कोंडागाँव।
सुप्रसिद्ध धातुशिल्पी डॉ. जयदेव बघेल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर
केन्द्रित पुस्तक "धातुशिल्पी डॉ. जयदेव बघेल एक शिखर यात्रा" तथा "बस्तर
की आदिवासी एवं लोक हस्तशिल्प परम्परा" शीर्षक दो पुस्तकों का लोकार्पण
रविवार 08 मार्च को शिल्पी ग्राम, कोंडागाँव में हुआ। इन पुस्तकों को
लोकार्पित किया स्व. जयदेव बघेल की धर्मपत्नी श्रीमती लता बघेल ने। दोनों
ही पुस्तकों के लेखक हैं हरिहर वैष्णव और प्रकाशक हैं राधाकृष्ण प्रकाशन,
नयी दिल्ली। इस अवसर पर मुम्बई से आयीं सुप्रसिद्ध मूर्तिकार नवजोत अल्ताफ,
दिल्ली से आयीं प्रसिद्ध चित्रकार सुमिता गौतम और फ्रांस से आये संगीत
विश्लेषक डॉ. निकोलस प्रिवो विशेष रूप से उपस्थित थे।
कार्यक्रम के आरम्भ में हरिहर वैष्णव ने अपनी दोनों पुस्तकों के विषय में संक्षेप में प्रकाश डालते हुए बताया कि पहली पुस्तक में जहाँ धातुशिल्पी जयदेव बघेल की जीवन एवं कला-यात्रा के विषय में विस्तार से लिखा गया है वहीं दूसरी पुस्तक में बस्तर की घड़वा, लौह, मृत्तिका, बुनकर, काष्ठ, मृदा, लोकचित्र, बाँस, एवं कौड़ी शिल्प के इतिहास एवं परम्परा पर विस्तार से चर्चा की गयी है। क्रम को आगे बढ़ाते हुए हिन्दी एवं हल्बी के सुपरिचित रचनाकार यशवंत गौतम ने हल्बी में सम्बोधित करते हुए स्व. जयदेव बघेल के साथ वर्षों तक बिताये गये क्षणों का स्मरण किया। इसी तरह छत्तीसगढ़ी एवं हिन्दी के रचनाकार हरेन्द्र यादव ने भी अपनी यादें साझा कीं। निकोलस प्रिवो ने भी जयदेव बघेल के विषय में अपने विचार रखे और नवजोत अल्ताफ ने जयदेव बघेल की कला-यात्रा के विषय में विस्तार से प्रकाश डाला। कार्यक्रम में द्वारिका प्रसाद सिन्हा ने भी अपने अनुभव बताये। कार्यक्रम के अंत में मनोज सागर ने आमंत्रितों का आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम के आरम्भ में हरिहर वैष्णव ने अपनी दोनों पुस्तकों के विषय में संक्षेप में प्रकाश डालते हुए बताया कि पहली पुस्तक में जहाँ धातुशिल्पी जयदेव बघेल की जीवन एवं कला-यात्रा के विषय में विस्तार से लिखा गया है वहीं दूसरी पुस्तक में बस्तर की घड़वा, लौह, मृत्तिका, बुनकर, काष्ठ, मृदा, लोकचित्र, बाँस, एवं कौड़ी शिल्प के इतिहास एवं परम्परा पर विस्तार से चर्चा की गयी है। क्रम को आगे बढ़ाते हुए हिन्दी एवं हल्बी के सुपरिचित रचनाकार यशवंत गौतम ने हल्बी में सम्बोधित करते हुए स्व. जयदेव बघेल के साथ वर्षों तक बिताये गये क्षणों का स्मरण किया। इसी तरह छत्तीसगढ़ी एवं हिन्दी के रचनाकार हरेन्द्र यादव ने भी अपनी यादें साझा कीं। निकोलस प्रिवो ने भी जयदेव बघेल के विषय में अपने विचार रखे और नवजोत अल्ताफ ने जयदेव बघेल की कला-यात्रा के विषय में विस्तार से प्रकाश डाला। कार्यक्रम में द्वारिका प्रसाद सिन्हा ने भी अपने अनुभव बताये। कार्यक्रम के अंत में मनोज सागर ने आमंत्रितों का आभार व्यक्त किया।
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