रोशन जिंदगी के स्याह हाशिए
डॉ. महेश परिमल, वरिष्ठ पत्रकार
जिन आंखों के भाव पर लाखों कुर्बान हो जाते थे, वे आंखें हमेशा के लिए बंद हो गई। पर उसकी रुह आंख खोलने वाले सवाल पूछ रही है कि क्या सफलता का महत्व इतना अधिक है कि वह न मिले, तो एक खूबसूरत जिंदगी को इस तरह से लटक जाना पड़ता है? जिया खान की मौत को सांसारिक सफलता को सीमा से अधिक महत्व देने के व्यवहार के खिलाफ एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए।
वैसे तो उसके पास क्या नहीं था। उसके पिता लंदन और न्यूयार्क में रियल एस्टेट के कारोबार से जुड़े हैं। मुम्बई के जुहू जैसे पॉश इलाके में खुद का आलीशान फ्लैट था। बॉलीवुड के साथ उनकी मां का करीबी संबंध था, इसलिए उसे फिल्मों के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा। केवल 18 वर्ष की उम्र में ही उसे पहली फिल्म मिली। रामगोपाल वर्मा की नि:शब्द, इसके नायक थे अमिताभ बच्चन। हालांकि यह फिल्म नहीं चल पाई, पर उसकी भूमिका को सराहना मिली। दूसरी फिल्म थी सौ करोड़ के बजट वाली आमिर खान की हिट फिल्म गजनी। तीसरी फिल्म थी अक्षय कुमार के साथ हाऊसफुल। बेहद सलोनी, खूबसूरत आंखों के एक झुकाव पर ही लोग जिस पर आफरीन हो जाएं, ऐसी देह केवल सफलता न मिलने से एक झटके में ही लाश बन जाए, उसका क्या कहना?
जिया खान उर्फ नफीसा खान उर्फ बॉलीवुड की लोलिता अब इस दुनिया में नहीं है। अब वह तस्वीरों में ही कैद हो गई है। उसकी तस्वीरों को ध्यान से देखें, तो स्पष्ट होगा कि मासूम आंखों के आगे लटकती जुल्फ हर किसी को आकर्षित करती है। यह मानना मुश्किल हो जाता है कि इस खूबसूरत बाला ने आखिर क्यों अपने जीवन से नाता तोड़ लिया? वे मासूम आंखें किस तरह से फंदे में झूलकर बाहर आ गई होंगी, कितनी भयानक होंगी वे आंखें? यदि वह इस क्षण की कल्पना ही कर लेती, तो शायद अपने आपको मौत के हवाले करने का विचार ही छोड़ देती। पत्थर की तरह तराशा उसका शिल्प से शरीर किस कदर ऐंठ गया होगा, कितना खतरनाक मंजर रहा होगा? कितनी बार छटपटाई होगी, उसकी देह? इसका उसे जरा सा भी आभास होता, तो शायद वह अपने गले की गांठ छोड़ देती, जिंदगी फिर मुस्कराने लगती। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। उसकी आंखें हम सबसे यही पूछ रही होंगी कि क्या वास्तव में सफलता जीवन में इतनी आवश्यक है कि वह न मिले, तो खुद को मौत के हवाले कर देने में संकोच नहीं करना चाहिए। एक खूबसूरत जिंदगी लटक गई, कोई कुछ नहीं कर पाया। जिंदगी जीना क्या इतना कठिन है? आसान तो खैर कुछ भी नहीं होता, पर जिंदगी को मौत के हवाले कर देना इतना सहज है?
बॉलीवुड एक ऐसा दरिया है, जहां लगातार तैरते रहने के लिए हाथ-पांव चलाना अनिवार्य है। अमिताभ बच्चन के साथ पहली फिल्म, दूसरी फिल्म आमिर खान के साथ और तीसरी फिल्म अक्षय कुमार के साथ, इसके बाद भी उसके पास काम की कमी। ऐसे में डिप्रेशन तो होगा ही। यही होता, तो चल भी जाता, उधर प्यार में निराशा मिली, तो उसका दिल बैठ गया। उसके सामने कोई आर्थिक समस्या तो थी नहीं। बस यही दो कारण हो सकते हैं। एक मर्लिन मनरो थी, जिसकी मौत 36 वर्ष की उम्र में हो गई। उसकी मौत का कारण यही बता गया कि एक बार उसने आइने में अपने चेहरे पर झुर्रियां देख ली थी, बस यही से शुरू हो गया उसका डिप्रेशन। मधुबाला के पास क्या नहीं था। शोहरत के अलावा धन भी था। पर मात्र 19 वर्ष की उम्र में वह मौत को प्यारी हो गई। एक तरफ जिया अपनी निष्फलता को पचा नहीं पाई, उधर दिव्या भारती अपनी सफलता नहीं पचा पाई। नफीसा जोसेफ जैसी मॉडल भी 2004 में मात्र 26 वर्ष की उम्र में आत्महत्या कर लेगी, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। आखिर वह 1997 की मिस इंडिया जो थी। वह भी हम सबसे दूर हो गई। उसकी मौत से सभी हतप्रभ रह गए। इस चकाचौंध भरी दुनिया का सच यही है कि सफलता मिले, तो उसे सहज तरीके से ग्रहण करो। मौत कई प्रकार से आ सकती है, पर हमें सफलता की व्याख्या बहुत बड़ी नहीं आंकनी चाहिए। सफलता को सहज भाव से लेने पर विफलता को भी सहज भाव से लिया जा सकता है। तब विफलता हमें सबक सिखाती है। जिंदगी से नाता तोड़ने के लिए प्रेरित नहीं करती।
जिया की तरह डिप्रेशन में जीने वाली मीना कुमारी ने भी अकाल मौत को गले लगाया। उसे यह अहसास हो गया था कि इस फानी दुनिया में कुछ भी शेष नहीं रहता। सब माया का खेल है। वह अच्छी शायरा थीं, इसलिए उसने अपने गम को शब्द दे दिए। अपनी पीड़ा को उसने कुछ इस तरह से शब्द दिए-
हंस-हंस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकड़े
हर शख्स की किस्मत में इनाम नहीं होता
दिन डूबे हैं या डूबी बरात लिए कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता।
मीना कुमारी ने अपने गम को शब्द दिए, जिया नि:शब्द हो गई। वह कुछ कह नहीं पाई। बहुत से गमजदा लोगों का गम बता गई। कामयाबी ही सब कुछ नहीं है, यह बता नहीं पाई। काश कंप्यूटर की तरह जिंदगी में अन डू का कमांड होता, तो एक बार उसका इस्तेमाल कर लेती। पर ऐसा हो नहीं पाया। बहुत से सवालों को छोड़ गई उसकी मासूम आंखें। कौन देगा उन आंखों को जवाब, कोई तो बोलो!
जिन आंखों के भाव पर लाखों कुर्बान हो जाते थे, वे आंखें हमेशा के लिए बंद हो गई। पर उसकी रुह आंख खोलने वाले सवाल पूछ रही है कि क्या सफलता का महत्व इतना अधिक है कि वह न मिले, तो एक खूबसूरत जिंदगी को इस तरह से लटक जाना पड़ता है? जिया खान की मौत को सांसारिक सफलता को सीमा से अधिक महत्व देने के व्यवहार के खिलाफ एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए।
वैसे तो उसके पास क्या नहीं था। उसके पिता लंदन और न्यूयार्क में रियल एस्टेट के कारोबार से जुड़े हैं। मुम्बई के जुहू जैसे पॉश इलाके में खुद का आलीशान फ्लैट था। बॉलीवुड के साथ उनकी मां का करीबी संबंध था, इसलिए उसे फिल्मों के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा। केवल 18 वर्ष की उम्र में ही उसे पहली फिल्म मिली। रामगोपाल वर्मा की नि:शब्द, इसके नायक थे अमिताभ बच्चन। हालांकि यह फिल्म नहीं चल पाई, पर उसकी भूमिका को सराहना मिली। दूसरी फिल्म थी सौ करोड़ के बजट वाली आमिर खान की हिट फिल्म गजनी। तीसरी फिल्म थी अक्षय कुमार के साथ हाऊसफुल। बेहद सलोनी, खूबसूरत आंखों के एक झुकाव पर ही लोग जिस पर आफरीन हो जाएं, ऐसी देह केवल सफलता न मिलने से एक झटके में ही लाश बन जाए, उसका क्या कहना?
जिया खान उर्फ नफीसा खान उर्फ बॉलीवुड की लोलिता अब इस दुनिया में नहीं है। अब वह तस्वीरों में ही कैद हो गई है। उसकी तस्वीरों को ध्यान से देखें, तो स्पष्ट होगा कि मासूम आंखों के आगे लटकती जुल्फ हर किसी को आकर्षित करती है। यह मानना मुश्किल हो जाता है कि इस खूबसूरत बाला ने आखिर क्यों अपने जीवन से नाता तोड़ लिया? वे मासूम आंखें किस तरह से फंदे में झूलकर बाहर आ गई होंगी, कितनी भयानक होंगी वे आंखें? यदि वह इस क्षण की कल्पना ही कर लेती, तो शायद अपने आपको मौत के हवाले करने का विचार ही छोड़ देती। पत्थर की तरह तराशा उसका शिल्प से शरीर किस कदर ऐंठ गया होगा, कितना खतरनाक मंजर रहा होगा? कितनी बार छटपटाई होगी, उसकी देह? इसका उसे जरा सा भी आभास होता, तो शायद वह अपने गले की गांठ छोड़ देती, जिंदगी फिर मुस्कराने लगती। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। उसकी आंखें हम सबसे यही पूछ रही होंगी कि क्या वास्तव में सफलता जीवन में इतनी आवश्यक है कि वह न मिले, तो खुद को मौत के हवाले कर देने में संकोच नहीं करना चाहिए। एक खूबसूरत जिंदगी लटक गई, कोई कुछ नहीं कर पाया। जिंदगी जीना क्या इतना कठिन है? आसान तो खैर कुछ भी नहीं होता, पर जिंदगी को मौत के हवाले कर देना इतना सहज है?
बॉलीवुड एक ऐसा दरिया है, जहां लगातार तैरते रहने के लिए हाथ-पांव चलाना अनिवार्य है। अमिताभ बच्चन के साथ पहली फिल्म, दूसरी फिल्म आमिर खान के साथ और तीसरी फिल्म अक्षय कुमार के साथ, इसके बाद भी उसके पास काम की कमी। ऐसे में डिप्रेशन तो होगा ही। यही होता, तो चल भी जाता, उधर प्यार में निराशा मिली, तो उसका दिल बैठ गया। उसके सामने कोई आर्थिक समस्या तो थी नहीं। बस यही दो कारण हो सकते हैं। एक मर्लिन मनरो थी, जिसकी मौत 36 वर्ष की उम्र में हो गई। उसकी मौत का कारण यही बता गया कि एक बार उसने आइने में अपने चेहरे पर झुर्रियां देख ली थी, बस यही से शुरू हो गया उसका डिप्रेशन। मधुबाला के पास क्या नहीं था। शोहरत के अलावा धन भी था। पर मात्र 19 वर्ष की उम्र में वह मौत को प्यारी हो गई। एक तरफ जिया अपनी निष्फलता को पचा नहीं पाई, उधर दिव्या भारती अपनी सफलता नहीं पचा पाई। नफीसा जोसेफ जैसी मॉडल भी 2004 में मात्र 26 वर्ष की उम्र में आत्महत्या कर लेगी, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। आखिर वह 1997 की मिस इंडिया जो थी। वह भी हम सबसे दूर हो गई। उसकी मौत से सभी हतप्रभ रह गए। इस चकाचौंध भरी दुनिया का सच यही है कि सफलता मिले, तो उसे सहज तरीके से ग्रहण करो। मौत कई प्रकार से आ सकती है, पर हमें सफलता की व्याख्या बहुत बड़ी नहीं आंकनी चाहिए। सफलता को सहज भाव से लेने पर विफलता को भी सहज भाव से लिया जा सकता है। तब विफलता हमें सबक सिखाती है। जिंदगी से नाता तोड़ने के लिए प्रेरित नहीं करती।
जिया की तरह डिप्रेशन में जीने वाली मीना कुमारी ने भी अकाल मौत को गले लगाया। उसे यह अहसास हो गया था कि इस फानी दुनिया में कुछ भी शेष नहीं रहता। सब माया का खेल है। वह अच्छी शायरा थीं, इसलिए उसने अपने गम को शब्द दे दिए। अपनी पीड़ा को उसने कुछ इस तरह से शब्द दिए-
हंस-हंस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकड़े
हर शख्स की किस्मत में इनाम नहीं होता
दिन डूबे हैं या डूबी बरात लिए कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता।
मीना कुमारी ने अपने गम को शब्द दिए, जिया नि:शब्द हो गई। वह कुछ कह नहीं पाई। बहुत से गमजदा लोगों का गम बता गई। कामयाबी ही सब कुछ नहीं है, यह बता नहीं पाई। काश कंप्यूटर की तरह जिंदगी में अन डू का कमांड होता, तो एक बार उसका इस्तेमाल कर लेती। पर ऐसा हो नहीं पाया। बहुत से सवालों को छोड़ गई उसकी मासूम आंखें। कौन देगा उन आंखों को जवाब, कोई तो बोलो!
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