रविवार, 1 सितंबर 2024

राधा काबर नइ जलही मुरली/मोबाइल से

 सुनो भाई उधो

-परमानंद वर्मा

राधा क्यों न जले मुरली से... वह जान गई थी, कान्हा की चाल को, मुरली की आड़ में वह क्या गुल खिला रहा है। चतुर सुजान औरतें भांप लेती हैं अपने मर्दों के हाव-भाव, चाल और रंगत को देखकर। दिन-रात मुरली को अधरों से लगाए रहना...। आशंका सही साबित हुई, इस मुरली ने उसके लिए नइ मुसीबत खड़ी कर दी थी, आखिर जिसकी आशंका थी, वह सच हुआ। एक दिन उसने उन्हें पटरानी बनाकर ला दिया, रुखमणि को आज वही संकट ला खड़ा किया है मोबाइल ने। क्या स्त्री, क्या पुरुष, क्या जवान, क्या बाल-बच्चे, बहू, बेटियां और दो-तीन बच्चों वाली युवतियां भी घरों को छोड़-छोड़कर भाग रही हैं अपने प्रेमियों के साथ। संकट चहुं ओर है, मान-मर्यादा, लाज-शरम, नाक-कान सब कटा डाल रहे हैं। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह आलेख...

चाय, नाश्ता ला टेबल मं रख दीस, तहां ले आगू मं रखे खुरसी मं हमर इहां के मंडलीन सोनकुंवर फइसकरा के बइठगे। मुड़ी ला आज ओ का के सेती मुंड़मिंजनी माटी मं मिंजे रिहिसे, ओ बात ला बताय के लइक नइहे, ओला उही मन जानथे। 

अब आघू मं बइठे हे तब बने सोचत रेहेंव, कुछु खास बात होही, गोठियाही-बताही, फेर थोरकिन मं नागिन कस रूप धरत देखेंव तहां ले डर्रागेंव। सोचेंव, का होगे भगवान? ओ दिन भगवंतीन गउंटनीन संग गोठियावत-बतावत देख ले रिहिसे, तेकरे रीस ला तो आज नइ उतारही?

थोरकिन मं रिच्छिन बनगे, मइनता भड़कगे। तमतमावत पूछथे- कस जी, तंय ओ रात-रातभर मोबाइल चलावत रहिथस, का देखत रहिथस?

सोनकुंवर के बात ला सुन के सुकुरदुम हो गेंव,‌ ठाड़ सुखागेंव। लम्बा सांस भरत मने मन केहेंव- चल बाचगेंव, भगवंतीन गउंटनीन के लफड़ा ले। डर्रागे रेहेंव, आज ये मोर मुड़ी ऊपर पथरा तो नइ कचार के रइही?

चाय जुड़ावय झन कहिके ओला लकर-धकर पियेंव, नाश्ता ल पाछू कर लेहौं सोचके छोड़ देंव। 

केहेंव सोनकुंवर तोर बर चाय नइ लानेस?

चुंदी ला झटकारत अउ हलू-हलू ओकर ऊपर हाथ फेरत राहय। मोर सवाल के जवाब देना ओ गोसइन जरूरी नइ समझिस, अउ बिच्छी मारे असन फेर पूछथे- तोला पूछे हौं मोबाइल मं रात-रातभर का देखथस तेकर जवाब नइ देवत हस?

बताएंव- अरे भई समाचार देखथौं देश-दुनिया के, गीत-भजन अउ प्रवचन सुनथौं। अरे का जया किशोरी कइसन सुंदर हे ओकर रंग-रूप, मोहनी मूरत। ओ हांसथे ते अइसे लगथे ते अमरित झरत हे ओकर मुंह ले। 

ओला अउ बताथौं- अरे ओ प्रदीप मिश्रा हे ना, सिहोर वाले, कतेक सुग्घर शिवपुरान के कथा सुनाथे। चलबो का अभी भिलाई मं होवत हे। ओ पइत अमलेशर मं होइस ता बाप रे, पांच लाख के भीड़ जुरियाय रिहिसे प्रवचन सुने ला। अब तो कहां गय सुधांशु महाराज, ऋतंभरा अउ उमा भारती‌‌‍? ओकर मन के नांवे अब सुनब मं नइ आवय। 

सोनकुंवर फेर जोर से अपन गीला चुंदी ल झटकारथे तब पानी छरिया के अखबार, नाश्ता अउ मोरो कुरता मं पर जथे। खिसियायेंव- देख के चुंदी ला झटकार न।

खिसिया झन, गुर्रा झन कुकुर असन। जतका तैं जयाकिशोरी, प्रदीप मिश्रा, अउ काकर-काकर प्रवचन के बात लमियाय हस न तउन मन नोहय, मोर सवाल के जवाब। मोर सवाल हे, मोबाइल मं तैं रात-रात भर का देखत रहिथस?

माथा तो मोरो ठनकगे, एक मन होइस- एला बजेड़ दौं, दोहन दौं, हकन दौं का, एके घौं मं घुसड़ जही कतका मुंहबाज हे तउन हा? डौकी हे तब एमन ला डौकी असन रहना चाही। का मंथरा असन गुप्तचरी करही मरद मन के?

सोनकुंवर कहिथे- तैं का बताबे, मैं बतावत हौं तोला। ओ मोबाइल मं फेसबुक अउ यू-ट्यूब मं ओ बिगड़ैल वेश्या, छिनार, रांडी, सबखही मन ल देखथौ, ओकर सकल करम ला देखथौ। बेटी, बहिनी, बहू सब उकरे चरित्तर ला देख-देख के बिगड़त जात हे। 

ओहर बताथे- मोला तैं प्रवचन, भजन, गीता अउ समाचार सुनथौं कहिके भुलवारत हस, एकर आड़ मं ओ रांड़ मन के अनफभक अउ गंदा-गंदा फोटो ला देखथस। मैं मरगे हौं का तोर बर, तोर मन नइ बुतावत हे मोर से ते दूसर बाई बना के ले आ, तोला कुछु नइ कइहौं, फेर ये मोबाइल के रांडी, किरही मन ला झन देख। सब बेटी, बहिनी, बहू अउ गोसइन बिगड़त हे। दो-दो, तीन-तीन झन लइकोरी महतारी मन भाग-भाग के जाथे। घर-परिवार बिगाड़त हे ये मोबाइल हा। 

सोनकुंवर के सरलग फायरिंग ले घायल होय बिगन नइ रहि सकेंव। ओहर पूछथे- ये मोबाइल ला कोन नइ देखय। मंत्री, नेता, सन्यासी, महात्मा अऊ नौकरशाह, उद्योगपति, व्यापारी, जज, वकील, मास्टर, पटवारी, बहू-बेटा। का ककरो आंखी मं नइ दीखत होही कइसन अलकरहा-अलकरहा नइ देखे लेइक जउन चीज हे, गंदा-गंदा अंग प्रदर्शन देखाथे, सरकार एकर ऊपर प्रतिबंध काबर नइ लगावय। काबर अश्लीलता ला मोबाइल के जरिये समाज ला परोसत हे?

मंय निरुत्तर होगेंव सोनकुंवर के आगू मं। बात तो ओहर सोलह आना सही कहिस हे। अब देखे बर तो ओला सबो झन देखत हे, अब कानून अउ बेवस्था के सवाल हे। एला सरकारे हा कुछ कर सकत हे, अदालत घला संज्ञान लेके कानूनी कार्रवाई कर सकत हे, फेर अभी तक कोनो अइसन कदम नइ उठाय हे। सामाजिक संगठन, धार्मिक नेता मन घला कुछु कर सकत हे। फेर सबके मुंह काबर सिलाय हे भई, इही समझ नइ आवत हे। 

सोनकुंवर तो पथरा कचार के चल दीस, मुंह ला फुलाय-फुलाय। ओ जान डरे रिहिसे एहर का देखत रहिथे रात-रात भर कइके। एक दिन मौका पइस तब गुस्सा ला उछर दीस। अइसे लगिस, जइसे मोरो डौका तो नइ बिगड़ जही अउ कोनो रांड़ी ला धर के नइ भाग जाही?

नाश्ता टेबल मं रखे-रखे जुड़ागे रिहिसे। ओला हुदकरायेंव- ए सोनकुंवर, सुन तो ओ।

मरगे हे तोर सोनकुंवर आज ले, 

जा उही राड़ी मन करा तहू हा काहत चल दीस।


जाती बिराती 

सब मातगे हे मातगे हे मातगे हे रे,

भांग धतूरा खा पी के

सब मातगे मातगे हे मातगे रे,


सब टुरी टुरा अउ जवान,

का डौकी डौका ले बे,

ते का डोकरी अउ डोकरा,

सब मातगे हे मातगे हे मातगे रे,

का दुआपर के मुरली ला लेबे,

तब का कलजुग के मोबाइल,

राधा के जघा मं रुखमनि आगे,

तब कलजुग मं उढरिया लाने,

बात आंखी आंखी के खेल हे,

सब मातगे हे मातगे हे मातगे रे,

डौका पर के डौकी ले भागत हे,

त डौकी पर के डौका ले उडावत हे,

का समे आगे हे राम,

मातगे हे मातगे हे मातगे हे रे,

ये मुरली अउ मोबाइल, 

कोनो ला.कहूं के नइ रखिस राम,

ओ जुग मं राधा रोवत रहिगे,

कलजुग मं बारा हाल होवत हे राम,

सब मातगे हे मातगे हे मातगे हे रे।।

-डॉ. महेश परिमल, भोपाल

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