भोपाल.
हिन्दी पत्रकारिता के यशस्वी सम्पादक राजेन्द्र माथुर का स्मरण करते हुये
शोध पत्रिका समागम का नया अंक जारी कर दिया गया है. 9 अप्रेल को राजेन्द्र
माथुर की पुण्यतिथि पर शोध पत्रिका समागम का यह अंक मुकम्मल अंक जारी
किया गया. राजेन्द्र माथुर मध्यप्रदेश के हैं और उन्होंने अपनी लेखनी से
हिन्दी पत्रकारिता को नया मुकाम दिया था. राजेन्द्र माथुर के उल्लेख के
बिना हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास अधूरा ही रह जाता है. इन दिनों जब हिन्दी
पत्रकारिता सवालों से घिरी है तब राजेन्द्र माथुर का स्मरण करना स्वाभाविक
सा है. राजेन्द्र माथुर की हिन्दी पत्रकारिता को यशस्वी बनाने के लिये
किये गये प्रयासों में वर्तमान समय में उठ रहे सवालों के जवाब तलाशने की
कोशिश शोध पत्रिका समागम ने की है.
शोध पत्रिका समागम के इस नये अंक में राजेन्द्र माथुर के साथ लम्बे
समय तक काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने अपना अनुभव साझा किया है.
श्री बादल ने विस्तार से राजेन्द्र माथुर की कार्यशैली एवं उनकी दूरदृष्टि
पर चर्चा की है. एक अन्य आलेख में वरिष्ठ पत्रकार पुण्यप्रसून वाजपेयी ने
वर्तमान हालात पर चिंता करते हुये लिखा है कि आज के समय में राजेन्द्र
माथुर के लिये गुंजाईश ही कहां शेष है. कुछ अन्य आलेखों के साथ राजेन्द्र
माथुर की राजनीतिक दृष्टि पर एक शोध पत्र भी है. एक अन्य आलेख में आधुनिक
टेक्रॉलाजी का जिक्र करते हुये लिखा है कि राजेन्द्र माथुर सरीखे पत्रकार
की मुश्किल से एक तस्वीर हाथ लगेगी लेकिन उनका लिखा पढऩे के लिये एक उम्र
की जरूरत होगी. राजेन्द्र माथुर पर केन्द्रित यह अंक पत्रकारिता के
विद्यार्थियों के लिये विशेष उपयोग का है.
राजेन्द्र माथुर जी को वर्षो पहले सुनने रायपुर गया था ,उन्होंने कहा था.हम राजशाही को न छोड़ सके न लोकशाही को ठीक से अपना सके हैं , जो विजयी होता है, उसका राज्योचित स्वागत करते हैं ,फिर वो हमसे दूर होने लगता है, तब उसे सबक सिखने सत्ता से उतरने लग जाते हैं ये क्रम आज भी जारी है..!
जवाब देंहटाएंकोई पच्चीस साल पहले माथुर जी रायपुर आये थे तब उन्होंने कहा था,हम राजतन्त्र को छोड़ चुके हैं और प्रजातंत्र को ठीक से अपना नहीं सके हैं.
जवाब देंहटाएंजो जीतता है उसका स्वागत राजा के तुल्य करते हैं ,फिर हमारा लोकतंत्र मन में जगाता है और हम उसे हटाने में लग जाते हैं..!
ढाई दशक हो गए उनकी बात अडिग है. न जाने कब हम उबरेंगे इस दशा से- काश वे ये भी बता गए होते