शनिवार, 6 नवंबर 2010

दीप पर्व दीपावली पर आपको लख-लख वधाइयां

 
कई लोगों का मानना हो सकता है कि दीपावली के पर्व को धमाकेदार रहना ही चाहिए। पर आजकल भारी आतिशबाजी से प्रदूषण होने लगा है। और अब इन धमाकों से खुशियां या शुभकामनाएं नहीं मिल रही हैं। मेरे परिवार में दो लोगों को अस्थमा की समस्या है। वो कई दिनों तक अनिद्रा, श्वांस फूलने और उल्टी की टेन्डेंसी से परेशान रहते हैं। इन्हीं तरह के शिकायतों के आधार पर तंग आकर सर्वोच्च न्यायालय ने पटाखों पर रात दस बजे से सुबह छह बजे तक का प्रतिबंध लगाया है। दिल्ली में तो दिल्ली पर्यावरण विभाग को इस निर्देश का पालन सुनिश्चित करने को कहा गया है। आदमी ने तो अपनी सेहत को नापने के लिए कई तरह के यंत्र बना लिए हैं। मेरे छज्जे पर गमले में लगी तुलसी को क्या परेशानी हुई, हमारे पास जानने का इसके लिए कोई यंत्र है क्या? जरा से भी शोर से डर जाने वाली गौरैया के दो-तीन दिन तक चलने वाले अनवरत शोर और धमाकों में रात-दिन कैसे कटते होंगे, कभी सोचा है क्या?दरअसल हम अंदर से खोखले होते जा रहे हैं। खाली होते हमारे अंदर को भरने के लिए हम बाहर के शोर में उमंग, खुशी, ग्लैमर खोजते रहते हैं। अंदर को भरने के किए गये लाख जतन क्या हमें सही खुशी दे पाने में सक्षम हुए हैं। पर्व-त्योहारों को हम सिर्फ धूम-धड़ाका और पूजा-पाठ के कर्मकान्ड के रूप में समझने लगे हैं। जिस अंधकार को दूर करने के लिएदीपक जलाने’ के कर्मकान्ड करते हैं। दीपक तो बचारे एक कोने में दुबक गये हैं। महंगी हजारों रुपये की इलेक्ट्रानिक लड़ियां जिस बिजली से रोशन हो रही हैं। क्या कभी सोचा है कि उसमें रोशनी भरने के लिए कितने लोगों की जिंदगी अंधेरे में डुबो दी जाती है। नर्मदा बांध के उजड़े, टिहरी के विस्थापित, भाखड़ा-नांगल के उजड़े आधी सदी से भटक रहे लोगों और उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश में बन रहे 500 से ज्यादा बांध हजारों-लाखों की जिंदगी को अंधेरे में धकेल देने के बाद ही आपको रोशनी देने में सक्षम हुए हैं। दीपावली पूजा- "तमसो मा ज्योतिर्गमय"- अंधकार से प्रकाश की ओर चलो; अज्ञान से ज्ञान, असत्य से सत्य की ओर तथा जन्म और मृत्यु के चक्र से अमरत्व की ओर चलो; का संदेश देती है। पूजा क्या है? जो हमें ईश्वर से प्राप्त है, उसके प्रति अहसास और कृतज्ञता व्यक्त करना। प्रकाश का देवता सूर्य, हमारे ऋतु-मौसम चक्र का सहभागी चन्द्रमा और लालन-पालनकर्ता पृथ्वी के प्रति समय-समय पर हम कृतज्ञता व्यक्त करते रहते हैं। इन समयों पर पर्व-उत्सव करते हैं, पूजा, अपनी कृतज्ञता और सम्मान दर्शाने का सब से स्वाभाविक तरीका है। वेद के सूत्रों में कहा गया है- 'पृथ्वी, जिसमें बसे हैं सागर-नदी और अन्य जल भंडार, जिसमें अन्न और धान्य के खेत हैं, जिसमें जीते हैं चराचर सभी, वही भूमि हमको दे अपने अपूर्व फल। पृथ्वी जो जाए हैं तुम्हारे- वे हों रोगमुक्त और शोकमुक्त' अगर कर सकें तो सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी को प्रति कृतज्ञ होवें। अंदर के अंधकार को इलेक्ट्रानिक लड़ियों के प्रकाश से नहीं प्रेम और ज्ञान के प्रकाश से भरें। कबीर साहब की वाणीएक नूर से सब जग उपज्या, कौन भले कौन मन्दे।’ हम सब प्रकाश से ही पैदा हुए हैं। आइंस्टीन ने भी यही कहा है कि द्रव्यमान-ऊर्जा के बीच एक समीकरण है। प्रकाश द्रव्यमान की रचना करता रहता है। हम भूल क्या कर रहे हैं? कबीर कहते हैं "रामहिं थोडा जाणिं करि, दुनिया आगै दीन। जीवां कौं राजा कहैं, माया के आधीन।।" प्रकाश को, प्रकृति को तुच्छ समझ कर इस संसार और इसकी माया को महत्व दे दिया है, तभी तो आदमी अपने को राजा तथा स्वामी समझने की भूल कर बैठा है जो कि वैभव से रहता है और माया के अधीन है।
किसी भी तरह की गुलामी से मुक्ति प्रकाश पर्व पर करने का एक बड़ा काम है। अपने पेड़, पशु-पक्षी और आस-पास के जीवन में प्रकाश कैसे आए, सोचेंगे। प्रेम और ज्ञान का प्रकाश जीवन में आए, इसके लिए मन और सोच के किस-किस अंधेरे की गंठरी फेंकनी है, यह प्रकाश पर्व का एक प्रोग्राम हो सकता है, देखना, निश्चय ही ज्यादा मजा, ज्यादा उमंग आएगा।
--
सिराज केसर
TREE (ट्री), ब्लू-ग्रीन मीडिया
47 प्रताप नगर, इंडियन बैंक के पीछे
कीड्स होम के ऊपर, मयूर विहार फेज 1, दिल्ली - 91
मो- 9211530510