वैज्ञानिकों ने पॉलीथीन को उपयोगी पदार्थों में बदलने का एक तरीका खोज निकाला है। हालांकि यह अभी प्रायोगिक दौर में ही है मगर इससे उम्मीद बंधी है कि जल्दी ही व्यापारिक स्तर पर पॉलीथीन से ईंधन बनाना संभव हो जाएगा। पॉलीथीन वह पदार्थ है जिसका उपयोग हम कई तरह से करते हैं - खास तौर से थैलियां। एक अनुमान के मुताबिक हम प्रति वर्ष 10 करोड़ टन पॉलीथीन की वस्तुएं बनाते हैं और इनमें से अधिकांश को फेंक देते हैं। फेंकी गई पॉलीथीन की वस्तुएं कचरा भराव स्थलों पर, नदी-नालों में, शहर की नालियों में और समुद्रों में पहुंच जाती हैं। ये बहुत धीरे-धीरे विघटित होती हैं। पॉलीथीन दरअसल एथीलीन नामक हाइड्रोकार्बन के अणुओं को जोड़-जोड़कर बनाया गया पॉलीमर है।
एथीलीन को पॉलीथीन में बदलने के लिए दो उत्प्रेरकों के मिश्रण का उपयोग किया जाता है। एथीलीन के अणु में दो कार्बन होते हैं जो आपस में दोहरे बंधनों से जुड़े होते हैं। एक उत्प्रेरक इनमें से एक बंधन को तोड़ देता है। अब एथीलीन के हर अणु के पास दूसरे अणु से बंधन बनाने की गुंजाइश होती है। दूसरा उत्प्रेरक इस क्रिया में मदद करता है। जब ये बंधन बनते हैं तो धीरे-धीरे लंबी-लंबी कार्बन की श्रृंखलाएं बन जाती हैं। यही पॉलीथीन है। पॉलीथीन के टिकाऊपन का राज़ यह है कि इसमें कार्बन परमाणुओं के बीच मात्र इकहरे बंधन होते हैं, जिन्हें तोड़ना मुश्किल होता है।
इन्हीं उत्प्रेरकों का उपयोग करके इर्विन स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के ज़िबिन गुआन और शंघाई की चायनीज़ एकेडमी ऑफ साइन्सेज़ के ज़ेंग हुआंग ने पॉलीथीन से निपटने का तरीका विकसित किया है। उन्होंने इन उत्प्रेरकों के थोड़े परिवर्तित रूप का उपयोग किया। यह परिवर्तित रूप नॉर्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय के मॉरिस ब्रुकहार्ट ने विकसित किया है। इस उत्प्रेरक की विशेषता यह है कि यह कार्बन-कार्बन इकहरे बंधन को तोड़ देता है और उन्हें फिर से जोड़ता है। जब ये जुड़ते हैं तो बहुत लंबी-लंबी श्रृंखलाएं नहीं बनाते बल्कि छोटी-छोटी श्रृंखलाएं बनाते हैं - लगभग उतनी लंबी जैसी कि डीज़ल वगैरह में पाई जाती हैं। तो गुआन और हुआंग ने इस उत्प्रेरक का उपयोग पॉलीथीन पर करने का विचार किया। पॉलीथीन में तो लाखों कार्बन वाली श्रृंखलाएं होती हैं।
उन्होंने कचरे में से पॉलीथीन की थैलियां इकट्ठी कीं और उनमें थोड़ा डीज़ल मिला दिया। अब इस मिश्रण को उक्त उत्प्रेरकों के साथ रखा गया तो 24 घंटे बाद जो उत्पाद मिला उसमें कार्बन की अपेक्षाकृत छोटी श्रृंखला वाले हाइड्रोकार्बन थे। साइन्स एडवांसेस नामक पत्रिका में अपने काम का विवरण देते हुए उन्होंने बताया है कि अभी यह प्रक्रिया बहुत धीमी है। ये उत्प्रेरक बहुत महंगे भी हैं। इसके अलावा, ये जल्दी ही खुद भी विघटित हो जाते हैं। इसलिए अभी यह प्रक्रिया व्यापारिक स्तर पर काम नहीं आएगी, मगर उन्हें उम्मीद है कि रास्ता मिल गया है और आगे काम करके वे इसे एक उपयोगी तकनीक में बदल देंगे। (स्रोत फीचर्स)
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