सुनील मेहरोत्रा
29 साल पहले जब मुंबई आया था, तो अमिताभ बच्चन से जुड़ा एक किस्सा बहुत पढ़ा था कि उन्होंने मुंबई के फुटपाथों पर कई रातें गुजारीं। इस किस्से में कितनी सच्चाई है, मुझे खुद नहीं पता। पर इस उदाहरण को हमेशा एक संघर्ष के प्रतीक के रूप में बताया जाता था। धीरे-धीरे कई और सेलिब्रेटीज के संघर्ष की कहानी मीडिया में आईं। कई पर बायोपिक भी बनीं, पर मुझे लगता है आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार शर्मा के संघर्ष की कहानी के सामने बाकी का संघर्ष एक प्रतिशत भी नहीं है। शर्मा की जिंदगी पर केंद्रित अनुराग पाठक के उपन्यास ‘ ट्वेल्थ फेल’ के जितने भी पेज पढ़ो, आपकी आंखें नम होती रहेंगी।
एक लड़का, दसवीं में नकल से थर्ड डिवीजन में पास होता है। वही लड़का नकल न हो पाने की वजह से 12 वीं में हिंदी को छोड़कर सभी विषयों में फेल हो जाता है। उसकी जिंदगी की कहानी यह नहीं है। असली संघर्ष की कहानी इसके बाद शुरू होती है। यह लड़का घर चलाने के लिए टैम्पो कंडक्टर बनता है। आवाज दे देकर अपने टैम्पो के लिए सवारी जुटाता है। फिर उसे एक झूठे केस में फंसाकर कुछ घंटों के लिए लॉकअप में बंद कर दिया जाता है। उसका टैम्पो जब्त कर लिया जाता है। उसे तब अहसास होता है कि अंधा कानून क्या होता है। यह लड़का पढ़ाई की फीस के लिए दिल्ली में शाम को बड़े लोगों के कुत्ते टहलाता है और घर के किराए के लिए कुछ लोगों के घर कुक का भी काम करता है और उनके बर्तन भी मांजता है। यह लड़का ग्वालियर में आंटे की चक्की में गेंहूं पीसने का भी काम करता है। पर सबसे दर्दनाक प्रकरण है ग्वालियर की लाइब्रेरी का। मनोज शर्मा ने वहां तीन सौ रुपये महीने पर करीब एक साल तक नौकरी की। लेकिन इतनी सारी रकम उनकी पढ़ाई और खाने पीने में खर्च हो जाती। बाकी कुछ बचता नहीं था। इसलिए वह लाइब्रेरी में ही सो जाते थे। इस लाइब्रेरी में कई बार कवि सम्मेलन भी होते थे। एक बार बाहर से आए एक कवि वहां रुक गए। कवि की बस अगले दिन सुबह की थी। उन्होंने सुबह नहाने के बाद मनोज शर्मा से कहा कि क्या आपके पास बालों में लगाने के लिए तेल मिलेगा? मनोज ने संकोच में कहा- तेल तो नहीं है? कवि ने फिर कहा कि कंघा ही दे दो। बिना तेल के ही बाल बना लूंगा। मनोज के पास कंघा भी नहीं था। कवि को थोड़ा आश्चर्य हुआ –बोला, कैसे लड़के हो तुम? फिर कहा कि कोई बात नहीं, शीशा ही दे दो, अपनी शक्ल ही देख लूं एक बार। पर मनोज ने कहा कि शीशा भी नहीं है। कवि को इस बार सदमा सा लगा। उसने पूछा कि कितने साल से यहां काम कर रहे हो? मनोज ने जवाब दिया कि एक साल से? मतलब तुमने एक साल से आईने में अपना चेहरा तक नहीं देखा। मनोज को कई मिनट तक कवि देखते रहे और फिर आशीर्वाद देकर वहां से चले गए कि तुम एक दिन जरूर सफल होगे। मनोज ने हकीकत में आईना उससे पहले और उसके बाद भी काफी वक्त तक नहीं देखा था।
मनोज कुमार शर्मा पर केंद्रित इस उपन्नास के मूल रूप से दो पार्ट हैं। एक भाग में उनके बचपन, ‘ट्वेल्थ फेल’ , कई और असफलताएं और फिर सिविल सर्विस की पढ़ाई तक की पूरी कहानी है। दूसरे भाग में उनकी श्रद्धा नामक लड़की से जुड़ी पूरी लव स्टोरी है। श्रद्धा के प्यार में वह इतने पागल हो जाते हैं कि उसे बताए बिना अल्मोडा में उसके घर तक पहुंच जाते हैं। पूरा उपन्नास पढ़ो, तो साफ हो जाता है कि यदि श्रद्धा उनकी जिंदगी में न आतीं, तो शर्मा कभी आईपाीएस नहीं बन पाते। इस लड़की ने उनकी जिंदगी को बहुत मोटिवेट किया। शादी के लिए परिवार वाले आजकल लड़के-लड़कियों का सालाना पैकेज देखते हैं। मनोज शर्मा और श्रद्धा की लव स्टोरी बताती है कि प्यार से बड़ा कोई पैकेज नहीं होता। मनोज शर्मा ने चौथे अटेम्प में सिविल सर्विस की परीक्षा पास की और इंटरव्यू के वक्त श्रद्धा अल्मोड़ा से खासतौर पर उनसे मिलने आईं। जब इंटरव्यू का रिजल्ट आया, तो भी वह उनके साथ थीं। श्रद्धा को मनोज ने हिंदी साहित्य का ज्ञान दिया, जबकि श्रद्धा ने मनोज को अंग्रेजी सिखाई। मनोज की अंग्रेजी ऐसी कमाल की थी कि सेकेंड अटेम्प में प्रिलिम्स पास करने के बाद उन्होंने मेन की बीच में इसलिए परीक्षा छोड़ दी, क्योंकि अंग्रेजी के पेपर में वह टूरिज्म इन इंडिया के स्थान पर टेररिज्म इन इंडिया पर निबंध लिख बैठे।
उनकी कमजोर अंग्रेजी और फिर बारहवीं में नकल न कर पाने की वजह से लगभग सभी विषयों में फेल होने और हिंदी भाषा में पढ़ाई के ट्रैक रेकॉर्ड ने उनका सिविल सर्विस के इंटरव्यू तक में पीछा नहीं छोड़ा। फिर भी उनके दिए कुछ जवाबों या प्रकरण ने इंटरव्यू बोर्ड को उनके प्रति सोचने को मजबूर कर दिया। एक प्रकरण में जब मनोज इंटरव्यू के दौरान एक सवाल से बुरी तरह हिल जाते हैं और पसीना-पसीना हो जाते हैं, तो एक इंटरव्यू मेंबर उन्हें पानी का गिलास देते हैं। मनोज शर्मा पानी पीने से मना कर देते हैं। कहते हैं यह मैं पानी नहीं पी सकता। इंटरव्यू मेंबर पूछते हैं कि क्या पानी गंदा है? मनोज कहते हैं कि नहीं सर, पानी तो साफ है, लेकिन मैं कांच के गिलास में पानी नहीं पीता, मुझे स्टील के गिलास में पानी पसंद है। जब इंटरव्यू बोर्ड मेंबर कहता है कि तुम्हें पानी पीने से काम है या गिलास से? कोई भी गिलास हो, तो पानी तो वही ही रहेगा ना? तब मनोज बहुत सटीक जवाब देते हैं—जी सर, यही मैं कहना चाह रहा हूं, असली चीज पानी है, बर्तन नहीं। अगर पानी साफ है, तो वह कांच के गिलास में है या स्टील के गिलास में कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि आपका ज्ञान, आपके विचार व आपकी भावनाएं अच्छी हैं, तो यह अंतर नहीं पड़ता कि वह इंग्लिश माध्यम से प्रकट हो या हिंदी माध्यम से। इसके बाद मनोज जानबूझकर पानी के गिलास से पानी पीकर खाली गिलास वहां रख देते हैं और फिर मुस्करा कर बाहर आ जाते हैं।
पूरे उपन्यास का क्लाइमेक्स बिल्कुल फिल्म दंगल जैसा है । इसमें कई जगह चुटकियां भी हैं और इतनी मस्तियां हैं कि कोई भी अपनी हंसी रोक नहीं सकता। उपन्यास में एक विलेन भी है और वह है उनका अपना वह दोस्त, जिसने शुरूआत में उसकी बहुत मदद की और ग्वालियर की लाइब्रेरी में नौकरी तक दिलवाई। उपन्यास में कई जगह इस तरह का रोमांच और रोमांस है कि कई बार महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक याद आ गई। मुझे लगता है कि इस उपन्यास पर भी कभी बायोपिक जरूर बनेगी—शायद तब जब शर्मा कुछ साल बाद मुंबई सीपी की दौड़ में होंगे, क्योंकि बॉलिवुड भी हमेशा उगते सूरज को सलाम करता है।
सिविल सर्विस की परीक्षा की तैयारी करने वाले प्राय: द टाइम्स ऑफ इंडिया, द इंडियन एक्सप्रेस या द हिंदू पढते हैं। मुझे लगता है कि अबसे तैयारी करने वाले मोटिवेशन के लिए ‘ ट्वेल्थ फेल’ भी जरूर पढ़ेंगे। मैंने बहुत दिनों बाद पूरी एक किस्त में करीब आठ घंटे में पूरा उपन्यास पूरा किया। पढ़ते-पढ़ते कई बार आंखें नम हुईं। लगा कि यह अधिकारी और उनकी पत्नी श्रद्धा दोनों ही सैल्यूट के हकदार है। हर किसी के जिंदगी में ऐसा ही हमसफर होना चाहिए।
सुनील मेहरोत्रा