डॉ. महेश परिमल
भला एक शिक्षित महिला को हथियार उठाने की क्या आवश्यकता आ पड़ी? वह शिक्षिका जो बच्चों को शिक्षित करती हैं, उनमें ज्ञान का प्रकाश फैलाती है, उसे क्या जरूरत आ पड़ी कि किसी विधायक को चाकू से इतने वार करे कि वह मर ही जाए। इसे ही यदि थोड़े अलग नजरिए से देखें, तो स्पष्ट होगा कि कहीं न कहीं यह मामला महिला उत्पीड़न से जुड़ा है।
इस मामले की मूल में वे घोषणाएँ हैं, जिसे विधायक ने उक्त महिला के स्कूल में मुख्य अतिथि के रूप में की थी। निश्चित ही वे घोषणाएँ अन्य घोषणाओं की तरह पूरी नहीं हो पाई। उक्त शिक्षिका ने इसे व्यक्तिगत रूप से नहीं लिया। उसके पीछे एक सामूहिक उद्धार की भावना थी। आगे चलकर भले ही विघायक और शिक्षिका के संबंध मधुर बन गए हों, पर कालांतर में यही मधुर संबंध विधायक की हत्या का कारण बना। शिक्षिका पूरे तीन वर्ष तक उक्त विधायक की हवस का शिकार बनी। विधायक को अपने पद का गुरूर था, इसलिए मामला दबता रहा। उक्त विधायक पर एक और महिला ने भी यौन शोषण का आरोप लगाया था। शिक्षिका ने अपने पर हुए यौन शोषण की शिकायत पुलिस थानं में की थी, पर मामला विधायक का था, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं हुई। कानून सबके लिए समान होता है, यह उक्ति इस मामले में काम नहीं आई। विधायक ने मामला दबा दिया, पर महिला के भीतर उपजे आक्रोश को दबा नहीं पाए। इसकी परिणति नृशंस हत्या से हुई।
उक्त शिक्षिका ने विधायक की हत्या नहीं की, बल्कि नारी अस्मिता को बचाए रखने का एक प्रयास किया है। शिक्षिका ने उस जनसमूह का प्रतिनिधित्व किया है, जो आज भी वोट देकर अपने अधिकार भूल जाता है। रूपम पाठक ने लाखों लोगों की संवेदनाओं को अपनी पीड़ा में पिरोकर एक ऐसा काम किया है, जिस मानव बहुत ही विवशता के साथ करता है। अपना काम करने के बाद शिक्षिका का यह कहना कि अब उसे फाँसी पर भी चढ़ा दिया जाए, तो कोई गम नहीं, यह सोचने को विवश करता है कि आखिर वह भीतर से कितनी आक्रामक थी। एक विधायक के व्यवहार के खिलाफ एक शिक्षिका द्वारा शस्त्र उठा लेना एक ऐसा संकेत है, जिसे आज की राजनीति को समझ लेना चाहिए। इसे गहन आक्रोश की परिणति ही कहा जाएगा कि एक नारी ने अपने सबला होने का परिचय दिया है।
इससे यह सबक तो लिया ही जाना चाहिए कि पीड़ितों का हाथ यदि किसी ने न पकड़ा, तो पीड़ित हथियार उठाने में संकोच नहीं करेंगे। ध्यान रहे कि नक्सलवाद का उदय इन्हीं कारणों से हुआ है। जो आज बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल को बुरी तरह से मथ रहा है। विधायक की इस हत्या को राजनीतिक चश्मे से न देखा जाए, बल्कि शोषितों, पीड़ितों को दी जा रही यातनाओं को सामने रखकर देखा जाए, तभी इस मामले की गंभीरता सामने आएगी। यदि इस मामले को राजनीतिक रंग दिया गया,तो संभव है, मामले की लीपापोती हो जाए और हमेशा की तरह उक्त शिक्षिका को आजीवन कारावास दे दिया जाए।
डॉ. महेश परिमल