वैज्ञानिकों ने जैव अभियांत्रिकी की मदद से कृत्रिम कान का विकास किया है और यह विकास उन लोगों के लिए वरदान साबित होगा जो दुर्घटनाओं में अपने कान खो देते हैं अथवा जिनके कान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। वैज्ञानिकों ने थ्रीडी ¨प्र¨टग और इंजेक्टेबल मोल्ड के इस्तेमाल से एक ऐसे जैव अभियांत्रिक कृत्रिम कान का विकास किया है जो प्राकृतिक कान की तरह ही दिखता और काम करता है। जैव इंजीनियरों और चिकित्सकों के द्वारा बनाए गए इस कृत्रिम कान ने मिक्रोटिया नामक जन्मजात विकृति के साथ पैदा हुए हजारों बच्चों के लिए उम्मीद की किरण पैदा की है। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में. कर्नेल बायोमेडिकल इंजीनियर और वेल कर्नेल मेडिकल कालेज के चिकित्सकों ने बताया है कि 3.डी ¨प्र¨टग और इंजेक्टेबल जेल की मदद से जीवित कोशिकाओं से फैशनबल कान का किस प्रकार विकास किया गया जो व्यावहारिक रूप से एक मानव कान के समान है। वैज्ञानिकों के अनुसार तीन महीने की अवधि के दौरान. ये लचीले कान कोलेजन को हटाने के लिए काíटलेज का विकास करने लगते हैं जिसका इस्तेमाल उन्हें मोल्ड करने के लिए किया जाता है।
इस शोध में शामिल जैव चिकित्सा के एसोसिएट प्रोफेसर और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जन लॉरेंस बोनासर ने कहा कि यह दवा और बुनियादी विज्ञान दोनों के लिए एक उपलब्धि है। उनके अनुसार यह कान की विकृति के साथ पैदा हुए बच्चों के लिए एक उचित समाधन हो सकता है। अमरीका के बायोजेनेरेटिव मेडिसीन एंड सर्जरी के प्रयोगशला के निदेशक और न्यूयार्क सिटी में विल कार्नेल में घ्लास्टिक सर्जरी के सहायक प्रोफेसर डॉ. जैसन स्पेक्टर कहते हैं कि इस जैव अभियांत्रक कान को किसी दुर्घटना या कैंसर के कारण कान के कुछ हिस्सों या कान के पूरे बाहरी हिस्से को खो चुके लोगों में प्रतिस्थापित किया जा सकता है। अभी प्रतिस्थापित किए जाने वाले कान का निर्माण आम तौर पर ऐसे पदार्थो से किया जाता है जिनमें स्टायरोफोम की तरह स्थिरता हो. या कभी.कभी. सर्जन रोगी के रिब को काटकर कान का निर्माण करते हैं। यह विकल्प चुनौतीपूर्ण और बच्चों के लिए दर्दनाक है और यह कान शयद ही कभी पूरी तरह से प्राकृतिक लग पाता है या अच्छी तरह से काम करता है। कान बनाने के लिए प्रो.बोनासर और सहयोगियों ने कृत्रिम कान बनाने का काम मानव कान के 3.डी छवि के साथ शुरू किया और मोल्ड को जोडने के लिए 3 डी ¨पट्रर के इस्तेमाल से इमेज को डिजिटाइज्ड सॉलिड कान में परिवíतत किया। कर्नेल द्वारा विकसित यह उच्च घनत्व वाला जेल मोल्ड को हटाने पर जेल.ओ की स्थिरता के समान हो जाता है। कोलेजन विकसित हुए काíटलेज पर एक स्काफोल्ड की तरह कार्य करता है। यह प्रक्रिया बहुत तेजी से होती है।
र्पो. बोनासर के अनुसार द्धद्धमोल्ड को डिजाइन करने में आधे दिन का समय लगता है, इसे प्रिंट करने में लगभग एक दिन लगता है, जेल को इंजेक्ट करने में आध घंटा लगता है और हम इसके 15 मिनट बाद कान को निकाल सकते हैं। इसे प्रत्यारोपित करने से पहले हम कान की छटाई कर सेल कल्चर मीडिया में इसे कुछ दिनों के लिए कल्चर करते हैं।द्धद्ध मिक्रोटिया की घटना तब होती है जब बाहरी कान पूरी तरह से विकसित नहीं होता है। यह घटना हर सार्ल पति 10 हजार बच्चों में करीब एक से 4 बच्चों कर्ो पभावित करती है। मिक्रोटिया के साथ पैदा हुए कई बच्चों में कान को अंदरूनी हिस्सा तो सामान्य होता है लेकिन कान के बाहरी हिस्से के न होने के कारण उनके सुनने की क्षमता में कमी आ जाती है। स्पेक्टर के अनुसार रोगी के शरीर की कोशिकाओं के इस्तेमाल के कारण इसके अस्वीकृत होने की संभावना बहुत कम होगी। उनके अनुसार बच्चों में जैव अभियांत्रिक कान कर्ो पत्यारोपित करने का सबसे अच्छा समय तब होता है जब वह 5 या 6 वर्ष का होता है। इस र्उम में कान वयस्क कान का लगभग द्धर्0 पतिशत विकास कर चुका होता है। यदि भविष्य में यह कान सुरक्षा र्औ पभाव के मामले में खरा उतरता है तो तीन साल के अंदर ही इस कान का मानव में पहलर्ा पत्यारोपण करना संभव हो जाएगा।
प्रो. बोनासर के अनुसार मोल्ड को डिजाइन करने में आधे दिन का समय लगता है. इसे ¨पट्र करने में लगभग एक दिन लगता है. जेल को इंजेक्ट करने में आधा घंटा लगता है और हम इसके 15 मिनट बाद कान को निकाल सकते हैं। इसे प्रत्यारोपित करने से पहले हम कान की छटाई कर सेल कल्चर मीडिया में इसे कुछ दिनों के लिए कल्चर करते हैं। मिक्रोटिया की घटना तब होती है जब बाहरी कान पूरी तरह से विकसित नहीं होता है। यह घटना हर साल प्रति 10 हजार बच्चों में करीब एक से 4 बच्चों को प्रभावित करती है। मिक्रोटिया के साथ पैदा हुए कई बच्चों में कान को अंदरुनी हिस्सा तो सामान्य होता है, लेकिन कान के बाहरी हिस्से के न होने के कारण उनके सुनने की क्षमता में कमी आ जाती है। स्पेक्टर के अनुसार रोगी के शरीर की कोशिकाओं के इस्तेमाल के कारण इसके अस्वीकृत होने की संभावना बहुत कम होगी। उनके अनुसार बच्चों में जैव अभियांत्रिक कान को प्रत्यारोपित करने का सबसे अच्छा समय तब होता है जब वह 5 या 6 वर्ष का होता है। इस उम्र में कान वयस्क कान का लगभग 80 प्रतिशत विकास कर चुका होता है। यदि भविष्य में यह कान सुरक्षा और प्रभाव के मामले में खरा उतरता है तो तीन साल के अंदर ही इस कान का मानव में पहला प्रत्यारोपण करना संभव हो जाएगा।
इस शोध में शामिल जैव चिकित्सा के एसोसिएट प्रोफेसर और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जन लॉरेंस बोनासर ने कहा कि यह दवा और बुनियादी विज्ञान दोनों के लिए एक उपलब्धि है। उनके अनुसार यह कान की विकृति के साथ पैदा हुए बच्चों के लिए एक उचित समाधन हो सकता है। अमरीका के बायोजेनेरेटिव मेडिसीन एंड सर्जरी के प्रयोगशला के निदेशक और न्यूयार्क सिटी में विल कार्नेल में घ्लास्टिक सर्जरी के सहायक प्रोफेसर डॉ. जैसन स्पेक्टर कहते हैं कि इस जैव अभियांत्रक कान को किसी दुर्घटना या कैंसर के कारण कान के कुछ हिस्सों या कान के पूरे बाहरी हिस्से को खो चुके लोगों में प्रतिस्थापित किया जा सकता है। अभी प्रतिस्थापित किए जाने वाले कान का निर्माण आम तौर पर ऐसे पदार्थो से किया जाता है जिनमें स्टायरोफोम की तरह स्थिरता हो. या कभी.कभी. सर्जन रोगी के रिब को काटकर कान का निर्माण करते हैं। यह विकल्प चुनौतीपूर्ण और बच्चों के लिए दर्दनाक है और यह कान शयद ही कभी पूरी तरह से प्राकृतिक लग पाता है या अच्छी तरह से काम करता है। कान बनाने के लिए प्रो.बोनासर और सहयोगियों ने कृत्रिम कान बनाने का काम मानव कान के 3.डी छवि के साथ शुरू किया और मोल्ड को जोडने के लिए 3 डी ¨पट्रर के इस्तेमाल से इमेज को डिजिटाइज्ड सॉलिड कान में परिवíतत किया। कर्नेल द्वारा विकसित यह उच्च घनत्व वाला जेल मोल्ड को हटाने पर जेल.ओ की स्थिरता के समान हो जाता है। कोलेजन विकसित हुए काíटलेज पर एक स्काफोल्ड की तरह कार्य करता है। यह प्रक्रिया बहुत तेजी से होती है।
र्पो. बोनासर के अनुसार द्धद्धमोल्ड को डिजाइन करने में आधे दिन का समय लगता है, इसे प्रिंट करने में लगभग एक दिन लगता है, जेल को इंजेक्ट करने में आध घंटा लगता है और हम इसके 15 मिनट बाद कान को निकाल सकते हैं। इसे प्रत्यारोपित करने से पहले हम कान की छटाई कर सेल कल्चर मीडिया में इसे कुछ दिनों के लिए कल्चर करते हैं।द्धद्ध मिक्रोटिया की घटना तब होती है जब बाहरी कान पूरी तरह से विकसित नहीं होता है। यह घटना हर सार्ल पति 10 हजार बच्चों में करीब एक से 4 बच्चों कर्ो पभावित करती है। मिक्रोटिया के साथ पैदा हुए कई बच्चों में कान को अंदरूनी हिस्सा तो सामान्य होता है लेकिन कान के बाहरी हिस्से के न होने के कारण उनके सुनने की क्षमता में कमी आ जाती है। स्पेक्टर के अनुसार रोगी के शरीर की कोशिकाओं के इस्तेमाल के कारण इसके अस्वीकृत होने की संभावना बहुत कम होगी। उनके अनुसार बच्चों में जैव अभियांत्रिक कान कर्ो पत्यारोपित करने का सबसे अच्छा समय तब होता है जब वह 5 या 6 वर्ष का होता है। इस र्उम में कान वयस्क कान का लगभग द्धर्0 पतिशत विकास कर चुका होता है। यदि भविष्य में यह कान सुरक्षा र्औ पभाव के मामले में खरा उतरता है तो तीन साल के अंदर ही इस कान का मानव में पहलर्ा पत्यारोपण करना संभव हो जाएगा।
प्रो. बोनासर के अनुसार मोल्ड को डिजाइन करने में आधे दिन का समय लगता है. इसे ¨पट्र करने में लगभग एक दिन लगता है. जेल को इंजेक्ट करने में आधा घंटा लगता है और हम इसके 15 मिनट बाद कान को निकाल सकते हैं। इसे प्रत्यारोपित करने से पहले हम कान की छटाई कर सेल कल्चर मीडिया में इसे कुछ दिनों के लिए कल्चर करते हैं। मिक्रोटिया की घटना तब होती है जब बाहरी कान पूरी तरह से विकसित नहीं होता है। यह घटना हर साल प्रति 10 हजार बच्चों में करीब एक से 4 बच्चों को प्रभावित करती है। मिक्रोटिया के साथ पैदा हुए कई बच्चों में कान को अंदरुनी हिस्सा तो सामान्य होता है, लेकिन कान के बाहरी हिस्से के न होने के कारण उनके सुनने की क्षमता में कमी आ जाती है। स्पेक्टर के अनुसार रोगी के शरीर की कोशिकाओं के इस्तेमाल के कारण इसके अस्वीकृत होने की संभावना बहुत कम होगी। उनके अनुसार बच्चों में जैव अभियांत्रिक कान को प्रत्यारोपित करने का सबसे अच्छा समय तब होता है जब वह 5 या 6 वर्ष का होता है। इस उम्र में कान वयस्क कान का लगभग 80 प्रतिशत विकास कर चुका होता है। यदि भविष्य में यह कान सुरक्षा और प्रभाव के मामले में खरा उतरता है तो तीन साल के अंदर ही इस कान का मानव में पहला प्रत्यारोपण करना संभव हो जाएगा।
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