शनिवार, 1 सितंबर 2012

सबसे बड़ा सवाल, कसाब को फांसी कब?


डॉ. महेश परिमल
29 अगस्त बुधवार को देश के न्यायप्रणाली की गरिमा और सर्वोपरिता का रहा। एक फैसला अहमदाबाद और दूसरा दिल्ली में सुनाया गया। एक तरफ देश के दुश्मन का फंदा बरकरार रहा, तो दूसरी तरफ सद्भाव के दुश्मन दोषी करार हुए। दोनों ही फैसलों से न्यायप्रणाली की छवि उजली हुई है। दोनों ही फैसलों को सुनकर देश के नागरिकों ने राहत की सांस ली। एक बार फिर यह साबित हो गया है कि हमारी न्याय प्रक्रिया शायद धीमी है, पर ढीली नहीं। उधर अहमदाबाद के नरोडा पाटिया इलाके में हुए नरसंहार के मामले में अदालत ने शुRवार को पूर्व मंत्री माया कोडनानी को कुल 28 साल और बाबू बजरंगी को उम्रकैद की सजा सुनाई है। बाकी 29 दोषियों को भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। कोडनानी को दो अलग-अलग धाराओं के तहत 18 और 10 साल की सजा सुनाई गई। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई आतंकवादी हमले के आरोपी अजमल कसाब की फांसी की सजा बरकरार रखी है।
25 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले में 165 लोग मारे गए और ढाई सौ से अधिक लोग घायल हुए। पाकिस्तान से समुद्र के रास्ते से आए आतंकवादियों में से एकमात्र कसाब ही जिंदा पकड़ा गया। एक अंदाज के मुताबिक अजमल कसाब की सुरक्षा पर अब तक करीब 40 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। अभी उसे जब तक फांसी पर नहीं लटकाया जाता, तब तक उस पर लाखों खर्च होने हैं। अजमल कसाब को जिस तरह से सुरक्षा दी गई है, उसकी खूब आलोचना भी हो रही है। अलबत्ता जिस तरह से न्याय प्रक्रिया चल रही है, उसे भारत के मानव अधिकार और न्याय प्रणाली का श्रेष्ठतम उदाहरण बताया जा रहा है। विश्व में इसकी प्रशंसा भी हो रही है। मुम्बई हमले का यह चौथा वर्ष चल रहा है। यह समय कम नहीं है। फिर भी कहना पड़ेगा कि आतंकवाद के दूसरे अन्य मामलों की अपेक्षा यह मामला जल्दी चला है। वैसे ऐसे मामलों पर फैसला इससे भी जल्दी आ जाना चाहिए। ऐसा लोग मानते हैं। हमारे पास विदेशों का उदाहरण है, जिसमें ऐसे गंभीर मामलों पर बहुत ही जल्द निर्णय ले लिया जाता है। हाल ही में नार्वे की घटना को याद किया जाए, तो स्पष्ट होगा कि 22 जुलाई 2011 को ओस्लो में एंडर्स बेररिंग ब्रेइविक ने धुंआधार गोलीबारी और बम विस्फोट कर 77 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। अभी 24 अगस्त को ही अदालत ने उसे 21 वर्ष की सजा सुनाई है। यह मामला 13 महीने में ही निपटा दिया गया।
विकल्पों के द्वार खुले हैं..
अभी तो कसाब के सामने कई विकल्प हैं। वह राष्ट्रपति के सामने गुहार लगा सकता है। देखना यह है कि आखिर कसाब को फांसी पर कब लटकाया जाता है? 13 दिसम्बर 2001 में संसद में हुए हमले का मुख्य आरोपी अफजल गुरु अभी तक जिंदा है। उसे फांसी की सजा सुना दी गई है, पर वोट की राजनीति हावी होने के कारण वह अभी तक फांसी पर नहीं लटक पाया है। इस बात को 11 साल हो रहे हैं, फिर भी अफजल पर अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। यह साफ हो गया है कि अजमल कसाब पाकिस्तानी है। अभी तक पाकिस्तान यही कह रहा है कि मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले से उसका कोई लेना-देना नहीं है। बाद में यह भी स्पष्ट हो गया कि पूरी घटना पाकिस्तान से ही आपरेट की गई थी। आतंकवादी हमले के समय पाकिस्तान से सूचना मिल रही थी। पाकिस्तानी सेना और जासूसी संस्था आईएसआई ने इस पूरी वारदात को अंजाम दिया गया था। मजे की बात यह है कि अब स्वयं पाकिस्तान ही कह रहा है कि कसाब को फांसी दे देनी चाहिए। 10 नवम्बर 2011 को ही पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक ने घोषणा की थी कि अजमल कसाब आतंकवादी है और उसे फांसी होनी चाहिए।
अदालत ने मुम्बई हमले को देश पर हमला निरुपित किया गया है। अब देश के एक-एक नागरिक को इसी बात का इंतजार है कि कसाब को कब फांसी दी जाती है। 2004 में पश्चिम बंगाल में धनंजय चटर्जी को बलात्कार और हत्या के मामले पर फांसी की सजा दी गई थी। उसके बाद कई अपराधियों को फांसी की सजा दी गई है। पर उन सभी मामलों को ताक पर रख दिया गया है। राजीव गांधी के तीन हत्यारों मुरुगन, सांथन और पेरारिवलन को फिल्मी घटना की तरह फांसी की तारीख तय होने के बाद भी सजा रोक दी गई। पता नहीं अजमल कसाब आखिर कब तक मुफ्त की रोटियां तोड़ता रहेगा। लोगों को सब्र रखना ही होगा, क्योंकि कसाब लम्बी उम्र लेकर इस दुनिया में आया है। अभी उसके पास तीन विकल्प हैं। यदि वह राष्ट्रपति के सामने दया याचिका करे, तो भी उसका क्रम 18 होगा। जिस व्यक्ति को सभी ने अंधाधुंध गोली चलाते हुए देखा, जिसने पुलिस के अधिकारियों को मार डाला, उस पर चार साल से मुकदमा चल रहा है। अभी तक उसे फाँसी नहीं हुई। उस पर 40 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, वह अलग। अभी जब तक वह जिंदा है, खर्च जारी रहेगा। उसे बचा रही है, हमारी न्याय प्रणाली। जो इतनी अधिक लम्बी-चौड़ी और पेचीदा है कि साधारण इंसान को तो तुरंत सजा मिल जाती है, पर कुख्यात को सजा देने में सरकार के सारे कानून सामने आ जाते हैं। राष्ट्रपति के पास अभी भी सजायाफ्ताओं के 17 आवेदन हैं, अभी उन पर विचार नहीं हो पाया है। जब तक अफजल गुरु की याचिका पर निर्णय नहीं हो जाता, तब तक कसाब पर भी निर्णय नहीं हो पाएगा। अफजल गुरु पिछले 11 साल से जीवित है ही। बसाब की लम्बी उम्र होने का कारण यह भी है कि अभी हमारे यहां जल्लाद हैं ही नहीं। 2004 में जिस धनंजय चटर्जी को जिस जल्लाद ने फांसी पर चढ़ाया था, उसकी मौत हो चुकी है। जब सरकार ने यह विचार किया कि अब किसी को फांसी नहीं दी जाएगी, तो जल्लादों को प्रशिक्षण देने का काम भी सुस्त हो गया। जल्लाद न होने के कारण ही पंजाब का आतंकवादी वलवंत सिंह तारीख तय होने के बाद भी बच गया। सोचो, कसाब की फाँसी की तारीख तय होने के बाद भी क्या वह जल्लाद की कमी के कारण बच नहीं सकता?
दो जल्लाद सामने आए
दूसरी ओर यह खबर भी आई है कि कसाब को फांसी देने के लिए दो जल्लाद सामने आए हैं। इसमें से एक ने इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी पर चढ़ाया है। अभी वह जीवन के 70 वें पड़ाव पर है। वह स्वयं ही टीबी का मरीज है, उसकी मौत भी करीब ही है। फिर भी उसने हिम्मत दिखाई, इसके लिए उसकी सराहना की जानी चाहिए। दूसरा जल्लाद है कोलकाता का महादेव मलिक। वह नगर निगम में सफाई कर्मचारी है। पर उसने अभी तक न ही इसका प्रशिक्षण लिया है और न ही उसके किसी को फांसी पर चढ़ाया है। तो क्या कसाब को फांसी नहीं दी जाएगी? कानून कहता है कि ऐसी परिस्थितियों में सीनियर इंस्पेक्टर अथवा उससे ऊंचे पद पर आसीन पुलिस अधिकारी प्रशिक्षण के बाद फांसी दे सकता है। प्रशिक्षण प्राप्त करने में 6 महीने लगते हैं। इसका आशय यही हुआ कि यदि कसाब दया याचिका पेश करता है, तो उसमें जो देर होगी, उसके अलावा 6 महीने और लग जाएंगे। ये स्थिति उसकी सांसों को लम्बा कर सकती है। एक बात और पूरे विश्व में अभी फांसी की सजा न देने के प्रावधान पर बहस चल रही है। 2006 में राष्ट्रसंघ में लिथुआनिया ने मौत की सजा के प्रावधान को विश्व से रद्द करने का प्रस्ताव रखा था, जिस पर कुल 11 देशों ने हस्ताक्षर किए थे, हस्ताक्षर करने वालों में भारत भी एक था। केवल इस बात को लेकर विश्व की मानवाधिकार संस्थाएं सक्रिय हो जाती हैं, तो मानों कसाब को जीवनदान मिल जाएगा। कसाब इस देश का सबसे महंगा कैदी है। उसके नाम पर पकिस्तान में 6 संस्थाएं हैं। कसाब को संरक्षण देने वाली 125 वेबसाइट्स हैं। एक मक्कार आतंकवादी को आखिर हम कब तक सेलिब्रिटी बनाएंगे? ये सवाल जीतने तीखें हैं, उसका जवाब उतना ही मुश्किल है।

डॉ. महेश परिमल

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