मंगलवार, 21 जून 2016

शिक्षा-शिक्षकों को लेकर कुछ विचारणीय बिन्दु......

अधिकारी अफसर विद्यालयों का निरीक्षण कर रहे हैं और रोज अखबारों में आ रहा है कि फलाना स्कूल चेक हुआ और बच्चों से राजधानी पूछी, मुख्यमन्त्री का नाम पूछा और बच्चों को नहीं आया, इसी क्रम में एक खबर आयी कि एक शिक्षिका को black board पर  अंत्येष्टि शब्द गलत लिखते हुए देखा और उस अध्यापिका का नाम व फोटो अखबार में छाप दिया ।

अब विचारणीय प्रश्न यह है कि ऐसा करके समाज में, लोगों को, अभिभावकों को क्या सूचना और सन्देश दिया जा रहा है? यही कि सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को विषय का ज्ञान नहीं है? उनको हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, आदि नहीं आती ?
बड़ा विरोधाभास है ........ एक तरफ सरकार कहती है कि सरकारी स्कूलों में नामांकन बढे, ज्यादा बच्चे जुड़े, कोर्ट में केस दाखिल किये जा रहे हैं किसरकारी स्कूल में अफसरों के बच्चे पढ़ाई करें और दूसरी तरफ शिक्षकों की गरिमा और मर्यादा तथा उअनके ज्ञान को धूमिल किया जा रहा है| ऐसी खबरें आने के बाद अभिभावकगण और समाज में ये सोच पनपेगी कि मास्टरों को कुछ नहीं आता, "मास्टर" यही शब्द अब संबोधन का ज़िंदा रह गया और गुरु जी जैसे लफ्ज गायब हैं ।

एक सोचनीय तत्व ये है कि अफसर किस उद्देश्य स्कूलों का निरीक्षण करने जाते हैं? अपनी अफसरी दिखाने? अध्यापकों को नीचा दिखाने? उनको अपमानित करने? अपना रौब दिखाने? उनको फटकार लगाने? .....  ...... ?
निंदनीय है  .........  
नकारात्मक है ........ 
गलत है .......
होना तो यह चाहिए कि अफसरों को शिक्षकों और बच्चों को प्रेरित करना चाहिए, उनका morale up करना चाहिये, उनको boost करना चाहिए, एक जोश भरना चाहिए,कोई कमी दिखे भी तो शिक्षकों और बच्चों में सकारात्मक ऊर्जा भरनी चाहिए, अपमानित करने से तो शिक्षक निराश हो जाएगा ।
अच्छा , इन अफसरों के प्रश्न होते भी ऐसे हैं जो syllabus से बाहर के होते हैं, अफसरों का उद्देश्य सुधारवादी नहीं, आलोचनात्मक दृष्टिकोण लिये होता है कि शिक्षक की गलती नजर आये बस, और हम अपना रौब दिखाए, एक अफसर ने लेफ्टिनेंट शब्द पूछा था शिक्षक से, क्योंकि यह अब अप्रचलित शब्द है और लेफ्टिनेंट अंग्रेजी में lieutenant लिखा जाता है ।
हिन्दी में तो और भी कठिन शब्द हैं जो भ्रमित करते हैं  और किताबों में, अखबारों में गलत वर्तनी ही प्रचलित है जैसे उपरोक्त शब्द मिलता है सही शब्द उपर्युक्त की जगह, कितने लोग जानते हैं कि कैलाश शब्द गलत है और कैलास सही, दुरवस्था सही है दुरावस्था गलत, सुई नहीं सूई शब्द सही है, अध:पतन को अधोपतन लिखा जाता हैहिन्दी भाषा की सही वर्तनी पूरे भारत में ही गिने-चुने लोग सही लिख पायेगे, दो aunthentic (प्रमाणिक) किताबों में एक में दोपहर सही शब्द माना है और एक ने दुपहर, भगवान जाने स्थाई शब्द सही है या स्थायी? दवाई शब्द तो होता ही नहीं है सही शब्द या तो दवा है या दवाईयाँ, दुकानों पर लिखा मिष्ठान शब्द ही गलत है, क्योंकि सही शब्द मिष्टान्न है।
कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता और कोई भी शिक्षक सर्वज्ञ नहीं होता, चाहे कितना भी कोई स्वाध्याय कर लें, शादी न करे, घर से कम निकले, शादी विवाह मृत्यु त्योहार आदि में जाना बन्द करके कोई शिक्षक सारी जिन्दगी पढ़ाई करे फिर भी किसी न किसी प्रश्न पर वो अटक जाएगा, क्योंकि विषय और ज्ञान अनन्त है ।
सरकारी स्कूल का अध्यापक कोई भी हो, वो बुद्धिमान अवश्य होगा, उसका कारण साफ़ है, वो कई परीक्षाएं पास करके शिक्षक बनाता है, बी ए, ऍम ए, बीटीसी, जेबीटी,  pre बीएड, फिर बीएड, ऍम एड, tet, ctet, आदि के उपरांत teacher के लिये प्रतियोगी परीक्षा, सिर्फ क्रीम क्रीम प्रतियोगी ही अध्यापक बन पाते हैं ।

कुछ हद तक शिक्षक स्वाध्याय नहीं कर रहा, जिसकी जिम्मेदारी समाज और शिक्षा विभाग की  है, आम इन्सान को नहीं पता कि सरकारी teacher के कैरियर में 40% fild work है, 40% लिखा पढ़ी और सिर्फ 20% अध्ययन अध्यापन है, field work मतलब शिक्षक गाँव में या शहर में घूमता है, उसको स्कूल परिसर में बैठने  का वक्त नहीं, बाल गणना, जनगणना, pulse पोलियो, चुनाव, सर्वे, पोषाहार के लिये दाल सब्जी मिर्च मसाले लाना, अभी चूल्हे cylinder लाने के लिये मशक्कत की, और सबसे बड़ा कार्य b.l.o. गाँव में घूमते रहो, फिर आये दिन ट्रेनिग, नामांकन और वोटर कार्ड बनाने के लिये द्वार-द्वार घूमो, छात्रवृति वाले काम के लिये बच्चों और अभिभावकों से आय प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र की माथापच्ची में पूरा जुलाई निकल जाता है , बोर्ड एग्जाम में तो सिर्फ  govt टीचर की ही ड्यूटी लगाती है तो मार्च में सरकारी स्कूल खाली हो जाते हैं, वृक्षारोपण अभियान  में पेड़ लेने भागो, निशुल्क पाठ्य पुस्तक लेने भागोनिशुल्क गणवेश भी तो वितरित करना है उसका भी इन्तजाम करना है, राशन कार्ड और आधार कार्ड की ड्यूटी, बैंक का काम, बच्चों की पढ़ाई गयी भाड़ में , रोजाना नई नई सूचनाये विभाग मागता है और तरह तरह की u.c., किसी स्कूल में कमरा office निर्माण कार्य आ गया तो समझो 6 महीने गए, कभी पोषाहार की डाक जाती है to कभी छात्रवृति की, कभी dise बुकलेट भरो, तो कभी अनीमिया गोलियों की डाक, स्कूल आकर कोई आम इन्सान देखे तो पता चलेगा कि सरकारी स्कूल डाकखाना है।
शिक्षक स्वाध्याय कैसे करे? क्या करे? इस अजीबोगरीब माहोल में , और पढ़ाई चाहिए भी किसको? हर कोई पास भर होना चाहता है, डिग्री चाहता है, ज्ञान किसको चाहिए? एक तरफ गुणवत्ता सुधारने के लिये ncert books लगा दी गयी और जिनका standard ऐसा कि विज्ञान की किताब पढ़ाने के लिये lab की जरूरत है क्योंकि सारे प्रयोग हैं, सरकारी स्कूल में chalk duster black बोर्ड की व्यवस्था होती नहीं सही से, बाकी lab की  बात ..... ? कक्षा कमरे हैं सही लेकिन एक में कबाड़ पडा है, एक में चावल गेहूं और एक में पोषाहार पकाने के लिये लकड़ी भरी है, और एक में ऑफिस अलमारी, एक तरफ ncert books का आदर्शवाद और वहीं बोर्ड result सुधारने के लिये ...........

शिक्षा विभाग भी जादू का खेल है, कभी क्या तो कभी क्या? कभी एकीकरण, कभी समानीकरण, कभी स्टाफिंग pattern, शिक्षक को खुद नहीं पता कि उसका पत्ता कब कट जाएगा?
शिक्षक भी इन्सान है, मीडिया भी बस आदर्शवाद का ढकोसला करता है, अंतेष्टि गलत लिखा शिक्षिका ने तो उसका फोटो खींच लिया, किसी बच्चे ने चाहे खुद ही खुद को चोटिल कर  दिया हो लेकिन बड़े बड़े अक्षरों में खबर छपेगी  
"शिक्षक ने  पीटा"
"शिक्षक की करतूत "
कोई भी शिक्षक स्कूल में बैठकर time pass नहीं करता, बच्चों को उनके मां बाप भी गलत काम पर पिटाई करते हैं, शिक्षक राक्षस नहीं है, अगर कोई एक शिक्षक गलती करता है तो पूरा शिक्षक समुदाय की गलती सिद्ध नहीं हो जाती, पढ़ाई कोई घुट्टी नहीं है कि बच्चे का मुँह खोला और दो बूँद डाल दी, अनुशासन के लिये भय भी जरूरी होता हैमीडिया को बहुत शौक है सच छापने का तो किसी स्कूल में कुछ दिन काटकर आये, देखे शिक्षक की दोहरी तिहरी जिम्मेदारी और माहौल ,
विश्व का सारा ज्ञान और विकास शिक्षा और शिक्षक के कारण ही वजूद में आया है, सरकारी शिक्षक बहुत ही निरीह और आम इन्सान है, वो अपना 100% देना चाहता है, ये जरूर है कि वो दबावों में है, शिक्षण बस एक नौकरी भर नहीं है। अफसर मीडिया और समाज तीनों शिक्षक के प्रति अनुदार हैं, और शिक्षक की गलत छवि पेश कर रहे हैं।
शिक्षा व्यवस्था के सन्दर्भ में आज से पचास वर्ष पहले श्रीलाल शुक्ल जी ने एक कड़वी मगर सच बात राग दरवारी में लिखी थी, जो आज भी प्रासंगिक है "सरकारी शिक्षा रास्ते में पड़ी हुई एक कुतिया है, जिसको कोई भी ठोकर मारकर चला जाता है। जो भी मंत्री, अधिकारी आते हैं बजाय इसके कि वह शिक्षा व्यवस्था को ठीक करें, शिक्षकों को जिम्मेदार मानकर बात शुरू करता है। हर आदमी सरकारी शिक्षा के खिलाफ वक्तव्य देकर चला जाता है, मगर उसके लिए कुछ नहीं करता।"


शनिवार, 18 जून 2016

योग के बारे में...

Adiyogi आदियोगी  

The antiquity of yoga goes back to Adiyogi, the first yogi, over 15,000 years ago.

Adiguru आदिगुरु 

Summer solstice, the day on which Adiyogi transformed himself into an Adiguru.

Saptarishis सप्तऋषि 

The first 7 disciples of Adiyogi, celebrated as the Saptarishis took yoga to different corners of the world.

Yoga means union

Yoga means union. That is, you begin to experience the existence as yourself.

No belief system

Yoga is the science of creating an inner climate. You don’t have to believe anything or follow anyone.

Predates all religion

The spiritual process and the technology of yoga predates all religion.

15 millenia old

Yoga has lived for over 15 millennia without any papacy or enforcement, only because of sheer efficacy.

Determines who you are

Yoga is not an expression of who you are – it is about determining who you are.

Right chemistry

Doing different systems of yoga is to establish a certain chemistry in the system which is sweet by its own nature.

Right geometry

The whole system of yoga is just this: getting the geometry of human system right.

Yogasanas योगासन 

Yogasanas aren't exercises. Yogasanas are subtle processes to direct & activate your energy in a particular direction.

Not for muscle building

Yoga needs to be practiced in a very subtle, gentle way, not in a forceful muscle building way.

Body is the key

Yoga involves using your own body weight to do exercises…as effective in building the body as any weight training is.

Brings awareness

Yoga takes care of the system in such a way that it will not allow you to eat more than needed.

Mind matures

Yoga always tries to transform the body, because if the body transforms, the mind will mature by itself.

Mind is the mirror

In yoga, we always describe the mind as a mirror. A mirror is useful to you only if it is clean and plain.

Handle consciously

When you handle body, breath, mind and your being consciously – that is yoga.

Body, an instrument

In yoga we are looking at the body as a fantastic instrument which can become a receptacle of the Divine.

Human Nature

Human nature is longing to be something more than what it is right now...if you address this consciously, this is yoga.

Yoga is not a philosophy

Yoga: there are no concepts, philosophies, ideologies or belief systems...only methods to enhance your perception.

International Yoga Day अंतर राष्ट्रीय योग दिवस 

There is much misunderstanding about yoga. This International Day of Yoga must clear this.

गुरुवार, 2 जून 2016

बंदर भी मातम मनाते हैं….

 हाल ही में यह अवलोकन किया गया है कि बंदर भी अपने मृतक का मातम मनाते हैं। चपटी नाक वाले बंदरों के एक समूह में एक मादा पेड़ से गिरी और नीचे चट्टान से टकराकर उसका सिर फूट गया। उसी समूह का प्रमुख नर बंदर (अल्फा नर) उसके पास ही रहा और उसके सिर को सहलाता रहा। उसने ऐसा तब तक किया जब तक कि वह मर नहीं गई। मरने के बाद भी वह वहीं बना रहा और उसे छूता रहा, उसके सिर को हल्के से खींचता रहा। लगता था कि वह उसे फिर से जिलाने का प्रयास कर रहा था। जापान के क्योतो विश्वविद्यालय के जेम्स एंडरसन का कहना है कि इस अवलोकन से पता चलता है कि वयस्क नर ने अत्यंत स्नेहपूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन किया। इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कम से कम सशक्त बंधनों से बंधे जानवरों में मरणासन्न प्राणि के लिए करुणा का भाव होता है। इससे पहले उत्तर-पश्चिमी ज़ाम्बिया के एक अभयारण्य से रिपोर्ट आई थी कि चिम्पैंज़ी न सिर्फ अपने मृतक का मातम मनाते हैं बल्कि कुछ हद तक उसका अंतिम संस्कार भी करते हैं। इन दोनों रिपोर्ट से पता चलता है कि मृत्यु के बाद शोकाकुल व्यवहार के मामले में मनुष्य अकेले नहीं हैं। इनसे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि ये जानवर भी समझते हैं कि मृत्यु एक पूर्ण विराम है, उसके बाद वह प्राणि वापिस नहीं लौटेगा। अर्थात मृत्यु एक अनुत्क्रमणीय घटना है। वैसे एंडरसन का कहना है कि जंतुओं के व्यवहार पर मानवीय मूल्य थोपना या उनका मानवीयकरण करना थोड़ा खतरनाक है, मगर लगता है कि सामूहिक प्राणियों में बार-बार मृत्यु से संपर्क होने पर मृत्यु की अनुत्क्रमणीयता को लेकर कुछ समझ तो बन जाती होगी और इसका भावनात्मक असर भी होता होगा। इसलिए उपरोक्त अवलोकनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना अनुचित न होगा कि मनुष्य के अलावा कुछ अन्य प्राणियों में भी शोक संवेदना होती होगी। (स्रोत फीचर्स)