रविवार, 6 नवंबर 2011

यूँ ही चला जाना भूपेन दा का..


डॉ. महेश परिमल
लगता है ईश्वर अचानक संवेदनशील हो उठा है। पहले तो जगजीत सिंह की सुरमई आवाज को अपने पास बुला लिया, फिर वह हमारे बीच माटी की सोंधी महक की पहचान बने चिरंजीवी आवाज के धनी भूपेन हजारिका को भी अपने पास बुला लिया। अब तक हम उनके गीतों से भाव-विभोर हुआ करते थे, अब ईश्वर अकेला ही उनके गीतों का रसास्वादन करेगा! यहाँ आकर लगता है, सचमुच ईश्वर भी अब स्वार्थी हो गया है।
भूपेन दा, ये वही भूपेन दा थे, जिन्होंने पहली बार चुनाव में ऐसा प्रयोग किया, जैसा आज तक कभी नहीं हुआ। ‘गन’ का मुकाबला ‘गान’ से करने वाले भूपेन दा हमारे बीच अब नहीं हैं, पर दिल जब भी हूम हूम करता है, तो वे अनायास ही याद आ जाते हैं। भूपेन दा को सुनते हुए ऐसा लगता है मानों चिरंजीवी आवाज का धनी यह व्यक्ति की आवाज हृदय की गहराइयों को किस तरह से अनजाने  में ही कैसे बाँध लेती है? गीत चाहे असमी हों, बंगला हों या फिर हिंदी, सभी गीत भावुक हृदय को बाँधकर रख देते हैं। उन्हें सुनना यानी असम के सुदूर गाँवों का भ्रमण करना। जहाँ संगीत का धारा दिल से बहती है। आवाज में इतनी मिठास कि लोग सुनते ही रह जाएँ। हिंदी में उनका परिचय हमें गुलजार साहब के माध्यम से मिलता है। उनके असमी गीत का हिंदी अनुवाद उन्होंने इतनी खूबसूरती से किया है लगता ही नहीं, ये मूल असमी से अनूदित हैं। ओ गंगा बहती हो क्यों, आमी एक जाजाबोर, एक कली दो पत्तियाँ, डोला हो डोला, आलसी सावन बदली चुराए आदि ऐसे गीत हैं, जिनका भाव न समझने के बाद भी ऐसा लगता है मानों यह हमारा ही गीत हमारे ही हृदय से निकल रहा है। गुलजार साहब के गीतों को जिस तरह से जगजीत ¨सह ने अपनी आवाज से अमर कर दिया, ठीक उसी तरह से भूपेन दा के गीतों को गुलजार साहब ने हिंदी के शब्द देकर अमर कर दिया। इन दोनों ने मिलकर हिंदी सिनेमा ही नहीं, बल्कि हिंदी जगत को ऐसे अमर गीत दिए हैं, जो देश ही नहीं, सात समुंदर पार भी बजते रहेंगे।
जिन्हें संगीत की थोड़ी सी भी समझ न हो, भूपेन दा ने ऐसे लोगों के लिए गीत रचे हैं, गाए हैं। उनके गीत संगीतमय कहानी बुनते हैं। कहीं डर से कँपा देने वाले, तो कहीं खुशी में झूमते हुए, कहीं देश-विदेश की यात्राएँ करवाने वाले, कहीं प्रेमी हृदय की तड़प बताते हुए, तो कहीं सिहरन पैदा करने वाले हैं। उन्हें सुनते हुए हम अपनी सारी पीड़ाएँ भूलकर एक ऐसे लोक में विचरण करने लगते हैं, जहाँ पीड़ा का सागर लहराता हो, अपनत्व की डोर में बँधे प्रेमी युगल हो, गंगा माता पर कटाक्ष करते हुए बोल हो। इन सभी को मिलाकर भूपेन दा का जो खाका तैयार होता है, वह उनकी मधुर आवाज में गुम हो जाता है, रह जाते हैं तो केवल गीत के बोल और हृदय को स्पंदित करता संगीत। अपने गीतों को बुनकर उन्होंने हमें जो संवेदनाएँ दी हैं, उसके लिए हमारे पास शब्द नहीं हैं। शब्द तो आज गुलजार साहब के पास भी नहीं होंगे। हमेशा उनकी भावनाओं को शब्द देते-देते वे आज शब्दविहीन हो गए हैं। भूपेन दा शब्द रचते रहे, शब्द बुनते रहे, शब्द गाते रहे, हृदय को मथते रहे। विश्वास है उनकी अंतिम साँसें भी संगीतमय ही रहीं होंगी।
छियासी साल के हजारिका को 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा गया. इसके अलावा उन्हें नेशनल अवॉर्ड एज दि बेस्ट रीजनल फिल्म (1975), पद्म भूषण (2011), असोम रत्न (2009) और संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड (2009) जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। यही नहीं, ‘गांधी टू हिटलर’ फिल्म में महात्मा गांधी के प्रसिद्ध भजन ‘वैष्णव जन’ को उन्होंने ही अपनी आवाज दी। बहुमुखी प्रतिभा के धनी भूपने हजारिका ने केवल 13 साल 9 महीने की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा तेजपुर से की और आगे की पढ़ाई के लिए गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज में दाखिला लिया. यहां उन्होंने अपने मामा के घर में रह कर पढ़ाई की. इसके बाद 1942 में गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से इंटरमीडिएट किया और फिर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. वहां से उन्होंने 1946 में राजनीति विज्ञान में एम ए किया. इसके बाद उन्होंने न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी से कम्युनिकेशन पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की. 1993 में असोम साहित्य सभा के अध्यक्ष भी रहे. उन्हें कई उपाधियों से नवाजा गया, जिनमें से प्रमुख हैं:- सुधाकण्ठ,  पद्मश्री, संगीत सूर्य, सुर के जादूगर, कलारत्न, धरती के गन्धर्व, असम गन्धर्व, गंधर्व कुंवर, कला-काण्डारी, शिल्पी शिरोमणि, बीसवीं सदी के संस्कृतिदूत, यायावर शिल्पी,  विश्वबंधु और  विश्वकण्ठ ।
जीवन चलता रहता है, भूपेन दा भी हमेशा अपने सुमधुर गीतों के साथ हमारे साथ चलते रहेंगे। गीतों में जब भी माटी के सोंधेपन की बात होगी, भूपेन दा का नाम सबसे आगे होगा। जगजीत अपनी सुरमई आवाज के साथ चले गए, तो भूपेन हजारिका अपनी चिरंजीवी आवाज को लेकर चले गए। संगीत की दुनिया में ये दोनों ही एक बेजोड़ गायक रहे, जिनका स्थान कभी कोई नहीं ले सकता। भूपेन दा को भावभीनी श्रद्धांजलि।

3 टिप्‍पणियां:

  1. गीतों में जब भी माटी के सोंधेपन की बात होगी, भूपेन दा का नाम सबसे आगे होगा। bilkul sahee kaha aapne

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्‍यवाद
    महेश परिमल

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी टिप्पणियों के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं