सुख से कट्टी रही हमारी
दुःख से लेकिन पक्की यारी
सुख सपने में आ कर ठगते
दुःख आये पर बारी-बारी
हमको तकलीफों ने पाला
हम तो हैं इनके आभारी
झुकना सीख नहीं पाये हम
नहीं आ सकी अपनी पारी
जो सच्चे थे साथ रहे वे
झूठे सब हो गए सरकारी
कविता अपने लिए साधना
उनको लगती है तरकारी
हम भी यहाँ सफल हो जाते
बस आती थोड़ी मक्कारी
बेचारा वो पिछड़ गया है
क्यों पाला तेवर खुद्दारी
तिल-तिल ही जोड़ा है पंकज
यहां नहीं है माल उधारी
गिरीश पंकज, रायपुर
दुःख से लेकिन पक्की यारी
सुख सपने में आ कर ठगते
दुःख आये पर बारी-बारी
हमको तकलीफों ने पाला
हम तो हैं इनके आभारी
झुकना सीख नहीं पाये हम
नहीं आ सकी अपनी पारी
जो सच्चे थे साथ रहे वे
झूठे सब हो गए सरकारी
कविता अपने लिए साधना
उनको लगती है तरकारी
हम भी यहाँ सफल हो जाते
बस आती थोड़ी मक्कारी
बेचारा वो पिछड़ गया है
क्यों पाला तेवर खुद्दारी
तिल-तिल ही जोड़ा है पंकज
यहां नहीं है माल उधारी
गिरीश पंकज, रायपुर