इंडियन इंस्टीट्यटू
आफॅ साइन्स के शोधकर्ताओं ने चूहों पर किए गए प्रयागों में
पाया है कि लहसून का तेल मलेरिया की एक दवाई के असर को बढ़ा देता है। जब मलेरिया की दवाई आर्टीमिसिन के साथ लहसून का तेल भी दिया गया तो चूहे मलेरिया से पूरी तरह सुरक्षित रहे। इन प्रयोगों के आधार पर मलेरिया की नई दवा तैयार करने की उम्मीद जताई जा रही है। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में मलेरिया
परजीवी (प्लाज़मोडियम) क्लारे क्विन समेत कर्इ प्रचलित दवाइयों का प्रतिरोध हो चला है। आजकल मलेरिया
के उपचार के लिए आर्टिमिसिन व
कुछ अन्य दवाइयों का उपयोग किया जाता
है मगर वे महंगी व विषैली हैं। लिहाज़ा
नई दवा खोजना एक महती ज़रूरत है। एक सस्ती व प्रभावी दवा की तलाश में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइन्स के वी पी गोविंदन और उनके साथियों ने लहसून के तेल और आर्टीथर (आर्टिमिसिन का एक कृत्रिम रूप) के मलेरिया-रोधी गुणों की पहले अलग- अलग जांच की और उसके बाद इनके विभिन्न मिश्रणों की जांच की गई। जांच प्लाज़्मोडियम से संक्रमित चूहों पर की गई थी। जिन
सक्रंमित चूहों
को कार्इे उपचार नहीं
दिया गया वे तो चार दिन में मारे गए।
लहसून के तेल से उपचारित संक्रमित चूहे एक सप्ताह तक जीवित रहे
जबकि आर्टीथर के इलाज ने सक्रंमित चूहों को तीन सप्ताह तक जीवित रखा। जिन संक्रमित चूहों को लहसून के तेल और
आर्टीथर का मिश्रण दिया गया था
उनमें मलेरिया
परजीवी का पूरी
तरह सफाया हो गया। और तो और, बायोकेमिस्ट्री एंड बायोफिज़िक्स शोध पत्रिका में प्रकाशित उनके शोध पत्र के अनुसार लहसून के तेल और आर्टीथर के मिश्रण से उपचार के बाद वे चूहे मलेरिया के भावी हमले के खिलाफ भी सुरक्षित रहे। शोधकर्ताओं के मुताबिक लहसून के तेल में एलिसिन नामक सूक्ष्मजीव रोधी पदार्थ पाया जाता है। हो सकता है कि यह
सिस्टाइन प्रोटीएज
समहू
के एंजाइमों
की सक्रियता को कम करता है। ये एंज़ाइम चूहों में मलेरिया परजीवी को लाल रक्त कोशिकाओं में घुसने में मदद करते हैं। इसके अलावा, लहसून के तेल और आर्टीथर
का मिश्रण कुछ ऐसे एंटीबॉडी पदार्थों
को सुदृढ़ करता है जो मलेरिया परजीवी
के खिलाफ लड़ते हैं। यानी कुल मिलाकर यह मिश्रण हमें मलेरिया के खिलाफ एक कारगर औषधि प्रदान कर सकता है। (स्रोत फीचर्स)
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