़ते हुए पूरी तरह खत्म हो जाएंगे ..यह कवि कल्पना नहीं है ।)
😧😧😧😧
शरद कोकास
की शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक
मस्तिष्क की सत्ता से
8871665060
तीज - त्योहारों की बात आई है तो सबसे पहले चाँद के कैलेण्डर के बारे में बात करना ज़रूरी है । यह तो आप जानते ही होंगे कि हिन्दू धर्म के अलावा इस्लाम में भी सारे त्योहार चांद के घटने - बढ़ने पर ही आधारित होते हैं।
इसका कारण यह है कि मनुष्य ने सबसे पहले आकाश में चाँद को घटते बढ़ते देखा । सूरज तो रोज एक जैसा ही दिखता था । इसलिए चांद का कैलेंडर ही मनुष्य का पहला कैलेंडर बना।
आपको ज्ञात होगा कि बहुत सारे तीज त्यौहार चाँद पर ही आधारित हैं ।
चाँद का वर्ष 354-355 दिनों का होता है जबकि सूरज का साल यानि सौर वर्ष 365-366 दिनों का होता है ।
दोनों कैलेण्डर में 10-11 दिनों का अंतर है । हम मकर संक्रांति हर साल 14-15 जनवरी को मनाते हैं क्योंकि यह सूर्य के केलेंडर पर आधारित है लेकिन चाँद पर आधारित कैलेण्डर में ईद और दीवाली हर साल 10 दिन पहले आ जाती है । बल्कि हर त्योहार दस दिन पहले आता है ।
जैसे दीवाली
2012 में 13 नवम्बर को आई थी ।
2013 में 3 नवम्बर को आई थी ।
2014 में 23 अक्टूबर को आई थी ।
देखिये सभी में 10-11 दिन कम होते गए , इस घटते क्रम से इसे
2015 में 12 या 13 अक्तूबर को आना था लेकिन 2015 में यह 2012 की दीवाली से मिलती -जुलती तारीख 11 नवम्बर को आई ।
आप देख। सकते हैं कि प्रत्येक दिवाली में 354-355 दिन का अंतर है ।
ऐसा क्यों हुआ?
इसका कारण यह है कि चन्द्र वर्ष में 354 दिनों बाद आने के कारण जनवरी -दिसम्बर वाले 365 दिनों वाले कैलेंडर की तुलना में हर पर्व में प्रतिवर्ष 10-11 दिन कम होते जाते हैं और फिर तीन साल बाद जब एक माह के 30-31 दिन जमा हो जाते हैं हर चौथे साल में 1 माह जोड़ दिया जाता है ,इसे अधिक मास या खर मास कहते हैं । इस तरह चाँद का कैलेंडर फिर सूरज के कैलेंडर के अनुसार चलने लगता है ।
और फिर यह क्रम अगले तीन साल तक चलता है । लेकिन हिजरी केलेंडर में तीन साल बाद एक माह नहीं जोड़ा जाता इसलिए ईद हर साल 10-11 दिन पहले आ जाती है । जैसे 2012 में 20 अगस्त को आई , 2013 में 9 अगस्त को आई , 2014 में 29 जुलाई ,2015 में 19 जुलाई , और 2016 में 8 जुलाई को आई । अगले साल फिर इसमें दस या ग्यारह दिन कम हो जायेंगे । अर्थात यहाँ भी दो त्योहारों में 354 दिन का अंतर है ।
ऐसा कैसे हुआ?
यह कुछ इस तरह हुआ कि डेढ़ हजार साल पहले जब हिजरी कैलेण्डर बना तब हजरत पैगम्बर ने एक बैठक ली और तय किया कि सूर्य के कैलेण्डर की तुलना में वे हर साल इस कैलेण्डर में दस दिन कम करते जायेंगे । ऐसा कुरआन में उल्लेख है । यह उनकी अपनी व्यवस्था थी और इसमें अन्य किसी धर्म से प्रतिद्वंद्विता या उसका हस्तक्षेप नही था । हिन्दू भी 354 दिन का ही कैलेण्डर मानते हैं , बस हर तीन साल पर उसे सूरज के हिसाब से एडजस्ट कर देते हैं । इसका कारण यह भी है कि यह व्यवस्था कृषि पर आधारित है । अरब में कृषि आधारित नही थी सो उन्हें ज़रूरत नही पड़ी ।
कैलेण्डर की यह व्यवस्था अलग अलग भूभागों में रहने वाले हमारे पूर्वजों द्वारा की गई है और अब तक उसका पालन हो रहा है । हिन्दू हों या मुस्लिम हम धार्मिक त्योहारों में चाँद के कैलेण्डर का इस्तेमाल करते हैं । और इसमें कोई मतभेद नही है ।
दूसरी ओर हम सभी अपनी भौतिक जीवन शैली के अनुसार ग्रेगोरियन यानि सूर्य के कैलेण्डर का इस्तेमाल करते हैं । जन्मदिन सूर्य के कैलेंडर से मनाते हैं , यात्रा की तारीख सूर्य के कैलेंडर से तय होती है , बच्चों की परीक्षाओं का टाइम टेबल सूर्य के कैलेंडर से बनता है आदि आदि । यह सब सरलता से चलता रहता है और कहीं कोई विरोध नही होता ।
दुनिया के सारे धर्मो के लोगों के लिए चाँद और सूरज एक हैं , ऐसा नही हो सकता कि हम अपने अपने चाँद सूरज पैदा कर लें । फिर भी हमने उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार बांट लिया है । चाँद सूरज तो भौतिकीय परिघटना के अनुसार पैदा हुए लेकिन हमने अपने हिसाब से उनके जन्म की अलग अलग कथा गढ़ ली ।
जब प्रकृति सब के लिए एक जैसी है ,चाँद सूरज सबके लिए एक जैसे हैं , ग्रह नक्षत्र सबके लिए एक जैसे हैं तो फिर क्यों हम लोग आजकल अपने बनाये धर्म के नाम पर अपने अपने देवी देवता , पूजा पद्धति , परम्परा , रीति रिवाज , कर्म काण्ड और तीज त्योहारों को लेकर आपस में लड़ते रहते हैं ?
*यह उनका नया साल है , यह हमारा नया साल है ,यह उनका त्योहार है यह हमारा त्योहार है , यह उनका खानपान है यह हमारा खानपान है , यह उनकी वेशभूषा है , यह हमारी वेशभूषा है..
क्या है यह सब? क्यों है यह सब?
मान लीजिए अगर हम लोगों की लड़ाई देखकर जिस दिन चाँद सूरज निकलना बंद कर देंगे , सब समझ में आ जायेगा । धरा रह जायेगा , यह मेरा धरम यह तेरा धरम मिट जाएगा सारा भरम ।
(घबड़ाये नहीं ऐसा नही होगा यह सिर्फ कवि कल्पना है ।)
😀😀
(मगर एक दिन हम मनुष्य लोग आपस मे धर्म , तीज त्योहार , परम्परा आदि के नाम पर लड़ते हुए पूरी तरह खत्म हो जाएंगे ..यह कवि कल्पना नहीं है ।)
😧😧😧😧
शरद कोकास
की शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक
मस्तिष्क की सत्ता से
8871665060
इस हिसाब से तो नया साल १ जनवरी को ही सही लगता है, ३६५ -३६६ दिन बाद जो हर साल आ जाता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी