शनिवार, 1 अक्तूबर 2022

काछनदेवी देइस बस्तर दशहरा उत्सव मनाय के अनुमति

जिसका तन, मन और हृदय साफ, सुंदर, पवित्र और निर्मल है वहीं ही सुख, शांति, प्रेम, आनंद और संतोष जैसी सूक्ष्म संपत्तियों का वास होता है। यही तो दैवीय शक्तिया, सूक्ष्म धन और लक्ष्मी है और यह  परिसंपत्तियां विश्व में कहीं और नहीं छत्तीसगढ़ में भरी पड़ी हैं। छत्तीसगढ़ में वह भी केवल बस्तर में देखने को मिल सकता है। सीधे-सादे, सरल, आचार-विचार और सद्व्यवहार बरबस ही सबका मन मोह लेता है। प्राकृतिक सुंदरता और आकर्षण वह तो स्थूल चीज है। त्यौहार, पर्व, उत्सव ही उनकी जिंदगी है। बस्तर उसका जीवंत गवाह है। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह छत्तीसगढ़ी आलेख- बस्तर दशहरा मनाय के अनुमति दिस कच्छनदेवी |

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दुनिया मं कोन से अइसे मुलुक हे जिहां बारहों महीना, सरलग तीन सौ साठ दिन तिहार मनाय जाथे। अड़बड़ मुड़ ल खजुवायेंव, माथा ठोंकेव अउ कई किलो ठंडई तेल लगा-लगा के मालिस करेंव, करायेव, फेर मोर मगज मं कोनो मुलुक के चिरई ,सुरता बन के नइ बैइठिस कतको किताब,  पोथी पतरा अउ ग्रंथ के पन्ना उलट-पुलट डरेंव फेर कोनो जघा अइसे नइ मिलिस जिहां अइसन सरलग तिहार मनावत होही, परब मनावत हें। घूम-फिर के लहूट के आयेंव मैं अपन भारत देश, जिहां किसम-किसम के तिहार, परब, उत्सव मनावत रहिथे। सबले बड़े मनोरंजन के साधन हे ये तिहार, परब जेकर बर कोनो ल न माल जाय के लफड़ा हे अउ न कोनो टॉकीज। फोकट मं माई-पिल्ला गांवभर के, शहर के मन एक संग मना लेथे तिहार, अउ परब एकर ले जउन मनोरंजन, खुशी अउ आनंद मिलथे मन अउ तन ल तेकर कोनो गिनती नइ करे जा सकय। 

एक परकार ले हमर देश सुख, शांति, आनंद, परेम ले भरपूर हे, अकूत खजाना हे, अकूत सोना, चांदी, हीरा, पन्ना कस लबालब भरे हे। फेर राजनीतिक, धारमिक अउ आरथिक हलका ले चील कउंवा बने चीता, भालू, तेंदुआ मन ये खुशी, आनंद, परेम ला अपन सुवारथ खातिर बटोरे मं लगे हे, उकरे सेती सब बेवस्था छिन्न-भिन्न होगे हे। अपन मन खाथे गुदा-गुदा अउ फोकला-छिलका ल जनता मन बर अइसे फेंक देथे जइसे ओमन सब भिखारी हे। अपन मन बर महल, अटारी, कल-कारखाना सब तान लेथे, अउ जनता बर झोपड़ी देये बर घला ओकर मन के जीव कसकथे। 

जनता के खुशी, आनंद, परेम ओकर परिवार हे, तिहार-परब हे, उही मं नाचत, गावत, कूदत अउ सेल्फी पीयत माते रहिथे। नइ चाही ओमन ल महल अटारी, कल-कारखाना, न कोन पद-परतिष्ठा, सबले बड़े संपत्ति, संतोष हे। दो रोटी के जुगाड़ हो जाय बस, ये पापी पेट ल का चाही? इही सुख हे, आनंद हे। परेम तो भगवान ओमन ल वरदान के रूप मं दे हे। फेर नीयतखोर मन इही मं डाका डार के जीना मुहाल कर दे हे। 

देखत हौं, कलम कइसे चलाकी चलत हे शकुनि बरोबर कोनो कोती के बात ला कोन कोती बहकाय के कच्चे बारा, पैय बारा कस चौसर के हाड़ा ला फेंकत हे। कलम के हाथ ल पकड़ेंव, कइसे बारहों महीना तिहार मनाय के बात उठाय रेहे अउ अब दुरजोधन, दुसासन के पक्ष ले असन चार सौ बीसी के चाल चलत हस  सीधा सही रस्दा मं आव संजय जइसे महाभारत के एक-एक बात धृतराष्ट्र ल बतावत गिस तइसने तैं जनता ला बता के ओ कोन देस हे जिहां बारहों महीना अउ तीन सौ साठ दिन तिहार, परब मनाय जाथे। 

जो चमकायेंव कलम (मीडिया) ल ते ओकर कान खड़ा होगे। सकपकागे अउ एती-ओती देख ले धर लिस। ककरो हाथ मं बिक के का तैं आमा ल अमली कहि देबे, कउंवा ल मिट्ठू (तोता) कहि देबे। होश गायब होगे, मोर ये बात ला सुनके। कभू-कभार शेर ला सवा शेर घला मिलथे। तब दांत ल निपोर देथे खिस्स ले बेंदरा बरोबर। 

माफी मांगत कलम (मीडिया) ह कहिथे- के बात अइसन हे... ओकर पूरा बात करे के पहिली ओला फेर दबकारेंव अउ कहेंव- माफी मोर से झन मांग, जनता करा मांग, जउन ल धोखा देवत अंधियारे मं रखके अपन सुवारथ साधथौ, सोचत होहू 'सइयां हे कोतवाल तब काकर ले का डरना?सत्ता ककरो बपौती नोहय, पांच साल मं कइसे काया पलट हो जथे तेला सब जानथौ। हां, त बता सही बात ल। 

जब घुड़की परिस ना, चाबुक ल हवा मं लहराय भर ले शेर, चीता जइसन खूंखार जंगली जानवर घला रस्दा मं आ जथे अउ फेर जइसे नचा ले ओला नाचे ले धर लेथे। वइसने कस हाल कलम (मीडिया) के घला होगे। ओहर बताथे- भइया, बारहों महीना मं तीन सौ साठ दिन जउन तिहार अउ परब मनाय जाथे ओ मुलुक हे भारत, भारत मं घला एक परदेस हे छत्तीसगढ़ नांव हे, ओ कहूं नहीं, उहू  छत्तीसगढ़ मं सरग ले बढ़ के सुख, शांति, परेम अउ संतोष मिलथे तउन जघा हे बस्तर। इहां मेनका, रंभा, नीलम परी मन संग इन्द्र जइसे देवता उतरके आथे अउ तिहार मनाथे। 

कलम सरलग बतावत कहिथे- अभी उहां बस्तर दशहरा मनाय के तइयारी शुरू होगे हे। ओ दिन उहां के राजा कमलचंद भंजदेव ला काछन अउ रैला देवी ह दशहरा परब मनाय खातिर अनुमति दिसे। अजब परम्परा हे, विधि विधान हे ये परब के। कलम बताइस अभी इतवार के काछनदेवी के पूजा होइस हे। आठ साल के नोनी (लड़की) नंदनी ऊपर काछनदेवी सवार होइस हे, बेल के कांटा के झूला बनाय रहिथे तेमा ओला सुताय  जाथे। जब ओ नोनी सुते रहिथे ततके बेर राज परिवार के सदस्य, दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी, प्रधान राज गुरु, मांझी मुखिया अउ कतको मनखे आथे। शोभायात्रा निकाले जाथे। इहां अइसन कतको अनगिनत तिहार अउ परब हे। एक दिन आरुग नइ जाय, कोनो तिहार, परब के अउ परब |

परमानंद वर्मा 

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