जंतर मंतर पर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का आमरण अनशन और काहिरा में तहरीर चौक पर हजारों लोगों के जमा होने जैसे अ¨हसक आंदोलनों की शुरुआत 200 वर्ष पूर्व 1811 में हुई थी,जब धाíमक नगरी बनारस के मेहनतकश मजदूरों और कारीगरों ने अपनी मांगे मनवाने के लिए सत्याग्रह का अमोघ अ ईजाद किया था। करीब सौ साल बाद महात्मा गांधी ने सत्याग्रह के इस नवीन हथियार का दक्षिण अफ्रीका में प्रयोग किया। बनारस सत्याग्रह अंग्रेज हुकूमत द्वारा नगरवासियों पर गृह कर (हाउस टैक्स) लगाने के खिलाफ शुरू हुआ था। अधिकतर नगरवासी अपने मकानों और दुकानों पर ताला बंद कर शहर के बाहर जमा हो गए तथा अधिकारियों को दो टूक जवाब दिया कि जिसका मकान और दुकान हो उससे टैक्स लो गांधीवादी विचारक और इतिहासकार धर्मपाल ने अपनी चíचत पुस्तक भारतीय परम्परा में सविनय अवज्ञा में उल्लेख किया है कि सरकारी कारिन्दों पुलिसकíमयों को नजर अंदाज करते हुए लाखों नगरवासियों ने जनवरी फरवरी 1811 में अपना धरना-प्रदर्शन और हडताल जारी रखी। आंदोलनकारियों की एकता,विरोध के नित नए तरीकों और निर्भीकता से हुकूमत सकते में आ गई।
बनारस के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट डब्ल्यू डब्ल्यू बर्ड ने कोलकाता स्थित गवर्नर जनरल और लखनऊ स्थित सैनिक कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जे मैक्डोनाल्ड को शहर की विस्फोटक स्थिति के बारे में आपात संदेश भेजे। श्री बर्ड ने अपने पत्न में लिखा कि 25 दिसम्बर 1810 को जैसे ही बनारस के लोगों को हाउस टैक्स लगाने के फैसले की जानकारी मिली, शहर में उžोजना फैल गई। लोगों ने शहर के बाहर बडी सभा कर ऐलान किया कि वह किसी कीमत पर टैक्स अदा नहीं करेंगे। श्री बर्ड ने जनवरी 1811 में कोलकाता भेजे गए अपने पत्न में कहा कि लोगों ने अपनी दुकानें बंद कर दी हैं,जुलाहों के करघे ठप्प हैं, लोहारों ने औजार बनाना बन्द कर दिया है, दर्जी कपड़े नहीं सिल रहे हैं,नाई हजामत नहीं बना रहे हैं तथा मल्लाहों ने नावों को किनारे बांध दिया है तथा डोमों ने शवों का जलाना बंद कर दिया है। पुजारियों ने पूजा पाठ बंद कर दिया। शहरी जीवन ही ठप्प नहीं हुआ बल्कि हल, खुरपी और कुदाल की आपूíत नहीं होने के कारण खेती भी प्रभावित हो गई। अंग्रेज कलेक्टर और पुलिस कप्तान ने आंदोलन को ठंडा करने के लिए ‘साम दाम दंड भेद’ के सभी हथकंडे अपनाए लेकिन लोग अपनी इस मांग पर कायम रहे कि हाउस टैक्स वापस लिए जाने तक वह अपने घरों में नहीं लौटेंगे। फिरंगी अधिकारी इस मुगालते में थे कि कारोबार बंद होने से लोग आíथक दिक्कतों के कारण परेशान हो जाएंगे तथा आंदोलन खत्म कर देंगे। उन्हें यह भी उम्मीद थी कि सबसे पहले दिहाड़ी मजदूर आंदोलन का साथ छोडें़गे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। शहर के बाहर जमा आंदोलनकारी अपनी जाति एवं पेशे के आधार पर पंचायत करते तथा आंदोलन की भावी रणनीति तैयार करते। उन्होंने दिहाड़ी मजदूरों और आíथक जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए एक कोष भी स्थापित कर लिया। सत्याग्रह में शामिल नहीं होने वालों को जाति से बहिष्कृत कर दिया गया।
वर्ष 2011 में अरब जगत के आंदोलनकारी जहां इंटरनेट फेसबुक और ट्विटर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो 200 वर्ष पहले बनारस के लोगों ने सूचनाएं इधर उधर भेजने के लिऐ धर्मपत्री का सहारा लिया था। धर्मपत्री में आंदोलन का ब्योरा था तथा दूरदराज के लोगों से समर्थन देने के लिए अपील थी। विभिन्न जाति समुदायों ने उत्तर भारत में अपने भाई बंधुओं को धर्मपत्री भेजी। अंग्रेज अधिकारियों ने आशंका व्यक्त की कि बनारस से पैदा हुई विद्रोह की चिनगारी दावानल का रुप लेकर पूरे भारत में पांव पसारने में लगी हुकूमत को भस्म कर सकती है। कलेक्टर बर्ड ने अपने एक पत्र में हैरानी जाहिर की कि आंदोलन में हर जाति हर पेशे और हर मजहब के लोग शामिल हैं। ब्राrाण और मौलवी लोगों को शपथ दिला रहे हंै कि वह हाउस टैक्स खत्म होने तक अपना आंदोलन जारी रखें। हाउस टैक्स के खिलाफ लोगों का विरोध धनराशि को लेकर नहीं बल्कि इस सिद्धांत पर आधारित था कि हमारी वस्तु पर टैक्स लगाने का सरकार को कोई अधिकार नहीं है। एक समय ऐसा आया जब अधिकारियों ने सेना के बलबूते आंदोलन को कुचलने का फैसला किया। मेजर जनरल मैक्डोनाल्ड ने सैनिक टुकड़ियों को लखनऊ से बनारस मार्च करने का आदेश दिया। ऐनमौके पर फिरंगी अधिकारियों को सद्बुद्धि आई तथा उन्होंने बनारस के राजा उदित नारायण ¨सह और समाज के अन्य प्रतिष्ठित लोगों की मदद ली। सरकार ने नगर के धाíमक मठ मंदिरों पुजारियों और समाज के गरीब तबकों को टैक्स के दायरे से बाहर करने की घोषणा की। उसने टैक्स संबंधी फैसले की समीक्षा करने के लिए एक जनयाचिका गवर्नर जनरल के पास भेजी।
बनारस के राजा का शहर के लोगों में बहुत सम्मान था तथा उन्हें अभिभावक का दर्जा हासिल था। राजा ने लोगों से आग्रह किया कि दो महीने तक चला उनका आंदोलन सफल रहा है तथा इसे अब खत्म किया जाए। उन्होंने हाउस टैक्स में कटौती किए जाने को एक अच्छा कदम बताया। उन्होंने कहा कि जनता ने अपनी ताकत प्रदíशत कर दी है तथा सरकार को अंतत यह टैक्स वापस लेना पडेगा। प्रतिष्ठित नागरिकों के समझाने बुझाने पर अंतत लोगों ने अपना विरोध आंदोलन खत्म किया तथा अपने घर वापस लौटे। शहर में दुकानें फिर खुलीं। राजा बनारस की भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई तथा साल खत्म होते होते सरकार ने दिसम्बर 2011 में हाउस टैक्स लगाने के फैसले को रद्द कर दिया। सरकार के राजस्व विभाग ने इंग्लैंड भेजी गई अपनी रिपोर्ट में आगाह किया कि अधिकारियों को भारत के लोगों के चरित्र और मिजाज को ध्यान में रखकर ही नीतियां बनानी चाहिए। कोई भी टैक्स लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि लोगों में उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी। भावी प्रशासन के लिए भी जरूरी है कि वह कोई भी फैसला करते समय पूरी दूरदíशता और बुद्धिमत्ता प्रदíशत करे। रिपोर्ट में कहा गया कि लोगों पर धाíमक नेताओं और फकीरों का काफी असर है। वह लोगों को सरकार का खुला विरोध करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। बनारस में लोगों का प्रतिरोध इतना व्यापक हो गया था कि उसे केवल सेना के बल प्रयोग से कुचला जा सकता था।
अधिकारियों ने राहत की सांस ली कि बनारस के राजा उदित नारायण ¨सह और समाज के प्रतिष्ठित लोगों के हस्तक्षेप से जनविद्रोह ठंडा पडा। अधिकारियों ने स्वीकार किया कि यदि नागरिकों के खिलाफ सेना का प्रयोग किया जाता तो इसके बहुत गंभीर परिणाम होते।