दिल तोड़ने वाले तुझे दिल ढूंढ रहा है
प्रेम कुमार
तजरुमा कि मोहब्बतों का हूँ राजदान.मुझे फख्र है मेरी शायरी मेरी ¨जदगी से जुदा नहीं। ये पंक्तियां हैं फिल्म जगत के मशहूर शायर और गीतकार शकील बदायूंनी की, जिन्होने इनमें अपनी शायरी से ¨जदगी की हकीकत को बयान किया है। जिन दिनों शायर दबे कुचले वगरे और समाज की कुरीतियों पर अपनी कलम चला रहे थे, उन दिनों शकील बदायूनी ने स्वंय को इस परंपरा से अलग रखकर ऐसे गीतों की रचना की जो ज्यादा रोमांटिक नहीं होते हुए भी दिल की गहराइयों को छू जाते थे । तहजीब के शहर लखनउ ने फिल्म जगत को कई हस्तियां दी है जिनमे से एक गीतकार शकील बदायूंनी भी है । उत्तर प्रदेश के बदांयू कस्बे में तीन अगस्त १९१६ को जन्में शकील अहमद उर्फ शकील बदायूंनी का लालन पालन और शिक्षा नवाबों के शहर लखनऊ में हुई। नके पूर्वजों मे खलीफा मोहम्मद वासिल के अलावा किसी को भी शेरो शायरी के प्रति कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। शकील बदायूंनी के पिता चाहते थे कि वह पढ़ लिखकर अच्छा कैरियर बनाए । इस लिए उन्होंने शकील के लिए घर पर ही उर्दू .फारसी.हिन्दी और अरबी पढ़ाने के लिए आवश्यक व्यवस्था कर दी थी लेकिन शायरी और मुशायरे के शहर लखनउ ने उन्हें एक शायर ही बना दिया और वो शकीलअहमद से शकील बदायूंनी हो गए1 दूर के एक रिश्तेदार और उस जमाने के मशहूर शायर जिया उल कादिरी से शकील बदायूनी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनकी शागिर्दी कबूल कर ली और फिर उन्हीं की शागिर्दी मे शायरी के गुर सीखे।वर्ष १९३६ मे शकील ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवíसटी में दाखिला लिया। उसके बाद उन्होनें इंटर कॉलेज और यूनिवíसटी में आयोजित मुशायरे के कार्यक्रमो मे भाग लेना शुरू किया और कई बार पुरस्कार भी प्राप्त किए। वर्ष १९४क् मे उनका निकाह दूर की एक रिश्तेदार सलमा से हो गया। बी.ए पास करने के बाद वर्ष १९४२ मे वह दिल्ली पहुंचे जहां उन्होंने आपूíत विभाग मे आपूíत अधिकारी के रूप मे अपनी पहली नौकरी की । इस बीच वह मुशायरों मे भी हिस्सा लेते रहे जिससे उन्हें पूरे देश भर मे शोहरत हासिल हुई। अपनी शायरी की बेपनाह कामयाबी से उत्साहित शकील बदायूनी ने नौकरी छोड़ दी और वर्ष १९४६ मे दिल्ली से मुंबई आ गए । इस बीच उनकी मुलाकात उस समय के मशहूर निर्माता ए.आर.कारदार उर्फ कारदार साहब और संगीतकार नौशाद से हुयी। यहां उनके कहने पर उन्होनें घ्हम दिल का अफसाना दुनिया को सुना देंगे .हर दिल मे मोहब्बत की आग लगा देंगे गीत लिखा। यह गीत नौशाद साहब को काफी पसंद आया जिसके बाद उन्हें तुंरत ही कारदार साहब की दर्द के लिए साइन कर लिया गया। शकील बदायूंनी को अपने गीतों के लिए तीन बार फिल्म फे यर अवार्ड से नवाजा गया। उन्हें अपना पहला फिल्म फेयर अवार्ड वर्ष १९६क् मे प्रदíशत फिल्म चौदहवी का चांद फिल्म के चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो गाने के लिए दिया गया। इसके अलावे वर्ष १९६१ में प्रदíशत फिल्म घराना के गाने हुस्न वाले तेरा जवाब नही और वर्ष १९६२ में फिल्म बीस साल बाद मे कहीं दीप जले कहीं दिल गाने के लिए भी उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। शकील बदायूनी ने कई गायकों के लिए भी गजलें लिखी है जिनमे पंकज उदास प्रमुख है । लगभग ५४ वर्ष की उम्र में २क् अप्रैल १९७क् को उन्होंने आखिरी सांस ली । श्री बदायूंनी के निधन के बाद उनके मित्नो नौशाद .अहमद जकारिया और रंगून वाला ने उनकी याद में एक ट्रस्ट यादे शकील की स्थापना की ताकि उससे मिलने वाली रकम से उनके परिवार का खर्च चल सके। शकील बदायूंनी ने करीब तीन दशक के फिल्मी जीवन में लगभग ९क् फिल्मों के लिए गीत लिखे । उनके गीतों में से कुछ हैं अफसाना लिख रही हूॅ .दर्द.गाए जा गीत मिलन के .मेला. तू मेरा चांद मै तेरी चांदनी. दिल्लगी .सुहानी रात ढल चुकी. दुलारी.ना तू जमीं के लिए है .दास्तान. हुए हम जिनके लिए बरबाद .दीदार. वो दुनिया के रखवाले .मन तड़पत हरि दर्शन को .बैजू बावरा. ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ ले ले .उड़नखटोला. दुनिया में हम आएं है तो जीना ही पड़ेगा.मदर इंडिया.दो सितारो का जमीं पे है मिलन आज की .कोहीनूर. जब घ्यार किया तो डरना क्या .मुगले आजम.नैन लड़ जइहें तो मन वा मे कसक होइबे करी .गंगा जमुना.दिल तोड़ने वाले तुझे दिल ढूंढ रहा है.सन ऑफ इंडिया .मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम .मेरे महबूब.तेरे हुस्न की क्या तारीफ करू.लीडर.चौंदहवी का चांद हो या आफताब हो.चौदहवी का चांद .ना जाओ सइया छुड़ा के ब¨हया .साहब बीबी और गुलाम आदि।
प्रेम कुमार
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