हाल ही में यह अवलोकन किया गया है कि बंदर भी अपने मृतक का मातम मनाते हैं। चपटी नाक वाले बंदरों के एक समूह में एक मादा पेड़ से गिरी और नीचे चट्टान से टकराकर उसका सिर फूट गया। उसी समूह का प्रमुख नर बंदर (अल्फा नर) उसके पास ही रहा और उसके सिर को सहलाता रहा। उसने ऐसा तब तक किया जब तक कि वह मर नहीं गई। मरने के बाद भी वह वहीं बना रहा और उसे छूता रहा, उसके सिर को हल्के से खींचता रहा। लगता था कि वह उसे फिर से जिलाने का प्रयास कर रहा था। जापान के क्योतो विश्वविद्यालय
के जेम्स एंडरसन का कहना है कि इस अवलोकन से पता चलता है कि वयस्क नर ने अत्यंत स्नेहपूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन किया। इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कम से कम सशक्त बंधनों से बंधे जानवरों में मरणासन्न प्राणि के लिए करुणा का भाव होता है। इससे पहले उत्तर-पश्चिमी
ज़ाम्बिया के एक अभयारण्य से रिपोर्ट आई
थी कि चिम्पैंज़ी न सिर्फ अपने मृतक
का मातम मनाते हैं बल्कि कुछ हद तक उसका अंतिम संस्कार भी करते हैं। इन दोनों रिपोर्ट से पता चलता है कि मृत्यु के बाद शोकाकुल व्यवहार के मामले में मनुष्य अकेले नहीं हैं। इनसे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि ये जानवर भी समझते हैं कि मृत्यु एक पूर्ण विराम है, उसके बाद
वह प्राणि वापिस नहीं लौटेगा। अर्थात मृत्यु एक अनुत्क्रमणीय घटना है। वैसे एंडरसन का कहना है कि जंतुओं के व्यवहार पर मानवीय मूल्य थोपना या उनका मानवीयकरण करना थोड़ा खतरनाक है, मगर लगता है कि सामूहिक प्राणियों में बार-बार
मृत्यु से संपर्क होने पर मृत्यु की
अनुत्क्रमणीयता को लेकर कुछ समझ तो बन जाती होगी और इसका भावनात्मक असर भी होता होगा। इसलिए उपरोक्त अवलोकनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना अनुचित न होगा कि मनुष्य के अलावा कुछ अन्य प्राणियों में भी शोक संवेदना होती होगी। (स्रोत फीचर्स)
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