झोपड़ियों के खर्राटे और महलों के जागरण
डॉ. महेश परिमल
जीवन के बारे में लोग अपनी तरह इसे परिभाषित करते रहते हैं। कोई जीवन को एक चुनौती मानता है, तो कोई खेल। किसी के लिए जीवन इतना दूभर होता है कि वह इसे जीना ही नहीं चाहता। कोई तो जीवन के आनंद में इतना अधिक रम जाता है कि उसे जीने के सिवाय और कुछ सूझता ही नहीं। वास्तव में जीवन जितना अधिक सरल है, उतना ही गुम्फित और पेचीदा भी है। जब लगातार दु:खों का रेला आता है, तो यही जीवन कष्टमय लगता है। ठीक इसी तरह जब आनंद के क्षण आते हैं, तो यही जीवन आल्हादकारी लगता है। कष्ट के दिन जल्द से जल्द बीत जाएं, इसका पूरा प्रयास किया जाता है। लेकिन आनंद के क्षणों को अधिक से अधिक लम्बा करने की भी कोशिश होती है। दोनों ही स्थितियों में इंसान की यह कोशिश बेकार साबित होती है। वास्तव में जीवन अपनी गति से चलता ही रहता है। हां हमारे द्वारा संपादित किए गए कार्यो के आधार पर जीवन की दिशा और दशा तय होती है।
जीवन में सुख-दु:ख आते-जाते रहते हैं। कोई यदि चाहे तो लगातार सुखी नहीं रह सकता । जीवन है तो उसे दु:ख का सामना तो करना ही होगा। हारमोनियम पर जब ऊंगलियां थिरकती हैं, तब केवल सफेद या काली पट्टियों पर ही नहीं थिरकतीं। दोनों के तालमेल से ही सुर-लहरियां निकलती हैं। बारिश या धूप को यह नहीं मालूम होता है कि यह अमीर का घर है या गरीब का। हवेलियों में जिस शिद्दत के साथ धूप बिखरती है, उसी शिद्दत के साथ झोपड़ी में भी बिखर जाती है। बारिश का भी यही संदेश है। वह न तो महल देखती है, न ही झोपड़ी। उसे तो भिगोना आता है। पूरी तरह से सराबोर करना उसके स्वभाव का एक हिस्सा है। जीवन है उतार-चढ़ाव का सिलसिला तो चलता ही रहता है। इस अंधेर-उजाले से हमें निकलने के बजाए यदि इसमें डूबकर जीवन जीने का आनंद लिया जाए, तो जीवन हमेशा सुखमय ही रहेगा।
जीवन के बारे में मां का फलसफा इतना अधिक सरल और ग्राह्य था कि उसे एक बार में ही समझा जा सकता है। वह अक्सर कहती-जीवन में कभी इतना अधिक अमीर मत बनना कि गरीब बनने पर दु:ख हो। छोटा था इसलिए मां के एक दर्शन को समझ नहीं पाता। आखिर कुछ तो है मां के इस संदेश में। बरसों बाद जीवन को कुछ समझने लगा, तो मां से ही पूछ लिया। मां कहती, तू तो भोला है रे! इतना भी नहीं समझता। आज देश में जितने भी अमीर लोग हैं, यदि वे गरीबों को काम देकर उनकी फाकेमस्ती दूर कर सकें, तो ही जीवन सार्थक होगा। क्या पता, जीवन का दूसरा रूप जब उनके सामने आए, तो वे उससे अनभिज्ञ न रहें। यानी जीवन के किसी मोड़ पर यदि वही अमीर फिर गरीब बन गया, तो उसे गरीबी का जीवन जीने में परेशानी नहीं होगी। इस उतार-चढ़ाव में कौन, कब कहां किस हालत में हो, कहा नहीं जा सकता।
मेरी अनपढ़ मां इतना कुछ कैसे समझती है? आखिर ये ज्ञान उसे कहां से प्राप्त हुआ? उसने कैसे कह दिया है कि जो आज अमीर है, वह कल गरीब होगा? पर आज जो कुछ भी देख रहा हूं, उससे तो यही लगता है कि सब दिन होत न एक समान। राजा को रंक बनते देर नहीं लगती। हां रंक को राजा बनने में अवश्य देर लगती है। आज जो अमीर हैं, उन्होंने गरीबी को बहुत ही अच्छी तरह से झेला है, तभी अमीर बन पाए हैं। गरीबी के दौरान किए गए अच्छे कार्यो ने ही उन्हें अमीर बनाया है। अमीरी के दौरान किए गए बुरे कार्य उन्हें रसातल में ले जाएंगे। इसीलिए आज झोपड़ियां खर्राटों से गूंजती है और हवेलियों में जागरण होता है।
डॉ. महेश परिमल
जीवन के बारे में लोग अपनी तरह इसे परिभाषित करते रहते हैं। कोई जीवन को एक चुनौती मानता है, तो कोई खेल। किसी के लिए जीवन इतना दूभर होता है कि वह इसे जीना ही नहीं चाहता। कोई तो जीवन के आनंद में इतना अधिक रम जाता है कि उसे जीने के सिवाय और कुछ सूझता ही नहीं। वास्तव में जीवन जितना अधिक सरल है, उतना ही गुम्फित और पेचीदा भी है। जब लगातार दु:खों का रेला आता है, तो यही जीवन कष्टमय लगता है। ठीक इसी तरह जब आनंद के क्षण आते हैं, तो यही जीवन आल्हादकारी लगता है। कष्ट के दिन जल्द से जल्द बीत जाएं, इसका पूरा प्रयास किया जाता है। लेकिन आनंद के क्षणों को अधिक से अधिक लम्बा करने की भी कोशिश होती है। दोनों ही स्थितियों में इंसान की यह कोशिश बेकार साबित होती है। वास्तव में जीवन अपनी गति से चलता ही रहता है। हां हमारे द्वारा संपादित किए गए कार्यो के आधार पर जीवन की दिशा और दशा तय होती है।
जीवन में सुख-दु:ख आते-जाते रहते हैं। कोई यदि चाहे तो लगातार सुखी नहीं रह सकता । जीवन है तो उसे दु:ख का सामना तो करना ही होगा। हारमोनियम पर जब ऊंगलियां थिरकती हैं, तब केवल सफेद या काली पट्टियों पर ही नहीं थिरकतीं। दोनों के तालमेल से ही सुर-लहरियां निकलती हैं। बारिश या धूप को यह नहीं मालूम होता है कि यह अमीर का घर है या गरीब का। हवेलियों में जिस शिद्दत के साथ धूप बिखरती है, उसी शिद्दत के साथ झोपड़ी में भी बिखर जाती है। बारिश का भी यही संदेश है। वह न तो महल देखती है, न ही झोपड़ी। उसे तो भिगोना आता है। पूरी तरह से सराबोर करना उसके स्वभाव का एक हिस्सा है। जीवन है उतार-चढ़ाव का सिलसिला तो चलता ही रहता है। इस अंधेर-उजाले से हमें निकलने के बजाए यदि इसमें डूबकर जीवन जीने का आनंद लिया जाए, तो जीवन हमेशा सुखमय ही रहेगा।
जीवन के बारे में मां का फलसफा इतना अधिक सरल और ग्राह्य था कि उसे एक बार में ही समझा जा सकता है। वह अक्सर कहती-जीवन में कभी इतना अधिक अमीर मत बनना कि गरीब बनने पर दु:ख हो। छोटा था इसलिए मां के एक दर्शन को समझ नहीं पाता। आखिर कुछ तो है मां के इस संदेश में। बरसों बाद जीवन को कुछ समझने लगा, तो मां से ही पूछ लिया। मां कहती, तू तो भोला है रे! इतना भी नहीं समझता। आज देश में जितने भी अमीर लोग हैं, यदि वे गरीबों को काम देकर उनकी फाकेमस्ती दूर कर सकें, तो ही जीवन सार्थक होगा। क्या पता, जीवन का दूसरा रूप जब उनके सामने आए, तो वे उससे अनभिज्ञ न रहें। यानी जीवन के किसी मोड़ पर यदि वही अमीर फिर गरीब बन गया, तो उसे गरीबी का जीवन जीने में परेशानी नहीं होगी। इस उतार-चढ़ाव में कौन, कब कहां किस हालत में हो, कहा नहीं जा सकता।
मेरी अनपढ़ मां इतना कुछ कैसे समझती है? आखिर ये ज्ञान उसे कहां से प्राप्त हुआ? उसने कैसे कह दिया है कि जो आज अमीर है, वह कल गरीब होगा? पर आज जो कुछ भी देख रहा हूं, उससे तो यही लगता है कि सब दिन होत न एक समान। राजा को रंक बनते देर नहीं लगती। हां रंक को राजा बनने में अवश्य देर लगती है। आज जो अमीर हैं, उन्होंने गरीबी को बहुत ही अच्छी तरह से झेला है, तभी अमीर बन पाए हैं। गरीबी के दौरान किए गए अच्छे कार्यो ने ही उन्हें अमीर बनाया है। अमीरी के दौरान किए गए बुरे कार्य उन्हें रसातल में ले जाएंगे। इसीलिए आज झोपड़ियां खर्राटों से गूंजती है और हवेलियों में जागरण होता है।
डॉ. महेश परिमल
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