निम्न तथ्यों पर गौर करें....
यदि पिछले 25-30 सालों को याद करें तो मुझे याद है कि वाहन खरीदने से पहले और खरीदने के बाद कहीं जाने के लिये स्कूटर मोटरसाइकिल घर से निकालने से पहले लोग ईंधन के खर्च का हिसाब लगाते थे। और ये खर्च उनकी मासिक आय में से एक बड़ा हिस्सा होता था। इसलिये अक्सर प्लान को बदल देते थे।आज 624 CC की टाटा नैनो कोई नहीं खरीदना चाहता। 1500-1600 CC की ब्रेजा, क्रेटा व उससे भी ज्यादा बड़े इंजन की कारें सड़कों पर ऐसे दिखती हैं जैसे कभी मारुति 800 दिखा करती थीं। किसी को किफायती कारे नहीं चाहिये बल्कि ज्यादा पावर वाली बड़ी कारें चाहियें.... क्यों?
क्या इसलिये कि पैट्रोल डीजल मंहगा हो रहा है?
80 CC की मोपेड की बजाय विगत वर्षों में 350 व 500 CC की बुलट की संख्या बेतहाशा बढ़ी है.... क्यों?
क्या इसलिये कि पैट्रोल डीजल लगातार मंहगा हो रहा है?
यदि किसानों की भी बात करूं तो 24 हॉर्स पॉवर के आयशर व 25 हॉर्स पावर के HMT 2511 ट्रैक्टर ही कभी 90% किसान खरीदते थे। ये ट्रैक्टर 30-40 एकड़ तक की खेती को संभालने के लिये पर्याप्त होते थे। लेकिन आज ज्यादातर किसान 45 से 90 हॉर्स पावर तक के ट्रैक्टर खरीदते हैं। 2 एकड़ का मालिक किसान भी बिना बड़े ट्रैक्टर के खेती नहीं करता। हल बैल तो छोड़िए 24-25 हॉर्स पावर के ट्रैक्टर भी गांवों से खेतों से ऐसे गायब हो गए हैं जैसे सड़कों से मोपेड.... क्यों?
क्या इसलिये कि पैट्रोल डीजल मंहगा हो रहा है?
आपका 17-18 साल का लड़का जिम करने व ट्यूशन के लिये बाइक से जाता है और आप नहीं रोकते। पार्किंग की आफत के बावजूद एक दो km दूर बाजार या सब्जी मंडी तक जाने के लिये भी लोगों को कार चाहिए... क्यों❓
क्या इसलिये कि पैट्रोल डीजल मंहगा हो गया है?
और बिना कारण के इतना डीजल पैट्रोल फूँकने का क्या प्रभाव पर्यावरण पर पड़ रहा है इससे भी कोई अनजान तो नहीं है।
उपरोक्त सब का कारण क्या ये है कि पैट्रोल डीजल मंहगा हो गया है?
जी नहीं...उपरोक्त सब का कारण ये है कि लोगों की आय के मुकाबले में डीजल पैट्रोल का कोई मूल्य ही नहीं रह गया है। एक सत्य ये भी है कि इतना डीजल पैट्रोल फूंकना लोगों की जरूरत नहीं बल्कि लक्जरी बन गयी है।
पहले पतली सड़के हुआ करती थीं पर जाम नहीं लगते थे।
👉पर आज सड़कें पहले से संख्या व चौड़ाई में भी ज्यादा हैं पर सड़कों पर जाम रहता है.... क्यों?
क्या इसलिये कि पैट्रोल डीजल मंहगा हो रहा है❓
हर घर के बाहर गली में खड़ी कारों की वजह से गली में चलना भी दूभर होता है। सोचिये यदि डीजल पैट्रोल आज 10 रुपये लीटर हो जाये तो जाम की स्थिति क्या होगी? क्या सड़कों पर हम चल भी पाएंगे?
मेरी नजर में ये वक्त की मांग है कि इस बढ़ी हुई आमदनी से सरकार को पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बेहतर बनाने के प्रयास अवश्य करने चाहिएँ। ईंधन का खर्च बढ़ने से इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ भी लोगों का रुझान बढ़ेगा। उससे फायदा ये होगा कि अरब देशों की औकात और पर्यावरण प्रदूषण स्तर..... दोनों लिमिट में आ जाएंगे।
अरविन्द राय की पोस्ट __
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