गुरुवार, 29 अगस्त 2019

"भादवे का घी"

भाद्रपद मास आते आते घास पक जाती है।
जिसे हम घास कहते हैं, वह वास्तव में अत्यंत दुर्लभ #औषधियाँ हैं।
इनमें धामन जो कि गायों को अति प्रिय होता है, खेतों और मार्गों के किनारे उगा हुआ साफ सुथरा, ताकतवर चारा होता है।
सेवण एक और घास है जो गुच्छों के रूप में होता है। इसी प्रकार गंठिया भी एक ठोस खड़ है। मुरट, भूरट,बेकर, कण्टी, ग्रामणा, मखणी, कूरी, झेर्णीया,सनावड़ी, चिड़की का खेत, हाडे का खेत, लम्प, आदि वनस्पतियां इन दिनों पक कर लहलहाने लगती हैं।
यदि समय पर वर्षा हुई है तो पड़त भूमि पर रोहिणी नक्षत्र की तप्त से संतृप्त उर्वरकों से ये घास ऐसे बढ़ती है मानो कोई विस्फोट हो रहा है।
इनमें विचरण करती गायें, पूंछ हिलाकर चरती रहती हैं। उनके सहारे सहारे सफेद बगुले भी इतराते हुए चलते हैं। यह बड़ा ही स्वर्गिक दृश्य होता है।
इन जड़ी बूटियों पर जब दो शुक्ल पक्ष गुजर जाते हैं तो चंद्रमा का अमृत इनमें समा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से इनकी गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है।
कम से कम 5 km चलकर, घूमते हुए गायें इन्हें चरकर, शाम को आकर बैठ जाती है।
रात भर जुगाली करती हैं।
अमृत रस को अपने दुग्ध में परिवर्तित करती हैं।
यह दूध भी अत्यंत गुणकारी होता है।
इससे बने दही को जब मथा जाता है तो पीलापन लिए नवनीत निकलता है।
5से 7 दिनों में एकत्र मक्खन को गर्म करके, घी बनाया जाता है।
इसे ही #भादवेकाघी कहते हैं।
इसमें अतिशय पीलापन होता है। ढक्कन खोलते ही 100 मीटर दूर तक इसकी मादक सुगन्ध हवा में तैरने लगती है।
बस,,,, मरे हुए को जिंदा करने के अतिरिक्त, यह सब कुछ कर सकता है।
ज्यादा है तो खा लो, कम है तो नाक में चुपड़ लो। हाथों में लगा है तो चेहरे पर मल दो। बालों में लगा लो।
दूध में डालकर पी जाओ।सब्जी या चूरमे के साथ जीम लो।
बुजुर्ग है तो घुटनों और तलुओं पर मालिश कर लो।
इसमें अलग से कुछ भी नहीं मिलाना। सारी औषधियों का सर्वोत्तम सत्त्व तो आ गया!!
इस घी से हवन, देवपूजन और श्राद्ध करने से अखिल पर्यावरण, देवता और पितर तृप्त हो जाते हैं।
कभी सारे मारवाड़ में इस घी की धाक थी।
इसका सेवन करने वाली विश्नोई महिला 5 वर्ष के उग्र सांड की पिछली टांग पकड़ लेती और वह चूं भी नहीं कर पाता था।
मेरे प्रत्यक्ष की घटना में एक व्यक्ति ने एक रुपये के सिक्के को मात्र उँगुली और अंगूठे से मोड़कर दोहरा कर दिया था!!
आधुनिक विज्ञान तो घी को #वसा के रूप में परिभाषित करता है। उसे भैंस का घी भी वैसा ही नजर आता है। वनस्पति घी, डालडा और चर्बी में भी अंतर नहीं पता उसे।
लेकिन पारखी लोग तो यह तक पता कर देते थे कि यह फलां गाय का घी है!!
यही वह घी था जिसके कारण
कुंवारे रात भर कबड्डी खेलते रहते थे!!
इसमें # स्वर्ण की मात्रा इतनी रहती थी, जिससे सर कटने पर भी धड़ लड़ते रहते थे!!

बाड़मेर जिले के #गूंगा गांव में घी की मंडी थी। वहाँ सारे मरुस्थल का अतिरिक्त घी बिकने आता था जिसके परिवहन का कार्य बाळदिये भाट करते थे। वे अपने करपृष्ठ पर एक बूंद घी लगा कर सूंघ कर उसका परीक्षण कर दिया करते थे।
इसे घड़ों में या घोड़े के चर्म से बने विशाल मर्तबानों में इकट्ठा किया जाता था जिन्हें "दबी" कहते थे।
घी की गुणवत्ता तब और बढ़ जाती, यदि गाय पैदल चलते हुए स्वयं गौचर में चरती थी, तालाब का पानी पीती, जिसमें प्रचुर विटामिन डी होता है और मिट्टी के बर्तनों में बिलौना किया जाता हो।
वही गायें, वही भादवा और वही घास,,,, आज भी है। इस महान रहस्य को जानते हुए भी यदि यह व्यवस्था भंग हो गई तो किसे दोष दें?

 जो इस अमृत का उपभोग कर रहे हैं वे निश्चय ही भाग्यशाली हैं। यदि घी शुद्ध है तो जिस किसी भी भाव से मिले, अवश्य ले लें।
यदि भादवे का घी नहीं मिले तो गौमूत्र सेवन करें। वह भी गुणकारी है।

बुधवार, 21 अगस्त 2019

घूम रहा है काल पहिया

 आज अगर अमित शाह की जगह कोई दूसरा गृहमंत्री होता तो चिदंबरम आज भी अपने घर पर मिलते। वे डरे हुए न होते। लापता न होते। वाकई बहुत ही दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई है। संयोग देखिए। पी. चिदंबरम आज भागे हुए हैं और आज देश का गृह मंत्रालय अमित शाह के हाथ में है। कभी तस्वीर एकदम उल्टी थी। तब चिदंबरम देश के गृहमंत्री थे और अमित शाह साबरमती की जेल में थे। तब चिदंबरम नॉर्थ ब्लॉक स्थित गृहमंत्री कार्यालय में बैठकर "भगवा आतंकवाद" की फाइल तैयार करवा रहे थे और अमित शाह अपने बचाव की फ़ाइल में रोज़ ही नए पन्ने जोड़ रहे थे। अमित शाह इस मामले में हिसाब किताब पूरा रखने के आदी हैं। मुरव्वत करना उनकी आदत में नही है। ये अमित शाह के गृहमंत्री होने का खौफ ही है कि चिदंबरम रातोंरात लापता हैं।

यही अमित शाह के काम करने की शैली है। किसी ने कभी उम्मीद नही की थी कि एक रोज़ कश्मीर में यूँ बाजी पलट दी जाएगी। उम्मीद तो ये भी नही थी कि कभी देश के सबसे ताकतवर मंत्री रहे चिदंबरम का ये हश्र भी होगा! पर यही अमित शाह हैं। उनकी किताब में "रियायत" नाम का शब्द नही हैं। सही-गलत क्या है, ये फैसला वक़्त और कोर्ट पर छोड़ते हैं। आज सिर्फ राजनीति की नई इबारत को पढ़ने की कोशिश हैं। चिदम्बरम मार्च 2018 से लगातार अपनी गिरफ्तारी पर रोक का आदेश हासिल कर रहे थे। मगर आज किस्मत जवाब दे गई। उनके खिलाफ ठोस सबूत हैं। एक भी आरोप हवाई नहीं हैं। विदेशों में परिवार के नाम हजारों करोड़ों की संपत्ति के कागज हैं। आईएनएक्स मीडिया और फिर एयरसेल-मैक्सिस के मामले में एफआईपीबी नियमों को तोड़ मरोड़ कर सैकड़ों करोड़ का फायदा पहुंचाने और उसका एक बड़ा परसेंटेज अपने बेटे की कंपनी तक पहुंचाने के पक्के सबूत हैं। ये सब तब हो रहा था जब चिदंबरम देश के वित्तमंत्री थे।

यकीन मानिए कि इस देश की राजनीति वक़्त के एक निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है। परिवार, खानदान, प्रभावशाली लोग, बड़े नेताओं से मीठे रिश्ते जैसे सियासत के खानदानी शब्द राजनीति की इस नई डिक्शनरी से साफ हो चुके हैं। अब ये आर-पार की लड़ाई है। आज चिदंबरम की बारी आई है। नोट कर लीजिए, कल दस जनपथ का बुलावा आएगा। इन पांच सालों में बहुत कुछ ऐसा होगा जो इतिहास में कभी न हुआ।

नोट कर लीजिए कि भारत की राजनीति के ये 5 साल अगले सौ सालों तक राजनीति के लिए शोध का विषय रहेंगे।

ध्यान से सोचो क्या करना है ?


* खर्च करते समय सावधानी बरतें। आगे भारी मंदी आ रही है। *
अमेरिका ने घोषित कर दिया है 2020-21 में मंदी आ रही है*
औद्योगिक उत्पादन में कमी के कारण माल की माँग पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। विनिर्माण क्षेत्र से मांग, जो कि ट्रक परिवहन में सबसे अधिक योगदान देता है, न्यूनतम स्तर पर है।
माल की मांग में कमी के कारण, पहली तिमाही में देश के सभी प्रमुख मार्गों पर ट्रक बेड़े में 30% की कमी आई है।
समय सोचने का, अब आपके परिवार में धन लक्ष्मी के पास वो छुपा धन भी नही है, जिससे उसने, 2006-8 में आपके परिवार को, देश को मंदी से बचा लिया था ?
मंडीदीप हो या गोविंदपुरा हर तीसरा संस्थान मंदी ओर बंदी की ओर अग्रसर है???*

रोजगार घट रहे है, अपराध का ग्राफ बड़ रहा है, दर्ज नहीं हो रहे???*
* भारत में एक अघोषित वित्तीय संकट है। इस तरह के संकट जनता के लिए दिखाई देते हैं। मौजूदा स्थिति इस संकट का केवल पहला दौर है। ”
• बैंकों का एनपीए बढ़ने का मतलब है कि पूंजी की कमी जिसका मतलब है कि कोई नया निवेश नहीं।
• घरों को बेचा नहीं जा रहा है जिसका मतलब है कि स्टील, सीमेंट, बाथरूम फिटिंग, निर्माण में गिरावट। इस बैंकों के साथ एनपीए बढ़ेगा। ये एनपीए संकट को और गहरा बनाकर व्यक्तिगत स्तर तक जाते हैं।
• वाहन की बिक्री में कमी आ रही है। देश में पहली बार टू व्हीलर की बिक्री में नकारात्मक वृद्धि देखी जा रही है। मारुति ने उत्पादन में 50% की कटौती की है। कई ऑटो डीलर बंद कर रहे हैं। इसका मतलब है कि स्टील, टायर और अन्य सामान की मांग में काफी कमी है।
उपरोक्त घटनाक्रम का मतलब है कि करोड़ों नौकरियों का अंत और सरकार के कर राजस्व में कमी। ऐसी स्थिति में, सरकार निराश हो जाती है और हर चीज पर कर लगाकर अपना घाटा पूरा करना चाहती है। सरकार मुनाफे को निजी हाथों में लेती है और उसे सरकार के खाते में डाल देती है। इसके अलावा, ऐसी स्थिति में, सरकारी संपत्तियों को उनके पसंदीदा कॉर्पोरेट्स को कई गुना में बेचा जाता है और नुकसान बढ़ता है।
भारत में संकट मार्च 2020 के आसपास दिखाई देगा, अधिकांश औसत भारतीय इस बारे में अनजान हैं। यह सावधानी बरतने का समय है जब आप साबुन, शैम्पू और डिटर्जेंट नहीं बेच पा रहे हैं।
पिछले कुछ तिमाहियों से भी एफएमसीजी सेक्टर मंदी की चपेट में है। क्या आपको याद है जब आपने आखिरी बार बाबा रामदेव की पतंजलि कंपनी का विज्ञापन देखा होगा? पतंजलि टीवी पर लगभग 2 साल पहले सबसे अधिक सक्रिय था, लेकिन पिछले एक साल से, यहां तक ​​कि भारत के एफएमसीजी बाजार में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली पतंजलि की स्थिति खतरनाक है। पतंजलि के उत्पादों की बिक्री सिकुड़ रही है। इसके अलावा, पतंजलि आयुर्वेद ने वित्त वर्ष 2018 में 10% राजस्व घाटा दिखाया है। न केवल पतंजलि, बल्कि हिंदुस्तान लीवर जैसी कंपनियां भी विकास में कमी आई हैं। तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता सामान जैसे साबुन, टूथपेस्ट, हेयर ऑयल, बिस्कुट आदि की मांग ग्रामीण क्षेत्रों में काफी कम हो गई है। इसने उन व्यवसायों के प्रदर्शन को भी धीमा कर दिया है, जो स्वस्थ ग्रामीण मांग पर निर्भर हैं। इसमें एफएमसीजी, दोपहिया और ऑटो कंपनियां शामिल हैं जो एंट्री-लेवल कार बनाती हैं।
अब आते हैं ट्रांसपोर्ट पर- इंडियन फाउंडेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग की रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर 2018 से ट्रक किराये में 15% की गिरावट दर्ज की गई है। फ्लीट यूटिलाइजेशन भी इससे ज्यादा गिरा है। सभी 75 ट्रंक रूट, किराया काफी कम हो गए हैं। पिछले साल की पहली तिमाही की तुलना में अप्रैल से जून के बीच फ्लीट यूटिलाइजेशन में 25% से 30% की कमी आई है। इससे ट्रांसपोर्टर्स की आय में भी लगभग 30% की कमी आती है। कई ऑपरेटर अगली तिमाही में फ्लीट की ईएमआई डिफ़ॉल्ट में भी आ सकते हैं।
हीरोमोटर, टीव्हीएस या टाटा मोटर्स पुणे का प्लांट 3 दिनों के लिए बंद रहेगा, जिसमें कंपनी का 50% समय खर्च होगा और शेष राशि कर्मचारियों द्वारा ली गई पत्तियों के रूप में वहन की जाएगी। कारण कार उत्पादन को कम करना है क्योंकि मांग धीमी हो गई है और इकाइयाँ बेकार पड़ी हैं।
टाटा मोटर्स के साथ अन्य प्रमुख ऑटो कंपनियां अपने संविदा कर्मचारियों की पुन: नियुक्ति कर रही हैं और वास्तविक कर्मचारियों या काम किए गए घंटों के मामले में संख्या को कम कर रही हैं।
शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च करने वाले उपभोक्ताओं में कमी आई है और अप्रैल की चरम मांग के बाद कृषि में परिवहन लगभग सुस्त हो गया है।
जून में FMCG द्वारा फलों और सब्जियों की मांग में 20% की कमी आई है।

चंद्र भान सक्सेना
व्यापार प्रतिनिधि, भोपाल