मनोज कुमार
जब हम छोटे थे तो हमारे सवाल भी छोटे छोटे होते थे। हमारी जिज्ञासा यह जानने की होती थी कि हमें आजादी कैसे मिली। हम यह जानना चाहते थे कि चेरापूंजी में इतनी बारिश क्यों होती है। हमारा सवाल यह भी होता था कि दंगे क्यों होते हैं। समय बदल गया है। ये सारे सवाल साठ और सत्तर के दशक के बच्चे पूछते थे। २०१२ के बच्चे फेसबुक और इंटरनेट के ज्ञानी बच्चे हैं। उन्हें सबकुछ पता है। वे हमारी तरह अज्ञानी नहीं हैं। जो कुछ अज्ञान बचा होता है उसे वे वर्जनाओं को तोड़ते विज्ञापनों से सीख लेते हैं। इसी ज्ञान का सबूत दिया है ग्यारह बरस की स्कूली छात्रा ऐश्वर्या ने। ऐश्वर्या ने आरटीआई के तहत पूछा है कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा किसने किस कानून के तहत दिया। उसने इस बाबत फोटोप्रति की मांग भी की है। उम्र और शिक्षा के लिहाज से ऐश्वर्या को मासूम कहा जा सकता है किन्तु पूछे गये सवाल उसकी मासूमियत को छीन लेता है। हम यह मान सकते हैं कि स्कूल में पढ़ने वाली ऐश्वर्या का सवाल नहीं हो सकता है किन्तु यह मानने का भी कोई कारण नजर नहीं आता है। इंटरनेट, मोबाइल, फेसबुक और टेलीविजन के न्यूज चैनलों के जरिये शिक्षित होती पीढ़ी की प्रतिनिधि नजर आती है ऐश्वर्या। उसे इस बात की जिज्ञासा भले ही ज्यादा न हो कि महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा किसने दिया लेकिन इस सवाल के जरिये वह पापुलर हो जाने की तमन्ना उसके मन में हो। यदि यह सवाल उसने अपनी बुद्धि से किया है तो । ऐश्वर्या से मेरा भी एक सवाल है कि वह एक अनजान व्यक्ति को अंकल या आंटी क्यों कहती है? किस कानून के तहत एक अनजान से यह रिश्ता बनाने का अधिकार उसे मिला है?
फिलहाल ऐश्वर्या के इस सवाल का जवाब हमारे सरकारी महकमे के पास नहीं है। आदतन एक विभाग दूसरे विभाग को यह सवाल टरका रहा है कि यह उसके विभाग का मामला नहीं है। सवाल को टरकाने के बजाय क्या इसे कानूनी मामला मानने के बजाय नैतिक महत्व का मान कर जवाब नहीं दिया जा सकता है। सरकार भले ही ऐश्वर्या को जवाब न दे पाये, मैं कोशिश करता हूं कि ऐश्वर्या को जवाब दे सकूं। मेरी राय में महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा दिये जाने का मामला कोई संवैधानिक प्रक्रिया का मामला नहीं है। राष्ट्रपिता की पदवी समूची दुनिया में अब तक किसी को मिली है तो वह महात्मा गांधी को। पूरा संसार उन्हें राष्ट्रपिता कहकर गौरवांवित महसूस करता है। उन्होंने जो सत्य और अहिंसा का रास्ता दिखाया, आज भी वे सामयिक हैं। अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिये उन्होंने जो रास्ता बनाया, अंग्रेज भी उनके कदाचित कायल हैं। उनका त्याग और उनकी प्रगतिशील सोच ने किसी एक का नहीं बल्कि समूचे भारत वर्ष का पिता बना दिया। पिता का अर्थ उस अनुवांशिक प्रक्रिया से नहीं है बल्कि उस भावना से है जिसे हम परम्परा कहते हैं। भारतीय परम्परा और संस्कृति में रिश्ते गढ़ने की पुरातन परम्परा है। यह बात ऐश्वर्या को पता होना चाहिए।
ऐश्वर्या नाम की इस स्कूली छात्रा के दिमाग में यह सवाल आया है तो यह भविष्य के लिये घातक है। हमें इस बात के लिये सर्तक होना पड़ेगा कि बच्चों को स्कूलों, घर में जिस तरह की शिक्षा की दी जा रही है, वह उनके भविष्य को चौपट न कर दे। स्वाधीनता संग्राम के बारे में बच्चों को ठीक से पढ़ाया जाए तो बच्चों का मानस यह मानने के लिये तैयार होगा कि जिस स्वाधीन भारत में हम रह रहे हैं, वह महात्मा गांधी जैसों के कारण है। घर में, परिवार में भी बच्चों को अपने जननायकों के बारे में बताया जाना चाहिए ताकि आज महात्मा गांधी पर सवाल उठाया जा रहा है तो कल सुभाषचंद्र बोस, वल्लभभाई पटेल और इन जैसे अनगिनत जननायकों पर सवाल उठाये जाते रहेंगे। यह हमारा दुर्भाग्य है कि जिस महात्मा गांधी के नाम का स्मरण करते ही हमारा रोम रोम रोमांचित हो जाता है, आज उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा किस कानून के तहत दिया गया, यह पूछा जा रहा है। इस बात की भी तहकीकात होना चाहिए कि सूचना के अधिकार कानून के तहत क्या एक स्कूली बच्ची सवाल कर सकती है? यदि नहीं तो ऐश्वर्या की आड़ में ऐसा किसने किया? सूचना के अधिकार के तहत सूचना जनहित में है तो पूछने की उम्र का बंधन होना चाहिए। सूचना का अधिकार जनहित का कानून है और ऐसे गैरमकसद के सवाल पूछ कर न केवल शासकीय समय व धन का दुरूपयोग किया जा रहा है बल्कि देश की प्रतिष्ठा पर भी आंच आ रही है।
मनोज कुमार
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