शनिवार, 21 अप्रैल 2018

कहाँ चायवाला, कहाँ शहजादा !!!

आज चायवाले का कार्यक्रम इंग्लैंड में चल रहा है | चायवाले के स्थान पर शाहजादा होता तो कार्यक्रम छोड़कर बैंकाक भाग जाता,
लेकिन उसे जबरन पकड़कर कार्यक्रम में बिठाया भी जाता तो क्या वह चायवाले जैसा बोल पाता ?

चायवाले की कुण्डली में भी ईश्वर जब राजयोग डाल देते हैं तो बड़े-बड़े शाहों और शाहजादों की गद्दियाँ उखड़ जाती हैं, वाणी में जादू आ जाता है, देसी ही नहीं बल्कि विदेशी धनकुबेरों की तिजोरियाँ भी भारत की सेवा में खुलने लगती है ! आज की तारीख में भारत ही नहीं, पूरे संसार में चायवाले की टक्कर का कोई नेता राजनीति में सक्रीय नहीं है |

चायवाला भी है तो मनुष्य ही, अतः गुण हैं तो दोष भी हैं | किन्तु जब मैं अंग्रेजी साहित्य की स्नातक प्रतिष्ठा का छात्र था तो एक पुस्तक में मैंने पढ़ा था कि किसी साहित्यकार का मूल्यांकन करते समय यह याद रखना कि उसमें जो दोष हैं वे सामाजिक वातावरण की देन हैं, और जो गुण हैं वे उसकी अपनी देन हैं | यही कारण था कि अंग्रेजी साहित्य की परीक्षाओं में सारे प्रश्नों की भाषा एक जैसी होती थी -- अमुक साहित्यकार के अमुक ग्रन्थ को "critically appreciate" करो, अर्थात "आलोचनात्मक प्रशंसा" करो | हीरे का मूल्यांकन करते समय हमें हीरे के मूल्य पर ध्यान देना चाहिए, उसमें कितनी गन्दगी है केवल उसपर ही ध्यान देंगे तो हीरे का मूल्य पता नहीं चलेगा | गन्दगी को छाँटकर किनारे करते हुए असली वस्तु का मूल्य आँकना है |

चायवाला भी अम्बेडकर का महिमामण्डन करे तो इसका कारण युग का दोष है, समाज की विवशता है | वरना मायावती जैसे लोग दलितों को बौद्ध बनाने की योजना में सफल हो जायेंगे | चायवाला यदि महबूबा का समर्थन करे तो इसमें कश्मीर में लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बनाए रखने की ईच्छा है, क्योंकि भारत के हित में यह नहीं है कि कश्मीर में सैन्य शासन थोपकर जगहंसाई कराये| संसार में भारत की प्रतिष्ठा बढानी है, क्योंकि भारत का विपक्ष और मीडिया तो पूरे संसार में प्रचार करती रहती है कि भारत  "बलात्कारी और अत्याचारी हिन्दुत्ववादियों" से त्रस्त देश है ! संसार के किसी अन्य देश में ऐसा विपक्ष और ऐसी मीडिया नहीं मिलेगी जो अपने ही देश की छवि बिगाड़े |

चायवाले को अपने लिए आलीशान महल और ऐशो-आराम का शौक नहीं है, असम की अपरिचित महिला को अपना आरक्षित बर्थ देकर नीचे तौलिया बिछाकर सोने वाला आदमी है यह, इसे "विकास" का भूत लगा है तो एक अरब गरीबों को गरीबी के नरक से निकालने के लिए |

मैंने कई बार चायवाले के विरोध में भी लिखा है, किन्तु हर बार मैंने यह भी लिखा है कि वोट इसी को देना है, क्योंकि सारे विकल्प देश को नष्ट करने वाले ही हैं |

"भारतीय ज्योतिष" के नाम पर धन्धा करने वाले कितने मूर्ख होते हैं इसका एक प्रमाण यह है कि एक मामूली चायवाले की कुण्डली में राजयोग कैसे आ गया यह नहीं समझ पाने के कारण जन्मकाल को दो घंटा बदल दिया ताकि लग्न में स्वगृही मंगल को रखकर पञ्च-महापुरुष योग की कल्पना कर सकें, किन्तु ऐसे मूर्खों ने जानबूझकर यह अनदेखा कर दिया कि स्वगृही मंगल के साथ नीच का चन्द्रमा भी बैठा है | नीच का ग्रह यदि उच्च के ग्रह के साथ बैठ जाय तो उच्चत्व को भी भंग कर देता है, जबकि स्वगृही ग्रह तो उच्च से बल में आधा ही होता है | तब मंगल में राजयोग कहाँ रहा ? राजयोग तो नीच के चन्द्रमा में है जिसकी दशा 2013 के अन्त में आरम्भ हुई और दस वर्षों तक चलेगी | नीच का ग्रह कमजोर होता है जिस कारण यदि अन्य राजयोग चन्द्रमा से सम्बन्ध रखते हों तो नीचत्व भंग हो जाता है | एक नीचत्व को एक राजयोग भंग कर देगा और वह राजयोग भी भंग हो जाएगा , उसके बाद अन्य कई राजयोग भी हों तो सब मिलकर प्रचण्ड चक्रवर्ती योग का फल देते हैं | मोदी जी की कुण्डली में राजयोग कैसे बना इसका वर्णन मैंने विस्तार से किया है -

 http://vedicastrology.wikidot.com/narendra-modi

यह कुण्डली बनाने में मैंने जन्मकाल में रत्तीभर भी परिवर्तन नहीं किया, मोदी जी के सगे भाई ने जो जन्मकाल बताया वही मैंने प्रयुक्त किया है, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में तत्कालीन ज्योतिष विभागाध्यक्ष चन्द्रमौली उपाध्याय जी इस तथ्य के गवाह हैं | कुण्डली के दूसरे भाव में राजयोग है, जो वाणी और धन का भाव है | अतः वाणी में जादू है और भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के पूँजी-निवेश को चायवाले का यह धनयोग भारत की ओर खींच रहा है |

राजनैतिक विवशताओं के कारण मोदी भाषण जो भी दे, कार्य जो कुछ कर रहे हैं वह शीघ्र ही सरकारी नौकरी को लोगों के आकर्षण का केन्द्र नहीं रहने देगा, लोग स्वयं आरक्षण को भूल जायेंगे, क्योंकि सरकारी उद्यमों का निजीकरण तथा निजी उद्यमों को प्रोत्साहन देने का फल यह होगा कि लोग आत्मनिर्भर होना सीखेंगे, न कि सरकार के भरोसे बैठे रहना -- जैसा कि शहजादे के शाही वंश ने सिखाया था | सरकारी नौकरियाँ ही घटती जायेंगी तो आरक्षण किस काम का ?

पश्चिम की विकसित तकनीक और फालतू पूँजी का भारत के श्रम से संयोग कराने का फल क्या निकलेगा यह आगामी कुछ वर्षों में स्पष्ट हो जाएगा | चीन ने भी यही रास्ता चुना था, किन्तु चीन को इससे क्षति भी पँहुची है क्योंकि चीन में विकसित पूँजीपति वर्ग नहीं था जिस कारण चीन पर विदेशी पूँजी का उपनिवेशवाद छा चुका है और अब चीन से बहुत बड़ी राशि मुनाफे के रूप में विदेश भागने लगी है, अतः पश्चिमी देशों और चीन के बीच तनाव बढ़ने लगा है और अब पश्चिम भारत की ओर देखने लगा है | किन्तु भारत में पहले से ही विकसित पूँजीपति वर्ग है जो ब्रिटेन और फ्रांस की सबसे बड़ी कम्पनियों को भी खरीद रहा है | अतः भारत में विदेशी पूँजी आने से भारत का वह हाल नहीं होगा जो चीन का हुआ है | पश्चिम विकास के शिखर पर पँहुच चुका है, उधर  श्रम बहुत मँहगा हो गया है जिस कारण पूँजी निवेश करने पर मुनाफ़ा अल्प होता है | चीन का भी घड़ा भर गया | अतः अब पूरे विश्व की पूँजी के लिए भारत ही सर्वोत्तम गन्तव्य है | इस पूँजी के साथ विकसित तकनीक भी आ रही है | इस विकसित तकनीक के मुकाबले भारतीय सेठों को प्रतियोगिता के लिए विवश होना पड़ रहा है, जिसका परिणाम होगा मध्ययुगीन जातिवाद और वंशवाद से भारतीय पूँजीपतियों का निकलकर मुक्त पूँजीवादी प्रतियोगिता के युग का आरम्भ जिसमें उसी का survival होगा जो fittest होगा, उसमें आरक्षण या परिवारवाद के लिए कोई स्थान नहीं | फॉरवर्ड हो या बैकवर्ड, हिन्दू हो या मुसलमान, सबको योग्यता अर्जित करनी ही पड़ेगी, वरना डायनासौर की तरह एक्स्तिन्क्ट हो जायेंगे |

चाय की दूकान से राजगद्दी तक का सफ़र हर भारतीय को यह चायवाला बलपूर्वक सिखलाकर ही दम लेगा, और जब दम लेगा तबतक सवा सौ करोड़ चायवाले तैयार हो जायेंगे अपने पांवों पर अपना-अपना सफ़र करने के लिए .....जिनको शाहजादों से सब्सिडी की भीख और आरक्षण या पैरवी की बैसाखी नहीं चाहिए |

इसे कहते हैं रामराज्य वाला असली राजयोग ! एक राजयोग होता है जनता को लूटकर अपने तख्ते-ताऊस में हीरे-जवाहरात जड़ने वाला | और एक राजयोग होता है श्रीराम की तरह स्वयं आजीवन कष्ट झेलकर जनता में अपना राजयोग बाँटने वाला | कहाँ चायवाले का राजयोग जो बुढ़ापे में भी सोलह घंटे परिश्रम कराता है , और कहाँ शाहजादा का राजयोग जो बजट सेशन छोड़कर बैंकाक में मसाज कराता है !!! मन्दिर बना देने से रामराज्य नहीं आता, रामराज्य आता है गरीबों के अँधेरे घरों में सुख के दीये जलाने से | अयोध्या के एक टुकड़े में श्रीरामजन्मभूमिमन्दिर  बनाना न्यायसंगत है, सांस्कृतिक पहचान को बचाना भी आवश्यक है, किन्तु केवल वही रामराज्य नहीं है | कलियुग में रामराज्य नहीं आ सकता, किन्तु रामराज्य की ओर लम्बी यात्रा में इस विशाल देश ने पग बढ़ा दिए हैं जिसमें मोदी से भी बेहतर राजयोग वाले और भी अनेक राजयोगी आयेंगे | कलियुग में राजयोग की परिभाषा भी लोग भूल चुके हैं | गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि इक्ष्वाकु (-वंश) के बाद दीर्घकाल से (समूचे द्वापर युग में) राजर्षियों वाला यह योग लुप्त था जो तुझे (अल्पकाल के लिए) दे रहा हूँ अर्जुन ! राजा भी हो और योगी भी, इसे कहते हैं राजयोग !!! राजयोग की परम्परा दीर्घकाल से लुप्त थी जो पुनः आरम्भ हो रही है | राजा शिवि की तरह अपना मांस खिलाकर दूसरों के प्राण बचाए, दधीचि की तरह अपनी हड्डी तक दान देकर असुरों से विश्व को बचाए, मोदी की तरह अपना व्यक्तिगत मोक्ष भूलकर समाजसेवा में जुट जाय, ऐसे राजाओं और योगियों की परम्परा केवल हिन्दुत्व ही सिखा सकता है, अन्य संस्कृतियों में ऐसी सीख ही नहीं है | केवल मन्दिर में घंटे हिलाना ही हिन्दुत्व नहीं है | मन में भक्ति हो तो बिना मन्दिर गए भी भगवान मिल सकते हैं, लेकिन दूसरों के कष्ट देखकर जिसके आँसू न निकले उसे भगवान कभी नहीं मिल सकते | मोक्ष तभी मिलता है जब मोक्ष का भी लोभ न बचे |
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विजय झा की पोस्ट

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