मक्खियों को कैसे पता चलता है कि कब जागकर भिनभिनाना है और कब सो जाना है? अब ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के जेरो मीसेनबॉक और उनके साथी वैज्ञानिकों ने उस स्विच का पता लगा लिया है जो मक्खियों को सोने या जागकर सक्रिय होने का निर्देश देता है। मक्खियों और इंसानों की नींद के बीच कई समानताएं हैं। इसके चलते मक्खियां हमारी अपनी नींद को समझने के लिए एक अच्छा मॉडल जंतु है। इसी बात को ध्यान में रखकर ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं ने मक्खियों की नींद का अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने ऑप्टोजेनेटिक्स नामक तकनीक का उपयोग किया। इस तकनीक में सबसे पहले जंतु में जेनेटिक फेरबदल के माध्यम से ऐसी व्यवस्था की जाती है कि उसकी तंत्रिका कोशिकाएं एक विशेष प्रकाश की रोशनी मिलते ही सक्रिय हो जाती है। ऐसी मक्खियां तैयार करने के बाद उन्होंने मक्खियों के मस्तिष्क में उन तंत्रिकाओं को उत्तेजित किया जो डोपामीन नामक एक रसायन बनाती हैं। इन तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा बनाए गए डोपामीन ने नींद को बढ़ावा देने वाले हिस्से को निष्क्रिय कर दिया। यह हिस्सा पंखे के आकार की पृष्ठीय संरचना कहलाता है। मक्खियां तुरंत जाग उठीं।
लगभग इसी के साथ वाल्थम विश्वविद्यालय के फैंग गुओ और उनके साथियों ने एक अन्य प्रयोग किया। ऑप्टोजेनेटिक तकनीक का उपयोग करते हुए उन्होंने पाया कि यदि मक्खी की आंतरिक घड़ी का नियमन करने वाली तंत्रिका को उत्तेजित किया जाए तो मक्खियां सो जाती हैं। जब प्रकाश के माध्यम से इन तंत्रिकाओं को उत्तेजित किया जाता है तो वे ग्लूटामेट नामक एक रसायन बनाती हैं। ग्लूटामेट मस्तिष्क के मास्टर समेकर में जाकर सक्रियता को बढ़ावा देने वाली तंत्रिकाओं को निष्क्रिय कर देता है। परिणाम यह होता है कि मक्खी सो जाती है। हमारे मस्तिष्क में भी पंखे के आकार की पृष्ठीय संरचना और मास्टर पेसमेकर के समतुल्य हिस्से होते हैं। अभी यह नहीं पता है कि क्या डोपामीन और ग्लूटामेट जागने और सोने का संकेत देंगे या नहीं। मगर इतना तो पता है कि डोपामीन इंसानों को जगाकर रखता है। कोकेन जैसे रसायन डोपामीन के स्तर में वृद्धि करते हैं और हमें जगाने में मददगार होते हैं। इस तरह के स्विच की खोज महत्वपूर्ण है। अगला कदम यह पता करने का होगा कि डोपामीन और ग्लूटामेट सामान्यत: किस क्रियाविधि के ज़रिए असर डालते हैं। इसके आधार पर नींद संबंधी तकलीफों के उपचार के कुछ नए तरीके सामने आने की उम्मीद की जा सकती है। (स्रोत फीचर्स)
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