प्रो. डॉ. पुष्पिता अवस्थी
...मेरे भारत देश को ‘इंडिया’ क्यों कहा जा रहा है ? मैं समझ नहीं पाती कि आजादी के इतने बरस बाद भी आखिर क्यों हम गुलामी के प्रतीक ‘इंडिया’ शब्द को अपने देश का नाम बनाए हुए हैं और ‘भारत’ जो कि वास्तविक नाम है उसे बिसराने में लगे हैं। मेरा स्पष्ट मत है कि ‘भारत’ देश का नाम केवल ‘भारत’ ही होना चाहिए । ‘भारत’ सिर्फ देश या भूखंड का नाममात्र ही नहीं है बल्कि इस देश की संस्कृति का भी नाम है। ‘भारत’ शब्द भारत की संस्कृति का द्योतक है। हमारे देश के भारत नाम में हमारी भारतीय संस्कृति के संदर्भ छुपे हैं। इन संदर्भों में भारत देश के ऐतिहासिक दस्तावेज समाहित हैं, जिन्हें अलग से उद्घोष करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। भारत नाम में इस देश की पहचान ध्वनित होती है जो इस देश की अस्मिता है। यही कारण है कि विदेश में रहनेवाली भारतवंशी पीढ़ियाँ अपने को भारतीय मानती हैं या फिर हिंदुस्तानी। वे देश को ‘इंडिया’ या स्वयं को’ इंडियन’ कभी संबोधित नहीं करते हैं। इन सबकी दृष्टि को भी ध्यान में रखते हुए सरकार और भारत की न्याय व्यवस्था को चाहिए कि ‘ इंडिया’ शब्द से छुटकारा पाकर केवल भारत नाम रखने के लिए प्रयत्नशील रहें। क्योंकि देश का अस्तित्व और अस्मिता जितनी देश के भीतर होती है उतनी ही या उससे अधिक देश के बाहर के देशवासियों की भी होती है। जो अपनी इसी भारतीयता की पहचान के आधार पर विश्व में भारतीय होकर डटे हुए हैं, इंडियन होकर नहीं। भारत देश का नाम ‘भारत’ होने, और एक ही नाम होने से इसकी स्थायी पहचान बन सकेगी। विदेशों में कई बार कुछ लोग हमारे देश के दो नाम होने से दो देश मान बैठते हैं क्योंकि यह विश्व के लोगों की कल्पना से परे है कि किसी एक देश के एक ही समय में दो नाम हो सकते हैं। अगर भारत का नाम इंडिया रहेगा तो देश को अंग्रेजी संस्कृति के प्रभाव से मुक्त करा पाना कठिन हो जाएगा। क्योंकि ‘इंडिया’ शब्द में कहीं न कहीं अंग्रेजी कल्चर और भाषा भी समाहित रहेगी । इसलिए राष्ट्रभाषा हिंदी को अंग्रेजीयत के दुष्प्रभाव से बचाना है और हिंग्रेजी तथा हिंग्लिश जैसे संबोधनों से मुक्त रखना है। सारत: भारत देश का एकमात्र नाम भारत होना चाहिए । शताब्दियों से इस भूधरा की इसी नाम से पहचान है। युगों से इसका भारत नाम है फिर चन्द लोगों की गलतियों की सजा पूरे देशऔर विश्व के भारतीयों, भारतवंशियों और नई पीढ़ी को भला क्यों मिलनी चाहिए।
भारत देश का एक ही नाम होने से कम से कम देश के अंग्रेजीदाँ स्कूलों और ऐसी ही मानसिकता के लोगों के बीच देश का नाम हिंदी में बोलने की आदत तो पड़ेगी । आदतें संस्कार और भाषा की जननी हैं। विदेशों के भारतीय दूतावासों में ‘भारतीय दूतावास’ तो हिंदी में लिखा रहता है लेकिन सारे कार्य और गतिविधियों के कारण दूतावासों में कार्य करनेवाले भारतीयऔर उन देशों के अभारतीय नागरिक ‘इंडियन अम्बेसी’ ही संबोधित करते हैं और ‘राजदूत’ को ‘इंडियन अम्बेसडर’। वह भारतीय संस्कृति और तंत्र का दूत होते हुए भी ‘भारतीय राजदूत’ के संबोधन के लिए तरसता हुआ ही रिटायर हो जाता है क्योंकि दूतावास के कार्यकर्ताओँ से लेकर दूसरे देशों के अधिकारी व नागरिक तक उसे ‘इंडियन अम्बेसडर’ ही संबोधित करते रहते हैं। उनके सामने कम, पीठ पीछे और अधिक। भारत देश का नाम सिर्फ भारत इसलिए भी होना चाहिए क्योंकि भारत नाम हो जाने के कारण कम से कम विदेशों में स्थित दूतावासों से जारी होनेवाले निमंत्रणपत्रों पर तो ‘भारत’ नाम देवनागरी लिपि में भी लिखा रहेगा, जिससे देश की भाषा और संस्कृति दोनों का बोध होगा और महसूस होगा कि भारतीय दूतावास से जो पत्र या निमंत्रण पत्र आया है वह किसी विदेशी दूतावास से नहीं है। विदेशों में बसे भारतीय नागरिकों के लिए यह राष्ट्रीय संवेदना और राष्ट्रप्रेम से जुड़ा सवाल है। जब व्यक्ति के नाम का अनुवाद नहीं होता है तो देश के नाम का अनुवाद क्यों होना चाहिए ? भारत के राष्टीय ध्वज और राष्ट्रीय चिह्न तथा सत्यमेव जयते के साथ भारत नाम ही उचित और सटीक लगता है। इंडिया नाम तो बाहर के लोगों द्वारा पुकारा जानेवाला विदेशी शब्दावली और ब्रिटिश सत्ता का द्योतक है। जिससे गुलामी के इतिहास की दुर्गंध आती है और दम घुटने लगता है। ‘इंडिया’ नाम का देश की भाषा संस्कृति और इतिहास के साथ कोई सांस्कृतिक व वैचारिक संबंध ही नहीं है। ‘भारत’ नाम के साथ ‘इंडिया’ नाम चलाना अपने देश का अपमान करना है, वैसे ही जैसे कि अपने माता-पिता के दो नाम रखे जाएँ। जब पासपोर्ट में पहचान के लिए कानूनन एक व्यक्ति का एक ही नाम रहता है तो भला एक देश के दो नाम कैसे हो सकते हैं ? वैश्विक स्तर पर दूसरे देशों के बीच भी यह स्वीकार नहीं कि किसी देश के दो नाम हों। यही कारण है कि वैश्विक स्तर पर भारत नहीं केवल इंडिया ही प्रचलन में आता है और भारत नाम केवल औपचारिकता के लिए ही रखा गया प्रतीत होता है। विदेशी लोगों के लिए भारतीय दूतावास शब्द एकदम अनजाना है और ‘इंडियन अम्बेसी’ शब्द ही प्रचलन में है तथा विदेशी लोग इसे इसी रूप में पहचानते हैं, भारत नाम उनके लिए अनजाना है। भारत नाम से इस देश की प्राचीनता, पौरुष और ‘वसुधैव कुटंबकम’ के दर्शन का बोध होता है। विदेशी विद्वानों ने अपने आलेखों और विचार-विमर्श में सदा ही इस ओजस्वी भूधरा को ‘भारत’ ही संबोधित किया है। 'भारत को विश्व को देन' माननेवाले मैक्समूलर हों या ‘भारत की आत्मा’ नाम से पुस्तक लिखनेवाले गाय सोर्मन हों उनका कहना है कि उन्हें भारत में उदारता की भावना एवं वह जीवनी शक्ति मिली जो कि यूरोप और विश्व में कहीं नहीं है। मैं भी इस विचार से सहमत हूँ और करोड़ों भारतवासियों की भावना को स्वर देते हुए नीदरलैंड वैश्विक संस्था (नीदरलैंड हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन) के माध्यम से विश्व के सभी भारत-प्रेमियों, हिंदी-प्रेमी व्यक्तियों और संस्थाओं की ओर से करबद्ध अनुरोध और आह्वान करना चाहूँगी कि हम सब पूरी शक्ति के साथ अपने देशवासियों, सरकार, व्यवस्था और अन्य सभी शक्तियों के साथ मिलकर भारत का नाम केवल ‘भारत’ रहने के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद करें और जल्द ही तत्संबंधी घोषणा करवाएं। जिससे भारतवासियों के साथ-साथ विदेश में रहनेवाले हम भारतीयों तथा भारतवंशियों की आत्मा भी संतुष्ट हो।
प्रो. डॉ. पुष्पिता अवस्थी
निदेशक, वैश्विक हिंदी संस्थान, नीदरलैंड, यूरोप एवं समन्वय प्रभारी 'वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई'
...मेरे भारत देश को ‘इंडिया’ क्यों कहा जा रहा है ? मैं समझ नहीं पाती कि आजादी के इतने बरस बाद भी आखिर क्यों हम गुलामी के प्रतीक ‘इंडिया’ शब्द को अपने देश का नाम बनाए हुए हैं और ‘भारत’ जो कि वास्तविक नाम है उसे बिसराने में लगे हैं। मेरा स्पष्ट मत है कि ‘भारत’ देश का नाम केवल ‘भारत’ ही होना चाहिए । ‘भारत’ सिर्फ देश या भूखंड का नाममात्र ही नहीं है बल्कि इस देश की संस्कृति का भी नाम है। ‘भारत’ शब्द भारत की संस्कृति का द्योतक है। हमारे देश के भारत नाम में हमारी भारतीय संस्कृति के संदर्भ छुपे हैं। इन संदर्भों में भारत देश के ऐतिहासिक दस्तावेज समाहित हैं, जिन्हें अलग से उद्घोष करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। भारत नाम में इस देश की पहचान ध्वनित होती है जो इस देश की अस्मिता है। यही कारण है कि विदेश में रहनेवाली भारतवंशी पीढ़ियाँ अपने को भारतीय मानती हैं या फिर हिंदुस्तानी। वे देश को ‘इंडिया’ या स्वयं को’ इंडियन’ कभी संबोधित नहीं करते हैं। इन सबकी दृष्टि को भी ध्यान में रखते हुए सरकार और भारत की न्याय व्यवस्था को चाहिए कि ‘ इंडिया’ शब्द से छुटकारा पाकर केवल भारत नाम रखने के लिए प्रयत्नशील रहें। क्योंकि देश का अस्तित्व और अस्मिता जितनी देश के भीतर होती है उतनी ही या उससे अधिक देश के बाहर के देशवासियों की भी होती है। जो अपनी इसी भारतीयता की पहचान के आधार पर विश्व में भारतीय होकर डटे हुए हैं, इंडियन होकर नहीं। भारत देश का नाम ‘भारत’ होने, और एक ही नाम होने से इसकी स्थायी पहचान बन सकेगी। विदेशों में कई बार कुछ लोग हमारे देश के दो नाम होने से दो देश मान बैठते हैं क्योंकि यह विश्व के लोगों की कल्पना से परे है कि किसी एक देश के एक ही समय में दो नाम हो सकते हैं। अगर भारत का नाम इंडिया रहेगा तो देश को अंग्रेजी संस्कृति के प्रभाव से मुक्त करा पाना कठिन हो जाएगा। क्योंकि ‘इंडिया’ शब्द में कहीं न कहीं अंग्रेजी कल्चर और भाषा भी समाहित रहेगी । इसलिए राष्ट्रभाषा हिंदी को अंग्रेजीयत के दुष्प्रभाव से बचाना है और हिंग्रेजी तथा हिंग्लिश जैसे संबोधनों से मुक्त रखना है। सारत: भारत देश का एकमात्र नाम भारत होना चाहिए । शताब्दियों से इस भूधरा की इसी नाम से पहचान है। युगों से इसका भारत नाम है फिर चन्द लोगों की गलतियों की सजा पूरे देशऔर विश्व के भारतीयों, भारतवंशियों और नई पीढ़ी को भला क्यों मिलनी चाहिए।
भारत देश का एक ही नाम होने से कम से कम देश के अंग्रेजीदाँ स्कूलों और ऐसी ही मानसिकता के लोगों के बीच देश का नाम हिंदी में बोलने की आदत तो पड़ेगी । आदतें संस्कार और भाषा की जननी हैं। विदेशों के भारतीय दूतावासों में ‘भारतीय दूतावास’ तो हिंदी में लिखा रहता है लेकिन सारे कार्य और गतिविधियों के कारण दूतावासों में कार्य करनेवाले भारतीयऔर उन देशों के अभारतीय नागरिक ‘इंडियन अम्बेसी’ ही संबोधित करते हैं और ‘राजदूत’ को ‘इंडियन अम्बेसडर’। वह भारतीय संस्कृति और तंत्र का दूत होते हुए भी ‘भारतीय राजदूत’ के संबोधन के लिए तरसता हुआ ही रिटायर हो जाता है क्योंकि दूतावास के कार्यकर्ताओँ से लेकर दूसरे देशों के अधिकारी व नागरिक तक उसे ‘इंडियन अम्बेसडर’ ही संबोधित करते रहते हैं। उनके सामने कम, पीठ पीछे और अधिक। भारत देश का नाम सिर्फ भारत इसलिए भी होना चाहिए क्योंकि भारत नाम हो जाने के कारण कम से कम विदेशों में स्थित दूतावासों से जारी होनेवाले निमंत्रणपत्रों पर तो ‘भारत’ नाम देवनागरी लिपि में भी लिखा रहेगा, जिससे देश की भाषा और संस्कृति दोनों का बोध होगा और महसूस होगा कि भारतीय दूतावास से जो पत्र या निमंत्रण पत्र आया है वह किसी विदेशी दूतावास से नहीं है। विदेशों में बसे भारतीय नागरिकों के लिए यह राष्ट्रीय संवेदना और राष्ट्रप्रेम से जुड़ा सवाल है। जब व्यक्ति के नाम का अनुवाद नहीं होता है तो देश के नाम का अनुवाद क्यों होना चाहिए ? भारत के राष्टीय ध्वज और राष्ट्रीय चिह्न तथा सत्यमेव जयते के साथ भारत नाम ही उचित और सटीक लगता है। इंडिया नाम तो बाहर के लोगों द्वारा पुकारा जानेवाला विदेशी शब्दावली और ब्रिटिश सत्ता का द्योतक है। जिससे गुलामी के इतिहास की दुर्गंध आती है और दम घुटने लगता है। ‘इंडिया’ नाम का देश की भाषा संस्कृति और इतिहास के साथ कोई सांस्कृतिक व वैचारिक संबंध ही नहीं है। ‘भारत’ नाम के साथ ‘इंडिया’ नाम चलाना अपने देश का अपमान करना है, वैसे ही जैसे कि अपने माता-पिता के दो नाम रखे जाएँ। जब पासपोर्ट में पहचान के लिए कानूनन एक व्यक्ति का एक ही नाम रहता है तो भला एक देश के दो नाम कैसे हो सकते हैं ? वैश्विक स्तर पर दूसरे देशों के बीच भी यह स्वीकार नहीं कि किसी देश के दो नाम हों। यही कारण है कि वैश्विक स्तर पर भारत नहीं केवल इंडिया ही प्रचलन में आता है और भारत नाम केवल औपचारिकता के लिए ही रखा गया प्रतीत होता है। विदेशी लोगों के लिए भारतीय दूतावास शब्द एकदम अनजाना है और ‘इंडियन अम्बेसी’ शब्द ही प्रचलन में है तथा विदेशी लोग इसे इसी रूप में पहचानते हैं, भारत नाम उनके लिए अनजाना है। भारत नाम से इस देश की प्राचीनता, पौरुष और ‘वसुधैव कुटंबकम’ के दर्शन का बोध होता है। विदेशी विद्वानों ने अपने आलेखों और विचार-विमर्श में सदा ही इस ओजस्वी भूधरा को ‘भारत’ ही संबोधित किया है। 'भारत को विश्व को देन' माननेवाले मैक्समूलर हों या ‘भारत की आत्मा’ नाम से पुस्तक लिखनेवाले गाय सोर्मन हों उनका कहना है कि उन्हें भारत में उदारता की भावना एवं वह जीवनी शक्ति मिली जो कि यूरोप और विश्व में कहीं नहीं है। मैं भी इस विचार से सहमत हूँ और करोड़ों भारतवासियों की भावना को स्वर देते हुए नीदरलैंड वैश्विक संस्था (नीदरलैंड हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन) के माध्यम से विश्व के सभी भारत-प्रेमियों, हिंदी-प्रेमी व्यक्तियों और संस्थाओं की ओर से करबद्ध अनुरोध और आह्वान करना चाहूँगी कि हम सब पूरी शक्ति के साथ अपने देशवासियों, सरकार, व्यवस्था और अन्य सभी शक्तियों के साथ मिलकर भारत का नाम केवल ‘भारत’ रहने के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद करें और जल्द ही तत्संबंधी घोषणा करवाएं। जिससे भारतवासियों के साथ-साथ विदेश में रहनेवाले हम भारतीयों तथा भारतवंशियों की आत्मा भी संतुष्ट हो।
प्रो. डॉ. पुष्पिता अवस्थी
निदेशक, वैश्विक हिंदी संस्थान, नीदरलैंड, यूरोप एवं समन्वय प्रभारी 'वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई'
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