डॉ. महेश परिमल
देश के लिए शर्मनाक 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला न जाने कितनों की बलि लेगा। जैसे-जैसे इसकी परतें खुलती जा रही हैं, वैसे-वैसे नए-नए घोटालेबाज चेहरे सामने आते जा रहे हैं। अब एक नया तथ्य सामने आया है कि इस घोटाले की शुरुआत ए. राजा ने नहीं, बल्कि दयानिधि मारन ने की थी। केंद्र में दयानिधि मारन का कद आज की तारीख में इतना है कि इस घोटाले में सहभागिता के कारण उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने के चार महीने बाद उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। अभी तक उनकी धरपकड़ नहीं हुई है। जब इस मामले में सुप्रीमकोर्ट ने लाल आँखें दिखाई, तब सीबीआई सक्रिय हुई और उनके खिलाफ सबूत इकट्ठे करने लगी। अभी भी लगता यही है कि सीबीआई मारन बंधुओं की गिरफ्तारी का मुहूर्त ही देख रही है। हाल में मारन बंधुओं के कार्यालय में मारे गए छापे में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिली हैं। वास्तव में यूपीए शासन के दौरान टेलीकॉम घोटाले की शुरुआत ए. राजा से पहले दयानिधि मारन ने की थी। 14 दिसम्बर 2005 में दयानिधि टेलीकॉम मिनिस्टर थे, तब उन्होंने ट्राई की मंजूरी के बिना नए लायसेंस देने के लिए गाइड लाइन तैयार की। अपने कार्यकाल में दयानिधि नीलाम किए बिना ही 27 लायसेंस जारी किए। दयानिधि ने टाटा समूह के आवेदन को भी नामंजूर कर उन्हें नाराज कर दिया। टाटा से उन्होंने तब हाथ मिलाया, जब सी. शिवशंकर ने एयर सेल कंपनी बेच दी। दयानिधि के बाद ए. राजा ने जब अपना कार्यभार संभाला,तब उन्होंने टाटा समूह को भी लाभ दिलाया। दयानिधि मारन फोब्र्स की महत्वपूर्ण हस्तियों की सूची में शामिल हैं। इतनी बेशुमार दौलत मारन बंधुओं ने गलत तरीके से कमाई है, ऐसा सीबीआई का मानना है। देश के 15 वें नम्बर के इस धनाढच्य व्यक्ति ने मलेशिया की कंपनी मेक्सीस से 700 करोड़ रुपए का लाभ लिया था। यदि मारन बंधु गिरफ्तार हो जाते हैं, तो ऐसा पहली बार होगा कि फोब्र्स की सूची में शामिल होने वाली हस्तियों को जेल जाना पड़े। गलत कार्यो से जो लगातार कमाई कर रहे हैं, उन्हें मारन बंधुओं की हालत से सबक लेना चाहिए।
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में ए राजा और कनिमोझी के बाद अब तिहाड़ जेल के मेहमान बनने वाले हैं दो भाई, दयानिधि मारन और कलानिधि मारन। दयानिधि की उम्र केवल 38 वर्ष की थी, तब वे यूपीए वन के कार्यकाल में मंत्री पद प्राप्त कर लिया था। दयानिधि और कलानिधि पर भ्रष्टाचार के आरोप में सीबीआई ने उनके कार्यालयों में छापा मारा। वहाँ मिले दस्तावेज के आधार पर उनसे अब पूछताछ की जाएगी। उसके बाद उनकी गिरफ्तारी तय है। मारन बंधुओं का शुमार देश के अमीर लोगों में होता है। इनके सन टीवी समूह में 20 टीवी चैनल और 45 एफ.एम. चैनल हैं। तमिलनाड़ु के अलावा विश्व में दस करोड़ परिवार उनके चैनलों के मजे लेते हैं। उनके हाथ में तमिलनाड़ु के दो महत्वपूर्ण अखबार और चार पत्रिकाएँ हैं। उनकी एक फिल्म प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी के अलावा एयरलाइंस भी है। फोब्र्स मैगजीन द्वारा 2011 में सबसे अमीर भारतीयों की जो सूची प्रकाशित की, उसमें दयानिधि मारन 3.5 अरब डॉलर की सम्पत्ति के साथ 16 वें नम्बर पर रखा है। 2005 में उन्होनें एसएसबीसी बैंक से 42 करोड़ रुपए में जमीन का एक टुकड़ा खरीदा था, दूसरे वर्ष उन्होंने चेन्नई के पॉश इलाके में 80 करोड़ का एक प्लाट खरीदा। चेन्नई के इतिहास में अब तक का यह सबसे बड़ा जमीन का सौदा था।
दयानिधि और कलानिधि के पिता का नाम त्यागराज सुंदरम था। वे तांजोर जिले के एक छोटे से गाँव में रहते थे। चेन्नई के पचैअप्पा कॉलेज में पढ़कर उन्होंने एम.ए. कर पत्रकार बने। उस समय उनके चाचा करुणानिधि तमिलनाड़ु की राजनीति में सक्रिय हो रहे थे। करुणानिधि के ब्राrाण विरोधी राजनीति में स्थापित होन के लिए उन्होंने अपने नाम से त्यागराज जैसा उपनाम हटाकर मारन रख लिया। जब करुणानिधि ने अपने दैनिक अखबार ‘मुरासोली’ का संपादक बनाया, तब से त्यागराज सुंदरम मुरासोली मारन के नाम से पहचाने जाने लगे। इसके बाद वे अपने चाचा की ऊँगली थामकर राजनीति का ककहरा समझने लगे।सन 1967 द्रमुक के स्थापक अन्नादुराई तमिलनाड़ु के गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने दक्षिण मद्रास की लोकसभा सीट खाली की थी। करुणानिधि के कहने से यह सीट मुरासोली मारन को दी गई। वे सांसद बन गए। मुरासोली मारन 36 साल तक दिल्ली की राजनीति में रहे। इस दौरान उत्तर भारत के नेताओं से उन्होंने प्रगाढ़ संबंध बनाए। उसके बाद तो हालत यह हो गई कि केंद्र में किसी की भी सरकार हो, मुरासोली उसमें अवश्य होते। 1988 में वीपी सिंह सरकार में वे मंत्री रहे, 1995 में यूनाइटेड फंट्र की सरकार में भी उनकी उपस्थिति रही, उसके बाद 1999 में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए में भी वे मंत्री बने। 2003 में मुरासोली मारन का देहांत हो गया। इससे करुणानिधि को बहुत सदमा लगा। तब उन्होंने मारन के छोटे पुत्र कलानिधि को केंद्रीय मंत्री पद का ऑफर दिया। कलानिधि को राजनीति से अधिक अपने काम-धंधे में अधिक दिलचस्पी थी। इसलिए करुणानिधि ने 38 वर्षीय दयानिधि को दिल्ली की राजनीति से जोड़ दिया। 2004 के लोकसभा चुनाव में दयानिधि को द्रमुक की टिकिट मिली और वे सांसद बनकर युपीए एक की सरकार में दूरसंचार मंत्री बने। कलानिधि मारन ने अमेरिका यूनिवर्सिटी से एमबीए किया था। तमिलनाड़ु में उन्होंने पहले निजी टीवी चैनल सन टीवी नेटवर्क की स्थापना की। उसका तेजी से विकास किया। सन 1991 में जब जयललिता पहली बार तमिलनाड़ु की मुख्यमंत्री बनी, तब सन टीवी उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गया था।
इधर दिल्ली और तमिलनाड़ु में मारन बंधुओं का कद लगातार बढ़ता गया। इसके साथ-साथ उनका काम-काज भी बढ़ने लगा। सन टीवी के माध्यम से उन्होंने अपना राजनैतिक दबदबा बढ़ाया। 2007 में उनके अखबार दिनकरण में एक सर्वेक्षण प्रकाशित हुआ, जिसमें बताया गया कि तमिलनाड़ु की 70 प्रतिशत जनता करुणानिधि के वारिस के रूप में उनके छोटे पुत्र स्टालिन को चाहती है। जबकि उनके बड़े बेटे अजागिरी को मात्र दो प्रतिशत लोग ही चाहते हैं। इस खबर के प्रकाशन के बाद अजागिरी के समर्थक क्रोधित हुए और दिनकरण के मदुराई स्थित कार्यालय को आग लगा दी, जिसमें तीन कर्मचारी मारे गए। इस घटना की प्रतिक्रिया में दिल्ली में दयानिधि को मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। उनके स्थान पर ए. राजा को भेजा गया। 2009 में यूपीए 2 की सरकार में दयानिधि को कपड़ा मंत्री बनाया गया। 2004 और 2007 के दौरान 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सहभागिता होने के कारण उन्हें यह पद भी छोड़ना पड़ा था।
जब 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला सामने आया, तब न तो दयानिधि और न ही कलानिधि का नाम इसमें जोड़ा गया। एयरसेल कंपनी के भूतपूर्व मालिक सी. शिवशंकर ने जब यह आक्षेप किया कि दयानिधि मारन ने उन्हें लायसेंस के लिए काफी परेशान किया। न चाहते हुए भी मुझे अपनी मलेशिया स्थित कंपनी को मेक्सीस कम्युनिकेशन को बेचनी पड़ी। इसके बाद तो दयानिधि की कृपा से उन्हें 2 जी का लायसेंस मिल गया। इस लाभ के बदले में मेक्सीस की साथी कंपनी ‘एस्ट्रो’ ने कलानिधि मारन की कंपनी सन डायरेक्ट के शेयर 550 करोड़ रुपए में खरीद लिए। सीबीआई की एफआईआर के अनुसार यह रकम मारन बंधुओं को रिश्वत के बतौर दी गई थी। एयरसेल कंपनी ने 2 जी स्पेक्ट्रम के लिए दिसम्बर 2004 में आवेदन किया, तब दयानिधि मारन दूरसंचार मंत्री थे। दयानिधि ने ही इस फाइल पर टिप्पणी लिखी कि इस आवेदन के समाधान में बेवजह उतावलापन दिखाया जा रहा है। इस दौरान मलेशिया की मेक्सीस कंपनी ने एयरसेल को खरीदने का ऑफर दिया। अक्टूबर 2005 में एयरसेल के मालिक सी. शिवशंकरन और मेक्सीस के एक्जिक्यूटिव राल्फ मार्शल के बीच मंत्रणा हुई। मार्शल ने स्पष्ट कहा कि यदि वे एयरसेल कंपनी बेच देंगे, तो उन्हें तुरंत ही 2 जी का लायसेंस मिल जाएगा। मीटिंग के तुरंत बाद शिवशंकरन के पास दयानिधि का फोन आया। दयानिधि ने साफ तौर पर कहा कि उसे एयरसेल कंपनी को बेच देना चाहिए। उनकी बात मान ली गई। 2005 में जब एयरसेल कंपनी मेक्सीस को बेच दी गई, उसके तुरंत बाद उन्हें 2 जी का लायसेंस मिल गया। इसके एवज में मारन बंधुओं को 700 करोड़ रुपए का लाभ हुआ।
डॉ. महेश परिमल
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