दुर्ग, भिलाई, राजनांदगांव, रायपुर, धमतरी, जगदलपुर सहित छत्तीसगढ़ के अधिकांश जगहों पर कौवों की पितृपक्ष में चांदी है। भरपेट आहार मिल रहा है। अभी तक यह शिकायत नहीं मिली है कि कोई कौआ अपचन का शिकार हुआ हो। स्वर्गवासी माता-पिता को उनकी संतानें भोग स्वरूप खीर-पूड़ी, पराठा, बालूशाही,जलेबी और रसगुल्ले तक परोस रहे हैं। धन्य है ऐसे पितृ भक्तों को जो वे जीवित थे तब तक उन्हें तरसाते रहे उन्हें वृद्धाश्रम तक का रास्ता दिखा दिया |अब वही लोग जब स्वर्ग वासी हो गए तब पितृ सेवा के रूप में तर्पण , श्राद्ध का दिखावा कर रहे हैं |इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह छत्तीसगढ़ी आलेख- पितर पाख म कउवा मन के कांव... कांव..|
जीवन भर दाई-ददा ल नइ मानिन,न मान-गउन, सम्मान करिन, जइसे तइसे करके ओ बपरा मन जीवन गुजारिन। आखरी समे आइन तब आंखी लड़ेर दिन, अइसे संसार से बिदा ले लिन। कतको झन तो अइसे कुभारज बेटा निकलगे हे जउन बूढ़त काल मं दाई-ददा ल हटकार के घर ले निकाल दिन अउ वृद्धाश्रम मं ढकेल दिन। छोटे मन ल कोन कहे बड़े-बड़े करोड़पति बेटा मन घला धकिया के निकाल दे हे अपन दाई-ददा मन ला। वाह रे कुभारज बेटा हो, बहुत जस के काम करै हौ, अउ करथौ। तुंहरो तो एक दिन समे आही, तहू मन घला डोकरी-डोकरा होहू, हाथ गोड़ नइ चलही, आंखी कान जवाब दे दिही, लउठी टेक-टेक के चलिहौ, अउ एक दिन टें कर दे हौ, तुंहरो संतान मन जइसे तुमन करै हौ, करथौ, वइसने करही तब तुमन ल कइसे लागही?
ये बात, ये करा एकर सेती उठत हे वइसने कपूत संतान मन आज सपूत बेटा असन जब पितर पाख (पितृ पक्ष) चलत हे तब अपन पुरखा मन के सुरता करत, श्राद्ध तरपन करत हे। जउन अइसन बेटा मन के करतूत ल जानथे तउन मन आपस मं गोठियावत-बतावत कहिथे- देखत हस गा मंडल वहिदे रामनाथ ल, कइसे एक दिन बाते-बात मं बात बढग़े तब अपन बाप ला डंडे-डंडा बजेड़े रिहिस, कलहर-कलहर के मरगे ओ सियनहा एक दिन। आज बड़ा सपूत बनथे, श्राद्ध तरपन करत हे, अब अोला गया (तीर्थ स्थान) लेगहू काहत हे।
तब दूसर सियनहा कहिथे- अरे काला का कहिबे भइया, ये कलजुग हे कलजुग, ये बेटा मन संतान नोहय, चंडाल हे गा, चंडाल। मोरो बेटा एक दिन अइसन जहर उगले असन बहू के बात मं आके अइसे उल्टा-पुल्टा सुना दिस ते मैं कट खाके रहिगेंव। उलट के जवाब देवत नइ बनिस, देतेंव, तब ओकरे सही मोरो हाल होय रहितिस। इही पाके देख रे आंखी सुन रे कान, कस कले चुप रहिगेंव।
दूनो सियान के गोठ-बात चलत राहय, अपन-अपन बेटा मन के चारी-चुगली करत राहय, ततके बेर कते कोती ले टहलत खेदू महाजन आगे। ओकर मन तीर बइठके तम्बाकू रगड़े ले धर लिस। बने रमंज लिस तहां ले ओ सियनहा मन ल बनाय खैनी ल देथे। मुंह में दबा लिस तहां ले फेर शुरू होगे उही कथा। खेदू कहिथे- एक ठन अलकरहा खबर हे गा|तब वोमन पूछथे-कोनो घटना, दुरघटना होगे हे कोनो मर-सर गे हे ते कोनो कोती बाढ़ आगे हे?
अरे वइसन खबर नइहे गा? तब का खबर हे भई, बने फोर के बता तब न जानबो। तब खेदू बताथे- अरे खबर हे के एक झन करोड़पति, उद्योगपति हे तेकर बेटा हा ओला हाथ धर के घर ले बाहिर निकाल दिस।
- अतेक बड़े मनखे ला काबर निकाल दिस, काबर अइसन करिस होही ओहर, कुछु जबर बात होही?
अरे कोनो जबर बात नइहे ददा हो मोर, अपन गोसइन के बात ला मान के अइसन करे हे। पहि ली तो बेटा-बहू मन अड़बड़ सेवा करत रिहिन हे ओकर। इही बीच बहू अइसे पासा फेंकिस ते ससुर के नांव मं जतका संपत्ति रिहिसे तउन ला अपन नांव करवा लिस । जब दार गलगे, संपत्ति के मालिकाना हक ओकर मन के नांव आगे तेकर बिहान भर शकुनि चाल चल दिस। ओ सियान हा माथा धर के रोये ले धर लिस। आखिर म जीयत भर वृद्धाश्रम मं रिहिस। एक दिन मरगे तहां ले किरिया करम करिस। अब पितर-पाख मं ओला तरपन करत हे।
अउ सुनव मजेदार बात- अब तो तरपन के आड़ मं कउंवा मन ला नेवता देथे। कहां-कहां के कउंवा सकला जथे ओकर बारी मं, बियारा मं, जिहां कउंआ दिखथे तिहां ओमन ला सोहारी, बरा, रसगुल्ला, बालूसाही बांटथे। ये बेटा के अइसन करनी ला देख के सब हांसथे ्उ कहिथे- देखत हव गा ये हेरौठा, चंडाल बेटा ला जीयत रिहिसे तब घर ले अइसे हटकार के निकाल दिस गोसइन के बात मान के जइसे घर के कचरा ला घुरवा मं फेके जाथे। आज उही ददा जब सरगवासी होगे तब ओकर नांव ले के, ओकर सुरता मं कउंवा मन ला खीर-पुड़ी खवावत हे। धन हे अइसन कलजुगी बेटा मन ला।
खेदू कहिथे- कोन कहिथे के कउंवा मन ला खवाय-पियाय मं परलोकवासी आत्मा मन ला शांति मिलथे, ओमन परसाद पाथे। कतको झन कहिथे- बाम्हन भोज कराय ले घला पितर मन के आत्मा आथे। कतेक अंधविश्वास के शिकार होगे हे मनखे? अरे जउन शरीर ला तियाग के आत्मा एक घौ निकल गे , ओ तो दूसर जघा जन्म घला ले लेथे। ओहर बच्चा ले जवान घला हो जाय रहिथे तउन का उहां ले कोनो बाम्हन के तन मं आही, भोग खाय बर? ये चाल हे ठगी करे के षडयंत्र हे। धारमिक भावना के शोसन हे। अशिक्षा अउ अज्ञानता के शिकार मनखे मन ल एकर ले उबरे ले परही। कउंवा के भोग लगाय ले पितर ला का मोक्ष मिलही। राम-राम कइसे मछरी कस जाल मं फंसे हे मनखे, अउ शिकारी जीभर के लूटत हे अउ काहत हे जब तक मूरख दुनिया मं जिंदा हे शिकारी मालामाल रइही।
परमानंद वर्मा
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