सोचो कभी ऐसा हो तो क्या हो, जब सर्कस के पिंजरे से शेर निकल कर भाग जाए तब क्या हालत होती होगी दर्शकों की, शहर वालों की? ऐसा ही हो रहा है आज। देहली सर्कस एण्ड कंपनी का एक खूंखार चीता रिंग मास्टर के हंटर से चमक कर सुरक्षा घेरे से बाहर आ गया है। फिर क्या था अपने आक्रामक तेवर का प्रदर्शन करते हुए बड़े-बड़ों को ऐसे लहूलुहान कर रहा है जिसकी किसी को कल्पना नहीं थी। उस चीते को सभी प्यार से 'ईडी' कहकर पुकारते हैं। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह छत्तीसगढ़ी आलेख-
- अरे भागव रे, भागव, जी परान बचाना हे तब ए तीर ले भागव।
- काबर भागबो जी ए तीर ले, का होगे हे तेमा भागबो?
- नइ भागव तब जाव मरव रे सारे हो, तुंहर मन के रई आगे हे तेला कोनो नइ बचा सकय?
- अरे का बात होगे हे तेला बताबे ते बस कुकुर मांस खाय बरोबर बड़बड़ावत रहिबे?
-नइ मानव न मोर बात ल, सारी दुनिया जानगे हे, देशभर के अउ गांव भर के मनखे जानगे हे फेर तुंहर असन मूर्ख मनखे मैं कहूं नइ देखे हौं, अतेक अंधरा, अतेक अड़ानी होके नइ रहना चाही?
- अरे परलोखिहा सारे नइ तो हो जइसे रावन, कंस, दुरजोधन, दुशासन अऊ बड़े-बड़े राक्षस मन के नांव ल सुन के रिसि-मुनि, गियानी अउ आम आदमी कांपय तइसने कस अभू होवत हे।
ये मेहतरु जकहा-बकहा के मुंह ले अइसन बात सुन के दइहान मं सकलाय राहय तउन मन कहिथे, तुंहर मन के समझ मं आथे गा, एकर बात हा?
परसादी कहिथे- कोन जनी बुजा हा का कहिथे, का बकथे ते कुछु समझ नइ परय?
समारु, चिंता, रामनाथ, गोविंद, ईश्वर अउ कन्हैया घला परसादी के बात के समरथन करत कहिथे- कोन जनी ओहर का देख परे हे, सुन डरे हे ते झझके असन बड़बड़ावत हे।
उही तीर सरपंच जगमोहन रिहिसे तउन कहिथे- राहौ तो गा राहौ,एकदम से हड़बावौ झन। उहू लइका, हा कुछु देखे, सुने, पढ़े होही, कोनो मेर तभे अइसन झझखे हे, डरे हे, तभे तो काहत हे भागव... भागव...। ओला तीर के बला लौ अउ पूछव का बात हे बेटा, काबर, का जिनिस हे तेला देखके तैं झझक गे स?
सरपंच जगमोहन ओ लइका ल तीर मं बलइस, ओकर बर पानी मंगइस। एक गिलास पानी ल गटागट ओहर पीगे।
सरपंच पूछथे- हां, बता बेटा, का बात हे, काबर सब झन ल भागव... भागव... भागव... काहत हस?
ये बेटा के नांव हे मेहतरु, बने हट्टा-कट्टा, नौजवान हे कोनो जोजवा-भोकवा नइहे। ओहर सरपंच ल बताथे- का बतावौं मालिक, रात के एक ठन भयंकर सपना देख परे हौं।
- का सपना रे, सरपंच हा पूछथे। अब ओ तीर सुनइया मन के मजमा लग जथे अउ सब कान देके ओकर बात ल सुने ले धर लिन जइसे कोनो रहस्य-रोमांच के बात सुनावत हे?
- हां, त बता बेटा मेहतरु का अइसे भयंकर सपना देख डरे के अतेक हड़बड़ागे हस?
- हड़बड़ाय के लइक सपना रिहिस हे, तैं नइ पतियाबे, गउकिन काहत हौं गा, ओ भयंकर सपना ल देखत-देखत डर के मारे मूत (पेशाब) घला कर डरेंव।
सुनत राहय तउन चंगू-मंगू मन जोर से खिलखिला के हांस भरथे, कठल जथे। कोनो-कोनो कहिथे- ये सारे मेहतरु हा लबारी मारत हे, चुतिया बनावत हे, नइ देखे हे अइसन कोनो सपना, एकर बात मं कोनो झन आहौ। लफंगा हे, झूठ-मूठ के बात बनावत, बेंझावत हे।
सरपंच कहिथे- राहौ तो गा, थोकन चुप तो राहौ। का काहत हे एहर तउन ल सुन तो लौ?
-हां त बता बेटा मेहतरु, का देखे भयंकर सपना मं?
-मेहतरु- अरे बाप रे, का बतावौं मालिक, दिल्ली मं सरकस होवत हे तिहां के रिंग मास्टर के हंटर खाके चीता अतेक बौखला गे, सब पंडाल मन ल टोरटार के ऐती-ओती जिहां पावत हे जात हे राड़ छड़ावत हे। सब जी परान दे के एती-ओती भागत हे।
रामनाथ पूछथे- तोर ये सपना सही हे के अइसन डेर्रावत हस?
मेहतरु बताथे- मोला का लेना-देना हे भइया ककरो से। बिहनिया मोर नींद खुलिस तब देखथौं, ओ चीता नोहय, ओ ईडी हे। आईटी, सीबीआई पुलिस घला हे ओकर संग मं। जेन मोटहा आसामी हे, जनता के धन ल लूट-लूट के खाय हे, भोभस मं भरे हे तेकर इहां घुसर-घुसर के छापा मारत हे। कोनो नेता, कोनेा मंतरी, कोनो उद्योगपति, व्यापारी, कलाकार एक ला नइ छोड़त हे।
मैंहर देखे हौं- गिंधोल कस मोटाय ओ बेईमान, गरकट्टा, दोगला, पाखंडी मन ल अइसन ठठावत हे, धुर्रा छड़ावत हे के ओकर मन के हौसडा बंद होगे हे। सब ल जेल मं धांधत हे। एक नइ सुनत हे ककरो। एक झन नइ बता सकत हे के अतेक रुपिया, सोना-चांदी, जमीन-जायदाद, महल-अटारी, घोड़ा-गाड़ी कहां ले अउ कइसे अतेक जल्दी बटोर डरे हे?
ओहर बताथे- मैं सपना मं देखेंव, रिंग मास्टर जब ओला निरदेस देवत रिहिसे तब कनमटक नइ देवत रिहिसे फेर जब एक हंटर परिस ना तब हां जी मेरे आका काहत पंडाल (ऑफिस) ले बाहिर निकलिन अउ फाइल खोल-खोल के देखिन तब बड़े-बड़े भुंडा के नांव दिखिस। बिहानभर तड़ातड़ छापा कार्रवाई शुरू होगे।
सरपंच ल बतावत कहिथे साल भर ले ऊपर होगे हे मालिक, तुमन कइसे नइ जानन, सुने हन कहिथौ- बड़े-बड़े सरकार कांपत हे, सरकस के चीता के नांव ल सुन के। सांड बरोबर खुल्ला ढिलाय हे जिहे पावत हे तिहे ल थुथरत हे दोरदिर ले ओइलाय हे। अतेक अखबार, टीवी चैनल मं फोटो सहित ओ सबो जिनिस ल देखावत हे जउन पकड़ावत जात हे।
सरपचं कहिथे- वाह बेटा मेहतरु, तब ये आय तोर सपना सरकस के। इही ला देख के तैं डर्रागेस रे?
- डर्राय के लइक बात हे मालिक।
दूसर दिन ओकर गांव मं विधायक अउ मंतरी रहिथे तेकर घर ईडी के छापा परगे। पांच किलो सोना, कीमती जेवर, फर्जी लेनदेन, जमीन जायदाद के जांच शुरू होगे। एक झन नेता के घर मं करोड़ों के नगदी मिलिस।
सब केहे ले धरलिन, मेहतरु किहिस तउन बात सहिच निकलगे। इही पाके ओहर चेतावत रिहिसे- भागव... भागव... भागव... फेर ओकर बात ऊपर कोनो धियान नइ देवत रिहिन हे। बइहा, पगला काहत रिहिन हे। वाजिब मं सपना घला कभू-कभू सच हो जथे भइया...।
परमानंद वर्मा
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