पहाड़ी बाबा का मंदिर इस लिहाज से अनोखा है कि यहां धर्मध्वजा के साथ-साथ हर स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रध्वज फहराने की परंपरा है। यह बहुत रोचक विषय तो है ही साथ ही लोगों की जिज्ञासा का केंद्र भी है।
स्वतंत्रता और पूजा
यह मंदिर भक्तिभाव के संग राष्ट्रप्रेम का भी संदेश देता है तथा इससे यह सवाल उठता है कि क्या हमारा वतन भगवान के समान पूज्यनीय है? जी हां! अगर स्वतंत्रता ही नहीं होगी तब हमारा पूजा करने का हक भी छिन सकता है।
कहां है ये मंदिर?
रांची रेलवे स्टेशन से लगभग सात किलोमीटर दूर करीब 26 एकड़ में फैला और 350 फुट की ऊंचाई पर स्थित पहाड़ी बाबा मंदिर देश का शायद इकलौता ऐसा मंदिर है जहां धर्मध्वजा की जगह राष्ट्रध्वज फहराया जाता है।
इकलौता मंदिर?
संभवतः यह भारत वर्ष में अपनी तरह का इकलौता मंदिर है जहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रीय झंडा फहराया जाता है।
धर्मध्वजाओं का महत्व
आमतौर पर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च अपनी धर्मध्वजाएं फहराते हैं लेकिन पहाड़ी बाबा मंदिर पर हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रीय ध्वज शान से लहराया जाता है।
धर्मध्वज से ऊपर का दर्जा?
इस मंदिर में राष्ट्रीय ध्वज को धर्मध्वज से ऊपर का दर्जा देने की यह परंपरा 14 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि से ही शुरू हो गई थी।
राष्ट्रगान के साथ तिरंगा
देश की आजादी के बाद से ही प्रत्येक साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को मंदिर में सुबह की मुख्य पूजा के बाद राष्ट्रगान के साथ तिरंगा फहराया जाता रहा है।
वतन सबसे पहले
लोग आदरपूर्वक और उत्साह के साथ इसमें शामिल होते हैं। हालांकि किसी और मंदिर में ऐसी अनोखी परंपरा नहीं अपनाई जाती है। तथापि यह साफ़-साफ़ दर्शाता है कि हमारा वतन पूजनीय है।
पहाड़ी बाबा मंदिर
यूं तो पहाड़ी बाबा मंदिर की मनोहारी छटा भी इसे महत्वपूर्ण और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का कारण बनाती है। आश्चर्यजनक रूप से सिर्फ इन दो राष्ट्रीय पर्वों के अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं।
हम सब एक हैं
जिन्हें भक्तिभाव से बहुत लेना-देना नहीं होता वे भी यहां आने से नहीं कतराते। हर धर्म के लोग इस प्रथा में भागीदर बन कर इसे आगे ले जा रहे हैं।
वृक्ष और ध्वज
पर्यावरण प्रेमियों के लिए भी यह मंदिर महत्वपूर्ण है क्योंकि पूरी पहाड़ी पर मंदिर परिसर के ईर्द-गिर्द विभिन्न प्रकार के हजार से अधिक वृक्ष हैं।
428 सीढ़ियां
मुख्य मंदिर के द्वार तक पहुंचने के लिए आपको 428 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर प्रांगण से रांची शहर का खूबसूरत नजारा भी दिखता है।
अनुपम सौंदर्य
साथ ही यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का अनुपम सौंदर्य भी देखा जा सकता है। इसको देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
ब्रिटिश हुकूमत के समय फांसी
पहाड़ी बाबा मंदिर का पुराना नाम टिरीबुरू था जो आगे चलकर ब्रिटिश हुकूमत के समय फांसी टुंगरी में परिवर्तित हो गया।
इतिहास का प्रकोप
फांसी टुंगरी के नामकरण के पीछे आजादी का इतिहास छिपा है। अंग्रेजों ने जब छोटा नागपुर क्षेत्र पर अधिकार स्थापित कर लिया था तो रांची में उन्होंने अपना संचालन केंद्र खोला।
खुलेआम फांसी
जो लोग अंग्रेजी सरकार की नजरों में देशद्रोही, क्रांतिकारी या घातक होते थे, उन्हें राजधानी के शहीद चौक या फांसी टुंगरी पर खुलेआम फांसी दे दी जाती थी।
भक्तिभाव के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम
असल में मंदिर के साथ जुड़े ऐतिहासिक तथ्य लोगों में भक्तिभाव के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम के भाव को भी उद्वेलित करते हैं।
फांसी और स्वतंत्रता संग्राम
स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अनेक क्रांतिकारियों को अंग्रेज सरकार ने यहां फांसी पर चढ़ा दिया था।
शहादत का प्रतीक
ऐसे में यह शहीदों की शहादत का प्रतीक है। इनकी याद में राष्ट्रीय झंडा फहराकर उन्हें सम्मान प्रदान किया जाता है।
देश की आजादी
पहाड़ी बाबा मंदिर में एक शिलालेख लगा है जिस पर 14 अगस्त, 1947 को देश की आजादी संबंधी घोषणा भी अंकित है।
सपूतों का शहीद स्थल
पहाड़ी मंदिर के मुख्य पुजारियों में शामिल पंडित देवीदयाल मिश्र उर्फ देवी बाबा बताते हैं कि पहाड़ी मंदिर केवल आजादी के लिए लड़ने वाले सपूतों का शहीद स्थल भर नहीं है बल्कि इसका प्राचीन इतिहास भी महत्वपूर्ण है।
नागवंशियों का इतिहास
उनकी मानें तो छोटा नागपुर क्षेत्र के नागवंशियों का इतिहास भी यहीं से शुरू हुआ है। पहाड़ी पर जितने भी मंदिर हैं, उनमें नागराज का मंदिर सबसे प्राचीन है।
आदिवासी लोग और नागदेवता की पूजा
आदिवासी समुदाय प्रकृति पूजक रहा है। इस स्थल पर शुरू से ही आदिवासी लोग नागदेवता की पूजा करने आते रहे हैं।
पूजा और आदिवासियों की पुकार
आज भी प्रत्येक सोमवार को पाहन बाबा जो आदिवासियों के लिए पूजनीय होते हैं, मंदिर की प्रमुख पूजा संपन्न करने आते हैं।
प्रमुख धार्मिक केंद्र
सरकार अगर पहाड़ी मंदिर पर समुचित ध्यान दे तो यह न सिर्फ एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के तौर पर विकसित होगा बल्कि राष्ट्रीय एकता की भी अनूठी मिसाल पेश करेगा।
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