माइम कला देखने में जितनी
आसान लगती है, उसे करना उतना ही मुश्किल होता है, लेकिन सतत परिश्रम और अभ्यास से
इसे साधा जा सकता है। फ्रांस के विश्व-विख्यात माइम कलाकार एटीएन दक्रू ने कहा
है-"माइम कलाकार का शरीर एक कलाबाज़ (जिम्नास्ट) जैसा, दिमाग एक अभिनेता जैसा
और हृदय एक कवि जैसा होना चाहिए।" एकाग्रता, कल्पनाशीलता, त्वरित प्रतिक्रिया
तथा वस्तुओं और क्रियाओं के बारीक अवलोकन से इस कला में निपुणता प्राप्त की जा
सकती है।
यह बातें गाँधी भवन स्थित चिल्ड्रंस थियेटर अकादमी में 11 जनवरी
2013 से आयोजित तीन दिवसीय माइम कार्यशाला के दौरान भोपाल के प्रख्यात माइम कलाकार
श्री मनोज नायर ने बच्चों से साझा कीं। कार्यशाला में 6 वर्ष की आयु के बच्चों से
लेकर 25 वर्षीय युवाओं तक ने भाग लिया। श्री नायर ने अपने साथी कलाकार श्री मिथुन
की सहायता से विद्यार्थियों को माइम कला के इतिहास और उसके विभिन्न आयामों से
परिचित कराया। उन्होंने बताया कि संवादरहित होते हुए भी यह एक अत्यंत मनोरंजक और
लोकप्रिय कला है। माइम में भाषा का बंधन नहीं होता, इसलिए इसे किसी के भी सामने
प्रस्तुत किया जा सकता है। यह एक भावप्रधान कला है, जिसमें नवरसों की महत्त्वपूर्ण
भूमिका है। श्री नायर ने सिखाया कि किस प्रकार अपनी शारीरिक मुद्राओं एवम हाव-भाव
के माध्यम से कलाकार नवरसों को प्रदर्शित कर सकता है। इसके लिए उन्होंने बच्चों को
कई खेल सिखाए तथा शरीर को फुर्तीला बनाए रखने के लिए शारीरिक अभ्यास की क्रियाएँ
बताईं जैसे धीमी गति में कार्य करने का अभिनय, रोबोट-चाल आदि।
श्री नायर ने बताया कि माइम कला में हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि मंच
पर कम से कम वस्तुओं का प्रयोग हो। कलाकार को चीज़ों को बहुत आसान बनाकर करना चाहिए,
जिससे दर्शक को कथा से भटकने से रोका जा सके। कलाकार को उच्च कोटि का कल्पनाशील,
अच्छी याददाश्त एवम तेज़ दिमाग वाला होना चाहिए, ताकि वह स्थिति को भाँपकर तुरंत
निर्णय कर सके। अगर हम अपनी क्रियाओं का बारीकी से अवलोकन करें और निरंतर अभ्यास
करें तो माइम करना आसान बन सकता है। उन्होंने बताया कि माइम में किस प्रकार किसी
क्रिया की धीमी अथवा देर से दी गई प्रतिक्रिया से भी दर्शक को गुदगुदाया जा सकता
है।
श्री नायर ने बच्चों को अभ्यास के लिए कुछ काल्पनिक परिस्थितियाँ
बताते हुए उन पर माइम करने को कहा, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों ने छोटी-छोटी कई
मनोरंजक प्रस्तुतियाँ दीं। उन्होंने सिखाया कि माइम में अपनी जगह पर स्थिर रहकर किस
तरह चलने, भागने या हवा में उडने का भ्रम पैदा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए
श्री मनोज नायर एवम उनके साथी श्री मिथुन ने स्वयं काल्पनिक गुब्बारे, गेंद, छाते
और पतंग के साथ मनोरंजक प्रस्तुतियाँ दीं। उन्होंने आगे बताया कि माइम में संगीत
के मिश्रण से उसे अधिक मनोरंजक बनाया जा सकता है। इससे दर्शक लम्बे समय तक
प्रस्तुति से बंधता है।
कार्यशाला के आखिरी दिन बच्चों ने सीखी हुईं बातों को दो छोटी समूह
प्रस्तुतियों के माध्यम से प्रदर्शित किया और श्री नायर से आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यशाला के लगभग 30 प्रतिभागियों में से एक अजय कुमार मेहरा ने अपना अनुभव
बताते हुए कहा- मुझे हमेशा माइम प्रस्तुति देखने में बहुत मज़ा आता था इसलिए इसे
सीखने के लिए मैं तुरंत तैयार हो गया। वास्तव में इसे पर्फेक्ट्ली करना मुश्किल
है, लेकिन मुझे विश्वास है कि मनोज सर की सिखाई टेक्नीक्स से मैं जल्द ही अच्छे से
माइम करने लगूँगा।
एक अन्य प्रतिभागी प्रसन्न
गुप्ता, जो एक स्कूल विद्यार्थी हैं, ने कहा- मैंने वर्कशॉप को खूब एंजॉय किया।
मनोज सर ने बताया कि चूँकि माइम और पढाई दोनों में ही कंसंट्रेशन की बहुत ज़रूरत
होती है इसलिए मुझे लगता है कि सभी स्टूडेंट्स को यह सीखना चाहिए। इससे उन्हें
स्टडीज़ में भी हेल्प मिलेगी।
आरुणि परिमल
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