गुरुवार, 18 नवंबर 2021

ये तो होना ही था...

भी सोचा न था, न ही समझा और जाना व माना था कि एक दिन ऐसा आयेगा कि मनुष्य जानवरों की तरह बेमौत मारे जाएंगे और उनकी लाशों को प्लास्टिक के पैकेट में लपेट कर यदा-कदा फेंक दिए जाएंगे, कुत्तों, कौंओ, चीलों और गिद्धों को भी मानव मांस चखने को नहीं मिलेगा। वक्‍त अपना खेल और करतब मदारी की तरह दिखाता है। देखने वाले देखते रह जाते हैं सशंकित होकर कि जैसा हो रहा है, देख रहे है कि ही वैसा ही दिन उलट कर उनकी तरफ ही न लौट जाए।

चौसर सौर शतरंज के खिलाडी अच्छी तरह जानते हैं खेल का कोई भरोसा नही। पांडव सब कुछ हार गए थे लेकिन कया जरूरत थी खेल को आगे बढ़ाने के लिए। हालांकि मना कर रहे थे कि आगे नही खेलेंगे लेकिन शकुनि मामा के झांसे में आखिर आ ही गए और फंस गए उनकी चाल में | कोई पत्नी को दांव पर लगाता है क्‍या, ऐसा तो उस समय के इतिहास में नहीं हुआ था। और द्रोपदी तो कुलवधू थी। क्‍या शकुनि, कौरव सम्राट, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण जैसे महान हस्तियां उस समय वहां उपस्थित थी। जब द्रौपदी को दांव पर लगाया गया तब किसी की बुद्धि काम नही आई, गिरवी रख दी गई थी अकल को। खेल जो होना था, हुआ जरा सी बात ने महाभारत रच दिया। ऐसा ही होता है, अनहोनी हो जाती है, जिसकी कभी सपने में कल्पना नही की गई थी।

सत्य और शांति, धर्म का मूल तत्व है। जब ये दोनों तत्व विद्यमान होते हैं संसार में प्राणी सुखमय जीवन व्यतीत करते है। लेकिन कहते हैं समय कभी एक समान नही रहता। सत्य और शांति को कालांतर में ग्रहण घेर लेता है और असत्य और अशांति के भंवर जाल में जब वह फंस जाता है तब कलह और क्लेश बढ़ जाता है। संसार में हाहाकर मचने लगता है। धर्म, अधर्म का रूप ले लेता है। सज्जन दुर्जन बन जाते है और धार्मिक स्थल शैतानो का गढ़ बन जाता है।

सब कुछ ठीक-ठीक चल रहा था, कहीं किसी बात की आशंका नहीं थी, कि ऐसा भी हो जाएगा लेकिन अनहोनी को भला कौन रोक सकता है। एक दिन अचानक शूर्पनखा का प्रवेश हुआ और सब कुछ तमाम हो गया। सारी चतुराई धरी की धरी गई और उसको जो करना था किया, बर्बादी के सिवा हासिल आया कुछ भी नही। जब अशुभ ग्रहो का प्रवेश होता है और ग्रह गोचर अनिष्ट चाल चलते है तब अमरीका जैसे देश के भी होश ठिकाने आ जाते है । यदि ऐसा न होता तो अफगानिस्तान से उसको भागना नहीं पड़ता। तालिबानियो के सामने उसने घुटने टेक दिए। न धन काम आया और न शक्ति।

कुत्ते, कुत्ते ही होते है चाहे उसे कितने ही दुध पिलाओं, मांस खिलाओं, कार में बिठाकर तफरीह कराओं। उसका जो मौलिक और प्राकृतिक गुण होता है , उसे काई भी नष्ट नही कर सकता। हिंसक पशुएं कितने पालतू क्यो न हो जाए लेकिन वक्‍त आने पर अपनी असलियत गुण को वह दिखा ही देता है उसी तरह मनुष्यों में भी आजकल पाशविकता बढ़ रही है। जहां सत्य, शांति, और धर्म का हास होगा वहां शैतानों की संख्या निरंतर बढ़ती जाएगी। अब तो कुछ देशो ने शैतानो की पाठशालाएं भी खोल रखी है। इन शालाओ से पढ़कर निकले छात्र अराजकता, आतंक, लूटपाट, अपहरण, आगजनी, हत्या और कुकर्मो से अशांत है, उद्वेलित है। कब, कहां, किस समय, क्‍या हो जाएगा कहा नहीं जा सकता ?

अभी अपने ही देश में देख लीजिए, सलमान खुर्शीद के नव प्रकाशित किताब को लेकर कोहराम मच गया। उनके नैनीताल स्थित घर पर तोड़फोड़ और आगजनी हो गई। कहा जा रहा है कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के किताब “सनराइज ओवर आयोध्या : नेशनहुड इन ओवर टाइम्स” में हिंदुत्व की तुलना आतंकी समूहों बोकोहराम और आईएसआईएस से की गई है। इसके बाद से खुर्शीद निशाने पर हैं। कुमाऊं के डी आई जी के अनुसार कुछ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। किसी धर्म व सम्प्रदाय के खिलाफ इस तरह की टिप्पणी व आरोप अवांछनीय और निंदनीय है। क्‍या सोचकर ऐसा पत्थर फेंका गया है इसे वही जाने लेकिन खुर्शीद तो वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं एडवोकेट हैं। केंद्रीय मंत्री रहे हैं, उनसे ऐसी अपेक्षा नहीं थी। लेकिन होनी को कौन रोक सकता है? जब द्रौपदी को दाँव पर लगाने और चीरहरण जैसी घटना को बड़े-बड़े धुरंधर नही रोक सके, उनकी मति मार गई तब खुर्शीद जैसे खिलाड़ी का क्‍या कहिए, ऐसा तो होना ही था और हो गया। पासा फेंका गया है, खेल आगे देखिये क्‍या-क्या होता है ?

   – परमानंद वर्मा