गांवों से लेकर कस्बों, शहरों तक में मां देवी दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती व काली की पूजा-अराधना में श्रद्धालु जुटे हैं। मंदिरों व घरों में भी आस्था व मनोकामना जोत जल रहे हैं। देश-विदेश के अनेक स्थानों से शक्तिपीठों में जोत जलवाए हैं। रतनपुर, रायपुर, जगदलपुर, धमतरी, राजनांदगांव, आरंग, खल्लारी, डोंगरगढ़, दंतेवाड़ा में भक्तों की अपार भीड़ उमड़ रही है। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ी आलेख- 'सजे हे सुंदर मइया के दरबार|
फिल्म निर्देशक स्व. सत्यजीत राय एक घौं अपन सद्गति फिलिम के शूटिंग करे खातिर छत्तीसगढ़ आय रिहिसे। पांच-आगर दू कोरी साल पहिली के बात आय। शूटिंग शुरू नइ करे रिहिसे, एकर पहिली एक-दू दरजन गांव भर के दौरा करे रिहिसे। इहां के संस्कृति, कला, बोली, भाखा, खान-पान, रहन-सहन पहिनावा, ओढ़ावा अउ का काम-बूता करथे एला जाने खातिर जब इहां के मनखे मन ला देखिस- कतेक सादा, सरल सुभाव, कोनो-कोनो जुर-मिल के खेत, खलिहान मं काम करत हें, तब कोनो-कोनो लीम चंवरा, नइते गुड़ी अउ दुकान के परछी मं बइठे ढेरा आंटत राहय, कोनो पयरा, पटवा के डोरी बरत राहय।
कोनो खैनी खात खटिया गाथत हे तब चौसर, ताशपत्ती अउ लइका मन गिल्ली डंडा मं मगन राहय। सत्यजीत राय ये बात ला देखके बक्खागे के ओहर कोनो गांव अइसे नइ पइस जिहां तरिया, कुआं, माता देवालय, शिव, हनुमान के मंदिर अउ घर-घर मं तुलसी के चंवरा। संझाकन देखथे- सब घर मं दिन बुडि़स तहां दीया जलत राहय। संग मं ओकर संग रहिथे तउन संगवारी मन करा गोठियावत-बतावत कहिथे- इहां के मनखे मन मनखे हे ते देवता? मैं तो छत्तीसगढ़ के गांव मं आके भगवान के दरसन करथौं। ये छत्तीसगढ़ नोहय, साक्षात सरग हे सरग, अउ इहां मनखे नहीं साक्षात भगवान अउ देवता मन वास करथे। इहां के भूमि अउ मनखे मन ला परनाम करथौं, जरूर मैं इहां अउ आहूं, घेरी बेरी आहूं।
ये बात तो फिल्म निर्देशक स्व. सत्यजीत राय के रिहिसे। एक घौं के ओकर छत्तीसगढ़ प्रवास हिरदय ल पलट दिस। दया-मया उमडग़े ओकर मन मं। काबर अइसे होइस, का कारण हे के जउन मनखे के इहां चरन परथे, मोहा जथे। जरूर कोनो दैवीय शक्ति, मोहनी शक्ति हे छत्तीसगढ़ करा जउन सबो ला अपन बना के रख लेथे। ओ देवी अउ मोहनी शक्ति हे दया, मया, परेम, संतोष, सेवा, सत्कार। छत्तीसगढिय़ा भले गरीब हे, कोनो करोड़पति, अरबपति नई हे, पर ओकर दिल कोनो राजा, महाराजा ले कम नइ हे। खाय ले बइठे रइही ओतके बेर कहूं मंगइया आगे तब पहिली ओला जेवन करा लिही तब पाछू अपन पेट पूजा करही। अइसन अतिथि सत्कार करइया ये छत्तीसगढ़ हे। इही गुन ला परदेसिहा मन टमड़ ले हे। अउ सिधवा जान के कहिथे- छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा।
ये दैवी अउ मोहनी गुन सेती-मेती मं नइ मिले हे इहां के मनखे मन ला। एकर पीछे ओकर पुरखा मन के तियाग अउ तपस्या हे, जेकर फल आज ओमन ला मिलत हे। सब जिनिस हे इहां, कोनो जिनिस अइसे नइहे जेकर कमी अउ अभाव हे। सोना, चांदी, हीरा-मोती, लोहा, परबत, नदिया, पेड़, पशु-पक्षी, झरना, जलपरपात। अलग-अलग कला, संस्कृति, बोली-भाखा, पहिरावा-ओढ़ावा, तिहार-परब, सब देख ले मिल जाथे। हजारों-लाखों पर्यटक ये सब ला देखे ले आथे इहां देश-विदेश ले।
अभी तो मंदिर देवालय मं जोत-जंवारा जलत हे। रतनपुर, दंतेवाड़ा, आरंग, महासमुंद, धमतरी, रायपुर, राजनांदगांव, खल्लारी के शक्तिपीठ मन मं मनोकामना के जोत जलत हे। अभी के ला शारदीय नवरात्रि केहे जाथे। मंदिर मन के पुजारी मन करा ले जउन जानकारी मिले हे तेकर मुताबिक दुबई, अमरीका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, कैलीफोर्निया के भक्त मन आस्था, मनोकामना के जोत जलवाय हे। एमा बड़े-बड़े नेता, मंत्री, सेठ, उद्योगपति अउ नौकरशाह मन के घला मनोकामना ज्योति जलत हे। अइसन हे हमर छत्तीसगढ़ के महिमा। संझा-बिहनिया देवी मंदिर मन मं मातारानी मन के सेवा होवत हे, सेउक मन ढोल मंजिरा बजावत सेवा गीत गावत हे, पुजारी मन आरती करत हे।
मां देवी दुरगा के अराधना, सुरता मं ए एक ठन नानकिन सेवा गीत पेश हे-
शारदा मोर शक्ति मां हो
कहवां मं लिये अवतार।
कहवां मं रहिथे मोर
अनमन-जनमन हो,
शारदा मोर शक्ति मां हो।।
सिंह सवारी चढ़ी आवे भवानी मा
सिंह सवारी चढ़ी आवे हो मा
जो मय जनतेंव् मोर मइया आय हे,
मोर मइया आये हे, मोर दुरगा आय हे।
सुरहींन गइया के गोबर मंगाई के,
खूंट धरि अंगना लिपातेंव् हो माय,
सुंदर चौक पुरातेंव् भवानी के
सोन के करसा मढातेन्व हो माय।
माता फूल गजरा गूँथव हो
मालिन के फूल देहरी,
हो फूल गजरा।
काहेन फूल के गजरा,
काहेन फूल के द्वार,
काहेन फूल के माथ टिकुलिया,
सोलहों सिनगार,
चम्पा फूल के गजरा,
चमेली फूल के हार,
जसवंत फूल के माथ टिकुलिया,
सोलहों सिनगार,
माताआ फूल गजरा।
परमानंद वर्मा
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