"ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, जहांपनाह...लंबी नहीं..."
'आनंद' फ़िल्म का ये डायलॉग याद है न? भयंकर बीमारी के शिकार राजेश खन्ना दार्शनिक वाले अंदाज़ में ये बताते हैं कि उम्र लंबी ही हो, ये ज़रूरी नहीं.
ज़िंदगी शानदार, ख़ुशियों से लबरेज़ होनी चाहिए, भले ही उसके बरस कम हों. ख़ैर, फ़िल्मी बातें छोड़ कर हक़ीक़त का रुख़ करते हैं...
आज दुनिया में लोग पहले मुक़ाबले ज़्यादा लंबी उम्र जी रहे हैं. और इसे दुनिया की सुधरती सेहत और बेहतर होते हालात की मिसाल कहा जा रहा है.
दुनिया के 195 देशों में महिलाएं, मर्दों के मुक़ाबले ज़्यादा उम्र तक जीती हैं. रूस में महिलाओं की औसत उम्र पुरुषों के मुक़ाबले 11 बरस ज़्यादा है.
अफ्रीकी देश इथियोपिया में 1990 के मुक़ाबले आज लोग 19 बरस ज़्यादा लंबी ज़िंदगी जी रहे हैं.
वहीं, दुनिया के सबसे कम औसत उम्र वाले देश के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा औसत उम्र वाले देश के लोगों में आयु का फ़ासला 34 बरस का है.
ग्लोबल बर्डेन ऑफ़ डिज़ीज़ प्रोजेक्ट और इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ मीट्रिक्स ऐंड इवैल्युएशन के आंकड़े इस्तेमाल किए.
हमारी पड़ताल से सामने आए कुछ नतीजे इस तरह हैं.
1. अब इंसान ज़्यादा लंबी ज़िंदगी जी रहा है
दुनिया भर की औसत उम्र 1990 के दशक के मुक़ाबले सात बरस तक बढ़ गई है. मतलब ये कि हर साढ़े तीन साल में दुनिया में इंसानों की औसत उम्र एक साल बढ़ जाती है.
आज लोग लंबी ज़िंदगी इसलिए जी रहे हैं क्योंकि अमीर देशों में दिल की बीमारी से मृत्यु दर घटी है. वहीं गरीब देशों में बच्चों के मरने की तादाद भी कम हुई है.
सेहत की सुविधाएं बेहतर हुई हैं. साफ़-सफ़ाई बेहतर हुई है और बीमारियों के इलाज में नई-नई दवाएं और तकनीक ईजाद हुई है.
इसकी वजह से इंसानों की औसत उम्र बढ़ गई है. आज स्वस्थ जीवन के बरस भी ज़्यादा हो गए हैं.
मतलब ये कि आज आम इंसान औसतन ज़्यादा वक़्त तक सेहतमंद ज़िंदगी जीता है. इसमें 6.3 साल का इज़ाफ़ा हुआ है. हालांकि ये औसत अब घट रहा है.
2. पश्चिमी यूरोप के लोगों की उम्र सबसे ज़्यादा है
औसत उम्र के मामले में टॉप के 20 देशों में से 14 यूरोप के हैं. लेकिन इस लिस्ट में पूर्वी एशिया के देश टॉप पर हैं.
आज जापान और सिंगापुर के लोगों की औसत उम्र 84 साल तक हो गई है. वहीं, इंग्लैंड ने ज़्यादा औसत आए वाले टॉप 20 देशों में बमुश्किल जगह बनाई है.
इंग्लैंड में लोगों की औसत उम्र 81 बरस है. वहीं उत्तरी आयरलैंड औसत उम्र की पायदान में 32वें और वेल्श 34वें नंबर पर आता है.
दोनों इलाक़ों के लोगों की औसत उम्र 80 बरस है. 198 देशों में स्कॉटलैंड 79 बरस की औसत उम्र के साथ 42वें नंबर पर है.
3. औसत उम्र की निचली पायदान पर अफ्रीकी देशों की भरमार
नागरिकों की औसत उम्र के मामले में सबसे नीचे के 20 देशों में से 18 अफ्रीकी महाद्वीप के हैं.
भयंकर गृह युद्ध के शिकार लेसोथो और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक देशों में 2016 में पैदा हुए बच्चों के सिर्फ़ 50 बरस की उम्र तक जीने की संभावना है.
ये टॉप के दो देशों जापान और सिंगापुर के मुक़ाबले 34 साल कम है.
कई दशकों से युद्ध, सूखे और अराजकता का शिकार अफ़ग़ानिस्तान इकलौता एशियाई देश है जो नीचे से टॉप 20 देशों में आता है.
आज अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की औसत उम्र 58 साल है.
4. महिलाओं की उम्र मर्दों से ज़्यादा
198 में से 195 देशों में महिलाओं की औसत उम्र मर्दों से ज़्यादा है. इन देशों की महिलाओं की ज़िंदगी, पुरुषों के मुक़ाबले 6 बरस ज़्यादा होती है.
कई देशों में ये फ़ासला 11 साल तक का है. औरतों और मर्दों की औसत उम्र का ये फ़ासला सबसे ज़्यादा पूर्वी यूरोपीय देशों और रूस में देखने को मिलता है.
यहां पर महिलाओं के मुक़ाबले मर्दों की कम उम्र की वजह शराबनोशी और काम के ख़राब हालात बताई जाती है.
दुनिया में सिर्फ़ 3 देश ऐसे हैं, जहां मर्द, महिलाओं के मुक़ाबले लंबी उम्र जीते हैं. ये देश हैं कांगो गणराज्य, कुवैत औऱ मॉरिटॉनिया.
5. इथियोपिया में लोगों की औसत उम्र 19 साल बढ़ गई
1990 के दशक से 96 फ़ीसद देशों में लोगों की औसत उम्र बढ़ी है. उस दौर में 11 देशों में लोगों की औसत ज़िंदगी 50 साल से कम ही हुआ करती थी.
लेकिन 2016 में सभी देशों ने 50 साल की औसत उम्र का आंकड़ा छू लिया था.
जिन 10 देशों के नागरिकों की औसत उम्र में सबसे बड़ा बदलाव आया, उनमें से 6 अफ्रीका के सब-सहारा इलाक़े के हैं.
साल 1990 में आए भयंकर अकाल से अब तक उबरने की कोशिश कर रहे इथियोपिया की उस वक़्त औसत उम्र 47 ही थी.
लेकिन 2016 में वहां पैदा हुए बच्चों के आज 19 साल ज़्यादा लंबी ज़िंदगी जीने की संभावनाएं हैं.
इसकी वजह है कि इथियोपिया ने रोटावायरस और हैजा के अलावा सांस की कई बीमारियों पर काफ़ी हद तक काबू पा लिया है.
6. लेकिन, 8 देशों के लोगों की औसत उम्र घट गई
यूं तो दुनिया भर में लोगो की ज़िंदगी लंबी हो रही है. लेकिन 8 देश ऐसे भी हैं, जिनके नागरिकों की औसत उम्र घट भी गई.
इनमें से 4 तो अफ्रीका के सहारा इलाक़े के ही हैं, जहां 1990 से लोगों की औसत उम्र घट गई. सबसे ज़्यादा कमी लेसोथो के नागरिकों की ज़िंदगी में आई है.
संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक़ लेसोथो की 25 फ़ीसदी आबादी एचआईवी वायरस से संक्रमित है. ये दुनिया में एड्स से बीमार देशो में दूसरे नंबर पर है.
वहीं पड़ोस के दक्षिण अफ्रीका में 2016 में पैदा हुए बच्चों की औसत उम्र 62 बरस है. ये 1990 के मुक़ाबले दो साल कम है.
इसी दौरान दक्षिण अफ्रीका में एचआईवी के शिकार लोगों की तादाद में बहुत इज़ाफ़ा हुआ.
7. सरहद बदलते ही बढ़ा उम्र का फ़ासला
इन आंकड़ों से एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है. वो ये कि आस-पास के देशों में ही लोगों की औसत उम्र में 20 साल तक का फ़र्क़ देखने को मिलता है.
जैसे कि चीन और अफ़ग़ानिस्तान. दोनों देशों के नागरिकों की औसत उम्र में 18 साल का फ़र्क़ है.
वहीं, आतंकवाद और गृह युद्ध के शिकार माली में लोगों की औसत उम्र 62 साल है.
पड़ोसी अल्जीरिया में लोग 15 साल लंबी ज़िंदगी जीने की उम्मीद कर सकते हैं, जहां नागरिकों की औसत उम्र 77 बरस है.
8. युद्ध अपने साथ लाता है तबाही
2010 में सीरिया औसत उम्र की पायदान में 65वें नंबर पर हुआ करता था. यानी वो टॉप के तीन देशों में हुआ करता था.
मगर पिछले क़रीब एक दशक से जारी गृह युद्ध की वजह से आज सीरिया लोगों की औसत उम्र के मामले में 142वें नंबर पर आ गया है.
वहीं 1994 में नरसंहार झेलने वाले रवांडा के लोगों की औसत उम्र 11 बरस हुआ करती थी.
9. अकाल और क़ुदरती आपदाएं भी लाती हैं तबाही
उत्तर कोरिया ने 1994 से 1998 के बीच कई अकाल झेले.
इसकी वजह से 2000 के शुरुआती साल में यहां के लोगो की औसत उम्र काफ़ी घट गई थी.
इसी तरह, 2010 में आए भूकंप की वजह से हैती में 2 लाख से ज़्यादा लोग मारे गए थे.
राहत की बात ये है कि बाद के कुछ सालों से यहां के लोगों की औसत उम्र बढ़ी है.
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