'सुनो भाई उधो'
समाज में अनेक तरह की विसंगतियां, बुराइयां होती है जिसको लेकर आपस में कहा-सुनी हो जाया करती है। दो के झगड़े में तीसरे को नफा अथवा नुकसान तो उठाना ही पड़ता है, इसलिए समझदारी इसी में होती है कि कोई भी इस तरह के मामलो में न पड़ें। लेकिन कुछ मामले ऐसे होते हैं जो भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं, और उससे बच पाना असंभव होता है। इसी तरह के मामले से संबंधित एक प्रेम कहानी है। प्रेमी-प्रेमिका किसी बात को लेकर झगड़ पड़ते हैं और उसका खामियाजा प्रेमिका की बेटी को उठाना पड़ता है। पढिय़े छत्तीसगढ़ी कहानी- ''तोला का भइगे लेडग़ी..?"
तैं काकर भभकी मं आगेस, अइसने कोनो करही, खाय बर देहस तउन थारी ल कोनो नंगाही, झटक के लेगही? का होगे तोला आज, अइसन तो नइ करत रेहे?
सतनारायन अकबका जथे, अंजनी के अइसन चाल ल देखके। ओहर कहिथे- तीन-चार दिन ले ताड़त हौं, तोला कइसे का बात होगे हे ते थोकन अनमने ढंग ले राहत हस। न पहिली जइसे हांस के, परेम के बोली-बात करत हस, सांप-डेडू, बिच्छी तो नइ काट दे हे।
अंजनी न चिट करत हे न पोट, सतनारायण कुकुर असन अपने अपन हांव-हांव करत भूकत हे। पहिली तो देख, खाना दीस, तहां ले बाहिर पार, खोर दुआरी मं चल दीस अउ परोसिन संग लपर-लिपिर मारे ल धर लीस। पानी घला नइ दीस। जबकि खाना दे के पहिली हमर इहां रिवाज हे पानी पिढ़वा लगाथें।
परोसिन करा ले कोन जनी का पाठ पढ़के अइस ते ओला पढ़ा दे गिस, आते साठ खाना खाय बर शुरू करत रेहेंव तउन थारी ल उठा के लेगे।
सतनारायन हड़बड़ागे। ओकर कांही समझ नइ आवत हे कि माजरा का हे? ओहर कहिथे- अंजनी!
ओहर टेडगा बानी मं कहिथे- झन काह मोला अंजनी, मरगे तोर बर ये अंजनी हा। नइ करत हौं तोला प्यार, हमर-तोर पिंयार के नाटक इही तीर ले खतम।
गंज करा धोवन के बरतन मं हाथ-मुंह धोके सतनारायन ओकर तीर मं आथे अउ कहिथे- अंजनी, तोर घर मैं बरपेली नइ आय हौं, ते बलाय रेहे, अमुक तारीख-तिथि, घड़ी मं आबे, मोर गोसइयां बिलासपुर गे हे। बने हांसबो, गोठियाबो, छेहेल्ला मारबो। अब जब तोर बलाय ऊपर ले आगेंव तब तोला का शनिच्चर धर लीस, बही-भुतही कस होगेस?
हां... हां... मैं बही-भूतही होगे हौं, शनिच्चर मोर ऊपर खपलागे हे, बस अतकेच ना, ते अउ कुछु केहे बर बांचे हे?
सतनारायण ल वाजिब मं कुछु बात समझे नइ परत हे के आखिर एला हो कागे?
ओकर तीर मं जाके ओले पोटारे कस करथे तब घोड़ी हा जइसे घोड़ा ल छटारा मार के अपन तीर ले भगा देथे वइसने कस खेल अंजनी जब करिस तब सतनारायन सुकुरदुम होगे। एकर पहिली तो कभू अइसन नइ होय रिहिस हे? बने रासलीला में मगन हो जावत रिहिस हे दुनो झन।
अंजनी अउ सतनारायन के बीच तो तीस-पैंतीस बछर ले ये परेम अउ रासलीला चलत आवत हे फेर कोनो अइसे आज तक नइ जान सके हे के ये दूनो झन के बीच मं कोनो खो-खो, फुगड़ी के खेल चलत आवत हे। दूनो झन लोग-लइका वाले हे, उमर खसल के अ्धिया गे हे फेर ओ खेल नइ छूटे हे।
पहिली चिट्ठी-पतरी अउ फोन के जमाना रिहिसे, उही मं अपन गोठ-बात, मिलना-जुलना, होटल जाना, फिलिम देखा सब हो जात रिहिसे। जब ले इंटरनेट आय हे, मोबाइल आय हे तउन तो अउ सब सुविधा ल परोस दीस। रायपुर मं बइठे हे अउ लंदन, अमरीका, मुंबई, कोलकाता बात कर लेथे, फोटो समेत हांस-गोठिया लेथे आनी-बानी के। जइसन चरित्तर नहीं तइसन ये इंटरनेट अउ मोबाइल हा देखावत सुनावत हे। धुर्रा छोड़ावत हे।
ओ दिन के घटना, सतनारायन ल बने नइ लगिस, जोरदार ठेस लगिस ओकर दिल मं, अंतस के पीरा ला उही जानही। तीस-पैंतीस साल के पिंयार का ला कहिथे?ओ दिन, ओ बात, ओ हंसी, ओ रात कइसे कोनो भुला जही?
का मन होइस ते सतनारायण के मन उचटगे अउ अंजनी ल ये काहत, तोर दर, तोर दिल अउ तोर घर ले मैं सदा दिन ले निकलके जाथौं, कभू मोर सुरता झन करबे, समझबे- कोनो आवारा, बदमाश, राहू-केतू जीवन मं आय रिहिसे तेकर ले मुक्ति पागेंव।
सात-आठ महीना गुजरे ऊपर ले ससुराल ले अंजनी के बेटी मइके आय रहिथे तब अपन दाई ल पूछथे- सतनारायन कका के का हालचाल हे, पंदरही होगे मोला आये, एको दिन नजर नइ आइस, कहूं बाहिर गे हे का?
सतनारायन के नांव ल सुनिस तहां ले अंजनी के आंखी डहर ले आंसू झरे ले धर लेथे। बेटी पूछथे- का होगे दाई कका ला, गुजरगे का?
का बतावय अंजनी अपन बेटी ल सतनारायन के बारे मं के ओला का होगे? बताथे- कुछु नइ होय हे बेटी!
तब काबर नइ आवत हे, ओला आरो नइ करे हस का, के सतरूपा आय हे?
अंजनी अब चुप अउ खामोश, बक्का नइ फूटत हे के का काहय अउ नइ काहय?
सतरूपा कहिथे- नहीं दाई आज जाहूं ओकर घर अउ ओला बला के लाहूं, चल कका तोला दाई बलाय हे।
अंजनी समझाथे- नहीं सतरूपा, झन जाबे ओकर घर।
-काबर, सतरूपा पूछथे?
अंजनी कुछु नइ बोलय, तब सतरूपा समझ जथे जरूर दाई अउ कका के बीच मं कांही बात ल लेके रंगझाझर माते होही, अनबन होगे होही?
सतरूप लम्बा सांस लेवत कहिथे- वाह कका, सतनारायन। तोर गोदी मं खेलेव, बढ़ेंव, तोर पिंयार-दुलार पायेंव, अब कोन हमला बाम्बे के मिठाई अउ बनारस के पेड़ा लान के खवाही?
परमानंद वर्मा