गुरुवार, 17 मार्च 2016

नींद में कमी और उसका स्वास्थ्य पर प्रभाव


पैराडाइज़ लॉस्ट में जॉन मिल्टन पूछते हैं कि रात का नींद के साथ क्या सम्बंध है? कई सदियों पहले से हम मनुष्य भोर के साथ जागते हैं वैसे ही जैसे जानवरों की भोर के साथ शुरुआत होती है। हम सुबह सूरज के साथ जागते हैं और जैसे-जैसे रात गहराती है हम उसके साथ सोते हैं। धरती पर दूसरे स्तनधारियों के समान यह व्यवस्था हमें विकास के साथ मिली है। नींद की सामान्य अवधि 6-8 घंटों की होती है और ज़्यादातर रात के समय होती है। वैसे खाने के बाद की अल्प-निद्रा का भी लुत्फ भी लिया जाता है, ज़्यादातर बुज़ुर्गों द्वारा, जो अब दिन के समय कहीं कार्यरत नहीं हैं। 
यह केवल हाल के दशकों की बात है कि इस दिनचर्या के साथ समझौता किया गया है: रात की पाली, 24 घंटों की सुरक्षा की नौकरी, फौज के जवानों, और 24न्7 कॉल सेंटर वगैरह के मामले में। इन सबमें नींद के पैटर्न में फेरबदल हुआ और स्वास्थ्य के साथ समझौता किया गया। नींद के अभाव और उसके स्वास्थ्य पर असर को लेकर कई शोध किए गए हैं। मशहूर विज्ञान पत्रिका दी साइंटिस्ट में नींद, उसकी भूमिका, अपर्याप्त नींद या असमय नींद के प्रभावों पर लेखों की श्रृंखला प्रकाशित हुई है। मनुष्यों के लिए, अभी तक 6-8 घंटों की नींद पर आम सहमति है। आम तौर पर यह रात के समय होनी चाहिए (वैसे रात-पाली के कर्मचारी दिन के समय इतनी ही अवधि की नींद का आनंद ले सकते हैं)। लेखक विल्सन मेज़ेनर चुटकी लेते हैं कि “एक औसत व्यक्ति को बस पांच मिनट और नींद चाहिए होती है।” (दूसरी तरफ कई लोग हैमलेट में शेक्सपीयर की बात का हवाला एक अनुमोदन और वांछनीयता के रूप में देते हैं कि नींद सपने देखने की संभावना होती है। हालांकि हैमलेट के लिए ये कथन इसके एकदम विपरीत है, नींद मतलब मृत्यु और सपने का मतलब दुखों का अंत करने का एक अच्छा मौका।) वास्तव में नींद की कमी के अत्यधिक खराब परिणाम हो सकते हैं। नींद शरीर की मशीनरी के लिए आराम और बहाली का समय होता है जब शरीर जागृत अवस्था की गतिविधियों में खर्च हुई ऊर्जा को बहाल करता है। अपर्याप्त नींद और अपर्याप्त आराम मेटाबॉलिज़्म, हृदय के कामकाज, संज्ञान और मस्तिष्क की गतिविधि को प्रभावित करती है। शिकागो के नींद से सम्बंधित शोधकर्ता का कहना है कि हम नींद के अभाव के लिए नहीं बने हैं। हर बार जब हम अपने आपको वंचित करते हैं, चीज़ें बिगड़ जाती हैं। अपर्याप्त नींद के कारण मस्तिष्क के कॉर्टेक्स (मस्तिष्क का वह भाग जो कि सोचने और क्रिया से जुड़ा है), हिप्पोकैम्पस (याददाश्त और संवेदना से जुड़ा), और अग्र मस्तिष्क (जो संज्ञान, देखने, सुनने और संवेदना से जुड़ा है) में अनियमित गतिविधि पाई गई। जैव-रासायनिक शोध से अग्र मस्तिष्क की गतिविधि में एडिनोसिन नामक अणु (ऊर्जा के वाहक अणु एटीपी, और डीएनए व आरएनए का प्रमुख घटक) की महत्वपूर्ण भूमिका उजागर हुई है।
हार्वर्ड के डॉ. रॉबर्ट मैककार्ले ने बिल्लियों के साथ शोध में पाया कि उनके अग्र मस्तिष्क में एडिनोसिन प्रविष्ट कराने से वे सो गईं। एडिनोसिन ने क्या किया यह सचमुच एक खुला सवाल है। लेकिन डॉ. कैरी ग्रेन्स ने न्यू साइंटिस्ट में इसके बारे में लिखा है कि कॉफी पीने से नींद बाधित होती है क्योंकि कॉफी में मौजूद कैफीन एडिनोसिन की क्रिया में बाधा पहुंचाता है। अन्य अध्ययनों से पता चलता है कि लंबे समय तक नींद में कमी से चयापचय विकार उत्पन्न होते हैं - वह व्यक्ति मोटापे, मधुमेह की आशंका और यहां तक कि याददाश्त की परेशानी से ग्रसित हो सकता है। रातपाली, एयरलाइन्स स्टाफ और 24न्7 काम करने वालों के लिए अच्छी खबर यह है कि नींद में कमी या अपर्याप्त नींद के असर अस्थायी होते हैं। लेकिन पूरे मेटाबॉलिक और संज्ञान स्वास्थ्य के लिए हर 24 घंटों में 6-8 घंटों का नींद का चक्र होना आवश्यक है। हम मनुष्य इस पृथ्वी ग्रह पर कई स्तनधारियों के बाद में आए हैं। फिर बिल्लियों, कुत्तों, हाथियों, शेरों और दूसरों के बारे में क्या? वे भी अपने सोने-जागने
के चक्र को नियमित करते हैं हालांकि ज़रूरी नहीं कि उन्हें एकमुश्त 6-8 घंटों की नींद की ज़रूरत हो। लेकिन अभी तक हमारे पास उनके सोने के पैटर्न के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। कई जानवरों में दो तरह की नींद का पैटर्न होता है: पहला जिसमें नींद के दौरान तेज़ी से आंखों का हिलना- डुलना होता है (जिसे आरईएम नींद कहते हैं), जबकि दूसरे में आंखों का हिलना-डुलना धीमा होता है। आरईएम नींद के दौरान, वास्तव में जानवरों में जागने के समान पैटर्न दिखता है जिसका सम्बंध उच्च कॉर्टिकल एक्टिविटी से होता है। सोते हुए कुत्ते को देखिए। वह पूरे दिन रुक-रुककर सोता है। वह लंबे समय तक आराम करता रहता है, मगर छोटे-मोटे खलल के प्रति सचेत रहता है और प्रतिक्रिया देता है। इस संदर्भ में एक सिद्धांत है जो बताता है कि कोई जानवर कितना भोजन लेता है उसका सम्बंध उसकी नींद की अवधि से होता है। नेचर पत्रिका के 2005 के अंक में एक पर्चा प्रकाशित हुआ था जिसमें बताया गया था कि हाथी और जिराफ जैसे शाकाहारी जीव अन्य शाकाहारियों के मुकाबले अपना ज़्यादा समय चबाने और खाने में लगाते है जबकि वे जो भोजन लेते हैं उसमें ऊर्जा की मात्रा काफी कम होती है। जिसके चलते उनकी नींद के समय में कटौती होती है। जबकि दूसरी तरफ शेर (मांसाहारी) अपने शिकार को खाने के बाद ज़्यादा लंबे समय तक सोते हैं लगभग 14 घंटे प्रतिदिन। यह सिद्धांत हमें एक दिलचस्प सवाल की ओर ले जाता है। क्या शाकाहारी जीव मांसाहारियों से कम सोते हैं? यह बहुत दिलचस्प होगा कि एक तरफ हम शाकाहारियों के नींद के पैटर्न की तुलना रोज़ाना मांस खाने वालों के नींद पैटर्न से करें। यह कॉलेज छात्रों के लिए प्रोजेक्ट हो सकता है। इससे नेचर पत्रिका में प्रकाशित पर्चे की जांच की जा सकेगी। (स्रोत फीचर्स) 
 डी. बालसुब्रमण्यन

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