इंटरनेट पर सुपरमून के हौव्वे पर मुकुल व्यास की टिप्पणी
आगामी 19 मार्च को चांद कुछ बड़ा होकर पृथ्वी के नजदीक आएगा। लगभग 18 साल बाद हो रही इस खगोलीय घटना को लेकर तरह-तरह की भविष्यवानियां की जा रही हैं। कुछ लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि जापान में 11 मार्च को आए विनाशकारी भूकंप के लिए यह बड़ा चांद अथवा सुपरमून ही जिम्मेदार है। कुछ लोग सूरज की बढ़ी हुई गतिविधि से उत्पन्न सौर तूफान से इसका संबंध बता रहे हैं। अनेक वैज्ञानिकों का कहना है कि इनका जापान के भूकंप से कोई संबंध नहीं है। पूर्णिमा के दिन समुद्र में ऊंचे ज्वार उठ सकते हैं लेकिन भूकंप और सूनामी जैसी घटनाओं से इसका कोई संबंध नहीं देखा गया है। गौर करने वाली बात यह यह है कि जापान का भूकंप पूर्णिमा से 8 दिन पहले आया और उस दिन चांद अपनी कक्षा में पृथ्वी से अपने सबसे दूरवर्ती बिंदु पर था। नासा के एस्ट्रोनॉमर डेव विलियम्स का कहना है कि उस दिन चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव सामान्य से भी कम था। जहां तक चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण और ज्वारीय हलचल का संबंध है, 11 मार्च को पृथ्वी पर बहुत ही सामान्य दिन था। आखिर यह सुपरमून क्या होता है? चंद्रमा हमारे इर्द-गिर्द अंडाकार कक्षा में चक्कर काटता है। जब यह अपनी कक्षा में पृथ्वी के सबसे समीपवर्ती बिंदु के आसपास पहुंचता है तो यह सुपरमून हो जाता है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा एकदम अपने निकटम बिंदु पर पहुंचेगा। कुछ लोग इसे सुपरमून न कह कर एक्सट्रीम सुपरमून कह रहे हैं। इंटरनेट पर की जा रही भविष्यवाणियों के मुताबिक सुपरमून से भयंकर भूकंप, विनाशकारी तूफान आते हैं या असामान्य जलवायु परिवर्तन उत्पन्न होते हैं, लेकिन नासा वैज्ञानिक विलियम्स का कहना है कि 19 मार्च को एक बड़े और चमकीले चांद के दिखने के अलावा कोई असामान्य घटना नहीं होने वाली है। अत: सुपरमून से किसी को आतंकित होने या घबराने की जरूरत नहीं है। हां, उस दिन आप ज्यादा बड़े और ज्यादा चमकदार चांद के नजारे को कैद करना न भूलें क्योंकि ऐसी खगोलीय घटनाएं लंबे अंतराल के बाद देखने को मिलती हैं। पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाएं सामान्य दिनों में कहीं भी आ सकती हैं और इन्हें किसी खगोलीय घटना से जोड़ना वैज्ञानिक तौर पर सही नहीं है। 19 मार्च को चंद्रमा हालांकि 18 या 19 वर्षो में पृथ्वी के बहुत नजदीक होगा लेकिन यह नजदीकी संभवत: आधा प्रतिशत ही ज्यादा होगी। आप जब तक एकदम सही गणना नहीं करते, आप को कुछ नया नहीं लगेगा। चांद शायद पृथ्वी के कुछ हजार किलोमीटर करीब आएगा, लेकिन यदि हम चांद की कक्षा पर गौर करें तो यह कुछ भी नहीं है। यह सही है कि चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से समुद्र में ज्वार उत्पन्न होते हैं। जब चांद नजदीक आता है तो ज्वार कुछ ज्यादा बड़े होते हैं लेकिन यह मानने का कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है कि इस सुपरमून से बाढ़ आ जाएगी या कोई और विषम मौसमीय घटना हो जाएगी। जापान का भूकंप किसी सुपरमून की वजह से नहीं आया है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि यह घटना पूर्णिमा से लगभग एक हफ्ते पहले हुई है। चांद और भूकंपीय गतिविधियों के बीच थोड़ा-बहुत संबंध होता है क्योंकि सूरज और चांद के पंक्ति में होने की वजह से सामान्य से ज्यादा ताकतवर ज्वार उत्पन्न होते हैं। इससे पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट्स पर स्ट्रेस और बढ़ जाता है लेकिन जापान का भूकंप ऐसे समय आया है, जब सूरज और चांद के पंक्तिमें न होने की वजह से ज्वार की ताकत सबसे कमजोर थी। चंद्रमा भूकंप उत्पन्न नहीं करता। भूकंप के लिए सुपरमून को दोषी देना वास्तव में किसी मकान में आग के लिए एक ऐसे व्यक्तिको दोषी ठहराने जैसा है जो शहर में नहीं है। किसी खगोलीय घटना से एक सप्ताह पहले भूकंप का आना महज एक संयोग है। भूकंप, सुनामियां और प्राकृतिक विपदाएं चंद्रमा के चक्र या ज्वारों का अनुसरण नहीं करतीं। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)