सुनो भाई उधो
पूरे संसार में रावण का साम्राज्य फैला हुआ है। श्रीलंका से निकलकर यूक्रेन, रूस, कनाडा, ईरान, इराक, इजरायल, फिलिस्तीन, अफगानिस्तान सहित सभी देशों में अपना पांव पसार लिया है। कहीं युद्ध, कहीं मारकाट और खून-खराबा... सब इससे आतंकित, दुखी और परेशान हैं। भारत भर में इसका बूत बनाकर मारा-पीटा, जलाया। लेकिन दूसरे दिन फिर वहां जिंदा होकर आ गया और उधम मचाने लगा है। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह छत्तीसगढ़ी आलेख...।
कोनो ल मारना, दुचरना, ओकर जान लेना आसान नइ होवय। ओला तैं एक झापड़ मारबे, लात-घूसा लगाबे तब अपन आप ल बचाव खातिर कुछु तो उहू हा उदिम करही अउ करथे घला। फेर भीड़ के मारे ककरो कांही नइ चलय। बोहावत गंगा मं सबो झन ल हर्रा लागय न फिटकरी तइसन कस सबो झन सोचथे वइसने कस हाल होगे। अस मारिन रावन ल, दुचरिन, लात-घूसा लगइन, जेकर जइसन मन लगिस तइसने लइका-सियान सबो एक-दू थपरा मार ले नइ छोडिऩ।
महूं सब झन के देखा-सिखी, आरुग काबर राहौं, कोनो अइसे झन सोचय एहर रावन के आदमी हे, संगवारी हे, तेकर सेती चिनहारी काबर बनौ, सोच के दू-चार हाथ जमा देंव, मार के मारे सिहरगे रिहिसे, कल्हरत रिहिसे। सोग तो लगिस, गारी घला देंव मरइया मन ल मने-मन, फेर सबके नजर मोर ऊपर रिहिसे, एहर मारथे के नहीं, बजेड़ेंव गारी देवत, साले अंखफुट्टा, सबके बहू-बेटी ऊपर नीयत खराब करथस, लूटपाट, आतंक, भ्रष्टाचार, अत्याचार करथस। गांव, शहर, देश ल कोन काहय, पूरा विदेश मं दाउद इब्राहिम, लादेन, हमास, हिजबुल सही आतंक फइलाके रखे हस। पूरा जनता बियाकुल हे तोर मारे।
ये रावन के परिवार संसार भर मं बगरगे हे। यूक्रेन, रूस, अमेरिका, इजराइल, फिलिस्तीन, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान अउ भारत तक ल नइ छोड़े हे। गलत काम, धंधा करना एकर पेशा हे। कतेक सइही कोनो। डर के मारे कोनो कांही नइ काहय एकर मतलब ये तो नइ होवय के छानही मं चढक़े होरा भूंजना चाही। अति के घला एक दिन अंत आथे। लादेन ल देखेव नहीं, कइसे पताल के चटनी असन सील लोड़हा मं पीसागे। बहुत पदनीपाद पदोवत रिहिसे। रायपुर मंं काली सप्पड़ मं आगे, कप्तान ल जइसे सूचना मिलिस के रावन ओकर शहर मं आ धमके हे, ओकर कान खड़ा होगे। सायरन बजावत तीन-चार लारी (बस) समेत कप्तान पुलिस दल-बल के संग रामलीला मैदान मं पहुंचगे। मैदान मं कटाकट भीड़, सब रावन ल मारते राहय। कप्तान रावन के तीर मं पहुंचतिस तेकर पहिली ओकर ऊपर केरोसिन छिडक़ के आगी छोड़ दीन। भांय-भांय करके जले लगिस।
नंदकुमार बघेल ल कोन कोती ले सूचना मिलिस ते उहू हर यहा सियानी उमर मं लुड़बुड़-लुड़बुड़ करत भीड़ ल काहत रिहिसे- ‘अरे मत मारौ रे ब्राम्हण कुमार रावन ल’ तुमन ल ब्रम्ह हत्या के पाप लग जही। अब भीड़ मं ओकर बात के कोन सुनइया। जब ये सुनिस के रावन तो भांय.. भांय.. करके जलत हे, मार डरिन ओला। ओ छाती पीटे ल धर लिस अउ किहिस- हत् रे हत्यारा हो। कोनो ओकर बात ल नइ सुनिन अउ रावन मरे के खुशी मं सब फटाखा फोरे लगिन।
रावन मरे के खुशी तो महूं ल होइस, काबर ओकर परसादे कतको मोरो काम सधत रिहिसे। फेर रिहिसे बदमाश, जेकर घर जातिस तेकरे बहू-बेटी अउ बाई ल आरुग नइ छोड़तिस। ओकर आतंक के देखे सब मुंह मं पैरा बोज लंय। पउर साल वइसने रामसागरपारा मं बड़े परिवार के बेटी ल तलवार के बल मं खीचं के लेगे। मजाल कोनो रोक लय। शेर संग कोन बैर ठानही, जान गंवाही। कोनो सेठ, साहूकार अउ उद्योगपति ल फोन मं धमकी देके लाखों, करोड़ों रुपया मंगा लय, कोनो अनाकानी करतीन तब बहू-बेटी नइते छोटे-छोटे लइका मन के अपहरन करे के धमकी दे देवय। ओकर डर के मारे पुलिस मं कोनो रिपोट घला नइ लिखावयं।
बड़े-बड़े नेता, मंत्री, नौकरशाह, ठेकेदार मन ल तो ये रावन अपन लंगू-झंगू असन समझय। कोन ल चुनाव जितवाना हे, मंत्री बनवाना हे, ओ सब एक इशारा मं पलक झपकते करवा दय। पूरा देश का विदेश मं एकर डंका बाजत रिहिस हे तउन हा कइसे जब कुकुर के मौत आथे तब शहर कोती झपाथे कहिथे नहीं तइसे कस हाल होगे। शहर के जनता मन ओला दुचर-दुचर के मार डरिन, अउ आगी छोड़ दीन, भांय.. भांंय.. करके ओकर काया पंचतत्व मं मिलगे। सब कुछ होगे तब कप्तान पहुंचथे अपन पुलिस बल लेके। हमर देश के पुलिस अइसने होथे, हवा मं फायर करना भर जानथे अउ बहादुरी के बड़े-बड़े तमगा लेये मं कभू पीछू नइ राहय।
बिलासपुर, दुरुग, भिलाई अउ राजनांदगांव ले मोर करा फोन आथे, कहिथे- हमन सुने हन, रायपुर वाले मन रावन ल मार डरेव, बड़ा बहादुरी के काम करेव। जेकर नांव ल सुन माईलोगिन के गरभ गिर जथे, रोवत लइका चुप हो जथे तउन परतापी रावन ल तुमन मार डरेव? मैं केहेंव- हां... हां... भई, मार डरेन, तुंहर मन असन गीदड़ नइ हन। रायपुर वाले मन डालडा घी नहीं बाबा रामदेव के कम्पनी पतंजलि के बने घी खाथन, समझेव। मोर जुआब ल सुनके ओकर मन के बोलती बंद होगे।
रावन मरे के खुशी मं बने घर मं खीर-पुड़ी हकन के खायेन। बेफिकर होके रात मं लात-तान के सोयेन। बिहनिया ‘मार्निंग वाकिंग’ मं निकलिहौं सोच के दरवाजा करा पहुंचथौ तब देखथौं, उही रावन जउन ल काली दुचर-दुचर के मारे रेहेन, आगी मं लेसे रेहेन तउन ह संउहत अड़दंग खड़े राहय, मेंछा मं ताव देवत। ओला देखते साठ मोर चड्डी पेंट खराब होगे, केहेंव- अरे बाप रे, अब का होही, परान नइ बाचय ददा। दउड़े-दउड़े बाथ रूम मं आयेंव। अब का बतावौं, मोर ‘बी.पी.’ हाई होगे। मन मोला ललकारथे- शेर बनत रेहे बेटा, अब कइसे घुसडग़े तोर सबो होशियारी?
डर के मारे कांपे ले धर लेंव। हाथ तो छोड़े रेहेंव। एक झन महिला संगवारी ल फोन करथौं- मइया मोर संग अइसन-अइसन घटना होगे हे, आठ दस दिन बर तोर घर मं एकाध कमरा खाली होही ते दे देते। ओहर समझावत कहिथे- भइया, जउन रावन ल मारे हन कहाथौ ओ असली रावन नोहे, ओकर छाया ल देखे के डेर्रावत हस। असली रावन तो तोर हिरदे मं बसे हे, उही ल मार। उही ल जउन दिन मार लेबे तउन दिन तोर मन, हिरदय अउ घर मं रामराज आ जही। ओ दिन ओ मइया मोर आंखी ल खोल दीस, सोचेंव- रावन कोनो मनखे नोहय, हमरे मन के मन-चित्त मं रचे-बसे विकार हे, काम, क्रोध, मोह, लोभ अउ अहंकार हर हे, इही ल जउन दिन मारबो, विजय पाबो ओकर ऊपर तभे सबो कोती सुख, शांति अउ संतोष उजियारा बगर जही।
-परमानंद वर्मा
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