50 पार.... अब आपका तन,आपके मन का आज्ञाकारी नहीं रह पाता...!!
मैंने अपने चिकित्सकीय अनुभव मे जाना कि मन चाहे कितना ही जोशीला हो, साठापाठा होते ही, तन उतना फ़ुर्तीला नहीं रह जाता ? शरीर ढलान पर होता है और ‘रिफ्लेक्सेज़’ कमज़ोर ! कभी कभी मन भ्रम बनाए रखता है कि ‘ये काम तो चुटकी मे कर लूँगा’ पर बहुत जल्दी सच्चाई सामने होती है, मगर एक नुक़सान के साथ ?
सीनियर सिटिज़न होने पर जिन बातों का ख़याल रखा जाना चाहिये , ऐसी कुछ टिप्स देना चाहूँगा ? धोखा तभी होता है जब मन सोचता है ‘कर लूंगा’ और शरीर करने से ‘चूक’ जाय ? परिणाम एक एक्सीडेंट और शारीरिक क्षति ? ये क्षति, हड्डी के फ़्रैक्चर से लेकर ‘हेड इंज्यूरी’ तक हो सकती है ? याने जान लेवा भी , कभी कभी ?
इसलिये जिन्हें भी आदत हो हमेशा हड़बड़ी मे रहने और काम करने की , बेहतर होगा कि वे अपनी आदतें बदल डालें ? भरम न पालें , सावधानी बरतें क्योंकि आप अब पहले की तरह फ़ुर्तीले नहीं रह गये ? छोटी चूक कभी बड़े नुक़सान का सबब बन जाती है ?
सुबह नींद खुलते ही तुरंत बिस्तर छोड़ खड़े न हों ! पहले बिस्तर पर कुछ मिनट बैठे रहें और पूरी तरह चैतन्य हो लें ? कोशिश करें कि बैठे बैठे ही स्लीपर / चप्पलें पैर मे डाल लें या खड़े होने पर मेज़ या किसी सहारे को पकड़ कर ही चप्पलें पहने ! अकसर यही समय होता है डगमगा कर गिर जाने का ?
सबसे ज़्यादा घटनाएँ गिरने की बॉथरूम/वॉशरूम या टॉयलेट मे ही होतीं हैं ? आप चाहे नितांत अकेले , पति पत्नी साथ या संयुक्त परिवार मे रहते हों, बॉथरूम मे अकेले ही होते हैं ?
घर मे अकेले रहते हों तो अतिरिक्त सावधानी बरतें क्योंकि गिरने पर यदि उठ न सके तो दरवाज़ा तोड़कर ही आप तक सहायता पहुँच सकेगी ? वह भी तब, जब आप पड़ोसी तक सूचना पहुँचाने मे समय से कामयाब हो सके ? याद रखें बाथरूम मे भी मोबाइल साथ हो ताकि वक़्त ज़रूरत काम आ सके ? बाकी भूल चूक लेनी देनी नही, देनी ही देनी होती है ?
हमेशा कमोड का ही इस्तेमाल करें ! यदि न हो, तो समय रहते बदलवा लें, ज़रूरत पड़नी ही है, चाहे कुछ समय बाद ? कमोड के पास संभव हो तो एक हैंडिल लगवा लें ! कमज़ोरी की स्थिति मे ये ज़रूरी हो जाता है ? ( प्लास्टिक के वेक्यूम हैंडिल भी मिलते हैं, जो टॉइल्स जैसी चिकनी सतह पर चिपक जाते हैं, पर इन्हें हर बार इस्तेमाल से पहले खींचकर ज़रूर परख लें )
हमेशा आवश्यक ऊँचे स्टूल पर बैठकर ही नहॉंएं ! बॉथरूम के फ़र्श पर रबर की मैट ज़रूर बिछा रखें आवश्यकतानुसार फिसलन से बचने ? गीले हाथों से टाइल्स लगी दीवार का सहारा कभी न लें, हाथ फिसलते ही आप ‘डिसबैलेंस’ होकर गिर सकते हैं ?
बॉथरूम के ठीक बाहर सूती मैट भी रखें जो गीले तलवों से पानी सोख ले ! कुछ सेकेण्ड उस पर खड़े होकर फिर फ़र्श पर पैर रखें वो भी सावधानी से !
अंडरगारमेंट हों या कपड़े, अपने चेंजरूम या बेडरूम मे ही पहने ! अंडरवियर,पजामा या पैंट खडे़ खडे़ कभी नही पहने ! हमेशा बैठ कर ही उनके पायचों मे पैर डालें, फिर खड़े होकर पहिने वर्ना दुर्घटना घट सकती है ? कभी स्मार्टनेस की बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ जाती है ?
अपनी दैनिक ज़रूरत की चीज़ों को नियत जगह पर ही रखने की आदत डाल लें , जिससे उन्हें आसानी से उठाया या तलाशा जा सके ? भूलने की ज़्यादा आदत हो आवश्यक चीज़ों की लिस्ट मेज़ पर या दीवार पर लगा लें , घर से निकलते समय एक निगाह उस पर डाल लें, आसानी रहेगी !
जो दवाएँ रोज़ाना लेनी हों तो प्लास्टिक के प्लॉनर मे रखें जिसमें जुड़ी हुई डिब्बियों मे हफ़्ते भर की दवाएँ दिनवार रखी जाती है ! अकसर भ्रम हो जाता है कि दवाएँ ले ली हैं या भूल गये ? प्लॉनर मे से दवा खाने मे चूक नही होगी ?
सीढ़ियों से चढ़ते उतरते समय, सक्षम होने पर भी, हमेशा रेलिंग का सहारा लें ? ख़ासकर मॉल्स के एक्सलेटर पर ? ध्यान रहे आपका शरीर आपके मन का अब पहले जैसा ‘ओबीडियेंट सर्वेंट’ नही रहा...
From the wall of Dr.Ramesh chndra Parashar.
मुफ़्तख़ोरी की पराकाष्ठा!
मुफ़्त दवा,
मुफ़्त जाँच,
लगभग मुफ़्त राशन,
मुफ़्त शिक्षा,
बच्चा पैदा करने पर पैसे ,
बच्चा पैदा नहीं (नसबंदी)करने पर पैसे,
स्कूल में खाना मुफ़्त ,
मुफ़्त बाँटने की लगता है जैसे होड़ मची है,
पिछले दस सालों से लेकर आगे बीस सालों में एक एसी पूरी पीढ़ी तैयार हो रही है या हमारे नेता बना रहे हैं जो पूर्णतया मुफ़्त खोर होगी!
अगर आप उनको काम करने को कहेंगे तो वो गाली देकर कहेंगे कि सरकार क्या कर रही है!
ये मुफ़्त खोरी की ख़ैरात कोई भी पार्टी अपने फ़ंड से नही देती टैक्स दाताओं का पैसा इस्तेमाल करती है!
वास्तव में हम नागरिक नहीं परजीवी तैयार कर रहे हैं!
देश का अल्प संख्यक टैक्स दाता बहुसंख्यक मुफ़्त खोर समाज को कब तक पालेगा ?
जब ये आर्थिक समीकरण फ़ेल होगा तब ये मुफ़्त खोर पीढ़ी बीस तीस साल की हो चुकी होगी, जिसने जीवन में कभी मेहनत की रोटी नही खाई होगी, हमेशा मुफ़्त की खाई होगी !
मुफ्त नहीं मिलने पर, ये पीढ़ी नक्सली बन जाएगी , उग्रवादी बन जाएगी पर काम नही कर पाएगी !
सोचने की बात है कि सरकारें कैसे समाज का निर्माण करना चाहती है??
है किसी के पास कोई स्पष्ट सोच ?
हद होती है मुनाफाखोरी की...
मुनाफ़ाख़ोर साम्राज्यवादियों के लिए मानवता के स्वास्थ्य के ऊपर वरीयता इनके मुनाफ़े की अंधी हवस रखती है । तभी तो हाल ही में WHO द्वारा जीनेवा में आयोजित विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन में शिशु के लिए स्तनपान को वरीयता और प्रोत्साहन देने हेतु प्रस्ताव जब पटल पर रखा गया तब अमेरिका ने उसे पारित होने से रोकने के लिए नीचता की सारी हदें पार कर दी। विज्ञान में यह एक निर्विवाद रूप से स्थापित सत्य है कि नवजात शिशु के विकास के लिए पहले छह महीने तक माँ का दूध ही सर्वोत्तम होता है, व इसके विकल्प के रूप में प्रचारित बाज़ार में उपलब्ध कृत्रिम baby-feeds बेचने वाले बहुराष्ट्रीय brands अपने विज्ञापनों में झूठे दावे करके शिशुओं के स्वास्थ्य और पोषण से खिलवाड़ करते हैं। लातिन अमेरिकी देश , इकुएडोर के प्रतिनिधि मंडल ने जब स्तनपान को प्रोत्साहित करने हेतु इन झूठे दावे करके कृत्रिम baby feed बेचने वाले brands पर नकेल कसने का प्रस्ताव रखा तो अमेरिका को अपने देश के उन मुनाफ़ाख़ोर brands का हित याद आ गया जिनके मुनाफ़े पर इस जन-स्वास्थ्य हित में लाए गए प्रस्ताव के पारित होने के कारण मार पड़ती। अमेरिका के प्रतिनिधि मंडल ने अपने देश की मुनाफ़ाख़ोर कंपनियों के हित को शिशुओं के पोषण और स्वास्थ्य के ऊपर चुना और इक्वाडोर पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाने और सैन्य सहायताएँ बंद करने की धमकी देते हुए इस प्रस्ताव को वापस लेने का दबाव बनाया, जिसके फलस्वरूप इक्वाडोर को यह प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह अपनी कंपनियों के मुनाफ़े पर पड़ने वाली मार को किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगा। यह प्रस्ताव ख़ासकर विकासशील देशों में शिशु कुपोषण से लड़ने हेतु एक ज़रूरी पहल साबित होता लेकिन साम्राज्यवादी मुनाफ़े की हवस ने इसमें भी अडंगा लगा दिया।
2016 में The Lancet में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार विश्वव्यापी स्तनपान रेजॉल्यूशन पारित होने से हर साल 8 लाख शिशुओं की मौतों को रोका जा सकता है। सिर्फ़ यही नहीं , ऐसे कई महत्वाकांक्षी प्राजेक्ट्स हैं जो वैश्विक स्तर पर जनहित में लागू किए जाएँ तो पूरी दुनिया से कुपोषण और भुखमरी जड़ से मिटाई जा सकती हैं। लेकिन जबतक स्वास्थ्य सेवाएँ मुनाफ़े की पूँजीवादी बेड़ियों में जकड़ी रहेंगी, तबतक धनपशुओं का हित मानवहित के आड़े इसी तरह आता रहेगा।
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