बुधवार, 22 नवंबर 2017

मुक्तिबोध पर ज्ञानरंजन के विचार

 सुप्रसिद्ध कथाकार और 'पहल ' के यशस्वी संपादक *ज्ञानरंजन* जी का आज 21 नवम्बर को जन्मदिन है .उनके  जन्मदिवस के अवसर उन्हें शुभकामनाओं सहित प्रस्तुत है 7 फरवरी 2016 को उन्हें 'मुक्तिबोध सम्मान' प्रदान किये जाने के अवसर पर उनके द्वारा दिया गया व्याख्यान जिसमें मुक्तिबोध से उनकी पहली मुलाकात का ज़िक्र और उनके अंतिम दिनों की बातें हैं और इलाहाबाद के साहित्यिक परिदृश्य का इतिहास है - शरद कोकास 

🔴 अध्यक्ष महोदय, आज के विशिष्ट वक्ता माननीय खांदेवले जी, महाराष्ट्र मंडल के संचालकों और निर्माताओं, जूरी के रचनाकार सदस्यगण और उपस्थित भाइयों बहनों ।
मेरी जीवन में छत्तीसगढ़ और रायपुर की छाया गहरी और अविस्मरणीय है। इस क्षेत्र में हमने कभी सुदूर बस्तर तक यादगार गतिविधियां की हैं और उसमें हमारे शानदार पूर्वजों की बड़ी भूमिका भी रही है। जाहिर है कि वह सब अब जीवित नहीं हैं। मैं रायपुर लम्बे समय बाद आया। इस बीच विवादास्पद आयोजन और सांस्कृतिक असहमतियों वाला वातावरण था जिसके कारण मेरी अनुपस्थिति रही है - लेकिन आज का आयोजन एक अकस्मात् अहमियत बन कर आ गया। इसमें मैं कोई भी किसी प्रकार का तमाशा नहीं कर सकता था। एक तो मुक्तिबोध, दूसरे सम्मान प्राप्त पिछले महारथी रमेशचंद्र शाह और विनोद कुमार शुक्ल जी, तीसरे जूरी के विद्वान सदस्य और चौथे महाराष्ट्र मंडल की अपनी स्वतंत्र कीर्ति। बहुत पहले युवकोचित दिनों में ‘विवेचना’ नाटक समूह के साथ संभवतः दो बार मैं महाराष्ट्र मंडल के परिसर में रहा भी हूँ। विवेचना निर्माता हरिशंकर परसाई थे जिसको अब 50 वर्ष पूरे हो गये हैं, उसी तरह जिस तरह मुक्तिबोध की कविता ‘अंधेरे में’ को 50 वर्ष हुए। मुक्तिबोध के समय से आज और भावी के तापमान में अंधेरे बढ़ रहे हैं। कल यह मिथक बन जायेगा और आने वाली संतानें मिथक फोड़ती रहेंगी। एक और उल्लेख करूंगा कि इसी 2016 के उत्तरार्द्ध में गजानन माधव मुक्तिबोध की जन्म शताब्दी का आगाज़ भी है। इसके अलावा मेरी झोली में मुक्तिबोध को लेकर दो तीन छोटे मोटे संस्मरण है जो आज के सम्मान के अवसर की कीमत मेरे लिये बहुत बढ़ा देते हैं।

मित्रों, अपने समकालीनों में, मैं अल्पज्ञात हूँ इससे मुझे मेरे एकांत, खामोशी, प्राचीनता और सक्रियता सभी को अनुकूल अवसर मिलते रहे हैं। मैं संक्षेप में आपको अपने युवाकाल की जानदार सोहबतों का संक्षिप्त संकेत दूंगा जिसने मेरा जैसा तैसा निर्माण किया है और मेरी धातु को एलॉय की तरह बचाया है।

मैं भाग्यशाली हूँ कि उत्तर छायावाद के सभी बड़े कवि कथाकार और आलोचकों को अपनी सक्रिय अवस्था में बिल्कुल आमने सामने निकटता से देखा सुना।
मेरे जीवन का प्रारम्भ कुछ ऐसा ही था। पुराने पत्ते गिर रहे थे, नये आ रहे थे। छायावाद की परछाई लम्बी होकर गुम होने लगी थी।
मैंने पढ़ने-पाठ करने, किताबों की दुनिया से कम सोहबतों से अधिक सीखा। इलाहाबाद में मेरे घर से पत्थर फेंकने की दूरी पर दबंग कथाकार उपेन्द्र नाथ अश्क, बलवंत सिंह, भैरव प्रसाद गुप्त, शेखर जोशी, अमरकांत, रवीन्द्र कालिया, कमलेश्वर, नरेश मेहता और दूधनाथ सिंह रहते थे। यह सूची मैंने संक्षिप्त कर दी है। मेरे घर से उड़ती हुई पतंगों की दूरी पर निराला, महादेवी, पंत, अमृत राय, शैलेश मटियानी, रघुवर सहाय फिराक, धर्मवीर भारती, दुष्यंत कुमार, मार्कण्डेय और मलयज के घर थे। मैंने इसको तारमंडल लिखा है। इस तारमंडल में कभी कभार भटकते हुए नक्षत्रों की तरह अज्ञेय आते, फणीश्वरनाथ रेणु आते, नामवर सिंह आते, राहुल सांकृत्यायन, शंभू मित्रा और इब्राहिम अलकाजी आते थे। उन दिनों आज की तरह लोग दिल्ली नहीं इलाहाबाद आते थे। आज सब दिल्ली जाते हैं। वह हिन्दी का दशाश्वमेध घाट बन गया है।

जब रेणु इलाहाबाद आये, मेरे ठेठ पड़ोस में थे, शाम की सैर में उनकी गोद में एक खरगोश जैसा कुत्ता रहता था, ‘मैला आंचल’ वे लिख चुके थे और उसका बड़ा हल्ला था, शायद ‘परती परिकथा’ लिख रहे थे। जब राहुल जी आते जाते थे, वे एशिया के दुर्गम भूखंड लिख रहे थे और जब अज्ञेय आये तब उत्तर तार सप्तक योजनाएं बन रही थीं। इस प्रकार व्यक्तित्वों की उपस्थितियों, आवागमनों, सृजनात्मक क्रियाकलापों और एक शब्द ज़रूरी जोड़ूंगा कि व्यक्तित्वों के रूमान की बदौलत मेरा रसायन बन रहा था।
मेरे प्रारंम्भिक जीवन की इतनी झलक पर्याप्त है। मुझे सीधे गजानन माधव मुक्तिबोध पर ही आना था जिसके नाम से मुझे पुरस्कृत किया गया है। मुक्तिबोध से मेरे दो तीन खामोश साक्षात्कार हैं जिसका उल्लेख आपसे करूंगा। मैंने मुक्तिबोध को सबसे पहले तब देखा जब मैं युवक था, स्नातक हो गया था, इलाहाबाद में था और सूरतों से सीख की तरफ जा रहा था। यादगार स्वरबेला थी जिसमें आधुनिक हिन्दी कविता की प्रायः बड़ी हस्तियां उपस्थित थीं। वहाँ इन्द्रधनुष से भी अधिक रंग थे। उन दिनों तार सप्तक के कवि गिरिजा कुमार माथुर इलाहाबाद आकाशवाणी के प्रमुख थे। उन्होंने इस ऐतिहासिक काव्य पाठ का आयोजन किया था जिसमें मुक्तिबोध जी उपस्थित थे। हमने उनका नाम हवा में सुना हुआ था। इस पाठ में पंत, शमशेर, केदार नाथ अग्रवाल, नरेश मेहता जगदीश गुप्त, अज्ञेय, प्रभाकर माचवे, भारती मौजूद थे। और भी थे मुझे याद नहीं। हमारी मानसिकता यह थी कि हम पुरानी कविता के खिलाफ नयी आती कविता के समर्थक हो गये थे। एक युवकोचित काव्योन्माद था। नयी कविता, निकष, क ख ग जैसी दमदार पत्रिकाएं निकल रही थीं। इलाहाबाद नयी कविता की तीर्थ बन गया था। यद्यपि आज यह तीर्थ जनतांत्रिक तरीकों से माच्चू पिच्चू या हड़प्पा के खंडहरों की तरफ जा रहा है।

काव्य पाठ खुले लान में था। हम आमंत्रित नहीं थे। हमें इलाहाबाद का आवारागर्द समझा जाता था। तो हम फेंस के बाहर थे और सुन रहे थे। मुक्तिबोध ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘औरांग ऊटांग’ पढ़ी। उनके हाथ में कविता का कागज़ कांप रहा था, संभवतः ऐसे भद्रलोक में मुक्तिबोध पहली बार आए थे। वे ऊबड़ खाबड़ लगते थे। नख शिख पोशाक कवियों जैसी तो नहीं थी। साधारण थे और सादे कुछ कुछ शमशेर के करीब। औरांग ऊटांग समझ में नहीं आई थी, अधूरी ही बूझी पर लगता था कि यह कविता कुछ भिन्न है और हलाल कर रही है, बेचैन कर रही है और सर से भी ऊपर जा रही है। मुक्तिबोध के काव्य पाठ के बाद हम लगभग बायकॉट करते हुए वापस कॉफी हाउस आ गये। *यह मेरा मुक्तिबोध से पहला साक्षात्कार था।*

इलाहाबाद के काव्य संसार में जो गुटबाजी थी उसमें तार सप्तक का जोर था, परिमल का जोर था। इसके बाद मैं जबलपुर आ गया। आने के साल भर बाद मैं मुक्तिबोध से फिर मिला। इस बार राजनांदगांव में हरिशंकर परसाई के साथ। राजनांदगांव के तालाब में उन दिनों स्वर्ण कमल का प्रतिबिंब था, मुक्तिबोध अपनी पूरी स्फूर्ति और जागरण में थे। मुक्तिबोध के घर से निकट तालाब, भुतही कोठी, महल फिल्म जैसी लड़खड़ाती उजड़ती सीढ़ियां, बार बार चाय बनाती आई और बच्चे जो अब बहुत बड़े हो गये हैं और उनके बच्चे भी बड़े हो गये हैं। वे अद्भुत दिन थे। परसाई की उपस्थिति में मुक्तिबोध चहकने लगते थे, उत्तेजित हो जाते थे, राहत और आश्वस्ति पनपने लगती थी। इन दिनों की कोई चमक नहीं थी, भरपूर जिज्ञासाएं और कौतूहल के दिन थे। मैं सीख रहा था, और सीखते व्यक्ति को उन दिनों शर्म से नहीं देखा जाता था। मेरी एक कहानी भी मुक्तिबोध ने पढ़ी जो ज्ञानोदय में छपी थी। वे उससे बहुत खुश नहीं थे, उन्होंने कुछ टिप्पणियां भी कीं, परसाई ने मेरा मुराल ऊँचा रखा था।

इसके बाद मुक्तिबोध के अंतिम दिन, 1964 के साल में। दिल्ली एम्स जहां मुक्तिबोध के कैंसर का इलाज हो रहा था। सफदरजंग का चौराहा उन दिनों एक बड़े कस्बे का चौराहा था। दवा की दुकानें, जूस सेंटर और एस टी टी सेंटर। देश के बड़े जाने माने लेखक कवि वहाँ डटे होते थे। आते जाते थे। पूरे दिन का एक सेट बन गया था। प्रभाकर माचवे और नेमिचंद जैन के हाथ में कमान थी। शमशेर जी बीच बीच में भावुक हो जाते थे और प्रेमलता से अंतरंग गपशप करनेे लगते थे। प्रेमलता विदुषी थीं मलयज की बहन थीं। श्रीकांत वर्मा, कमलेश, अशोक बाजपेयी जो पढ़ाई पूरी करके निकले ही थे, वहां आते जाते थे, मैं भी इन्हीं में घुसता था, कोई आवाज़ नहीं थी पर घुसता था। शीला संधू राजकमल की मालकिन मदद कर रही थीं। ‘चांद का मुंह टेढ़ा है’, का मुख पृष्ठ और उसके रेखांकन बार बार बनते थे। रामकुमार यह काम कर रहे थे जो आज विश्व के महान चित्रकार हैं। एक बिस्तरे पर शांत लेटे अर्द्धचेत मुक्तिबोध को कवर डिजाइन दिखाई जाती थी। वे कुछ नहीं कहते थे। चांद का मुंह टेढ़ा है के प्रकाशन की तैयारी सब मिल जुल के कर रहे थे। चिंता यह थी कि मुक्तिबोध दिवंगत हों उसके पहले संग्रह आ सके। संभवतः ऐसा हुआ नहीं, मुझे ठीक से याद नहीं है। लेकिन एक चीज़ पक्की याद है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने स्व. मुक्तिबोध की सुगम और प्रभावी चिकित्सा के लिये अपनी गहरी संवेदनशीलता प्रदर्शित की थी।

मेरा अंतिम और एक बहुत छोटा सा काम मुक्तिबोध को लेकर तब पूरा हुआ जब सुप्रसिद्ध प्रमोद वर्मा का तैयार किया मोनोग्राफ ‘पहल’ ने प्रकाशित किया। इसी के आसपास ग्रंथावली आई थी। यह मोनोग्राफ हमने पहली बार लेटर प्रेस छोड़ कर ऑफसेट पद्धति से छापा था और यह ‘पहल’ का पहला कदम इस नज़रिये से था।
श्रोताओं मुक्तिबोध के साथ मेरी यही मौन, एकतरफा पर आत्मिक स्मृति है जिसे आप सबसे शेयर कर सका। इसे मात्र विनम्र सूचना ही मानें।

शुरू में मैंने ‘अंधेरे में’ के पचास वर्ष का उल्लेख किया है। यह कविता हिन्दी आधुनिक कविता का सबसे बड़ा उजाला है। यह उल्लेख इसलिये भी कर रहा हूँ कि इस कविता के आसपास ही हम अपना कहानी का संसार बुन रहे थे। इसलिये ‘अंधेरे में’ कविता के नये खुलते पाठों से मुझे बहुत कुछ मिला जिसका उल्लेख कठिन है। मेरी रचना प्रक्रिया में हर कहीं इस कविता ने आग रोशन कर दी है। इसके बिंब भीतर काम करते रहे। मित्रों एक लेखक दूसरे लेखक को किस तरह स्पर्श करता है इसे बताना कठिन ही नहीं असंभव और अधूरा है। यह मैं आपको इसलिये बता रहा हूँ कि अवसर कृतज्ञता का है।

पुरस्कृत होने पर स्मृति में जाना और वाचाल होना दो ऐसी चीजें हैं जिन्हें काबू करना मुश्किल है मेरे लिये। प्रायः पुरस्कृत लोग आत्मकथा की तरफ जाते हैं। आप सब लोग लेखन और सांस्कृतिक संसार की विभूतियां हैं और एक तरह से सहयात्री। एक सक्रिय कार्यकर्त्ता, लेखक और संपादक होने की वजह से सांस्कृतिक लोगों के बीच ही मेरा जीवन बीत गया। मैंने दूसरे समाजों को लगभग नहीं देखा। इसलिये मुझे यहां अच्छा लग रहा है, मैं धन्यवाद दे रहा हूँ लेकिन केवल इतना ही नहीं। जब मैं आज के भीतरी अंधेरों की तरफ बढ़ते शोर और चमक की तरफ देखता हूँ तो लगता है साहित्य संसार में गैर रचनात्मक उथल पुथल और मारामारी है। मत मतांतरों के साथ अवसरों की विलक्षणता की ऐसी घड़ी चल रही है जिसमें घातक हिंसा पैदा हो चुकी है। ऐसी हिंसा पहले दृश्य में नहीं थी। इसलिये मेरा विनम्र आग्रह है कि हमें अपने समग्र सांस्कृतिक उपक्रमों और उसके प्रबंधन पर बाज़ार के रिवाजों से हटकर नए सिरे से विचार करना चाहिए। अकादमियों और लेखक संगठनों ने इस उद्देश्य से लगभग अपना नाता तोड़ लिया है, वे संगठित सम्पदा बनाने, वर्चस्व स्थापित करने और एनक्रोचमेंट की राह पर चल पड़े हैं और हमारी लड़ाईयां अपने ही समूहों से हो रही हैं। हमें कोशिश करके अपने पुरस्कारों की प्रक्रिया को खोल देना चाहिए और गोपनीयता भंग कर देनी चाहिए। क्योंकि समकालीन समाजों में पुरस्कार बवाल, तूफान और कटखनी मानसिकताओं में तब्दील हो रहे हैं। हमने अपने समकालीन रचनाकारों को सेलेब्रेट करने की दिशा पक्की ही नहीं की है। और आपको पुरस्कारों से जितना हासिल हो रहा है उससे अधिक छीना जा रहा है। एक धुरंधर लेखक को यह कहना पड़ा कि उच्चतर समाजो में लोग उनके पुरस्कार की चर्चा उनकी कृति से भी अधिक करते हैं।

इन गड़बड़झालाओं के बीच मैं बहुत खुश हूँ और इस मुक्तिबोध पुरस्कार के पीछे जो भी कारक हैं उनको हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।

*ज्ञानरंजन*

महाराष्ट्र मंडल परिसर- मुक्तिबोध सम्मान
7 फरवरी 2016  

प्रस्तुति: *शरद कोकास*

बुधवार, 15 नवंबर 2017

फेल होता समाजवाद

एक स्थानीय कॉलेज में अर्थशास्त्र के एक प्रोफेसर ने अपने एक बयान में कहा – “उसने पहले कभी किसी छात्र को फेल नहीं किया, पर हाल ही में उसने एक पूरी की पूरी क्लास को फेल कर दिया है l”
क्योंकि उस क्लास ने दृढ़ता पूर्वक यह कहा था कि “समाजवाद सफल होगा और न कोई गरीब होगा और न कोई धनी होगा” सबको सामान करने वाला एक महान सिद्धांत !
तब प्रोफेसर ने कहा – अच्छा ठीक है ! आओ हम क्लास में समाजवाद के अनुरूप एक प्रयोग करते हैं  “सफलता पाने वाले सभी छात्रों के विभिन्न ग्रेड का औसत निकाला जाएगा और सबको वही एक ग्रेड दी जाएगी ”
पहली परीक्षा के बाद, सभी ग्रेडों का औसत निकाला गया और प्रत्येक छात्र को B ग्रेड प्राप्त हुआl
जिन छात्रों ने कठिन परिश्रम किया था वे परेशान हो गए और जिन्होनें कम ही पढ़ाई की थी वे खुश हुए l
दूसरी परीक्षा के लिए कम पढ़ने वाले छात्रों ने पहले से भी और कम पढ़ाई की और जिन्होंने कठिन परिश्रम किया था उन्होंने यह तय किया कि वे भी मुफ्त की ग्रेड प्राप्त करेंगे और उन्होंने भी कम पढ़ाई की l
दूसरी परीक्षा की ग्रेड D थी l
इसलिए कोई खुश नहीं था l
जब तीसरी परीक्षा हुई तो ग्रेड F हो गई l
जैसे-जैसे परीक्षाएँ आगे बढ़ने लगीं स्कोर कभी ऊपर नहीं उठा, बल्कि आपसी कलह, आरोप-प्रत्यारोप, गाली-गलौज और एक-दूसरे से नाराजगी के परिणाम स्वरूप कोई भी नहीं पढ़ता था क्योंकि कोई भी छात्र अंपने परिश्रम से दूसरे को लाभ नहीं पहुंचाना चाहता था l अंत में सभी आश्चर्यजनक रूप से फेल हो गए और प्रोफेसर ने उन्हें बताया कि इसी तरह “समाजवाद” भी अंततोगत्वा फेल हो जाएगा, क्योंकि ईनाम जब बहुत बड़ा होता है तो सफल होने के लिए किया जाने वाला उद्यम भी बहुत बड़ा होगा l परन्तु जब सरकार सारे अवार्ड छीन लेगी तो कोई भी न तो सफल होना चाहेगा और न ही सफल होने की कोशिश करेगा l
निम्नलिखित पाँच सर्वश्रेष्ठ उक्तियाँ इस प्रयोग पर लागू होती हैं l
1. आप समृद्ध व्यक्ति को उसकी समृद्धि से बेदखल करके गरीब को समृद्ध बनाने का क़ानून नहीं बना सकते l
2. जो व्यक्ति बिना कार्य किए कुछ प्राप्त करता है, अवश्य ही परिश्रम करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के इनाम को छीन कर उसे दिया जाता है l
3. सरकार तब तक किसी को कोई वस्तु नहीं दे सकती जब तक वह उस वस्तु को किसी अन्य से छीन न ले l
4. आप सम्पदा को बाँट कर उसकी वृद्धि नहीं कर सकते l
5. जब किसी राष्ट्र की आधी आबादी यह समझ लेती है कि उसे कोई काम नहीं करना है, क्योंकि बाकी आधी आबादी उसकी देख-भाल जो कर रही है और बाकी आधी आबादी यह सोच कर कुछ अच्छा कार्य नहीं कर रही कि उसके कर्म का फल किसी दूसरे को मिल रहा है – तो वहीँ उस राष्ट्र के अंत की शुरुआत हो जाती है।

मंगलवार, 14 नवंबर 2017

जीवन में संघर्ष आवश्यक है

 एक बार एक आदमी को 
अपने garden में टहलते हुए किसी टहनी से लटकता हुआ
 एक तितली का कोकून दिखाई पड़ा. 

अब हर रोज़ वो आदमी उसे देखने लगा , 
और एकदिन उसने notice किया कि उस कोकून में
एक छोटा सा छेद बन गया है.
 उस दिन वो वहीँ बैठ गया और घंटो उसे देखता रहा.
उसने देखा कि तितली
 उस खोल से बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही है , 
पर बहुत देरतकप्रयास करने के बाद भी
 वो उस छेद से नहीं निकल पायी , 
और फिर वो बिलकुलशांतहो गयी मानो उसने हार मानली हो.
इसलिए उस आदमी ने निश्चय किया कि 
वो उसतितली की मदद करेगा. 

उसने एक कैंची उठायी और कोकून की openingको इतना बड़ा करदिया की
 वो तितली आसानी से बाहर निकल सके.
 और यही हुआ, तितली बिना किसी और संघर्ष के 
आसानी से बाहर निकल आई
, परउसका शरीर सूजा हुआ था,
और पंख सूखे हुए थे.

वो आदमी तितली को ये सोच कर देखता रहा कि
 वो किसी भी वक़्त अपने पंखफैला क
र उड़ने लगेगी, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ
.इसके उलट बेचारी तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और
 उसे अपनी बाकी की ज़िन्दगी इधर-उधरघिसटते हुए बीतानी पड़ी.वो 

आदमी अपनी दया और जल्दबाजी में येनहीं समझ पाया की
 दरअसल कोकून से निकलने की प्रक्रिया को
 प्रकृति नेइतना कठिन इसलिए बनाया है
 ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल उसके पंखों में पहुच सके
 और वो छेद से बाहर निकलते ही उड़ सके. 

वास्तव में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही
 वो चीज होती जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है.
यदि हम बिना किसी struggle के 
सब कुछ पाने लगे तो हम भी
 एक अपंग के सामान हो जायेंगे. 

बिना परिश्रम और संघर्ष के हम कभी उतने मजबूत नहीं बन सकते
जितना हमारी क्षमता है. 
इसलिए जीवन में आनेवाले कठिन पलों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिये
वो आपको कुछ ऐसा सीखा जायंगे 
जो आपकी ज़िन्दगी की उड़ानको possibleबना देंगे।

कर्म क्या है?

 बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। एक शिष्य ने पूछा- "कर्म क्या है?"
बुद्ध ने कहा- "मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ।"

एक राजा हाथी पर बैठकर अपने राज्य का भ्रमण कर रहा था।अचानक वह एक दुकान के सामने रुका और अपने मंत्री से कहा- "मुझे नहीं पता क्यों, पर मैं इस दुकान के स्वामी को फाँसी देना चाहता हूँ।" 
यह सुनकर मंत्री को बहुत दु:ख हुआ। लेकिन जब तक वह राजा से कोई कारण पूछता, तब तक राजा आगे बढ़ गया। 

अगले दिन, मंत्री उस दुकानदार से मिलने के लिए एक साधारण नागरिक के वेष में उसकी दुकान पर पहुँचा। उसने दुकानदार से ऐसे ही पूछ लिया कि उसका व्यापार कैसा चल रहा है? दुकानदार चंदन की लकड़ी बेचता था। उसने बहुत दुखी होकर बताया कि मुश्किल से ही उसे कोई ग्राहक मिलता है। लोग उसकी दुकान पर आते हैं, चंदन को सूँघते हैं और चले जाते हैं। वे चंदन कि गुणवत्ता की प्रशंसा भी करते हैं, पर ख़रीदते कुछ नहीं। अब उसकी आशा केवल इस बात पर टिकी है कि राजा जल्दी ही मर जाएगा। उसकी अन्त्येष्टि के लिए बड़ी मात्रा में चंदन की लकड़ी खरीदी जाएगी। वह आसपास अकेला चंदन की लकड़ी का दुकानदार था, इसलिए उसे पक्का विश्वास था कि राजा के मरने पर उसके दिन बदलेंगे। 

अब मंत्री की समझ में आ गया कि राजा उसकी दुकान के सामने क्यों रुका था और क्यों दुकानदार को मार डालने की इच्छा व्यक्त की थी। शायद दुकानदार के नकारात्मक विचारों की तरंगों ने राजा पर वैसा प्रभाव डाला था, जिसने उसके बदले में दुकानदार के प्रति अपने अन्दर उसी तरह के नकारात्मक विचारों का अनुभव किया था।

बुद्धिमान मंत्री ने इस विषय पर कुछ क्षण तक विचार किया। फिर उसने अपनी पहचान और पिछले दिन की घटना बताये बिना कुछ चन्दन की लकड़ी ख़रीदने की इच्छा व्यक्त की। दुकानदार बहुत खुश हुआ। उसने चंदन को अच्छी तरह कागज में लपेटकर मंत्री को दे दिया। 

जब मंत्री महल में लौटा तो वह सीधा दरबार में गया जहाँ राजा बैठा हुआ था और सूचना दी कि चंदन की लकड़ी के दुकानदार ने उसे एक भेंट भेजी है। राजा को आश्चर्य हुआ। जब उसने बंडल को खोला तो उसमें सुनहरे रंग के श्रेष्ठ चंदन की लकड़ी और उसकी सुगंध को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। प्रसन्न होकर उसने चंदन के व्यापारी के लिए कुछ सोने के सिक्के भिजवा दिये। राजा को यह सोचकर अपने हृदय में बहुत खेद हुआ कि उसे दुकानदार को मारने का अवांछित विचार आया था। 

जब दुकानदार को राजा से सोने के सिक्के प्राप्त हुए, तो वह भी आश्चर्यचकित हो गया। वह राजा के गुण गाने लगा जिसने सोने के सिक्के भेजकर उसे ग़रीबी के अभिशाप से बचा लिया था। कुछ समय बाद उसे अपने उन कलुषित विचारों की याद आयी जो वह राजा के प्रति सोचा करता था। उसे अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए ऐसे नकारात्मक विचार करने पर बहुत पश्चात्ताप हुआ। 

यदि हम दूसरे व्यक्तियों के प्रति अच्छे और दयालु विचार रखेंगे, तो वे सकारात्मक विचार हमारे पास अनुकूल रूप में ही लौटेंगे। लेकिन यदि हम बुरे विचारों को पालेंगे, तो वे विचार हमारे पास उसी रूप में लौटेंगे। 



शनिवार, 11 नवंबर 2017

एक व्यापारी का सच

मै व्यापारी चोर हूँ ..
क्यों कि मै रात दिन खुद की रिस्क पर कमाता हूँ .सुबह से शाम तक काम मे जुटा रहता है...
क्योकि मेरे दिये हुये टैक्स से उस शिक्षक को तनख्वाह मिलती है जो साल मे 200 दिन भी नहीं  पढ़ाई  कराता..
क्योकि मेरे दिये पैसे से उस पुलिस को तनख्वाह मिलती है जो कभी समय पर नहीं मिलती..
क्योंकि मेरे दिये टैक्स से उस डाक्टर को तनख्वाह मिलती है जो कभी अस्पताल नहीं  जाता..
क्योंकि मेरे दिये टैक्स से उस अफसर को तनख्वाह मिलती है जो हर काम पैसा खा कर करता है..
मेरे दिये पैसे से ही मन्त्री मज़ा करते है..
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मोदीजी आपसे गुजारिश है कि हम चोर व्यापारियों को पकडने के लिये उन्ही अफसरो को भेजना जिसने कभी पैसा न खाया हो सदा ईमानदारी से काम किया हो...आपने गाना सुना होगा ..पहला पत्थर वो मारे जिसने पाप न किया हो जो पापी नहो..

हम व्यापारी तो चोर है...

हम टैक्स चोरी नहीं करते, टैक्स बचाते हैं, ये इसलिए ताकि हम अपने बच्चों और परिवार को भविष्य में किसी आकस्मिक आपदा से सुरक्षित रख सकें।
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(1)हमने अपने घरों में हजारों रुपये खर्च कर  जनरेटर/इन्वर्टर ख़रीदे, ---
     *क्योंकि सरकार हमें नियमित रूप से बिजली उपलब्ध नहीं करा सकी।*

(2) हमने submercible pump इसलिए लगाये--
   *क्योंकि सरकार हमें शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं करा सकी।*

(3) हमें private security guards इसलिए रखने पड़े
   *क्योंकि सरकार हमें सुरक्षा देने में असमर्थ है।*

(4) हम private hospitals & नर्सिंग होम में जाने को विवश हुए--
   *क्योंकि सरकार ,सरकारी चिकित्सालयों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने में नाकाम रही।*
(5) हम कार, मोटरसाइकिल खरीदने को विवश हुए---
   *क्योंकि सरकार, सार्वजनिक सस्ती परिवहन व्यवस्था बनाने में असफल रही।*
     और अंत में सरकार को टैक्स देने वालों को, उनके रिटायरमेंट के समय में, जब उसे अपनी जीवन रक्षा के लिए, सर्वाधिक सहायता की जरूरत होती है ? बदले में क्या मिलता है ?
*कुछ नहीं !*
 सरकार से कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं।
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लेकिन इसके विपरीत, उसके कठिन परिश्रम से अर्जित आय के स्रोतों का उपयोग सरकार, subsidy और गरीबों के कल्याण के नाम पर, *उन लोगों के वोट खरीदने में खर्च कर देती है जो सरकार को एक पैसा भी टैक्स नहीं देते।*
मुख्य बात ये है कि सरकार हमारे टैक्स के पैसों का क्या करती है ???:--
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*--न्यायालय खोलती है --*
   जहाँ न्याय नहीं मिलता। लाखों मुकद्दमें 10--20 साल से ज्यादा समय तक लटके रहते हैं।
*-पुलिस स्टेशन--*
    जो आम जनता की सुरक्षा के बजाय केवल राजनेताओं की सुरक्षा करती है ।
*--अस्पताल--*
   जहाँ न दवाईयाँ मिलती हैं और न ही ढंग से चिकित्सा ही होती है।
*--सड़कों का निर्माण --*
   जहाँ 40% ----60% राशि, ठेकेदार, बिचौलिए, नेताओं की जेब में चले जाते हैं।
   यह सूची तो अंतहीन है ........
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पश्चिमी देशों की तरह, यदि केंद्र और राज्य की सरकारें, जनता के लिए उपरोक्त सुविधाएँ भली भांति उपलब्ध करा दें, तो कोई टैक्स चोरी भला क्यों करना चाहेगा  ?
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हम सभी जानते हैं कि हमारे द्वारा दिए गए टैक्स का एक बहुत बड़ा हिस्सा, सरकारी कर्मचारियों और राजनेताओं पर खर्च हो जाता है
---   एक व्यापारी अपना मॉल  2%--10% लाभ पर विक्रय करता है, जबकि सरकार अपने खर्च के लिए उसकी आय का 30% ले लेती है। 
यह कहाँ तक उचित है ??
यही कारण है कि कोई टैक्स देना नहीं चाहता।
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हम टैक्स बचाते हैं--
     अपनी जरूरतों के लिए,परिवार के लिए,अपनी वृद्धावस्था के लिए, सुरक्षा के लिए।
    
     देश की आजादी के 70 वर्षों के बाद भी, केंद्र और राज्यों की सरकारें, वर्तमान परिस्थितियों के लिए, पूर्णतया जिम्मेदार हैं।
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कोशिश किजिये देश के प्रधान सेवक तक ये दर्द पहुंचे..!
एक व्यापारी का सच...

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

एक बेहतरीन सटायर

मंत्री महोदय रविशंकर प्रसाद जी,
मेरा नाम नीलोत्पल मृणाल है। मैं मूलतः बिहार से हूँ और झारखण्ड के संथाल परगना में सुदूर देहात में रहता हूँ। मैं हमेशा सरकार पे भरोसा करने वाला अच्छा नागरिक रहा हूँ इसी नाते सरकार ने अपने स्कूल के माध्यम से जितना पढ़ाया लिखाया केवल उतना ही पढ़ लिख पाया और अपनी ओर से ज्यादा पढ़ लिख काबिल बनने की कोई प्राइवेट कोशिश नही की। युवा हूँ और 2014 से पहले भी बेरोजगार था और 2014 के बाद भी भयंकर बेरोजगार हूँ और फ़ख्र करता हूँ कि जो भी हूँ सरकारों की बदौलत ही हूँ।
बेरोजगार होने के कारण हम सब युवाओं का गांव में एक ही काम रहा है, दिन भर बैठ के गांजा पीना और अच्छे दिन का इंतज़ार करना। बचपन से ही भांग,गांजा एवं शुद्ध किस्म का ताड़ी सेवन करता रहा हूँ। आप fb पे मेरे पोस्ट और ख़ास कर प्रधान प्रचारक with अतिरिक्त प्रभार pm ऑफ़ india also के बारे में जब पोस्ट पढ़ेंगे तो आपको यकीन हो जायेगा कि मैं किस लेवल पर जा के गांजा ताड़ी पीता हूँ। हम सभी गांव के दोस्त कक्षा 3 से इसका सेवन करते हैं।हम अक्सर इलाके के बड़े बड़े चिलमबाज़ को चुनौती देते आये हैं कि ,है कोई हमारे जोड़ का नशेड़ी?
पर अभी कल जब हम सभी बड़े शान से गांजा पी रहे थे तभी किसी ने आपका बयान दिखाया नोटबंदी पर, "नोटबंदी से देह व्यापार में कमी आयी है।"  ये बयान पढ़ते ही हमारा घमंड चूर चूर हो गया सर।मेरा एक दोस्त चिलम छोड़ कूद के मोबाइल छीना, "मुझे फोटो दिखाओ गुरुआ का" हम सब भी भौचक्के थे कि ये कौन आ गया हम से टक्कर लेने मैदान में। तस्वीर देखी तो पहचान गया। देखा आप थे।हम सभी दोस्तों ने तत्काल अपनी चिलम और दोपहर तक पी लेने को रखी ताड़ी की सभी सात बाल्टी आपके तस्वीर के आगे समर्पित कर रख दी और सबने जोर से जयकारा लगाया 
" हमारा गुरुवर, बाबा रविशंकर"  
सर, सही बता रहा हूँ कि 20 साल से पीने खाने के कैरियर में हमारे ग्रुप को इतना हाई लेवल चुनौती पहली बार मिला है सर।हमलोग तो एक दूसरे का चेहरा देख लाज़ से मर रहे थे कि, फाल्तुए में एतना घमंड था अपना अनुभव पर हमलोग को। जबकि हमलोग कोनो कमजोर माल नही लेते थे। फिर भी सच तो सच है सर कि हमलोग तो 24सों घंटे पी के भी इस लेवल पर नही पहुँच पाये सर। मुझसे तो ख़ास कर कई लाल सलामी बल्लेबाज़ तक संकट में माल उधार ले जाते हैं पर आज तक इतना हिलोरन माल नही दिया लिया।
मेरे संपर्क में और भी कई लाल,नीले, पीले ,भगवे सलाम प्रणाम वाले भी साथी हैं।उनके बीच भी इस टक्कर का माल मिलना कभी नसीब नही हुआ सर।हम सभी साथियों ने कल ही तय किया कि आपको अपना कुलगुरु मान चिट्ठी लिखें और पूछे कि आखिर आप लोगों का माल कहाँ से आता है जो इतना ज्यादा हाहाकारी असरकारी मौज देता है।
सर, आप देश के मंत्री हैं, आपको हमने चुना है इसलिए हमारा ये अधिकार है कि हम जान पायें कि हमने जिसे चुन कर देश चलाने भेजा है उसके भेजे में किस क्वालिटी का माल भरा जा रहा है और ये माल हम आम चिलमधारियों के लिए क्यों नसीब नही।  सर, आपकी सरकार कहती है कि "सबका साथ,सबका विकास " तो फिर इस विकास यात्रा में हम लोग को अकेला छोड़ आप अकेले अकेले सारा जड़ी क्यों फूंक देते हैं सर?
सर, हम जानते हैं कि आपलोगों का अपना नेटवर्क है और अभी पार्टी के ही नेताओं में बांटा बांटी करते माल खत्म हो जाता होगा।
मध्य प्रदेश में जिस तरह शिव मामा जी ने अपनी सड़कों को अमेरिका से बेहतर बताया वो बताता है कि आपलोग जिस जड़ी का सेवन करते हैं वो जड़ी खुद आदि देव शिव जी के जड़ी से भी हज़ार गुणा ज्यादा असरकारी है।कल ही एक काली सूची में नाम आने पर आपके एक सांसद ने पत्रकार के सवाल पूछने पर तख्ती पे लिख के बताया"मैं भगवत गीता के यज्ञ में सात दिन के लिए मौन हूँ"
मतलब इस लेवल का सर्कस?इस लेवल की जोकरी? सर, प्लीज़ नु सर..सर देखिये हम युवा के बारे में अभी कल ही आपने ही कह दिया कि बेरोजगार केवल वही लोग हैं जो अयोग्य हैं, तो अब इतने बेरोजगारी में गांजा ही सहारा है जिसे पी पा हम अपनी जिंदगी घसीट घिस के ख़तम कर लें और बचे रहें तो 2019 में आपको वोट दे सकें।  कम से कम इतने के लिए तो फरियाद सुन लीजिये और हमारी आखिरी इच्छा पूरी कर दीजिये कि हम नरक में आपके आने पर पहले से जयकारा लगा गेट पर खड़ा रहेंगे और बाकि दल के नेताओं से कह सकेंगे कि बाबा रविशंकर जी के कारण ही हमलोग भी उस उच्च स्तरीय जड़ी का सेवन कर दुनिया से विदा हुए थे।
अच्छा अब जरा होश की बात भी सुन लीजिये सर,
सर, देश पर कल कोई और राज कर रहा था,आज आप हैं और कल कोई और होगा।राज तो हमेशा कोई नही रहा, रह जाता है उसका किया धरा।  आपको निम्बू चाट के बड़े होश हवास में ये याद दिलाना चाहता हूँ कि, आप भारत जैसे विशाल और गरिमामयी देश के मंत्री हैं।एक समय ठीक ठाक कमाऊ वकील भी रह चुके हैं। पर सर, किसी बड़े लोकतांत्रिक देश के मंत्री होने और किसी व्यापारी राजा के दरबारी होने का फर्क समझाइये खुद की आत्मा को।  नोटबंदी जैसे महाप्रभावी मुद्दे पर ये क्या खा पी के बयान दिए थे आप सर?
 क्या इस देश को अब इतना भी उम्मीद नही करना चाहिए कि देश का मंत्री भले अपने निर्णय के पक्ष में बोलेगा लेकिन तार्किक तो बोलेगा, मूर्खों की तरह तो नही न बोलेगा कम से कम।
 दुनिया का कौन अर्थशास्त्री नोटबंदी के प्रभाव पर उत्तर मांग रहे लोगों को ये जवाब दे उसका फायदा बताएगा कि, नोटबंदी से देह व्यापार कम हुआ और ये इसकी सफलता है। महराज याद हो तो बताइये कि क्या इसलिए किया था नोटबंदी? 
 रवि बाबू, वकील हैं न आप?  जरा भी नही सोंचे, कि जिस नोटबंदी के लिए 50 दिन मांग देश का नक्शा बदल देने की कसम खाई थी एक बातूनी ने वो उसके 364 दिन बाद भी उसी मुद्दे पर कुछ बोलने नही आया। दुनिया का सबसे बातूनी प्रधानमंत्री जिस मुद्दे पर मुँह खोलने में 56 इंच का सीना सिकुड़ के रह गया और जिस मुद्दे पर दुनिया के एकमात्र जीवित कौटिल्य उर्फ़ चाणक्य कुमार शाह चूं नही बोले उस मुद्दे पर आपको अपनी बेवकूफ़ी दिखाने का क्या प्रसाद मिला? रवि प्रसाद जी, राजनीति का स्तर ये है कि ये रोज नया सर्कस दिखाती है और रोज़ नये जोकर से मिलाती है।
 आपको बस यही कहना चाहता हूँ कि इस बार जोकर ऑफ़ द वीक का खिताब आपको जाता है जो आपने अपने ही मामू mp वाले से छीना है।बधाई।जय हो।l
Nilotpal mrinal

सोमवार, 6 नवंबर 2017

गांधी परिवार का परिचय



गांधी परिवार का परिचय

ओता गांधी                   गांधीजी के दादा
लक्ष्मीबाई गांधी                गांधीजी की दादी (ओता गांधी की दूसरी पत्नी)
कबा गांधी                    गांधीजी के पिताजी
पुतली माँ                    गांधीजी की माता (कबा गांधी की चौथी पत्नी)
लक्ष्मीदास गांधी                गांधीजी के बड़े भाई
(काला गांधी)
रलियात बेन                  गांधीजी की बड़ी बहन
(गोकी बेन)
करसनदास गांधी               गांधीजी के मंझले भाई
कस्तूरबा गांधी                 गांधीजी की पत्नी
हरिलाल गांधी                 गांधीजी के ज्येष्ठ पुत्र
गुलाब गांधी                   गांधीजी की ज्येष्ठ पुत्रवधू (हरिलाल गांधी की पत्नी)
रामी बहन                    गांधीजी की ज्येष्ठ पौत्री (हरिलाल गांधी की ज्येष्ठ पुत्री)
कुँवरजी पारेख                 गांधीजी के पौत्र जामाता (रामी गांधी के पति, हरिलाल गांधी के दामाद)
डॉ. कांतिभाई गांधी             गांधीजी के पौत्र (हरिलाल गांधी के पुत्र)
सरस्वती गांधी                 गांधीजी की पौत्रवधू (कांति गांधी की पत्नी और हरिलाल गांधी की पुत्रवधू)
रसिक गांधी                   गांधीजी के पौत्र (हरिलाल गांधी के द्वितीय पुत्र)
मनुबहन गांधी                 गांधीजी की पौत्री (हरिलाल गांधी की पुत्री)
सुरेन्द्र मश्रुवाला                गांधीजी की पौत्र जामाता (मनु गांधी के पति, हरिलाल गांधी के दामाद)
डॉ. शांति गांधी                गांधीजी के प्रपौत्र (डॉ. कांति गांधी के पुत्र, हरिलाल गांधी के पौत्र)
सूसन गांधी                   गांधीजी की प्रपौत्र
प्रदीप गांधी                   गांधीजी के प्रपौत्र (हरिलाल गांधी के पौत्र)
मंगला गांधी                  गांधीजी की प्रपौत्रवधू (प्रदीप गांधी की पत्नी)
उर्मि मश्रुवाला                 गांधीजी की प्रपौत्री (मनुबहन गांधी की बेटी)
मणिलाल गांधी                गांधीजी के दूसरे पुत्र
सुशीला गांधी                  गांधीजी की पुत्रवधू (मणिलाल गांधी की पत्नी)
सीता गांधी                   गांधीजी की पौत्री (मणिलाल गांधी की पुत्री)
नानूभाई धुपलिया               गांधीजी के पौत्र जामाता (सीता के पति, मणिलाल गांधी के दामाद)
अरुण गांधी                   गांधीजी के पौत्र (मणिलाल गांधी का पुत्र)
सुनंदा गांधी                   गांधीजी की पौत्रवधू (अरुण गांधी की पत्नी, मणिलाल गांधी की पुत्रवधू)
तुषार गांधी                   गांधीजी के प्रपौत्र (अरूण गांधी के पुत्र)
ईला गांधी                    गांधीजी की पौत्री (मणिलाल गांधी की पुत्री)
रामगोविंद मेवालाल             गांधीजी के पौत्र जामाता (ईला गांधी के पति)
रामदास गांधी                 गांधीजी के तीसरे पुत्र
निर्मला गांधी                  गांधीजी की पुत्रवधू (रामदास गांधी की पत्नी)
सुमित्रा गांधी                  गांधीजी की पौत्री (रामदास गांधी की पुत्री)
गजानन कुलकर्णी              गांधीजी के पौत्र जामाता(सुमित्रा गांधी के पति, रामदास गांधी के जामाता)
रामचंद्र  - श्रीकृष्ण             सुमित्रा गांधी के जुड़वा पुत्र (रामदास गांधी के दौहित्र)
सोनाली कुलकर्णी               सुमित्रा गांधी की पुत्री, (रामदास गांधी की दौहित्री)   
कनु गांधी                    गांधीजी का पौत्र, रामदास गांधी का पुत्र
शिवालक्ष्मी गांधी               गांधीजी की पौत्रवधु, रामदास गांधी की पुत्रवधू, कनु गांधी की पत्नी
उषा गांधी                    गांधीजी की पौत्री, रामदास गांधी की पुत्री
हरीश गोकाणी                 गांधीजी के पौत्र जामाता, रामदास गांधी के जामाता, उषा के पति
डॉ. आनंद गोकाणी              गांधीजी के प्रदौहित्र, रामदास गांधी के दौहित्र, उषा गांधी के पुत्र
संजय गोकाणी                 गांधीजी के प्रदौहित्र, रामदास गांधी के दौहित्र, उषा गांधी के पुत्र
देवदास गांधी                  गांधीजी के चौथे पुत्र
लक्ष्मी गांधी                   गांधीजी की पुत्रवधू, देवदास गांधी की पत्नी
तारा गांधी                    गांधीजी की पौत्री, देवदास गांधी की पुत्री
डॉ. ज्योतिप्रसाद भट्टाचार्य        गांधीजी के पौत्र जामाता, देवदास गांधी के जामाता, तारा गांधी के पति
सुकन्या भट्टाचार्य              गांधीजी की प्रदौहित्री, देवदास गांधी की दौहित्री, तारा गांधी की पुत्री
राजमोहन गांधी                गांधीजी के पौत्र, देवदास गांधी के पुत्र
उषा गांधी                    गांधीजी की प्रपौत्रवधू, देवदास गांधी की पुत्रवधू, राजमोहन गांधी की पत्नी
डॉ. रामचंद्र गांधी               गांधीजी के पौत्र, देवदास गांधी के पुत्र
लीला गांधी                   गांधीजी की प्रपौत्री, देवदास गांधी की पौत्री, रामचंद्र गांधी की पुत्री
गोपालकृष्ण गांधी               गांधीजी के पौत्र, देवदास गांधी के पुत्र
तारा गांधी                   गांधीजी की प्रपौत्रवधू, देवदास गांधी की पुत्रवधू, गोपालकृष्ण की पत्नी
दिव्या-अमृता                  गांधीजी की प्रपौत्री, गोपालकृष्ण गांधी की पुत्रियाँ
सुप्रिया गांधी                  गांधीजी की प्रपौत्री, देवदास गांधी की पौत्री, राजमोहन गांधी की पुत्री
देवव्रत गांधी                  गांधीजी के प्रपौत्र, देवदास गांधी के पौत्र, राजमोहन गांधी के पुत्र

( यह परिचय आज से 20 साल पहले का है, अब तक इनमें से कुछ परिवर्तन हो चुके होंगे।)